Rajasthan

Ajmer

CC/284/2013

Dr. SATISH KUMAR ARORA - Complainant(s)

Versus

BANSILAL - Opp.Party(s)

ADV DALJIT SINGH

07 Oct 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/284/2013
 
1. Dr. SATISH KUMAR ARORA
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. BANSILAL
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Vinay Kumar Goswami PRESIDENT
  Naveen Kumar MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 07 Oct 2016
Final Order / Judgement

जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण,         अजमेर

डा.सतीष कुमार अरोड़ा पुत्र श्री प्रेमनाथ अरोड़ा,उम्र-67 वर्ष, निवासी- 26, जीवनविहार काॅलोनी, आनासागर सरक्यूलर रोड़, अजमेर। 
                                                -         प्रार्थी


                            बनाम

1. श्री बंषी लाल पुत्र श्री पूसाजी
2. श्री मुकेष पुत्र श्री बंषीलाल 
3. श्री दिनेष पुत्र श्री बंषी लाल 
समस्त निवासी- महावीर काॅलोनी, आजादनगरी, आरा मषीन के सामने, रोडवेज बस स्टेण्ड के पास, मदनगंज-किषनगढ़, जिला-अजमेर । 
                                                -       अप्रार्थीगण
                 परिवाद संख्या 284/2013  

                            समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी       अध्यक्ष
                 2. श्रीमती ज्योति डोसी       सदस्या
3. नवीन कुमार               सदस्य

                           उपस्थिति
                  1.श्री लोकेष चतुर्वेदी, अधिवक्ता, प्रार्थी
                  2.श्री सी.पी.षर्मा,अधिवक्ता अप्रार्थीगण 

