जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
श्रीमती सुधा यादव........................................सदस्या
उपभोक्ता वाद संख्या-268/2013
प्रदीप कुमार मिश्रा पुत्र स्व0 कैलाषनाथ चतुर्वेदी निवासी 128/205 ब्लाक एच. किदवई नगर, कानपुर।
................परिवादी
बनाम
षाखा प्रबन्धक, बैंक ऑफ बड़ौदा षाखा किदवई नगर, कानपुर नगर।
...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 23.05.13
निर्णय तिथिः 15.03.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षी बैंक से केस्को कानपुर द्वारा लिया गया रीकलेक्षन चार्ज रू0 300.00 तथा चेक निरस्तीकरण चार्जेज रू0 532, 532, 533 कुल मिलकार केस्को विभाग द्वारा लिये गये कुल रू0 1897.00 दिलाया जाये तथा सामाजिक, मानसिक क्षति के एवज में अतिरिक्त मुआवजा दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी तीन चेकें, चेक सं0-507691 रू0 441.00, चेक सं0-507692 रू0 516.00 तथा चेक सं0-507693 रू0 680.00 दिनांक 22.05.12 को लगायी थीं, जो कि विपक्षी बैंक द्वारा इनआपरेटिव/डारमेंट की रिपोर्ट के साथ खारिज कर वापस भेज दी गयी जो परिवादी के खाता सं0-19640100002 208 की थी। उक्त चेक खारिज होने के कारण परिवादी का बिजली का कनेक्षन काट दिया गया तथा दिनांक 16.05.12 तथा 22.05.12 को चेक वापस होने के कारण रू0 224.00 तथा रू0 112.00 काट लिया गया। परिवादी की चेकें केस्को में समायोजित न होने के कारण केस्को विभाग
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द्वारा परिवादी से डिसकनेक्षन चार्जेज रू0 300.00 तथा चेक निरस्तीकरण के एवज में रू0 532.00, 532.00 व 533.00 कुल रू0 1897.00 केस्को विभाग द्वारा परिवादी से वसूल किये। परिवादी द्वारा पुनः षाखा प्रबन्धक विपक्षी बैंक को दिनांक 12.06.12 को प्रार्थनापत्र दिया गया। किन्तु षाखा प्रबन्धक के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। उसके बाद परिवादी को दिनांक 10.07.12 को क्षेत्रीय प्रबन्धक को पत्र दिया गया। क्षेत्रीय प्रबन्धक के द्वारा दिनांक 16.07.12 को सांत्वना पत्र दिया गया, जिसमें विवरण संकलित किये जाने के विशय में बताया गया। पुनः क्षेत्रीय प्रबन्धक को पत्र लिखने के उपरान्त उनके द्वारा यह बताया गया कि 2009 से नवम्बर 2011 तक कोई लेन-देन नहीं किया गया है, जिससे आपका खाता डारमेंट हो गया। परिवादी की चेकें दिनांक 16.05.12 व 22.05.12 की थीं। परिवादी का खाता दिनांक 10.11.11 से लगातार चालू स्थिति में था। चेकों की अवधि के दौरान उक्त खाते को परिवादी द्वारा आपरेट भी किया गया। यदि खाता नवम्बर 2011 से डारमेंट था तो बाद में जमा और आहरण बैंक द्वारा क्यों किया गया। इसके पष्चात बैंकिंग लोकपाल से षिकायत करने पर चीफ मैनेजर बैंक ऑफ बड़ौदा कानपुर के द्वारा परिवादी को यह सूचित किया गया कि चेक के इन्सीडेंटल चार्जेज रू0 224.00, 112.00 व 336.00 आपके खाते में ट्रांसफर कर दिये गये हैं। जिससे परिवादी को खामियाजा भुगतना पड़ा। वास्तव में खाता इनऑपरेटिव नहीं था। बैंक के उत्तर से असंतुश्ट होकर बैंक के उत्तर की आपत्ति दिनांक 24.12.12 को बैंकिंग लोकपाल को भेजी गयी। किन्तु बैंकिंग लोकपाल द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवादी द्वारा दिनांक 02.08.09 से 14.11.11 तक अपने प्रष्नगत बचत खाते में कोई जमा अथवा निकासी की कार्यवाही नहीं की गयी। फलस्वरूप परिवादी का प्रष्नगत बैंक खाता इनआपरेटिव/
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डारमेंट हो गया, जो कि बैंक के नियमानुसार किया गया है। क्योंकि बैंक के नियमानुसार यदि कोई खाता धारक 4 क्रमागत अर्द्धवार्शिक समय में अपने बचत खाते को आपरेट नहीं करता है, तो विपक्षी के क्लीयरिंग हाऊस के द्वारा उक्त खाते को डारमेंट खाता मानते हुए चेक वापस कर दी जाती है। क्योंकि ऐसे मामलों में बैंक के सभी अधिकारियों द्वारा जिन्हें, जो उक्त हस्ताक्षर देखने के लिए अधिकृत है, के द्वारा देखा जाना संभव नहीं होता है। इनआपरेटिव खातों में खाताधारक के हस्ताक्षर देखने के लिए केवल षाखा के अधिकारी ही अधिकृत होते हैं। इसलिए सर्विस ब्रांच के द्वारा परिवादी की चेक वापस की गयी है। ए0टी0एम0 में चिप लगी होती है, जिससे किसी भी प्रकार से खाते को आपरेट किया जाना, रोका जाना संभव नहीं है। परिवादी के आवेदन पर विपक्षी बैंक षाखा के मुख्य प्रबन्धक द्वारा परिवादी का प्रष्नगत खाता पुनः प्रारम्भ किया गया और चेक विपक्षी के चार्जेज खाते में दिनांक 12.12.12 को क्रेडिट किये गये। इस प्रकार विपक्षी की ओर से सेवा में में कोई कमी कारित नहीं की गयी है। परिवादी का खाता रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के सर्कुलर नं0-9/13-01-2000/2008-09 दिनांकित 01.09.08 में दिये गये निर्देषानुसार इनआपरेटिव किया गया था। परिवादी का यह कथन असत्य है कि उसे किसी प्रकार की क्षति कारित हुई है। विपक्षी द्वारा कोई सेवा में कमी कारित नहीं की गयी है। अतः परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 22.05.13 एवं 09.09.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्न कागज सं0-1/1 लगायत् 1/16 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में दामोदर सिंह चीफ मैनेजर का षपथपत्र दिनांकित 09.06.14 व 03.1.15 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्न कागज सं0-2/1 लगायत् 2/5 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
