जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या- 623/2011
बजरंगलाल पुत्र स्व. श्री गणपतराम जाति सैनी निवासी बद्रीनारायण मंन्दिर के पास वार्ड नं. 37 चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थी
बनाम
1. बैंक आॅफ इण्डिया, लाल घन्टाघर के पास चूरू जरिये शाखा प्रबन्धक
......अप्रार्थी
दिनांक- 23.02.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1. श्री जगदीष रावत एडवोकेट - प्रार्थी की ओर से
2. श्री सुरेष शर्मा एडवोकेट - अप्रार्थी की ओर से
1. प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी का मृतक पुत्र कैलाष चन्द्र सैनी मैसर्स अषोका एजेन्ससी नई सडक चूरू का मालिक व स्वामी था प्रार्थी के मृतक पुत्र कैलाषचन्द्र सैनी ने अपनी एजेन्सी के लिए अप्रार्थी से केष के्रडिट जनरल लिमिट (सी.सी.) करवाई थी। जिसके लिए प्रार्थी ने गारंन्टी दी व अपनी अचल सम्पति को अप्रार्थी के पास बंधक रखकर अचल सम्पति के मूल कागजात अप्रार्थी को सुपुर्द किये थे प्रार्थी ने उपरोक्त सी.सी. लिमिट के लिए अपनी जमीन अप्रार्थी को बंधक रखकर सी.सी. लिमिट की जमानतत ली थी एवं प्रार्थी का दायित्व सी.सी.लिमिट की पूर्ण अदायगी का ही था। प्रार्थी के पुत्र कैलाषचन्द्र सैनी की मृत्यु सडक दुर्घटना में दिनांक 08.07.2009 को हो जाने के पष्चात प्रार्थी को अपनी अचल सम्पति के मूल कागजात की आवष्यकता होने पर प्रार्थी ने अप्रार्थी से सम्पर्क कर जमीन के मूल कागजात की मांग करने पर अप्रार्थी ने प्रार्थी को बताया कि आपको मैं. अषाका एजेन्सी की केष के्रडीट जनरल लिमिटेड के खाता सं. 662730100000145 का पूर्ण भुगतान करना होगा तत्पष्चात ही हम आपको अचल सम्पति के मूल कागजात लौटाऐगे। प्रार्थी ने दिनांक 11.01.2011 को मै. अषोका एजेन्सी की कैष क्रेडिट जनरल लिमिट के खाता सं. 662730100000145 का पूर्ण भुगतान अप्रार्थी को कर दिया व अपनी अचल सम्पति के मूल कागजात की माॅग करने पर अप्रार्थी ने गलत रूप से कागजात लौटाने से इंकार कर दिया व कहा कि आपके मृतक पुत्र ने हमारी बैंक से धोखाधडी कर फर्जी के.सी.पी. के आधार पर 2,67,163/-रू का एक अन्य ऋण भी लिया था जिसका पूर्ण भुगतान आप द्वारा करने पर ही हम आपको आपके सम्पति के मूल कागजात लौटाएंगे। प्रार्थी ने मै. अषोका एजेन्सी की केष केगडिट जनरल लिमिट बाबत ही जमानत ली थी व अपनी अचल सम्पति बंधक रखकर मूल कागजात अप्रार्थी को सुपुर्द किये थे प्रार्थी ने अपने पुत्र की मृत्यु-परान्त सी.सी. लिमिट के खाता का पूर्ण भुगतान कर दिया है व अपने कानूनी दायित्व का पूर्णत निर्वहन कर दिया है फिर भी अप्रार्थी ने प्रार्थी की जमीन के कागजात नही लौटाये है जो अप्रार्थी द्वारा दी जा रही बैंकीग सेवा मे गम्भीर दोष है व अस्वच्छ व्यापारिक गतिविधि है।
2. आगे प्रार्थी ने बताया कि प्रार्थी के मृतक पुत्र कैलाष चन्द्र द्वारा अप्रार्थी से धोखाधडी कर फर्जि के.सी.सी. के आधार पर लिया गया अन्य ऋण राषि 267163 रू की जमानत /गारन्टी प्रार्थी को नही ली थी न ही अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को ज्ञान करवा कर प्रार्थी के मुतक पुत्र को ऋण दिया गया था यहाॅ तक किप्रार्थी को अन्य ऋण के बारे में कभी भी जानकारी नही हुई थी। प्रार्थी ने इस अन्य ऋण पेटे अपनी जमीन को बंधक नही खा थाएव न ही अस अन्य ऋण पेटे अपनी जमीन के कागजात बैंक को सुपुर्द किये थे। प्रार्थी ने मात्र सी.सी.लिमिट की गारन्टी ली थी जिसका पूर्ण भुगतान प्रार्थी ने कर दिया है परन्तु अप्रार्थी ने दुर्भावनापूर्ण रूप से प्रार्थी की जमीन के कागजात गैर कानूनी रूप से रोक रख्ेा है। जिन्हे अप्रार्थी को रोक के रखने का कोई कानूनी हक नहीं है। इसलिए प्रार्थी ने जमीन के मूल कागजात दिलवाये जाने, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है।
3. अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि प्रार्थी के पुत्र कैलाशचन्द्र सैनी द्वारा उतरवादी बैंक से सी.सी. लिमिट ऋण लिया गया था एवं इसके अलावा सिकान विकास पत्रों की एवज में भी बैंक से ऋण लिया था जिस बाबत दो के.वी.पी. ऋण खाते एवं सी.सी. लिमिट का खाता कुल तीन ऋण खाते कैलाशचन्द्र सैनी के नाम थे तथा प्रार्थी द्वारा कैलाशचन्द्र सैनी द्वारा लिये गये ऋण की वापिस अदायगी हेतु बतौर जमानती गारन्टी ली थी जिससे उक्त ऋण राशि वापिस अदायगी का दायित्व प्रार्थी का है। प्रार्थी द्वारा ही अपने मृतक पुत्र ऋण कैलाशचन्द्र सैनी की समस्त सम्पति व व्यापारिक सम्पतियां प्राप्त की है जिससे कानूनन प्रार्थी उतरवादी बैंक की बकाया ऋण राशि अदायगी के लिए जिम्मेवार है।
4. आगे जवाब दिया कि कैलाशचन्द्र सैनी द्वारा किसान विकास पत्रों की एवज में जो ऋण लिया था वोह किसान विकास पत्र फर्जी व नकली निकले थे जिन बाबत पोस्ट आॅफिस डिपार्टमेन्ट द्वारा बाद में बताया गया कि उक्त किसान विकास पत्र फर्जी है। इस प्रकार प्रार्थी वा उसके पुत्र द्वारा बैंक को मुगालते में रखते हुए ऋण राशि प्राप्त कर ली तथा प्रार्थी उक्त बकाया ऋण राशि की वापिस अदायगी नहीं करना चाहता है, इसी कारण यह बनावटी परिवाद पेश किया है जो स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिये गये ऋणों की बकाया अदा नहीं होने तक कानूनन बैंक का त्पहीज जव स्पमद होने के कारण बैंक को प्रतिभूमि स्वरूप रखे गये स्वामित्व विलेख रोकने का अधिकार है तथा परिवाद बकाया ऋण राशि का भुगतान करके ही उक्त स्वामित्व विलेख वापिस प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार स्वामित्व विलेख ग्रहणाधिकार त्पहीज जव स्पमद के तहत रोके रखना किसी प्रकार सेवा में त्रुटि नहीं है तथा परिवाद स्वीकार किए जाने येाग्य नहीं है। प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिए गये ऋण पेटे अलग-अलग खातों में क्रमशः 138494 रूपये, 124945 रूपये व ब्याज अलग से बकाया निकलता है। उक्त राशि के भुगतान तक अप्रार्थी बैंक को स्वामित्व विलेख रोके रखने का ग्रहणाधिकार हासिल है। परिवाद खारिज करने की मांग की।
5. प्रार्थी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, विधिक नोटिस, जवाब, बैंक स्टेटमेन्ट, मृत्यु प्रमाण-पत्र, अन्तिम प्रतिवेदन दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। अप्रार्थीगण की ओर से जवाब नोटिस, गारण्टी डीड दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है।
6. पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
7. प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी के स्व. पुत्र श्री कैलाशचन्द्र सैनी ने अपनी फर्म मैसर्स अशोका एजेन्सी के लिए अप्रार्थी से सी.सी. लिमिट करवायी थी जिसके लिए प्रार्थी ने उक्त फर्म हेतु गारण्टी दी थी व अपनी अचल सम्पति के मूल कागजात अप्रार्थी के यहां सुपुर्द किये थे। प्रार्थी के पुत्र की दिनांक 08.07.2009 को मृत्यु हो जाने पर प्रार्थी ने अपने मूल कागजात की अप्रार्थी से मांग की जिस पर अप्रार्थी ने प्रार्थी को उक्त फर्म की बकाया राशि का भुगतान करने को कहा। प्रार्थी ने अप्रार्थी बैंक के यहां अशोका एजेन्सी के खाता संख्या 662730100000145 का पूर्ण भुगतान कर दिया। उसके बावजूद भी अप्रार्थी ने प्रार्थी को अपनी अचल सम्पति के मूल कागजात नहीं लौटाये और प्रार्थी को उसके पुत्र द्वारा लिये