                              
मंच द्वारा           :ः- निर्णय:ः-      दिनांकः- 26.10.2016
 
1.       प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार  हंै कि उसने अप्रार्थीगण से  अपने नव निर्मित आवास पर दरवाजे, खिड़की व अन्य लकडी का कार्य  परिवाद की चरण संख्या 2 में वर्णित अनुसार करवाने के लिए  करार किया ।  जिसके पेटे अप्रार्थीगण ने रू. 1,00,000/- नगद व रू. 25,000/- का चैक  अग्रिम प्राप्त किए ।  किन्तु अप्रार्थीगण ने करार के अनुसार  टीक की लकड़ी काम में नहीं लेकर  निम्न स्तर की लकडी काम में ली । अप्रार्थी द्वारा यह बताए जाने पर उसने एम.पी फस्र्ट टीक की लकडी काम में लेने का  आष्वासन दिनांक 14.10.2012 को लिखित  में दिया। इसके बावजूद भी  अप्रार्थीगण ने परिवाद की चरण संख्या 8 में वर्णित अनुसार कुछ कार्य किया और कुछ कार्य नहीं किया । इस संबंध में प्रार्थी ने अप्रार्थीगण को जरिए पत्र दिनंाक 28.1.2013 व नोटिस दिनांक 9.3.2013 के सूचित भी किया। किन्तु अप्रार्थीगण ने कोई ध्यान नहीं दिया । प्रार्थी का कथन है कि अप्रार्थीगण ने उससे  रू. 1,25,000/- की राषि प्राप्त करके केवल रू. 87,380/- का कार्य किया है । इसप्रकार उसके अप्रार्थी पर रू. 37,620/- बकाया है ।  अप्रार्थीगण द्वारा करार के अनुसार कार्य नही ंकर अनुचित व्यापार व्यवहार के साथ साथ सेवा में कमी की है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । 
2.    अप्रार्थीगण ने जवाब प्रस्तुत कर उत्तरदाता द्वारा प्रार्थी से उसके नवनिर्माण आवास पर लकडी का कार्य करने बाबत् कोई ठेका लेना व इसके पेटे रू. 1,25,000/- प्राप्त करने के तथ्यों से इन्कार करते हुए दर्षाया है कि  उत्तरदाता ने सैकेण्ड टीक की लकडी काम में लिए जाने बाबत् कोई सहमति नहीं दी थी ।  एम.पी. सैकण्ड की लकडी  का कार्य करने का तय होने के बावजूद उसने  आईवरी प्रथम लकडी काम में लेकर कार्य किया है ।  प्रार्थी पढ़ना लिखना नहीं जानता। केवल  टूटे फूटे हस्ताक्षर करना जानता है । उत्तरदाता संख्या 1  ने दिनांक 14.10.2012 को कोई तहरीर लिख कर नहीं दी बल्कि प्रार्थी के भाई सुरेन्द्र  कुमार अरोड़ा ने , जो मकान निर्माण का ठेका लेता है   उसके साथ मारपीट कर  खाली कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए थे और उन कागजों पर क्या लिखा पढ़ी की,यह उत्तरदाता नहीं  जानता है ।  उत्तरदाता ने करार के अनुसार समयावधि में कार्य करके दिया है ।  अपने अतिरिक्त कथन में उत्तरदाता  ने दर्षाया है कि उसने प्रार्थी के यहां कुल रू. 1,27,890/- का कार्य करके दिया है ।इस प्रकार वह प्रार्थी से रू. 2890/- मांगता है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए उसकी बकाया राषि प्रार्थी से दिलवाए जाने की  इस्तदुआ की है ।  
3.    प्रार्थी पक्ष की ओर से प्रमुख रूप से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अप्रार्थी बंषी लाल  ने माह-जनवरी, 12 में सम्पर्क कर लकड़ी के कार्य करने का ठेका लिया था । प्रार्थी द्वारा दिए गए ऐस्टीमेट पर विचार कर अपना प्रस्ताव बना कर  उक्त   अप्रार्थी बष्ंाी लाल ने अपनी सहमति स्वीकार उक्त प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर किए थे तथा दिनंाक 17.6.2012 को अप्रार्थी ने रू. 1,00,000/- नगर  व रू. 25,000/- का चैक प्राप्त किया था तथा ताईद में अपने हस्ताक्षर भी किए थे ।  बंषी लाल को परिवाद की मद संख्या 2 में वर्णित अनुसार काम करना था । उसके द्वारा दरवाजे टीक की लकड़ी के नहीं बनवाए जाकर  निम्न स्तर की लकड़ी के बना कर दे दिए गये । प्रार्थी द्वारा उक्त गलत कार्य को बताए जाने पर अप्रार्थी बंषी लाल ने दिनांक 14.10.2012 को लिख भी दिया था कि गलती हो गई है तथा  3 गेट एमपी टीक  के बना कर लगाने है जो 3 माह में बनाने है तथा  लगाने है । उक्त लिखित  अप्रार्थी बंषी लाल ने  दी थी । अप्रार्थी द्वारा लिखित में आष्वासन देने के बावजूद समयावधि में कार्य नहीं करने पर उसे पत्र द्वारा सूचित किया गया जो उसे प्राप्त भी हो गया ।  