Uttar Pradesh

StateCommission

A/880/2024

Bharat Lal - Complainant(s)

Versus

Bank of Baroda & Another - Opp.Party(s)

Shesh Mani Dubey

09 Jul 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/880/2024
( Date of Filing : 21 Jun 2024 )
(Arisen out of Order Dated 10/05/2024 in Case No. CC/63/2013 of District Pratapgarh)
 
1. Bharat Lal
puraili post derhana pargana and tehsil sadar distt pratapgarh
...........Appellant(s)
Versus
1. Bank of Baroda & Another
branch manager branch katra medniganj distt pratapgarh
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 09 Jul 2024
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(मौखिक)                                                                                  

अपील संख्‍या:-880/2024

भारत लाल पुत्र राम मनोहर, निवासी ग्राम पुरेली पो0 ढेरहना परगना व तहसील सदर, जनपद प्रतापगढ़।

बनाम

शाखा प्रबन्‍धक, बैंक आफ बड़ौदा शाखा कटरा मेदनीगंज जनपद प्रतापगढ़ आदि।

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष           

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता         : श्री शेष मणि दुबे

प्रत्‍यर्थीगण के अधिवक्‍ता        : कोई नहीं।

दिनांक :- 09.7.2024

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील, अपीलार्थी/परिवादी भारत लाल द्वारा इस आयोग के सम्‍मुख धारा-41 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्‍तर्गत जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रतापगढ द्वारा परिवाद सं0-63/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.5.2024 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसके द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद को कालबाधित होने के आधार पर निरस्‍त कर दिया है।

प्रस्‍तुत प्रकरण में परिवाद को विलम्‍ब से प्रस्तुत करने के संबंध में अपीलार्थी/परिवादी की ओर से कोई स्पष्ट कथन नहीं किया गया है जबकि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख प्रत्‍यर्थी/विपक्षी की ओर से अपनी आपत्ति सविवरण प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें कथन किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक     20-01-2004 को परिवाद सं0-45/2004 प्रस्तुत किया था, जो दिनांक 13-07-2007 को अपीलार्थी/परिवादी की अनुपस्थिति में खारिज हो गया था, तदोपरांत इसके विरूद्ध प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र

 

-2-

21/2008 दिनांक 12-03-2008 को प्रस्तुत किया गया, जो दिनांक 30-11-2010 को प्रार्थी की अनुपस्थिति में आयोग द्वारा खारिज कर दिया गया। तत्‍पश्‍चात पुनः प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र सं0-21/2008 को पुर्नस्थापित करने हेतु प्रस्‍तुत किया गया, जो दिनांक 17.3.2012 को निरस्त कर दिया गया था।

तदोपरांत अपीलार्थी/परिवादी द्वारा उसी वाद कारण पर एक अन्‍य परिवाद सं0-63/2013 प्रस्तुत किया है, जो कि विलंब से प्रस्तुत किया गया है एवं विलम्‍ब को क्षमा करने के संबंध में अपीलार्थी/परिवादी की ओर से जो तथ्य प्रार्थना पत्र में प्रस्तुत किये गये थे, वे अपर्याप्त और विधि के विरूद्ध थे। प्रथम परिवाद जो निरस्त हुआ था उसके विरूद्ध परिवादी माननीय राज्य आयोग के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकता था। ऐसा न करके उसके द्वारा कई वर्ष पश्चात पुनः उसी वाद कारण पर यह परिवाद प्रस्तुत किया है जो कि विधिक रूप से संधारणीय नहीं है अत्एवं विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा परिवाद को कालबाधित मानते हुए निस्‍त कर दिया है, जिससे असंतुष्‍ट होकर प्रस्‍तुत अपील इस आयोग के सम्‍मुख योजित की गई है।

मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को विस्‍तार से सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

सम्‍पूर्ण तथ्‍य एवं परिस्थितियों तथा अपीलार्थी के अधिवक्‍ता के कथनों एवं विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि एक ही वाद कारण के संदर्भ में कई वर्षों पश्‍चात उसी वाद कारण को पुन: उल्लिखित करते हुए दूसरा परिवाद प्रस्‍तुत किया जाना न सिर्फ

-3-

न्‍यायालय का समय बर्बाद करना, वरन न्‍यायालय को गुमराह कर आदेश प्राप्‍त किया जाना है, जो कि अपीलार्थी द्वारा स्‍वयं की बदनियती को जाहिर करता है, क्‍योंकि जब एक बार परिवाद उसी वाद कारण के संबंध में पूर्व में ही निरस्‍त किया जा चुका है तब उसी वाद कारण के दूसरा परिवाद प्रस्‍तुत करना स्‍वयं में निश्चित रूप से संधारणीय नहीं माना जावेगा तद्नुसार विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पा‍रित निर्णय/आदेश में किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलीय स्‍तर पर नहीं पायी गई अत्एव अपील ग्राह्यता के स्‍तर पर ही निरस्‍त की जाती है।

आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

                               (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)            

                                                                           अध्‍यक्ष                                                                                                                               

 

 

हरीश सिंह

वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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