राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
परिवाद सं0-२४/२०१०
मै0 गीता फूड्स, गोपाल खेड़ा, मोहनलालगंज, लखनऊ द्वारा प्रोपराइटर श्री दिवाकर चौधरी। ................. परिवादी।
बनाम्
बैंक आफ बड़ौदा, नरही ब्रान्च, लखनऊ द्वारा आथराज्ड आफीसर।
................ विपक्षी।
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
विपक्षी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ११-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
आज यह पत्रावली प्रस्तुत हुई। उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। यह यह परिवाद वर्ष २०१० से लम्बित है। इस आयोग द्वारा पारित अन्तरिम आदेश दिनांकित २९-०६-२०१२ के विरूद्ध योजित पुनरीक्षण सं0-३४९९/२०१२ में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा, उपरोक्त अन्तरिम आदेश निरस्त करते हुए, पारित आदेश दिनांकित ०८-११-२०१२ के अनुसार पक्षकारों को दिनांक ०३-१२-२०१२ को इस आयोग में उपस्थित होने हेतु निर्देशित किया गया था। उसके उपरान्त पक्षकारान् इस आयोग में उपस्थित हुए। विपक्षी की ओर से प्रारम्भिक आपत्ति भी परिवाद की पोषणीयता के सन्दर्भ में प्रस्तुत की गयी। तत्पश्चात् पिछली कई तिथियों से उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं हो रहा है।
प्रस्तुत परिवाद, विपक्षी बैंक के विरूद्ध इस अनुतोष के साथ योजित किया गया है कि विपक्षी को निर्देशित किया जाय कि वह परिवादी द्वारा ऋण सीमा बढ़ाने हेतु प्रस्तुत प्रस्ताव पर विचार करे तथा रिजर्व बैंक आफ इण्डिया की गाइड लाइन्स का अनुपालन सुनिश्चित करे। विपक्षी बैंक को यह भी निर्देशित किया जाय के वह सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत परिवादी के विरूद्ध कोई उत्पीड़नात्मक कार्यवाही न करे तथा ९५,००,०००/- रू०
-२-
बतौर क्षतिपूर्ति परिवादी को अदा किया जाय।
पत्रावली के अवलोकन से यह विदित होता है कि इस मामले में विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को ऋण प्रदान किया गया एवं ऋण की अदायगी परिवादी द्वारा न किए जाने के कारण विपक्षी ने परिवादी को सरफेसी एक्ट की धारा-१३(२) के अन्तर्गत नोटिस जारी की। परिवादी ने ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष धारा-१७ के अन्तर्गत प्रतिवेदन भी किया है।
माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका सं0-९९५/२०१२, हरिनन्दन प्रसाद बनाम स्टेट बैंक आफ इण्डिया में पारित निर्णय दिनांकित ३१-०५-२०१२, २०१३(१) सीपीसी १७६ (एनसी) में सरफेसी एक्ट की धारा-३४ पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया गया है कि सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही किए जाने के उपरान्त उपभोक्ता मंच में परिवाद पोषणीय नहीं होगा। ऐसी स्थिति में इस मामले में राज्य आयोग द्वारा परिवाद निरस्त किया गया। राज्य आयोग द्वारा पारित आदेश की पुष्टि माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा की गयी।
पुनरीक्षण सं0-१६५३/२०१३ इण्डियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस बनाम हरदयाल सिंह में दिये गये निर्णय दिनांक २५-११-२०१३ में सिविल अपील सं0-१३५९/२०१३ यशवन्त घेसास बनाम बैंक आफ महाराष्ट्र के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय दिनांक ०१-०३-२०१३ पर विचार करते हुए माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि सरफेसी एक्ट की धारा-३४ के अन्तर्गत उपभोक्ता मंच का क्षेत्राधिकार सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही लम्बित रहने की स्थिति में प्रतिबन्धित किया गया है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्त पुनरीक्षण सं0-३४९९/२०१२ में पारित निर्णय दिनांकित ०८-११-२०१२ में भी उपभोक्ता मंच में प्रस्तुत परिवाद की पोषणीयता के सन्दर्भ में इस आशय का निष्कर्ष दिया गया है कि परिवादी के विरूद्ध विपक्षी बैंक द्वारा सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही किए जाने के कारण परिवाद उपभोक्ता मंच में पोषणीय नहीं है।
ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से उपरोक्त वर्णित निर्णयों/विधि व्यवस्थाओं के
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परिप्रेक्ष्य में प्रश्नगत परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। परिवादी ने सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत उसके विरूद्ध की गयी कार्यवाही के तथ्य को छिपाते हुए परिवाद योजित किया है। उपरोक्त अधिनियम के अन्तर्गत की जा रही कार्यवाही को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से वस्तुत: परिवाद योजित किया गया। हमारे विचार से प्रश्नगत परिवाद पोषणीय न होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद पोषणीय न होने के कारण निरस्त किया जाता है।
प्रस्तुत परिवाद के व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.