जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या-119/2017 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-28.03.2017
परिवाद के निर्णय की तारीख:-20.06.2024
1. महेन्द्र प्रताप सिंह पुत्र श्री प्रेम शंकर सिंह।
2. श्रीमती पूजा रानी सिंह पत्नी श्री महेन्द्र प्रताप सिंह, स्थायी पता-158, चतुर्भुजपुर, प्राइमरी स्कूल के पीछे, थाना-मिल, जिला-रायबरेली, उ0प्र0। पत्राचार का पता द्वारा रामेश्वर दीक्षित (एडवोकेट), ओंकार वाटिका कालोनी, पडरौना, कुशीनगर। ............परिवादीगण।
बनाम
1. वर्दा इस्टेट एण्ड प्रापर्टीज प्राइवेट लिमिटेड (द्वारा प्रबन्ध निदेशक) पंजीकृत कार्यालय 08 जे0सी0 बोस मार्ग, लालबाग, लखनऊ-226001, कार्पोरेट कार्यालय 405, 406, 407 टाईटेनियम ब्लॉक, शालीमार कार्पोरेट पार्क, विभूति खण्ड, गोमती नगर लखनऊ-226010 ।
2. राघवेन्द्र सिंह एम0डी0 रियेलिटी स्ट्रक्चर, 3/211, विपुल खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ। ............विपक्षीगण।
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्री आशुतोष यादव।
विपक्षी संख्या 01 के अधिवक्ता का नाम:-श्री वत्सल गुप्ता।
विपक्षी संख्या 02 के अधिवक्ता का नाम:-कोई नहीं।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षीगण से 8,69,854.00 रूपये एवं परिवादीगण द्वारा वहन किया गया दो वर्षों से किराया 3,60,000.00 रूपये एवं मानसिक, आर्थिक कष्ट व उत्पीड़न हेतु 6,00,000.00 रूपये कुल 18,29,854.00 रूपया दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवादीगण के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 01 वर्दा हाईट्स फर्म से शहीद पथ नेक्स्ट टू सुल्तानपुर रोड साईट पर 3 बी0एच0के0 (1722 वर्गफिट) अपार्टमेंट लेने हेतु दिनॉंक 28.07.2012 को एक एग्रीमेंट किया जिसके बाबत विपक्षी संख्या 01 ने परिवादीगण से 4,34,927.00 रूपया (चेक संख्या-976748 दिनॉंक 28.07.2012, रू0-3,09,270.00 चेक संख्या 415846 दिनॉंक 09.10.2012, रू0 1,25,657.00) कुल धनराशि रू0-8,69,854.00 बतौर एडवांस प्राप्त किया।
3. विपक्षी संख्या 02 के द्वारा ही परिवादीगणों को उक्त प्रोजेक्ट में अपार्टमेंट की बुकिंग के लिये क्रेडिट किया गया था, तथा एग्रीमेंट के समयानुसार अपार्टमेंट में पजेशन दिलाने का वायदा किया गया था। विपक्षी संख्या 01 द्वारा परिवादीगण को दिनॉंक 19.12.2012 को वर्दा हाईट्स प्रोजेक्ट के फेस-01 में यूनिट संख्या ए-305 तृतीय तल लॉन फेसिंग अपार्टमेंट का एलाटमेंट लेटर दिया गया। एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार विपक्षी द्वारा अपार्टमेंट का पजेशन एग्रीमेंट की तारीख से तीन वर्ष के अन्दर परिवादीगण को दे देना था, किन्तु विपक्षी द्वारा शर्तों का पालन नहीं किया गया।
4. एक वर्ष बीत जाने के बाद भी विपक्षी द्वारा उक्त साईट पर कोई निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं किया गया और परिवादीगण से कहा गया कि अभी तक सरकार से एन0ओ0सी0 नहीं मिल पायी है। इसलिए वर्दा हाईट्स प्रोजेक्ट में विलम्ब होगा और विपक्षी फर्म द्वारा अपने दूसरे प्रोजेक्ट वर्दा जीवन में प्लाट की बुकिंग हेतु एक अन्य स्कीम में उक्त धनराशि समायोजित करने के लिये कहा, किन्दु परिवादीगण ने वर्दा हाईट्स में अपार्टमेंट की बुकिंग आवास के उद्देश्य से किया था, इस कारण से विपक्षी के ऑफर को रिजेक्ट कर दिया।