गये अन्य ऋण का भुगतान करने का अनुचित दवाब दिया गया। जिस पर प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां निवेदन किया कि उसके द्वारा केवल अशोका एजेन्सी हेतु गारण्टी दी गयी थी जिसका पूर्ण भुगतान कर दिया गया है। अन्य ऋण हेतु उसने कोई गारण्टी नहीं दी थी, इसलिए उसके कागज लौटाये जावे। परन्तु अप्रार्थी ने प्रार्थी के निवेदन पर कोई गौर नहीं किया और प्रार्थी ने अनुचित रूप से प्रार्थी के मूल कागजात रोक कर सेवादोष किया है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया।
8. अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि प्रार्थी के पुत्र ने अप्रार्थी बैंक से के.वी.पी. के आधार पर अलग-अलग दो खातों पर ऋण लिया था जबकि प्रार्थी के पुत्र द्वारा प्रस्तुत के.वी.पी. फर्जी व नकली थी। चूंकि प्रार्थी के पुत्र का सड़क दुर्घटना में देहान्त होने पर प्रार्थी को अपने पुत्र की समस्त चल व अचल सम्पतियां बतौर विधिक वारिसान प्राप्त हुई है इसलिए प्रार्थी अपने पुत्र के द्वारा लिये गये ऋण हेतु उतरदायि है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी बैंक को प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिये गये ऋण की राशि बकाया होने पर विधि अनुसार जरनल राईट टू लियन है। अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रार्थी की अचल सम्पति जरनल राईट टू लियन के तहत ही ग्रहणाधिकार की हुई है जब तक प्रार्थी अपने पुत्र की बकाया राशि अदा नहीं कर देता। तब तक प्रार्थी अपनी अचल सम्पतियां के दस्तावेज प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी के विरूद्ध जिला न्यायाधीश चूरू के समक्ष प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिये गये ऋण की बकाया की रिकवरी हेतु दो सिविल वाद पत्र प्रस्तुत कर रखे है जो अभिविचाराधीन है और जब तक सिविल न्यायालय द्वारा उक्त वाद पत्र तय नहीं हो जाता इस मंच का परिवाद सुनने का क्षैत्राधिकार नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
9. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी के पुत्र द्वारा के.वी.पी. के आधार पर लिये गये ऋण की बकाया होना, जिसकी वसूली हेतु जिला न्यायाधीश चूरू में वाद पत्र विचाराधीन होना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु यह है कि क्या अप्रार्थी बैंक को प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिये गये ऋण के आधार पर प्रार्थी के मूल कागजात रोके रखने का जरनल राईट टू लियन है तथा प्रार्थी के विरूद्ध बैंक की वसूली हेतु सिविल वाद विचाराधीन होने के कारण इस मंच को यह परिवाद सुनने का क्षैत्राधिकार नहीं है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यही दिया कि अप्रार्थी बैंक को प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिये गये ऋण की वसूली तक प्रार्थी की अचल सम्पति को रोके रखने का जरनल राईट टू लियन है। अपनी बहस के समर्थन में अप्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान गारण्टी डीड की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त गारण्टी डीड प्रार्थी स्वंय ने अपने पुत्र के द्वारा मैसर्स अशोका एजेन्सी सी.