जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 697/2008
श्रीमती फूलमती,
पत्नी श्री जमुना,
निवासिनी-नवरंगपुर,
थाना-इंटौंजा, लखनऊ।
......... परिवादिनी
बनाम
1. अधीक्षिका,
बाल महिला चिकित्सालय एवं प्रसूति गृह,
अलीगंज, लखनऊ।
2. डाक्टर जो कि 12.02.2008 को केन्द्र पर तैनात थी
और जिसके द्वारा आपरेशन किया गया।
..........विपक्षीगण
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
श्री राजर्षि शुक्ला, सदस्य।
निर्णय
परिवादिनी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से त्रुटि एवं लापरवाही हेतु रू.1,00,000.00, बच्चे के भरण-पोषण हेतु रू.1,00,000.00, शिक्षा एवं विवाह हेतु रू.2,00,000.00 मानसिक क्षति हेतु रू.50,000.00 तथा वाद व्यय दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में परिवादिनी का कथन है कि उसके तीन पुत्रियां एवं दो पुत्र है। माह जनवरी 2008 में परिवादिनी के गांव में आंगन बाड़ी केन्द्र की कार्यकत्री श्रीमती सरस्वती वर्मा उसके घर आयी और उसे समझाया कि वह नसबंदी आपरेशन करा ले जिसमें उसे कोई दिक्कत नहीं होगी। दिनांक 12.02.2008 को परिवादिनी विपक्षी की अस्पताल गयी जहां केन्द्र पर तैनात डाक्टर के द्वारा परिवादिनी का नसबंदी का आपरेशन किया गया। मई 2008 में परिवादिनी विपक्षी के अस्पताल
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गयी जहां डाक्टर द्वारा उसका चेकअप करने के बाद बताया गया कि वह पुनः गर्भवती है जिस पर उसके द्वारा कहा गया उसके द्वारा दिनांक 12.02.2008 को नसबंदी आपरेशन यही केन्द्र पर कराया गया है जिस पर डाक्टर द्वारा कोई उचित जवाब नहीं दिया गया। परिवादिनी ने लखनऊ आकर पुनः डाक्टर से सलाह ली जिसके पश्चात्् उसका अल्ट्रासाउन्ड दिनांक 27.05.2008 को हुआ जिसकी रिपोर्ट के आधार पर परिवादिनी को 4 माह से अधिक का गर्भ होना बताया गया है। विपक्षी सं0 2 द्वारा परिवादिनी का नसबंदी आपरेशन सही ढंग से नहीं किया गया जिससे परिवादिनी पुनः गर्भवती हो गयी। विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक कष्ट उठाना पड़ रहा है। अतः परिवादिनी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से त्रुटि एवं लापरवाही हेतु रू.1,00,000.00, बच्चे के भरण-पोषण हेतु रू.1,00,000.00, शिक्षा एवं विवाह हेतु रू.2,00,000.00 मानसिक क्षति हेतु रू.50,000.00 तथा वाद व्यय दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी सं0 1 द्वारा अपना उत्तर दाखिल किया गया है जिसमंे मुख्यतः यह कथन किया गया है कि नसबंदी से संबंधित परिवादिनी की शिकायत पर चिकित्सा अधिकारी डा0 चन्द्रकांति जयसवाल द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण से वे पूर्ण सहमत हैं। 10 से 15 प्रतिशत केसों में जब माॅं बच्चे को दूध पिलाती है तो गर्भावस्था चतमहदंदबल जमेज दमहंजपअम ही मिलता है इसलिए केस को एक माह में पुनः फोलोअप के लिए बुलाया जाता है ताकि ऐसे विशेष केसों की पुनः जांच कर उपचार किया जा सके, लेकिन परिवादिनी मई 2008 में लगभग 3 माह बाद आयी थी जब समय अधिक हो चुका था जिसमें चिकित्साधिकारी द्वारा और चिकित्सालय द्वारा कोई त्रुटि या लापरवाही नहीं की गयी है।
विपक्षी सं0 2 द्वारा अपना उत्तर दाखिल किया गया है जिसमें मुख्यतः यह कथन किया गया है कि परिवादिनी दिनांक 12.02.2008 को नसबंदी आपरेशन कराने के लिए प्रेरक सरस्वती वर्मा, आंगनबाड़ी वर्कर के साथ बाल महिला चिकित्सालय, लखनऊ में आई थी। दिनंाक 12.02.2008 को उसकी जांच की गई जिसमें पाया गया कि उसकी बच्चेदानी का साइज नार्मल था तथा उसे आखिरी बच्चा जिसकी उम्र 1 वर्ष है के पैदा होने के बाद माहवारी नहीं आयी थी। परिवादिनी को उसी दिन अस्पताल की प्रयोगशाला भेजकर खून भ्इः एवं पेशाब की
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जांच चतमहदंदबल जमेज के लिए करायी गयी जिसमें भ्इः 9ण्8 हउ तथा चतमहदंदबल जमेज दमहंजपअम पाया गया था जिसके आधार पर परिवादिनी की नसबंदी दूरबीन विधि से कर दी गई। परिवादिनी की नसबंदी के समय उसका समुचित इलाज किया गया तथा एक माह के उपरांत आकर चेकअप कराने की सलाह दी गई। चतमहदंदबल जमेज चवेपजपअम तभी आता है जब मासिक कनम कंजम से 4-6 दिन ऊपर हो जाता है तथा अंदरूनी जांच में 15 दिन मासिक की तारीख से ऊपर होने पर ही चतमहदंदबल का पता चलता है। यदि महिला बच्चे को स्तनपान कराती है तो महिला को अक्सर मासिक नहीं आता है और उस बीच भी वह गर्भवती हो सकती है। परिवादिनी को सलाह दी गयी थी कि एक माह बाद पुनः चेकअप के लिये आये, परंतु वह नहीं आयी। परिवादिनी के अनुसार वह मई 2008 में चिकित्सालय में आयी, परंतु उसका प्रमाण पत्र परिवादिनी ने प्रस्तुत नहीं किया है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत किया गया अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट मंे दिनांक 