राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-663/2009
(जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-52/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25-03-2009 के विरूद्ध)
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, डिवीजनल आफिस गोरखपुर द्वारा मैनेजर लीगल, लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, डिवीजनल आफिस हजरतगंज, लखनऊ।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
बालेन्दु सिंह पुत्र रामसहाय सिंह निवासी ग्राम सेवई, पोस्ट ककराखोर, जिला गोरखपुर।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री एम0एच0 खान विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 19-06-2024.
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-52/2007 बालेन्दु सिंह बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25-03-2009 के विरूद्ध योजित अपील पर दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त कथनों/अभिकथनों/प्रलेखीय साक्ष्य तथा प्रश्नगत निर्णय व आदेश का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया।
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विद्वान जिला आयोग ने परिवादी की पत्नी संजू सिंह द्वारा ली गई बीमा पालिसी के सम्बन्ध में बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 04-02-2006 के आधार पर बीमित राशि अदा करने का आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी बीमा निगम की ओर से यह कथन है कि बीमा प्रस्ताव भरते समय बीमाधारक बीमार थी तथा प्रस्ताव पत्र में इस तथ्य को छिपाया गया, परन्तु विद्वान जिला आयोग ने अपीलार्थी के उक्त तथ्य को स्वीकार न करते हुए उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि दस्तावेज सं0-41 पर एस0जी0पी0जी0आई0 द्वारा तैयार की गई डिस्चार्ज समरी है, जिसके आधार पर यह साबित होता है कि बीमाधारक बीमा पालिसी लेने से पूर्व बीमा थी और इस तथ्य को उसने बीमा प्रस्ताव में छिपाया। बीमा पालिसी दिनांक 24-08-2005 को ली गई है तथा डिस्चार्ज समरी दिनांक 15-12-2005 को तैयार की गई है।
बीमा पालिसी के लिए प्रस्ताव पत्र दिनांक 24-08-2005 को भरा गया है, परन्तु प्रस्ताव पत्र भरने से पूर्व बीमारी अथवा उसके इलाज से सम्बन्धित कोई साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। अत: पीठ के अभिमत में विद्वान जिला आयोग का निर्णय एवं आदेश को अपास्त करने के लिए कोई उचित आधार नहीं है, सिवाय इसके कि विद्वान जिला आयोग द्वारा आदेशित धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से जो ब्याज अदा करने का आदेश दिया गया है, उसे संशोधित करते हुए 06 प्रतिशत किया जाना उचित प्रतीत होता है।
तदनुसार विद्वान जिला आयोग का प्रश्नगत निर्णय/आदेश संशोधित करते हुए वर्तमान अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील, आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला
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उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-52/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25-03-2009 मात्र इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा आदेशित देय धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के स्थान पर मात्र 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देय होगा। निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
अपीलार्थी द्वारा यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के सम्बन्धित जिला आयोग को विधि अनुसार शीघ्रातिशीघ्र प्रेषित कर दी जाए ताकि विद्वान जिला आयोग द्वारा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश के सन्दर्भ में उक्त धनराशि का विधि अनुसार निस्तारण किया जा सके।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
दिनांक : 19-06-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.