उसे कई बार फोन द्वारा सम्पर्क कर उक्त अधूरा कार्य पूरा करने बाबत् भी कहा गया। किन्तु अब तक  उसके द्वारा उक्त कार्य नहीं किया गया है । विधिक नोटिस दिए जाने के प्रति उत्तर में अप्रार्थी द्वारा जवाब भी भिजवाया गया । इस जवाब के आधार पर किए गए काम को ध्यान में रखते हुए अप्रार्थी द्वारा तयषुदा समय में रू. 1,25,000/- की राषि प्राप्त कर इसके पेटे रू. 87,380/- का कुल काम किया गया है । उसके द्वारा निम्न स्तर की लकड़ी के दरवाजे  लगाए गए हैं । उक्त 3 दरवाजों के मद में  रू. 29,120/-  प्रार्थी से प्राप्त कर रखे है  जो वह प्राप्त करने का अधिकारी है । अन्त में  उनका प्रमुख तर्क रहा है  कि  अप्रार्थी द्वारा करार के अनुसार कार्य नहीं कर निम्न स्तर का  कार्य करके अप्रार्थी ने दिया है । परिवाद स्वीकार कर वांछित अनुतोष दिलवाया जाना चाहिए । 
4.    अप्रार्थी की ओर से खण्डन में उक्त करार व कार्य बाबत् लिखित को अस्वीकार किया गया । उनका प्रमुख रूप से यही तर्क रहा है कि उसके द्वारा प्रार्थी के यहां उसकी सहमति से काम किया गया है । विभिन्न  अनावष्यक  अभिवचनों का उल्लेख करते हुए बार बार तथ्यों को दोहराते हुए इस बाबत् अपने प्रति उत्तर व लिखित बहस में उल्लेख किए जाने का प्रतिवाद प्रस्तुत कर प्रमुख रूप से उसका यही तर्क रहा है कि उक्त लिखित प्रार्थी द्वारा अपने भाई के माध्यम से उसका गिरेबान पकड़ कर जबरदस्ती लिखवाया गया है। अप्रार्थी संख्या 1 करीब 15 वर्षो से बीमारी है तथा बीमार रहने के दौरान उसके द्वारा जो तय कार्य किया गया है वह समयावधि में किया हे । अपने बीमारी के संबंध में उसके द्वारा प्रस्तुत चिकित्सकों की पर्ची इत्यादि भी प्रस्तुत की गई हैं। 
5.    उभय पक्षकारान द्वारा अपने तर्को के समर्थन में  इसी बाबत् लिखित बहस भी प्रस्तुत की है । 
6.    हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है । 
7.    हालांकि अप्रार्थी की ओर से प्रार्थी के हित में किए जाने वाले कार्य के बाबत् लिखित प्रदर्ष-1 व  2 से इन्कार किया गया है किन्तु एक ओर जहां अप्रार्थी द्वारा यह प्रतिवाद लिया गया है कि उक्त लिखित प्रार्थी के भाई ने गिरेबान पकड़ कर लिखवाया था तथा इस जबरदस्ती के संदर्भ में अप्रार्थी की ओर से थाने में कोई रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करवाई गई है । अतः यह स्वीकृत  तथ्य  सामने आया है कि पक्षकारान के मध्य लकड़ी का काम  किये जाने का कोई करार हुआ था । इसकी लिखित रूप में प्रदर्ष-2 के रूप में सम्पादित  किया गया है , जिस पर अप्रार्थी बंषी लाल ने सहमति से अपने हस्ताक्षर भी किए है । अभिवचनों से यह भी प्रकट होता है कि अप्रार्थी ने उक्त करार के संबंध में प्रार्थी के  यहां लकड़ी से संबंधित कार्य सम्पादित किया है । हालांकि उसने इसके मेहताने स्वरूप  रू. 1,25,000/- लिए जाने से स्पष्ट इन्कार किया है किन्तु उसकी लिखित बहस उसकी यह स्वीकारोक्ति  है कि रू. 1,50,000/-  में जो काम होता है, उस काम के लिए प्रार्थी से अप्रार्थी ने रू. 1,25,000/-  ही लिए है से यह  भी सिद्व है कि प्रार्थी व अप्रार्थी के मध्य हुए करार क पेटे मजदूरी के रू. 1,25,000/- तय हुए तथा यह राषि  अप्रार्थी ने प्राथी से प्राप्त कर ली है  ।  