27.05.2008 को 17 हफ्ते 6 दिन का गर्भ बताया गया है और बच्चे के गर्भ की संभावित तिथि 29.10.2008 बताई गई है। इस तिथि से यह ज्ञात होता है कि परिवादिनी को गर्भ 06.02.2008 के आस-पास ठहरा था और उसकी नसबंदी 12.02.2008 को की गई थी। अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट से पता चलता है कि नसबंदी से पूर्व उसे गर्भ ठहर चुका था। यह कहना गलत है कि नसबंदी का आपरेशन सही ढंग से नहीं हुआ है, जबकि परिवादिनी आपरेशन से पहले ही गर्भवती थी और परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक कष्ट नहीं उठाना पड़ रहा है। विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादिनी को बच्चे को जन्म नहीं देना पड़ रहा है। आपरेशन में कोई लापरवाही एवं त्रुटि नहीं हुई है, अतः अनुतोष की मांग करना अनुचित है। आपरेशन से पूर्व प्रयोगशाला से खून की जांच एवं चतमहदंदबल जमेज करा लिया गया था जिसमें चतमहदंदबल जमेज दमहंजपअम था। आपरेशन के समय गर्भ इतने कम दिन का था कि अंदरूनी जांच से गर्भ होने का पता नहीं चलता है। अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट के अनुसार भी महिला आपरेशन के समय गर्भवती थी। परिवादिनी द्वारा लगाये गये आरोप निराधार एवं खारिज किये जाने योग्य है।
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परिवादिनी द्वारा अपना शपथ पत्र दाखिल किया गया एवं 3 कागजात अपने परिवाद पत्र के साथ दाखिल किये गये। परिवादिनी द्वारा लिखित बहस भी दाखिल की गयी।
परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गयी, जबकि विपक्षीगण की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआा।
इस प्रकरण में सर्वप्रथम यह देखा जाना है कि क्या परिवादिनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में आती है या नहीं, यदि हां तो क्या परिवादिनी का विपक्षीगण द्वारा गलत तरीके से नसबंदी आपरेशन किया गया जिसके कारण परिवादिनी उपरोक्त आपरेशन होने के बाद भी पुनः गर्भवती हो गयी और विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
यद्यपि विपक्षीगण की ओर से परिवादिनी के संबंध में यह नहीं कहा गया है कि वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है, किंतु परिवाद का अवलोकन करने से ही यह दृष्टिगत होता है कि परिवादिनी को आंगनबाड़ी की कार्यकत्री द्वारा नसबंदी आपरेशन के लिए राजी कराया गया जिस पर विपक्षी के अस्पताल में आपरेशन किया गया। परिवादिनी ने अपने परिवाद में यह कहीं नहीं कहा है कि उसके द्वारा कोई भी धनराशि विपक्षीगण को आपरेशन हेतु भुगतान की गयी। इसके विपरीत परिवादिनी की ओर से जो नसबंदी आपरेशन संबंधित प्रमाण पत्र किया गया है उसमें परिवादिनी को लाभार्थी के रूप में निशानी अगूंठा लगवाया गया है और उसके द्वारा रू.600.00 प्राप्त किया जाना भी दृष्टिगत होता है। इन स्थितियों में स्पष्ट है कि परिवादिनी द्वारा उक्त आपरेशन के लिए भुगतान करने के स्थान पर उसे कुछ धनराशि लाभार्थी के रूप में प्राप्त हुई है। परिणामस्वरूप, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (घ) (पप) (ण) ‘सेवा से किसी भी वर्णन की कोई सेवा अभिप्रेत है जो उसके प्रत्याशित प्रयोगकर्ताओं को उपलब्ध कराई जाती है और इसके अंतर्गत सम्मिलित है बैंककारी, वित्तपोषण, बीमा, परिवहन, प्रसंस्करण, विद्युत या अन्य ऊर्जा के प्रदाय बोर्ड या निवास या दोनों, गृह निर्माण, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद या समाचारों या अन्य जानकारी पहुॅंचाने के संबंध में सुविधाओं का प्रबंध भी है, किंतु यह इसके प्रावधानों तक सीमित नहीं है परंतु इसके अंतर्गत निःशुल्क या व्यक्तिगत सेवा संविदा के अधीन सेवा का किया जाना शामिल नहीं
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है।‘ उपरोक्त के अंतर्गत परिवादिनी को सेवा निःशुल्क प्रदान करना दृष्टिगत होता है, अतः परिवादिनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (घ) (पप) (ण) के अनुसार उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है क्योंकि उसको सेवा निःशुल्क प्रदान की गई है और उसके द्वारा कोई भुगतान किया जाना दृष्टिगत नहीं होता है। चूंकि परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है, अतः यह परिवाद इसी कारण से निरस्त किये जाने योग्य है।
च्ूंकि परिवादिनी का परिवाद उपरोक्त कारण से ही निरस्त किये जाने योग्य है, अतः परिवादिनी के परिवाद को गुण-दोष के आधार पर निर्णीत किया जाना समीचीन नहीं पाया जाता है। अतः यह परिवाद इस फोरम में निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादिनी सक्षम फोरम/ न्यायालय में अपना वाद दाखिल करने हेतु स्वतंत्र है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
(राजर्षि शुक्ला) (अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 15 मई, 2015