(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-61/2011
श्रीमती आशा देवी पत्नी स्व0 मुन्ना लाल
बनाम
शाखा प्रबंधक, बड़ौदा उ0प्र0 ग्रामीण बैंक तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर.डी. क्रांति।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री अवधेश शुक्ला।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : श्री ए.के श्रीवास्तव।
दिनांक : 01.08.2024
माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-17/2006, श्रीमती आशा देवी बनाम शाखा प्रबंधक, बड़ौदा उ0प्र0 ग्रामीण बैंक तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, सुलतानपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 21.09.2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर.डी. क्रांति एवं प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री अवधेश शुक्ला तथा प्रत्यर्थी सं0-2 के विद्वान अधिवक्ता श्री ए.के. श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत लिए गए ऋण के बीमाधारक का क्लेम बीमा कंपनी ने इस आधार पर निरस्त कर दिया कि बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 17.10.2005 को हो गई, जबकि
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बीमा की अवधि दिनांक 18.11.2005 से दिनांक 17.11.2006 है। इसी आधार पर विद्वान जिला आयोग ने परिवाद खारिज कर दिया।
3. प्रस्तुत केस के तथ्यों का अवलोकन करने, पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता को सुनने के पश्चात यह तथ्य स्थापित है कि परिवादी अपीलार्थी बैंक का किसान क्रेडिट कार्डधारक है, उसके द्वारा बैंक से ऋण लिया गया। बैंक द्वारा प्रीमियम राशि की कटौती की गई और दिनांक 01.10.2005 को अन्य 99 लोगों के साथ क्रमांक सं0-29 पर परिवादी का नाम भी बीमा पालिसी प्राप्त करने के लिए प्रेषित किया गया, परन्तु यह पत्र यथार्थ में दिनांक 01.10.2005 को प्रेषित किया गया, इस तथ्य का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। बीमा पालिसी स्वीकार्य रूप से दिनांक 18.11.2005 से दिनांक 17.11.2006 की अवधि के लिए है, जबकि बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 17.10.2005 को हो चुकी है, इसलिए मृत्यु की तिथि को बीमा पालिसी अस्तित्व में नहीं थी और बैंक द्वारा समय से प्रीमियम की राशि बीमा कपंनी को उपलब्ध नहीं कराई गई, इसलिए बीमा पालिसी प्रारम्भ होने से पूर्व ही बीमाधारक की मृत्यु होने के कारण बीमा कंपनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, परन्तु यह त्रुटि बैंक के स्तर से कारित की गई है, इसलिए बैंक को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। परिवाद निरस्त करने का कोई औचित्य नहीं था। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
4. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.09.2010 अपास्त
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किया जाता है तथा परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया परिवाद विपक्षी सं0-1, बैंक के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है तथा बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह बीमा की राशि परिवादिनी को 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज के साथ परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक अदा की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2