सी. लिमिट बनवाते समय ऐज ए गारण्टी के रूप में अप्रार्थी बैंक में निस्पादित की थी। उक्त गारण्टी डीड में अन्य शर्तों के अलावा यह शर्त भी अंकित है कि ैीवनसक जीम हनंतंदजमम बमंेम तिवउ ंदल बंनेम जव इम इपदकपदह ंे बवदजपदनपदह ेमबनतपजल वद उल लवन उंल वचमद ं तिमेी ंबबवनदज वत ंबबवनदजे ंदक बवदजपदनम ंदल मगपेजपदह ंबबवनदज ूपजी जीम च्तपदबपचंस ंदक दव उवदमल चंपक पदजव ेनबी ंबबवनदज ंदक ेनइेमुनमदजसल कतंूद वनज इल जीम च्तपदबपचंस ेींसस वद ेमजजसमउमदज व िंदल बसंपउ नदकमत जीपे हनतंदजमम इम ंचचतवचतपंजमक जवूंतके वत ींअम जीम मििमबज व िचंलउमदज व िंदल चंतज व िजीम उवदमले कनम तिवउ जीम च्तपदबपचंस ंज जीम जपउम व िजीपे हनंतंदजमम बमंेपदह जव इम ेव इपदकपदह ंे ंवितमेंपक पद जीम ंइेमदबम व िं कपतमबजपवद पद ूतपजपदह जव ंचचतवचतपंजमए हपअमद जव लवन इल जीम चमतेवद चंलपदह पद ेनबी उवदमलण् ज्ीपे हनंतंदजमम ेींसस इम मदवितबमंइसम ंहंपदेज उम दवजूपजीेजंदकपदह जींज ंदल दमहवजपंइसम वत वजीमत ेमबनतपजपमे तममिततमक जव ीमतमपद वत जव ूीपबी पज उंल मगजमदक वत इम ंचचसपबंइसम ेींसस ंज जीम जपउम व िचतवबममकपदहे इमपदह जंामद ंहंपदेज उम वद जीपे हनंतंदजमम इम वनजेजंदकपदह वत पद बपतबनसंजपवदण् जव हपअम मििमबज जव जीपे हनंतंदजमम लवन उंल ंबज ंे जीवनही प ूंे जीम च्तपदबपचंस कमइजवतण् अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त गारण्टी डीड के आधार पर तर्क दिया कि अप्रार्थी बैंक को प्रार्थी की सम्पति पर जरनल राईट टू लियन है। अपनी बहस के समर्थन में अप्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान 1 सी.पी.जे. 2015 पेज 8 एन.सी., 4 सी.पी.जे. 2014 पेज 557 एन.सी. न्यायिक दृष्टान्तों की ओर ध्यान दिलाया जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। 1 सी.पी.जे. 2015 पेज 8 एन.सी. चरणजीत कोर बनाम स्टेट बैंक आॅफ पटियाला में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने लियन के सम्बंध मंे जो सिद्धान्त प्रतिपादित किये है उसके बारे में पैरा संख्या 8 में वर्णित किया है कि जिसके अनुसार ठंदा ींे ं हमदमतंस सपमद वअमत ंसस वितउे व िेमबनतपजपमे वत दमहवजपंइसम पदेजतनउमदजेए कमचवेपजमक इल वत वद इमींस िव िजीम बनेजवउमते पद जीम वतकपदंतल बवनतेम व िइंदापदह इनेपदमेे ंदक ेनबी ं हमदमतंस सपमद पे ं अंसनंइसम तपहीज व िजीम इंदामतए रनकपबपंससल तमबवहदपेमकए ंदक पद जीम ंइेमदबम व िं बवदजतंबज जव जीम बवदजतंतलए जीम इंदामत ींे ं हमदमतंस सपमद वअमत ेनबी ेमबनतपजल तमबमपअमक तिवउ जीम बनेजवउमत पद जीम वतकपदंतल बवनतेम व िइंदापदह इनेपदमेे ंदक ींे ं तपहीज जव नेम जीम चतवबममके पद तमेचमबज व िंदल इंसंदबम जींज उंल इम कनम तिवउ जीम बनेजवउमत इल ूंल व ितमकनबजपवद व िजीम बनेजवउमतश्े कमइपज इंसंदबमण् इसी प्रकार 4 सी.पी.जे. 2014 पेज 557 एन.सी. केनरा बैंक बनाम आर.एस. वासन में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने यह निर्धारित किया कि यह बैंक की इच्छा पर है कि वह अपनी बकाया वसूली मूल ऋणी से या गारण्टर से वसूल करे। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रेाशनी में तर्क दिया कि प्रार्थी का परिवाद खारिज किया जावे।
10. प्रार्थी अधिवक्ता ने अप्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि अप्रार्थी बैंक को प्रार्थी की अचल सम्पति पर लियन रखने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि प्रार्थी ने जिस खाते पेटे प्रश्नगत गारण्टी दी थी उस खाते में कोई बकाया नहीं है। प्रार्थी गारण्टी वाले खाता अशोका एजेन्सी की बकाया का भुगतान कर चूका है। इसलिए अप्रार्थी बैंक प्रार्थी की अचल सम्पति को नहीं रोक सकता। अपनी बहस के समर्थन में प्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान माननीय उडि़सा हाई कोर्ट के न्यायिक दृष्टान्त आलेखा साहु बनाम पुरी अर्बन को0 बैंक की ओर ध्यान दिलाया जिसका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने पैरा संख्या 12 में यह निर्धारित किया है कि ठंदा ींे दव तपहीज ूींजेवमअमत मपहजीमत नदकमतपजे इलम.