राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील सं0-२४५२/१९९४
(जिला मंच, बिजनौर द्वारा परिवाद सं0-२३८/१९९१ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०५/०८/१९९४ के विरूद्ध)
- एक्जीक्यूटिव इंजीनियर इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन द्वितीय बिजनौर।
- सब डिवीजनल आफीसर इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन सब डिवीजन नगीना जिला बिजनौर।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
संजय कुमार पुत्र श्री स्व0 बलराम सिंह ग्राम करौंदा चौधरी पोस्ट एण्ड पीएस देहात तहसील नगीना जिला बिजनौर।
प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1- मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन सदस्य ।
2- मा0 श्री बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री दीपक मेहरोत्रा अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री रवि कुमार रावत अधिवक्ता।
दिनांक :- ३०/१०/२०१४
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलकर्तागण ने यह अपील विद्वान जिला मंच, बिजनौर द्वारा परिवाद सं0-२३८/१९९१ संजय कुमार बनाम एक्जीक्यूटिव इंजीनियर इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन द्वितीय में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०५/०८/१९९४ के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें विद्वान जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है। यह शिकायत प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि पूर्व निर्धारण बिल संशोधित कर ९ दिन अवधि का निर्धारण बिल परिषदीय नियमानुसार बनाये और परिवादी द्वारा धनराशि देय होने की दशा में अग्रिम बिलों में समायोजित करे, विद्युत प्रवाह जारी रहे तथा बिलों को निरन्तर भुगतान हेतु जारी करते रहें।
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परिवादी का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का कनेक्शन जुड़वाया जाए और मीटर रीडिंग के हिसाब से बिल जमा करने के आदेश दिये जायें। परिवादी कनेक्शन सं0-४३०३/०११२७१ का उपभोक्ता है जिस पर ७.५ हार्स पावर विद्यत सप्लाई प्राप्त है। परिवादी मीटर रीडिंग के हिसाब से बिल प्रतिमाह अदा करता रहा है। परिवादी ने दिनांक २५/०७/१९९१ को नगीना प्रतिवादी के दफ्तर में रसीद कटाई जो माह जुलाई माह ९१ के बिल मु0 २५७.७०/-रू0 से संबंधित थी। मु0 ४५७.७०/-रू0 को रसीद काट दी गयी और अगले दिन परिवादी के घर आकर मु0 २००/-रू0 की मांग की गयी। परिवादी ने जिसे देने से मना कर दिया। दिनांक २७/०७/१९९१ को प्रतिवादी ने कनेक्शन का चेकिंग कराया और गलत रिपोर्ट दी जिसमें मीटर का पठनांक १४५२ दिखाया है। पिछली रीडिंग सितम्बर १९९१ से १०३०५ तथा वर्तमान रीडिंग १०५०९ है। दिनांक २७/०७/१९९१ को मीटर रीडिंग ९ दिन के अन्दर हो १४५२ होना संभव नहीं है। दिनांक २८/०९/१९९१ को प्रार्थी के कनेक्शन का दुवारा चेकिंग किया गया जिसमें १०७०१ वर्तमान रीडिंग बताई गयी है। केबिल उतार दिया गया था । विद्युत सप्लाई बन्द कर दी गई जिससे चक्की बन्द पड़ी है और परिवादी को आर्थिक क्षति हुई है।
विपक्षी सं0-2 ने प्रतिउत्तर दाखिल किया और कहा कि परिवादी ७.८३५ अश्व शक्ति का उपभोक्ता है। दिनांक २७/०७/१९९१ को परिवादी के संस्थान का निरीक्षण उपखण्ड अधिकारी नगीना ने किया था। निरीक्षण के द्वारा मौके पर विद्युत सप्लाई मीटर से न होकर डायरेक्ट पाई। ऐसे मामले में परिवाद को सुनवाई का अधिकार फोरम को नहीं है। परिवादी ने इसी संबंध में अदालत मुन्सिफ बिनौर में मूल वाद सं0-७९४/१९९१ बलराम सिंह बनाम अधिशासी अभियन्ता दायर किया जो जेरे समात है। न्यायालय ने निषेधाज्ञा जारी नहीं की, जिसकी वजह से परिवादी ने यह परिवाद दायर किया और अब इस प्रकार यह परिवाद फोरम में चलने योग्य नहीं है। निरीक्षण के कारण निर्धारण बिल दिनांक १२/०८/१९९१ मु0 ९८६६.१०/-रू0 परिवादी को भेजा गया जो दिनांक २७/०८/१९९१ तक भुगतान होना था। उसने जमा नहीं किया और न इसके विरूद्ध एतराज सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया । निर्धारण बिल अंतिम है उसे इस सूरत में कनेक्शन रेस्टोर कराने का हक नहीं है। अत: परिवाद खारिज होने योग्य है।
अपीलकर्ता की ओर से श्री दीपक मेहरोत्रा तथा प्रत्यर्थी की ओर से श्री रवि कुमार रावत के तर्कों को सुना गया। पत्रावलीका परिशीलन किया गया।
