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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 143 सन् 2015
प्रस्तुति दिनांक 05.08.2015
निर्णय दिनांक 11.10.2018
ऋषिकान्त पाण्डेय उम्र तखo24 साल पुत्र श्री रवीन्द्रनाथ पाण्डेय निवासी मुहल्ला- नयी बस्ती रैदोपुर (सूरज टाकीज के पीछे) तहसील- सदर, शहर व जिला- आजमगढ़।............................................याची।
बनाम
- शाखा प्रबन्धक बैंक ऑफ इण्डिया भगवती भवन सिविल लाइन्स रैदोपुर, जनपद- आजमगढ़।
- जोनल मैनेजर बैंक ऑफ इण्डिया वी- 20/44,4-7 भेलूपुर वाराणसी
- यूनियन ऑफ इण्डिया द्वारा प्रमुख सचिव मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली।
- शाखा प्रबन्धक केनरा बैंक पाण्डेय बाजार आजमगढ़ (नोडल बैंक)... ..............................................................................विपक्षीगण।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादी ने परिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कहा है कि भारत सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को शिक्षा ऋण पूर्ण ब्याज सब्सिडी के तहत केन्द्रीय स्कीम लागू किया। उक्त स्कीम उच्च शिक्षा विभाग मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मान्य है। यह उन छात्रों पर लागू होता है जिनके माता-पिता की आय 4.5 लाख रुपये से कम हो। दिनांक 01.04.2009 को लोन लिया गया। उक्त पूर्ण ब्याज सब्सिडी स्कीम का पीरियड के एक वर्ष अथवा जॉब मिलने के 6 माह तक के लिए था। स्कीम लागू करने हेतु केनरा बैंक को नोडल बैंक बनाया गया। परिवादी लखनऊ में बी.टेक में प्रवेश लिया और बैंक ऑफ इण्डिया से 2009 में मुo 4,00,000/- रुपये एजूकेशन लोन हेतु प्रार्थना पत्र दिया जो स्वीकार हुआ। लोन की प्रथम किश्त 53,000/- रुपये दिनांक 06.01.2009 को, 55,500/- रुपये दिनांक 16.07.2009 को, 55,500/- रुपये दिनांक 14.12.2009 को, 58000/- रुपये दिनांक 14.06.2010 को, 60500/- रुपये दिनांक
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12.11.2010 को, 58000/- रुपये दिनांक 20.08.2011 को, 60500/- रुपये दिनांक 14.11.2011 को कुल 401000/- रुपये लोन प्राप्त हुआ। परिवादी का शिक्षा सत्र दिनांक 04.12.2012 को समाप्त हुआ। इस प्रकार दिनांक 04.12.2012 को एक वर्ष से अधिक दिनांक 04.12.2013 तक परिवादी के ऋण पर किसी प्रकार की ब्याज देय नहीं था। क्योंकि उक्त ब्याज केन्द्रीय सरकार के सब्सिडी के रूप में विपक्षी संख्या 01 द्वारा दिया गया सब्सिडी की धनराशि दिनांक 30.09.2013 को मुo29,332/-, दिनांक 14.12.2013 को मुo 27,844/-, दिनांक 09.05.2014 को 27,812/-, दिनांक 18.07.2014 को 13,147/- तथा 07.03.2015 को 29332/- रुपया परिवादी को मिला। परिवादी द्वारा बार-बार पूछने के बावजूद भी विपक्षी संख्या 01 ने कोई जवाब नहीं दिया। इस प्रकार वह केन्द्र सरकार की नीतियों का उल्लंघन कर रहा है। परिवादी ने अब तक 46,241/- रुपया मार्च 2015 तक बैंक को वापस किया है। इसके अलावा परिवादी के पिता ने सूचना अधिकार के तहत दिनांक 18.10.2012 को विपक्षी से सूचना मांगा, लेकिन 08.04.2013 को उनके द्वारा दिया गया उत्तर अनुपयोगी व अवांछनीय था। इसके अलावां भी परिवादी के पिता ने कई बार प्रार्थना पत्र दिया। विपक्षी संख्या 01 ने सरकार से सही समय पर सब्सिडी मंगा लेता तो परिवादी को ब्याज पर ब्याज आदि का बोझ नहीं पड़ता। बैंक की गलती से ब्याज बढ़कर 2,00,000/- रुपया हो गया। अतः विपक्षी संख्या 01 को निर्देश दिया जाए कि वह परिवादी के शिक्षा ऋण पर दिनांक 04.12.2013 के पहले से ब्याज को सब्सिडी धनराशि में समायोजित करके मूल धन पर दिनांक 04.12.2013 के बाद ब्याज अंकित करें और परिवादी द्वारा जमा किए गए धनराशि को समायोजित करें। मानसिक क्षति के लिए 80,000/- रुपया परिवादी को अदा करें।
परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 4/1 बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा जारी लेजर की छायाप्रति, एमिटी यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश द्वारा जारी
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प्रमाण पत्र की छायाप्रति, एजूकेशनल लोन के सम्बन्ध में कागजात प्रस्तुत किया गया है।