5. कई वर्ष बीत जाने पर भी विपक्षी द्वारा उक्त साईट पर कोई निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं किया गया और न ही इसके बावत कोई सूचना दी गयी। माह नवम्बर 2014 से विपक्षी ने पुन: परिवादीगण से कहा कि वर्दा हाईट्स प्रोजेक्ट शहीद पथ नेक्स्ट टू सुल्तानपुर रोड के लिये सरकार से एन0ओ0सी0 अभी तक नहीं मिल पा रही है, इसलिए निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है। विपक्षीगण ने परिवादी से कहा कि यदि वह उक्त जमा धनराशि फर्म के दूसरे प्रोजेक्ट वर्दा गार्डेनिया लखनऊ में समाहित करने की लिखित सहमति प्रदान कर दें तो परिवादीगण की सहमति से 03 वर्ष के अन्दर आपको पजेशन निश्चित ही दे दूँगा।
6. विपक्षी दूसरे प्रोजेक्ट वर्दा गार्डेनिया में आवास हेतु अपार्टमेंट एलाट करते समय परिवादीगण को फ्री वाहन पार्किंग (कवर्ड टिवन टाईप) 2,25,000.00 रूपये भी ऑफर के अन्तर्गत मुफ्त में उपलब्ध करायी गयी। परिवादीगण द्वारा विपक्षी कार्यालय पर बार-बार टेलीफोन कर जानकारी प्राप्त की जा रही थी, किन्तु हर बार टाल-मटोल कर स्पष्ट जवाब विपक्षी की ओर से नहीं आ रहा था। जबकि दिनॉंक 28.07.2012 से आज तक लगभग 04 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी विपक्षी द्वारा कोई निर्माय कार्य प्रारम्भ नहीं किया गया, जिससे विपक्षी की कार्यप्रणाली पर संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक गया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विपक्षी द्वारा बिना सरकार से एन0ओ0सी0 प्राप्त किये ही परिवादीगण के साथ ही कई लोगों से एडवांस धनराशि प्राप्त कर ली है और इस धनराशि का प्रयोग जानबूझकर संबंधित प्रोजेक्ट में न करके विपक्षी द्वारा अपने निजी लाभ के लिये अन्यत्र किया जा रहा है जो पूर्ण रूप से विधि विरूद्ध एवं असंवैधानिक है।
7. परिवादीगण द्वारा विपक्षी के फर्म में जमा की गयी धनराशि मुबलिग 8,69,854.00 रूपये को वापस करने का भी अनुरोध किया जा चुका है, किन्तु विपक्षी द्वारा कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जा रहा है और न ही पैसा वापस किया जा रहा है। परिवादीगण मजबूरी में किराये का मकान लेकर किराये पर पिछले दो वर्षों से रहने को मजबूर है। विपक्षी के उक्त कृत्य से परिवादीगण को काफी मानसिक एवं आर्थिक कष्ट उठाना पड़ रहा है। परिवादीगण की ओर से एक विधिक नोटिस दिनॉंक 13.08.2016 को पंजीकृत डाक से कार्यालय एवं कार्पोरेट के पते पर भेजी गयी परन्तु आज तक उसका कोई जवाब विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया।
8. विपक्षी संख्या 02 के विरूद्ध वाद की कार्यवाही एकपक्षीय चल रही है।
