Uttar Pradesh

StateCommission

A/2510/2014

UPPCL - Complainant(s)

Versus

Balbir Singh - Opp.Party(s)

Isar Husain

08 Dec 2014

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2510/2014
(Arisen out of Order Dated 18/09/2014 in Case No. C/01/2014 of District Muradabad-II)
 
1. UPPCL
Amroha
...........Appellant(s)
Versus
1. Balbir Singh
Amroha
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 HON'ABLE MR. Ram Charan Chaudhary MEMBER
 HON'ABLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-2510/2014

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, अमरोहा द्वारा परिवाद संख्‍या 01/2014 में पारित आदेश दिनांक 18.09.2014 के विरूद्ध)

1. General Manager, Pachimanchal  Vidyut  Vitran  Nigam  Ltd,  Victoria  Park,                                

  Meerut.

2. Executive Engineer, Electricity Distribution Division, Amroha.                                               

                                       ....................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम

Balvir Singh S/O Late Nihal Singh R/O Village Tandera, Amroha Tahsil and District: Amroha.                                 .................प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री राम चरन चौधरी, सदस्‍य(न्‍यायिक)।

3. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 03.12.2014

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, अमरोहा द्वारा परिवाद संख्‍या 01/2014 में पारित आदेश दिनांक 18.09.2014 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है। विवादित आदेश निम्‍नवत् है:-

      '' परिवाद आंशिक रूप से विपक्षीगण के विरूद्ध 4000/-रूपये(रूपये चार हजार मात्र) परिवाद व्‍यय सहित स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण, परिवादी को       दिनांक 23-12-11 को वसूल की गयी धनराशि अंकन 6923/-रूपये मय 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज की दर से दिनांक 23-12-11 से वास्‍तविक वसूली तक भुगतान करें एवं मानसिक उत्‍पीडन की क्षति हेतु 2000/-रूपये(रूपये दो हजार मात्र) का भी भुगतान करें। आदेश का अनुपालन एक माह के अंदर किया जाये। '' 

      श्री इसार हुसैन विद्वान अधिवक्‍ता अपीलार्थी को सुना गया और अभिलेख का अवलोकन किया गया।

पत्रावली का अवलोकन यह दर्शाता है कि दिनांक 18.09.2014 के प्रश्‍नगत आदेश की प्रति दिनांक 30.09.2014 को प्राप्‍त करने के उपरान्‍त अपील दिनांक 01.12.2014 को प्रस्‍तुत की गयी है, जो कि प्रथम दृष्‍ट्या समय-सीमा अवधि से बाधित है। अपीलार्थी की ओर से समय-सीमा अवधि में छूट सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र मय  शपथ  पत्र  प्रस्‍तुत  किया

-2-

गया है, जिसमें यह कहा गया है कि अपीलार्थी ने जिला मंच के प्रश्‍नगत निर्णय दिनांक 18.09.2014 की प्रमाणित प्रति दिनांक 30.09.2014 को जिला मंच से प्राप्‍त की और दिनांक 30.10.2014 तक अपील फाइल हो जानी चाहिए थी, लेकिन अपीलार्थी ने रिकार्ड का मुआयना करने के पश्‍चात् यह सोचा कि इस मामले को स्‍टेट लेवेल पर सुलझाया जाए, इसलिए अपील फाइल करने की राय देर में बनी तथा अपील दाखिल करने के लिए ड्राफ्ट दिनांक 21.11.2014 को तैयार हुआ। उसके पश्‍चात् कुछ समय अपील की तैयारी करने में लगा और अन्‍त में अपील दिनांक 01.12.2014 को फाइल की गयी। अपील दाखिल करने में विलम्‍ब जानबूझकर नहीं किया गया है। इस कारण विलम्‍ब क्षमा योग्‍य है।

      उपरोक्‍त वर्णित तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में यह अवलोकनीय है कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-1166/2006 बलवन्‍त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्‍य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्‍बन्‍धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्‍यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में वह सभी सम्‍भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्‍यक देरी कारित न होने के लिए आवश्‍यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्‍यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्‍या किसी भी प्रकार से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्‍य बनाम रीवा कोलफील्‍ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्‍त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्‍वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्‍योंकि पर्याप्‍त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्‍यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्‍यायालय को यह विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है कि न्‍यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए अथवा नहीं और इस स्‍तर पर अपील से सम्‍बन्धित सभी संगत तथ्‍यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई

 

-3-

देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं। यद्यपि स्‍वाभाविक रूप से इस अधिकार को न्‍यायालय द्वारा संगत तथ्‍यों पर कुछ सीमा तक ही विचार करने के लिए प्रयुक्‍त करना चाहिए।

      हाल ही में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल तथा अन्‍य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्‍य, सिविल अपील संख्‍या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्‍पन्‍न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्‍थानों, प्रबन्‍धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्‍वीकार किए जाने योग्‍य स्‍पष्‍टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्‍य में स्‍पष्‍ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्‍य स्‍पष्‍टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्‍य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्‍व होता है कि वे अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके लिए समान रूप से उपलब्‍ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्‍त किया जाए।

      आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्‍वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC) में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्‍पष्‍ट किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है? क्‍योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्‍बन्‍ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को  तेजी  से  निर्णीत

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किए जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गयी अपील को बिना सदभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण सम्‍बन्‍धी उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा।

      उपरोक्‍त सन्‍दर्भित विधिक सिद्धान्‍तों के परिप्रेक्ष्‍य में हमने अपीलार्थी द्वारा प्रदर्शित उपरोक्‍त तथ्‍यों का अवलोकन एवं विश्‍लेषण किया है और यह पाया है कि स्‍पष्‍टतया उपरोक्‍त सन्‍दर्भित स्‍पष्‍टीकरण सदभाविक स्‍पष्‍टीकरण नहीं है, ऐसा स्‍पष्‍टीकरण नहीं है जिससे अपीलार्थी अपील योजित किए जाने में हुई देरी से बच नहीं सकता था।    दिनांक 18.09.2014 के विवादित आदेश की सत्‍य प्रतिलिपि दिनांक 30.09.2014 को प्राप्‍त कर लिए जाने के उपरान्‍त भी प्रदत्‍त सीमा अवधि दिनांक 30.10.2014 तक अपील न किए जाने और दिनांक 01.12.2014 को अर्थात् लगभग 61 दिन बाद इस अपील को योजित किए जाने का कोई स्‍पष्‍ट औचित्‍य नहीं है। देरी होने सम्‍बन्‍धी तथ्‍य को जिस प्रकार से वर्णित किया गया है, उससे यह नहीं लगता है कि उसके अलावा कोई विकल्‍प अपील में देरी से बचने का नहीं था। अत: हम धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा प्रदत्‍त 30 दिन की कालावधि के अवसान के पश्‍चात् यह अपील ग्रहण किए जाने योग्‍य नहीं पाते हैं क्‍योंकि अपीलार्थी उस अवधि के भीतर अपील न योजित करने के सम्‍बन्‍ध में पर्याप्‍त कारण के प्रति ऐसा स्‍पष्‍टीकरण प्रस्‍तुत करने में  विफल है, जिससे हमारा समाधान हो सके कि कालावधि के अवसान के पश्‍चात् अपील ग्रहण की जा सकती है। अत: यह अपील, अपील को अंगीकार किये जाने के प्रश्‍न पर सुनवाई करते हुए ही समय-सीमा से बाधित होने के कारण अस्‍वीकार की जाने योग्‍य है।

                                  आदेश

      अपील उपरोक्‍त अस्‍वीकार की जाती है। अपीलार्थी द्वारा धारा-15 के अन्‍तर्गत जो धनराशि इस आयोग में जमा की गयी है, वह धनराशि जिला फोरम को वापस की जाए।

 

 

      (न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र सिंह)          (राम चरन चौधरी)             (संजय कुमार)     

अध्‍यक्ष                   सदस्‍य(न्‍यायिक)               सदस्‍य

जितेन्‍द्र आशु. ग्रेड-2

कोर्ट नं-1

 
 
[HON'ABLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT
 
[HON'ABLE MR. Ram Charan Chaudhary]
MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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