परिवादी की ओर से विपक्षीगण को कोई भी नोटिस नहीं दी गयी है।
कागज संख्या 12 विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत जवाबदावा है। जिसमें उन्होंने परिवाद पत्र में किए गए कथन को अस्वीकार किया है। विशेष कथन में विपक्षीगण ने यह कहा है कि परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करने का कोई अधिकार हासिल नहीं था। परिवादी ने गलत आरोप लगाया है। परिवादी व उसके पिता के अनुरोध पर परिवादी को 4,00,000/- रुपये दिनांक 06.01.2009 को सेन्क्शन किया गया। यह लोन उसके उच्च शिक्षा के लिए दिया गया था। जिस पर 2.50% ब्याज तय था। बी.पी.एल.आर. (बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट) के अनुसार बैंक समय-समय पर रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार अपना बेंचमार्क तय करने के लिए स्वतंत्र है। उपरोक्त ऋण 84 किश्तों में मय ब्याज के देय था और 60 वर्षों के अन्दर अन्य चार्जेज रोजगार मिलने के 6 माह के बाद या जो भी पहले का हो। परिवादी ने बाण्ड निस्तारित किया। दिनांक 06.01.2009 को जब लोन दिया गया तो सब्सिडी का कोई प्रावधान नहीं था। सर्वप्रथम भारत सरकार की एच.आर.डी. मंत्रालय ने लेटर नं. एफ.11-4/2010/यू.5(1) दिनांकित 25 मई, 2010 एक स्कीम तैयार किया। केनरा बैंक नोडल बैंक बनाया गया। इसके पश्चात् वह स्कीम बैंकों को सर्कुलेट की गयी। बाद में सर्कुलर नं. आर.बी.डी./एस.एस.जे./12-13/281 दिनांकित 06.09.2012 विपक्षी बैंक के सेन्ट्रल ऑफिस विपक्षी संख्या 01 व 02 के ब्रांच में इन्सट्रक्ट कर दी गयी और फ्रेस सब्सिडी क्लेम निर्धारित किया गया। वह सब्सिडी परिवादी के खाते में दिनांक 30.09.2013 को मुo 29,332/-, दिनांक 14.12.2013 को मुo 27,844/-, दिनांक 09.05.2014 को मुo 27,812/- रुपया, दिनांक 18.07.2014 को मुo13,147/- रुपया तथा दिनांक 07.03.2015 को मुo 29,332/- रुपया डाला गया। इसी मध्य दिनांक 01.11.2014 को परिवादी व
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उसके पिता विपक्षी संख्या 01 का एकाउन्ट चेक करने के लिए आए और सन्तुष्ट होकर एकनॉलेजमेन्ट दिनांक 01.11.2014 को निस्तारित किया और उन्होंने कन्फर्म किया कि वर्तमान में कुल 5,52,304/- रुपया तथा ब्याज बकाया है। एकनॉलेजमेन्ट के बावजूद भी 30.06.2012 को परिवादी अपनी किश्तें नहीं जमा कर पाया। परिवादी दिसम्बर, 2012 में अपना कोर्स पूरा कर लिया। दिनांक 30.06.2015 को परिवादी का खाता एन.पी.ए. कर दिया गया और उसे ऋण के भुगतान हेतु नोटिस जारी की गयी। अतः परिवाद खारिज किया जाए। विपक्षीगण की ओर से शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी गण की ओर से 17ग स्नातकोत्तर शैक्षणिक कर्ज के लिए आवेदन पत्र की छायाप्रति तथा अन्य कागजात प्रस्तुत किया है।
उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने परिवाद पत्र में जो अनुतोष मांगा है उसके अनुसार उसने कथन किया है कि विपक्षी संख्या 01 को निर्देश दिया जाए कि वह परिवादी के शिक्षा ऋण पर दिनांक 04.12.2013 के पहले के ब्याज को सब्सिडी धनराशि में समायोजित कर मूल धन पर 04.12.2013 के बाद ब्याज अंकित करें। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “गौरी देवगन बनाम प्रियदर्शनी केश एजेन्सी एवं अन्य ।।। (2018) सी.पी.जे. 993 (एन.सी.)” में माननीय नेशनल फोरम ने यह अभिधारित किया है कि सब्सिडी का लाभ मंगाने वाला व्यक्ति कन्ज्यूमर की परिभाषा में नहीं आता है। इस सन्दर्भ में यदि हम एक अन्य न्याय निर्णय चौधरी अशोक यादव वर्सेस द रेवारी सेन्ट्रल को-ऑपरेटिव बैंक एवं अन्य रिवीजन पिटीशन नं. 4894/2012” निर्णित दिनांक 08.02.2013 का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय राज्य आयोग ने यह अभिधारित किया है कि सब्सिडी का लाभ लेने वाला व्यक्ति कन्ज्यूमर की परिभाषा में नहीं आएगा। न्याय निर्णय नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर वर्सेस अजित देव घरिया निर्णित दिनांकित 09.09.2016 में स्टेट कमीशन डिस्प्यूट रेड्रीशल कन्ज्यूमर ने यह अभिधारित किया है कि सब्सिडी का क्लेम करने वाला कन्ज्यूमर की परिभाषा में नहीं आता है।
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उपरोक्त विवेचन से मेरे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)