9. विपक्षी संख्या 01 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के तहत अनुसरणीय नहीं है। प्रस्तुत प्रकरण झूठे तथ्यों पर आधारित है। इस अधिनियम की धारा-2, 11, 12 13 एवं 14 के प्रावधानों के आलोक में तत्काल शिकायत पोषणीय नहीं है। Bangalore Development Authority Versus Syndicate Bank reported in (2007) 6 SCC 711 विशेष रूप से पैरा-8 (ए) एवं (20) के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय पर भरोसा कर रहा है। उक्त निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने लखनऊ विकास प्राधिकरण बनाम एम0के0 गुप्ता (1994) 1 एस0सी0सी0243) के मामले में निर्धारित अनुपात को अलग करने के लिये कार्यवाही की है। इस विवाद में तर्क प्रतीत होता है जहॉं एक अनुबंध (एक भवन के साथ भूमि) की बिक्री के लिये है। जैसा कि एक ठेकदार द्वारा साइट के मालिक के साथ एक घर के निर्माण के अनुबंध के विपरीत विक्रेता एक सेवा प्रदाता नहीं है और क्रेता एक उपभोक्ता नहीं है, और निर्मित भवन के साथ भूमि की बिक्री में न तो माल की बिक्री शामिल है और न ही किसी सेवा को किराये पर लेना/प्राप्त करना शामिल है।
10. लखनऊ विकास प्राधिकरण ने इस आधार पर अनुमति देने से इंकार किया कि जमीन सेवा की फायरिंग रेंज में आती है। परिवादी के अनुरोध पर विपक्षी ने वर्दा हाईट्स में फ्लैट की बुकिंग को वर्दा गार्डेनिया में स्थानान्तरित कर दिया गया, बाद में परिवादी ने बकाया किस्त का भुगतान करने से इनकार कर दिया। विचाराधीन फ्लैट की कुल कीमत 45,15,540.16/- रूपये है। परिवादी ने केवल 4,34,927.00 रूपये का प्रारंम्भिक भुगतान किया है।
11. परिवादी ने अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में विधिक नोटिस, रसीद, आवंटन पत्र, जनरल नोटिस, डिमाण्ड लेटर आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं। विपक्षी की ओर से भी शपथ पत्र एवं अन्य अभिलेख दाखिल किये गये हैं।
12. आयोग द्वारा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
13. परिवादी को परिवाद पत्र में निम्नलिखित दो आवश्यक तथ्यों को साबित किया जाना है-
1-परिवादी का उपभोक्ता होना एवं 2- विपक्षी द्वारा सेवा में कमी किया जाना।
1-परिवादी का उपभोक्ता होना:-विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है। परिवादी के कथानक के अनुसार परिवादी ने अपार्टमेंट क्रय किये जाने हेतु 4,34,927.00 रूपये अग्रिम के तौर पर विपक्षीगण को दिये और विपक्षीगण द्वारा समय से उक्त प्रोजेक्ट को पूरा नहीं किया गया। विपक्षीगण द्वारा अपने उत्तर पत्र में यह कहा गया कि यह अनुबन्ध एक भवन के साथ भूमि की विक्री के लिये है अत- वह उपभोक्ता नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने बंगलौर डेवलपमेंट अथारिटी बनाम सिंडीकेट बैंक (2007) 6 एस.सी.सी. 711 का संदर्भ दाखिल किया गया है। मैंने उक्त विधि व्यवस्था का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया। मामले के तथ्य एवं परिस्थितियॉं भिन्न होने के कारण लागू नहीं हैं। लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी बनाम एम0के0 गुप्ता (1994) 1 एस.सी.सी. 243 का सन्दर्भ दाखिल किया गया है। उक्त विधि व्यवस्था का भी मैंने ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया। मामले के तथ्य एवं परिस्थितियॉं भिन्न होने के कारण लागू नहीं हैं। यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी द्वारा पैसा दिया गया है। अत: वह पैसा सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से यानी कि जमीन/मकान बनाकर दिये जाने हेतु दिया गया है तो परिवादी उपभोक्ता है। विपक्षीगण के कथनों में कोई बल नहीं है।
