(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2854/2006
Life Insurance Corporation of india
Versus
Baru (decease)
Substitute Legal heir
1/1 Smt. Maya Devi
1/2 Shri Reenu Kumar
1/3 Shri Narendra Kumar
1/4 Smt Mamlesh Saini
1/5 Smt Reena Saini
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: सुश्री रेहाना खान, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :11.01.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- परिवाद सं0 76/2003, बारू बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम मे विद्धान जिला आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.10.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी की विद्धान अधिवक्ता सुश्री रेहाना खान के तर्क को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता मंच ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमाधारक की मृत्यु पर बीमित राशि अंकन 40,000/-रू0 दिनांक 18.06.2001 से 5 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश दिया है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी के पुत्र रविन्द्र कुमार सैनी के लिए एक बीमा पॉलिसी दिनांक 28.12.1994 को अंकन 40,000/-रू0 के लिए ली गयी थी, जिसका प्रीमियम अर्द्धवार्षिक किश्तों में अदा किया जाना था। परिवादी पॉलिसी में नॉमिनी है, जून 95 से दिसम्बर 95 तक की प्रीमियम अदा किया जा चुका था। अगली किश्त जून 96 में देय थी। इस मध्य दिनांक 10.07.1996 को परिवादी के पुत्र की नदी में डूबने के कारण मृत्यु हो गयी। नदी में पैर फिसलने के कारण परिवादी का पुत्र गिर गया था। अब बीमा कम्पनी के एजेण्ट को समस्त दस्तावेज उपलब्ध करा दिये गये, परंतु बीमा क्लेम प्राप्त नही हुआ, इसके पश्चात दिनांक 04.12.2001 को पंजीकृत डाक से सूचना भेजी गयी, परंतु बीमा क्लेम नहीं दिया गया, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- बीमा कम्पनी का कथन है कि दिसम्बर 95 की किश्त दी गयी थी, लेकिन जून 96 की किश्त अदा नहीं की गयी, इसलिए पॉलिसी लैप्स हो चुकी थी और 99 तक पॉलिसी प्रचलित नहीं करायी गयी। दिनांक 18.06.2001 को परिवादी की ओर से प्रतिवेदन दिया गया, जिसमें दिनांक 10.07.1996 को मृत्यु होना बताया गया। इस प्रकार अत्यधिक देरी से सूचना दी गयी। अत: बीमा क्लेम देय नहीं है।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा निष्कर्ष दिया गया है कि जिस दिन बीमाधारक की मृत्यु हुई थी, उस दिन पॉलिसी लैप्स नहीं हुई थी और चूंकि परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी के एजेण्ट को दस्तावेज उपलब्ध करा दिये गये थे, इसलिए बीमा कम्पनी को देरी से सूचना देने का कोई विपरीत परिणाम नहीं है तदनुसार बीमित धनराशि अदा करने का आदेश दिया है।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि सर्कुलर के अनुसार तथा नजीर शकुंतला बनाम एल0आई0सी में दी गयी व्यवस्था के अनुसार 7 वर्ष पश्चात बीमा क्लेम प्रस्तुत करने पर बीमा कलेम देय नहीं माना गया, परंतु प्रस्तुत केस में स्थिति यह है कि परिवादी का यह कथन है कि बीमाधारक की मृत्यु के पश्चात अभिकर्ता को सूचना दी गयी थी, परंतु उनके द्वारा सही सलाह नहीं दी गयी। परिवादी ग्रामीण परिवेश का व्यक्ति है, इसलिए एजेण्ट को सूचना देने के पश्चात एजेण्ट द्वारा भी बीमा क्लेम प्राप्त करने में परिवादी को सहायता उपलब्ध करायी जानी चाहिए थी। बीमा कम्पनी को सूचना देने में समयावधि कभी भी आज्ञात्मक प्रावधान नहीं मानी गयी है, इसलिए देरी से बीमा कम्पनी को पंजीकृत डाक से सूचना देने का कोई विपरीत प्रभाव नहीं है, जबकि परिवादी ने सशपथ साबित किया है कि एजेण्ट को बीमा क्लेम के संबंध में समस्त सूचनाएं एवं दस्तावेज उपलब्ध कराये गये थे। अत: बीमा क्लेम अदा करने के संबंध में दिया गया निष्कर्ष पुष्ट होने योग्य है यद्यपि ब्याज की गणना मृत्यु की तिथि के बजाए परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से किये जाने का आदेश देना उचित है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को देय बीमित राशि पर ब्याज की गणना परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से की जायेगी।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3