8.    परिवाद एवं लिखित बहस से यह तथ्य भी सिमट कर सामने आया है कि अब  पक्षकारों के मध्य मात्र 3 दरवाजों के संबंध में विवाद है । प्रार्थी का तर्क रहा है कि उक्त 3 दरवाजे करार के अनुसार सिंगल टीक के बना  कर लगाने  थे । जबकि अप्रार्थी ने ऐसा नहीं किया एवं लिखित आष्वासन तथा बार बार कहने के बावजूद लम्बे समय तक उक्त दरवाजों को  नहीं बदलने  के कारण प्रार्थी को  अपनी साख अच्छी व लम्बी अवधि तक बनाए रखने के लिए अच्छे दरवाजे बनाना आवष्यक हुआ। इसलिए अप्रार्थी के यहां  नए दरवाजे पुराने दरवाजो को हटा कर बनाए है ।  अप्रार्थी यह कह कर आया है कि उसे उक्त पुराने दरवाजे नहीं दिए गए अपितु दरवाजों पर प्राईमर  व रंग इत्यादि   कर दिया गया है।  अभिवचनों से  यह भी प्रकट हुआ है कि जहां प्रार्थी ने उक्त दरवाजों को बदल कर नए दरवाजेे बना दिए वहीं उक्त पुराने दरवाजों को उसने अप्रार्थी को लौटाया नहीं है । इस संदर्भ  में हालांकि एक ओर जहां प्रार्थी ने यह बतलाया है कि अप्रार्थी ने दिनंाक 14.10.2012 को यह लिख कर दिया था कि गलती हो गई है तो इस आषय की  लिखित  उसने प्रदर्ष-3 के रूप में प्रस्तुत की है । जिसका हालांकि अप्रार्थी ने खण्डन किया है,  किन्तु उसके अभिवचनों व लिखित बहस में यह  उल्लेख करना की इस संबध में  पूरा काम आयवरी लकड़ी का था जो  अप्रार्थी ने कर दिया है  उसके एवज में रू. 30,000/- देने को तैयार था। किन्तु आयवरी की लकड़ी पर प्रार्थी के कहे अनुसार कलर करवा दिया इस कारण अप्रार्थी संख्या 1 ने आयवरी की लकड़ी के द्वारा निर्मित 3 दरवाजों को लेने से  मना कर दिया, से यह स्पष्ट है कि उक्त दरवाजों  के प्रयोग में लाई गई लकड़ी निर्धारित  गुणवत्ता  की  करार के अनुसार नहीं थी  और इसी वजह से अप्रार्थी उक्त दरवाजों को ले जाने के लिए तैयार हो गया था  जैसा कि उसके अभिवचनों में स्वीकारोक्ति है ।  अतः कहा जा सकता है कि  अप्रार्थी ने उक्त दरवाजों में सही गुणवत्ता की लकड़ी का प्रयोग नहीं कर कम गुणवत्ता की लकड़ीका प्रयोग किया , जिसके कारण प्रार्थी ने अप्रार्थी को षिकायत के रूप में सूचित करते हुए  व उसका निर्धारित समयावधि में संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं होने की दषा में  इसे स्वयं के खर्चे पर बदला गया । दूसरे ष्षब्दों में ऐसा करते हुए अप्रार्थीगण ने अनुचित व्यापार व्यवहार का परिचय देते हुए सेवा में कमी कारित की है। 
9.    जहां तक अप्रार्थी संख्या 2 व 3 का प्रष्न है, हालांकि इस बाबत् उनके नाम डिलीट किए जाने बाबत् प्रार्थना पत्र अब तक निस्तारित  नहीं हुआ है किन्तु उपरोक्त विवचेन के प्रकाष में प्रार्थी ने इन अप्रार्थीगण यथा अप्रार्थी संख्या 2 व 3 से  भी किसी प्रकार का कोई करार किया हो अथवा  ये भी किसी प्रकार से जिम्मेदार रहे हो, ऐसा प्रार्थी सिद्व करने में असफल रहा है । अतः इन अप्रार्थी संख्या 2 व 3 को उनकी जिम्मेदारी से मुक्त किया जाता है ।  मंच की राय में परिवाद अप्रार्थी संख्या 1 के विरूद्व स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि 
                        :ः- आदेष:ः-
10.    (1)    प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 से रू. 37,620/-  प्राप्त करने का अधिकारी होगा । 
            (2)       प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 से ं परिवाद व्यय के पेटे रू.5000 /-भी  प्राप्त करने के  अधिकारी होगा ।               
              (3)    क्रम संख्या 1 लगायत 2    में वर्णित राषि अप्रार्थी संख्या 1      प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें   अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।  
          आदेष दिनांक 26.10.2016 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

                
(नवीन कुमार )        (श्रीमती ज्योति डोसी)      (विनय कुमार गोस्वामी )
      सदस्य                   सदस्या                      अध्यक्ष    

 

 

 

     

 
 
[ Vinay Kumar Goswami]
PRESIDENT
 
[ Naveen Kumar]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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