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अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी/प्रत्यर्थी के संस्थान का जब निरीक्षण किया गया तो यह पाया गया कि मौके पर विद्युत सप्लाई मीटर से न होकर डायरेक्ट पायी गयी तथा मीटर की सील भी नहीं थी । अत: ऐसी परिस्थिति में परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा अवैध रूप से विद्युत का उपभोग किया जा रहा था जो कि चोरी की श्रेणी में आता है और मा0 सवोच्च न्यायालय द्वारा ‘’ सिविल अपील सं0-५४६६/२०१२ (विशेष अनुज्ञा याचिका सं0-३५९०६/२०११), उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में पारित निर्णय दिनांक ०१-०७-२०१३ ‘’ के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत प्रकरण विद्युत चोरी से संबंधित है तथा उसी आधार पर उसके कर का निर्धारण किया गया है एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा १९८६ के अन्तर्गत यह पोषणीय नहीं है। ऐसी दशा में विद्वान जिला मंच द्वारा पारित किया गया आदेश निरस्त किए जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्वान जिला मंच द्वारा सही निर्णय पारित किया गया और उस पर विद्युत चोरी का कोई आरोप नहीं बनता है। अत: विद्वान जिला मंच द्वारा पारित किए गए आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया। प्रस्तुत प्रकरण में विद्युत विभाग के अधिशासी अभियन्ता की रिपोर्ट दिनांक १२/०८/१९९१ में यह उल्लिखित है कि विद्युत सप्लाई डायरेक्ट चल रही थी और परिषद के नियमानुसार ९८६६/-रू0 का असेसमेंट किया गया था। चूंकि परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा विद्युत सप्लाई डायरेक्ट की जा रही थी। अत: ऐसी परिस्थिति में उसके द्वारा डायरेक्ट सप्लाई लेने का तथ्य विद्युत चोरी की श्रेणी में आता है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली द्वारा सिविल अपील सं0-५४६६/२०१२ (arising out of SLP No. 35906 of 2011) यूपीपावर कारपोरेशन लि0 आदि बनाम अनीस अहमद ०१ जुलाई २०१३ में निम्नानुसार अवधारित किया गया है:-
“………………………46. The acts of indulgence in “unauthorized use of electricity” by a person, as defined in clause (b) of the Explanation below Section 126 of the Electricity Act, 2003 neither has any relationship with “unfair trade practice” or “ restrictive trade Practice” or “deficiency in service” nor does it amounts to hazardous services by the license. Such acts of “unauthorized use of electricity” has nothing to do with
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charging price in excess of the price. Therefore, acts of person in indulging in ‘unauthorized use of electricity’, do not fall within the meaning of “complaint”, as we have noticed above and, therefore, the “complaint”, against assessment under Section 126 is not maintainable below the Consumer Forum. The commission has already noticed that the offences referred to in Sections 135 to 140 can be tried only by a special Court constituted under Section 153 of the Electricity Act, 2003. In that view of the matter also the complaint against any action taken under Section 135 to 140 of the Electricity Act, 2003 is not maintainable before the Consumer Forum.
47 (ii) A “complaint” against the assessment made be assessing officer under Section 126 or against the offences committed under Section 135 to 140 of the Electricity act, 2003 is not maintainable before a Consumer Forum.”
उपरोक्त तथ्यों एवं विधि व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि यह प्रकरण विद्युत चोरी से संबंधित है और उसी आधार पर उसके कर का निर्धारण किया गया है । चूंकि इस परिवाद को उपरोक्त विधिक व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए विद्वान जिला मंच को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: ऐसी परिस्थिति में अपील स्वीकार किए जाने योग्य है एवं प्रश्नगत निर्णय निरस्त किए जाने योग्य है। परिवाद भी पोषणीय न होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच, बिजनौर द्वारा परिवाद सं0-२३८/१९९१ संजय कुमार बनाम एक्जीक्यूटिव इंजीनियर इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन द्वितीय में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०५/०८/१९९४ निरस्त किया जाता है तथा परिवाद भी पोषणीय न होने के कारण निरस्त किया जाता है।
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उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्ष को इस आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार निर्गत की जाए।
(अशोक कुमार चौधरी)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य