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निष्कर्श
6. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं उभयपक्षों द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में प्रमुख विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या परिवादी का विपक्षी के यहां संचालित बचत खाता नियमानुसार इन- आपरेटिव हो गया था और इसलिए परिवादी याचित प्रष्नगत चेकों के निरस्तीकरण चार्जेज प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त विचारणीय बिन्दु के सम्बन्ध में विपक्षी बैंक की ओर से यह कथन किये गये हैं कि परिवादी की प्रष्नगत चेक, जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, परिवादी के खाते के इनआपरेटिव हो जाने के कारण विपक्षी के क्लीयरिंग हाऊस के द्वारा परिवादी का खाता डारमेंट होने के कारण वापस कर दी गयी थी। क्योंकि ऐसे मामलों में बैंक के सभी अधिकारियों द्वारा जिन्हें, जो खाता धारक के हस्ताक्षर देखने के लिए अधिकृत है, के द्वारा देखा जाना संभव नहीं होता है। परिवादी के द्वारा दिनांक 02.08.09 से 14.11.11 तक प्रष्नगत खाते में कोई जमा अथवा निकासी की कार्यवाही नहीं की गयी है। इसलिए परिवादी का खाता डारमेंट हो गया था। इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि विपक्षी का यह कथन असत्य है कि परिवादी का खाता डारमेंट कर दिया गया था। वास्तव में परिवादी द्वारा प्रष्नगत खाते से, चेकों की अवधि के दौरान, उक्त खाते को परिवादी आपरेट भी किया गया है। परिवादी द्वारा अपने उपरोक्त खाते से धनराषि आहरित की गयी है। इस सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा ए0टी0एम0 से उक्त खाते को आपरेट किया गया है। ए0टी0एम0 में चिप लगी होती है, जिससे किसी प्रकार से खाते को आपरेट किया जाना व रोका जाना संभव नहीं है।
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उपरोक्तानुसार उपरोक्त विचारणीय बिन्दु के सम्बन्ध में उभयपक्षों को सुनने, किये गये कथन के अवलोकन से व संपूर्ण पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी के इस कथन के विपरीत कि ए0टी0एम0 में चिप लगी होती है, जिससे किसी भी प्रकार से खाते को आपरेट किया जाना, रोका जाना संभव नहीं है- के विरूद्ध कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। अतः परिवादी के कथन से यह सिद्ध नहीं होता है कि उसका खाता डारेमेंट नहीं था। किन्तु विपक्षी के द्वारा परिवादी का प्रष्नगत खाता 4 क्रमागत अर्द्धवार्शिक में आपरेट न किये जाने का कारण, खाते को डारमेंट बताते हुए अपने कथन के समर्थन में रिजर्व बैंक आफ इण्डिया के सर्कुलर नं0-9/13-01-2000/2008-09 दिनांकित 01.09.08 का उल्लेख किया गया है। किन्तु उक्त सर्कुलर के प्रस्तर-2 ;पद्ध के अवलोकन से विदित होता है कि विपक्षी बैंक को परिवादी के खाते को इनआपरेटिव बनाने से पहले लिखित में सूचना देना चाहिए था। विपक्षी बैंक के द्वारा परिवादी को खाता इनआपरेटिव करने से पूर्व लिखित सूचना देने से सम्बन्धित कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। जिससे यह सिद्ध होता है कि विपक्षी बैक द्वारा परिवादी को बिना नोटिस दिये, उसके खाते को डारमेंट खाता मानना, विधि संगत नहीं है। विपक्षी द्वारा परिवादी की चेकें समय से क्लीयर न करके, सेवा में कमी कारित की गयी है।
उपरोक्तानुसार उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से, रिकलेक्षन चार्ज रू0 300.00 व चेक निरस्तीकरण चार्जेज रू0 532.00, 532.00 व 533.00 कुल रू0 1897.00 दिलाये जाने हेतु तथा परिवाद व्यय दिलाये जाने हेतु स्वीकार किये जाने योग्य है। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है- उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
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ःःआदेषःःः
7. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी, परिवादी को, 1897.00 तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय अदा करे।
(पुरूशोत्तम सिंह) ( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्य सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
(पुरूशोत्तम सिंह) ( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्य सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर कानपुर नगर।