14. परिवादी का कथानक है कि परिवादी ने 1722 वर्गफिट वर्दा हाईट्स, शहीद पथ नेक्स्ट टू सुल्तानपुर रोड साईट पर अपार्टमेंट लेने हेतु दिनॉंक 28.07.2012 को एग्रीमेंट किया जिसके बावत भिन्न –भिन्न चेकों के माध्यम से 4,34,927.00 रूपया का एग्रीमेंट किया जिसमें यह कहा गया था कि विपक्षी संख्या 02 की एन0ओ0सी0 मिलने के बाद आपको निर्माण करके तीन माह के अन्दर दे दिया जायेगा। परन्तु विपक्षीगण द्वारा उनके पास जाने के बावजूद एन0ओ0सी0 न मिलने के कारण निर्माण नहीं हो पाया। बादहू समय बीत जाने के बाद उक्त जमा धनराशि के संबंध में दूसरे प्रोजेक्ट वर्दा गार्डेनिया लखनऊ में कराने के लिये सहमति प्रदान की। तीन वर्ष के अन्दर कब्जा देने की बात की तथा यह कहा कि फ्री वाहन पार्किंग 2,25,000.00 रूपये भी आफर के अन्तर्गत मुफ्त में उपलब्ध करायी गयी। परिवादी द्वारा विपक्षी के कार्यालय में बार-बार जाने के बावजूद पुन: उन्होंने यह कहा कि कोई भी एन0ओ0सी0 प्राप्त नहीं हुई है।
15. विपक्षी द्वारा अपने उत्तर पत्र में यह कहा गया कि फायरिंग रेंज में आ जाने के कारण एल0डी0ए0 द्वारा अनुमति देने से इन्कार कर दिया गया। परिवादी द्वारा कहा गया कि यह तथ्य विपक्षी द्वारा स्वीकार किया गया कि पहली योजना में वह फायरिंग रेंज आ जाने के कारण अनुमति नहीं मिली। अत: प्लाट का बेचना जो कि एन0ओ0सी0 पर आधारित है और उसके एवज में अधिकतर कार्यवाही करते हुए किसी भी सामान्य व्यक्ति से लाखो-लाख रूपये प्राप्त करना गैरजिम्मेदाराना हरकत है और विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि कुल 4,34,927.00 रूपये का ही भुगतान किया गया है जबकि प्लाट की कीमत 45,15,540.16 रूपये है। 4,34,927.00 रूपये का जो भुगतान किया गया है वह पहली स्कीम के सापेक्ष में किया गया है। बादहू दूसरी स्कीम का 45,15,540.16 रूपये हो होना दर्शाया गया है, जो विपक्षी के आग्रह पर उसने स्वीकृत किया है। फिर भी अगर जमी क्रय किये जाने के एवज में 4,34,927.00 रूपये विपक्षी द्वारा प्राप्त किये जाने से इन्कार नहीं किया गया है और विपक्षी ने यह स्वीकार कर लिया है। अनापत्ति प्रमाण पत्र की अनुमति नहीं मिल रही है फायर रेंज में होने के कारण निश्चित ही सेवा में कमी को दर्शाता है।
16. अत: मेरे विचार से 8,69,854.00 रूपये परिवादी से विपक्षीगण ने प्राप्त किया है, वह परिवादी प्राप्त करने का अधिकारी है। अत: परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी से प्राप्त धनराशि मुबलिग 8,69,854.00 (आठ लाख उन्नहत्तर हजार आठ सौ चौवन रूपया मात्र) मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ परिवाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक निर्णय की तिथि से 45 दिन के अन्दर भुगतान करें। परिवादी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट के लिये मुबलिग 1,00,000.00 (एक लाख रूपया मात्र) एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग 10,000.00 (दस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगें। यदि आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:- 20.06.2024