संूे वत नदकमत ेमबजपवद 171 व िजीम बवदजतंबज ।बज जव तमजंपद जीम हवसक वतदंउमदजे व िजीम चमजपजपवदमत ंजिमत जीम चमजपजपवदमत ींक बसमंतमक जीम वनजेजंदकपदह इंसंदबम पद जीम जूव हवसक सवंद ंबबवनदजे वित ूीपबी जीम हवसक वतदंउदमजे ूमतम चसमकहमक ंे ेमबनतपजलण् उक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्य से भिन्न होने के कारण चस्पा नहीं होते क्योंकि वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रार्थी के पुत्र की मृत्यु के बाद उसकी समस्त चल व अचल सम्पति प्रार्थी को विधिक वारिसान होने के कारण प्राप्त हुई है। विधि अनुसार यदि प्रार्थी ने उक्त सम्पतियां प्राप्त की है तो उक्त सम्पतियांे पर देय ऋण की अदायगी भी प्रार्थी को ही अदा करनी पड़ेगी। इसलिए मंच प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों से सहमत नहीं है कि अप्रार्थी बैंक प्रार्थी की अचल सम्पति पर लियन रखना विधि सम्वत नहीं है।
11. अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी के विरूद्ध उसके पुत्र द्वारा लिये गये ऋण की बकाया हेतु दो सिविल दावे क्रमशः 60/2011 व 70/2011 जिला न्यायाधीश, चूरू के यहां विचाराधीन है। बहस के दौरान अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त दावों की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त दावों के अवलोकन से स्पष्ट है कि अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी के पुत्र द्वारा लिये गये के.वी.पी. के आधार पर ऋण राशि की बकाया क्रमशः 138494 रूपये व 124945 रूपये हेतु ब्याज सहित जिला न्यायाधीश, चूरू में प्रार्थी व प्रार्थी की पत्नि के विरूद्ध वाद पत्र प्रस्तुत किये हुये है। उक्त वाद पत्र में अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी के पुत्र की चल व अचल सम्पतियांे का उल्लेख किया है। परन्तु प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त वाद पत्र के सम्बंध में अपना कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया कि उक्त वाद पत्र में अंकित तथ्य गलत व मिथ्या हो व प्रार्थी को उसके पुत्र की मृत्यु होने पर किसी भी प्रकार की कोई चल व अचल सम्पति प्राप्त न हुई हो। सिविल न्यायालय में प्रार्थी के पुत्र की बकाया वसूली राशि प्रार्थी के दायित्व व उतरदायित्व बैंक का जरनल राईट टू लियन आदि तथ्यों का विस्तृत साक्ष्य के माध्यम से विवेचन होगा। इसलिए हम अप्रार्थी अधिवक्ता के इस तर्क से भी सहमत है कि वर्तमान प्रकरण में जिला न्यायाधीश चूरू में विचाराधीन वादपत्रों के निस्तारण तक कोई आदेश पारित किया जाना उचित व न्यायोचित नहीं है। वैसे भी विधि अनुसार एक ही तथ्य पर अलग-अलग आॅथोरिटी द्वारा निर्णय दिया जाना उचित नहीं है। इसलिए मंच की राय में अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रार्थी की अचल सम्पति के कागजात उसके पुत्र के द्वारा लिये गये ऋण की बकाया की वसूली तक रोके रखना सेवादोष नहीं है। प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी बैंक के विरूद्ध अप्रार्थी अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों व न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में खारिज किये जाने योग्य है।
अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी बैंक के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकार प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे।
सुभाष चन्द्र षिव शंकर
सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 23.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
सुभाष चन्द्र षिव शंकर
सदस्य अध्यक्ष