राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1201/2016
(जिला फोरम, सम्भल द्धारा परिवाद सं0-88/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 12.02.2016 के विरूद्ध)
नौशे पुत्र अजमेरी, निवासी ग्राम कुआं खेड़ा, थाना बिलारी, जिला मुरादाबाद।
........... अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1- बजाज फाइनेंस, बजाज आटो फाइनेंस लिमिटेड, 14/145, दूबे का पड़ाव, स्टेट बैंक आफ इण्डिया के ऊपर अलीगढ़, जिला अलीगढ़।
2- दुर्गा सैल्स, मालगोदाम रोड़, चन्दौसी, जिला सम्भल द्वारा अपने प्रोपराइटर।
…….. प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री आर0के0 मिश्रा
प्रत्यर्थी सं0-1 के अधिवक्ता : श्री सर्वेश्वर मेहरोत्रा और
श्री हरि शंकर
दिनांक :-31-10-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-88/2011 नौशे बनाम बजाज फाइनेंस, बजाज आटो फाइनेंस लिमिटेड व एक अन्य में जिला फोरम, सम्भल द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 12.02.2016 के विरूद्ध
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यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा उपस्थित आये है। प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश्वर मेहरोत्रा और श्री हरि शंकर उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने दिनांक 29.10.2007 को एक मोटर साइकिल 30,590.00 रू0 में विपक्षी सं0-2 से खरीदा और 11,600.00 रू0 उसने स्वयं नकद अदा किया। शेष धनराशि 18,999.00 रू0 विपक्षी सं0-1 से ऋण लेकर अदा किया।
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परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी सं0-1 से लिये गये ऋण की अदायगी 1,555.00 रू0 की 18 मासिक किश्तों में करना था। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने उससे ऋण प्रपत्रों पर हस्ताक्षर कराये और मोटर साइकिल की एक चाभी अपने पास रख ली, जो ऋण अदायगी के बाद देने के लिए कहा। तदोपरांत अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 20.11.2007 से दिनांक 14.5.2009 तक नकद तथा चेक द्वारा विभिन्न तिथियों में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 को 29,347.00 रू0 अदा किया। इस प्रकार उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 को 1357.00 रू0 अधिक अदा किया, फिर भी प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने उसे मोटर साइकिल की चाभी और ऋण का अदेयता प्रमाण पत्र बार-बार मॉगने के बाद भी नहीं दिया। अत: विवश होकर उसने नोटिस भेजा फिर भी प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने कोई कार्यवाही नहीं किया। तब अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने 27,954.00 रू0 ऋण उससे लिया था और दिनांक 31.10.2007 को लोन एग्रीमेंट निष्पादित किया था। ऋण धनराशि 1,618.00 रू0 की 18 मासिक किश्तों में दिनांक 05.12.2007 से 05.5.2009 तक
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अपीलार्थी/परिवादी को अदा करना था। लिखित कथन में प्रत्यथी/विपक्षी सं0-1 ने कहा है कि मोटर साइकिल की चाभी उसे नहीं दी गई थी। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मा अवशेष धनराशि 24,869.00 रू0 है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी और प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के बीच में ऋणी और ऋणदाता का सम्बन्ध है, अपीलार्थी/परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने ऋण धनराशि का भुगातन नहीं किया है। अत: उसे एन0ओ0सी0 देने का प्रश्न ही नहीं उठता है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने यह भी कहा है कि लोन एग्रीमेंट के क्लॉज-29 के अनुसार पक्षों के बीच ऋण सम्बन्धी विवाद उत्पन्न होने पर विवाद आर्बिट्रेटर को सौंपा जायेगा। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 ने भी लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 से फाइनेंस कराकर मोटर साइकिल खरीदी थी उसके द्वारा ऋण अदा करने पर मोटर साइकिल की दूसरी चाभी
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उसे उपलब्ध हो जायेगी तथा पंजीकरण प्रमाण पत्र में अंकित फाइनेंस कम्पनी का नाम कट जायेगा।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि परिवादी और विपक्षी के बीच ऋणी और ऋणदाता का सम्बन्ध है और दोनों के बीच विवाद का निस्तारण व्यवहार न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है। अत: जिला फोरम ने यह माना है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश के द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है। अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से मात्र 18,999.00 रू0 ऋण प्राप्त कर आर्थिक सहायता ली है। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने 27,954.00 रू0 की ऋण धनराशि गलत बताया है। अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की सेवा में कमी है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 से आर्थिक सहायता प्राप्त की है, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-2 (1) (ओ) के अन्तर्गत सेवा है। अत: अपीलार्थी/परिवादी
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प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 का उपभोक्ता है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवकता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय दोष पूर्ण है। अत: जिला फोरम का निर्णय अपास्त कर परिवाद स्वीकार किया जाना न्यायहित में आवश्यक है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्तागण का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय उचित है। अपीलार्थी/परिवादी ने 27,954.00 रू0 की ऋण धनराशि प्राप्त की है, जिसका भुगतान उसने ऋण करार पत्र के अनुसार नहीं किया है। उसके जिम्मा ऋण की धनराशि अवशेष है। अत: परिवाद पत्र में याचित अनुतोष उसे प्रदान नहीं किया जा सकता है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार उसने प्रश्नगत मोटर साइकिल 30,590.00 रू0 में क्रय किया है, जिसमें 11,600.00 रू0 का भुगतान उसने अपने पास से किया है शेष कीमत 18,999.00 का भुगतान प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 से ऋण प्राप्त कर किया है, जबकि प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने 27,954.00 रू0 ऋण उससे प्राप्त किया है और ऋण करार पत्र निष्पादित
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किया है। ऋण करार पत्र की प्रति अपील में प्रस्तुत नहीं की गई है। जिला फोरम के अनुसार ऋण करार पत्र में ऋण धनराशि 24,000.00 रू0 अंकित है और ब्याज दर 11 प्रतिशत तथा एक मासिक किश्त 1,618.00 रू0 लिखी है, जबकि अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार मासिक किश्त 1555.00 रू0 है। ऐसी स्थिति में यह निर्णीत किया जाना आवश्यक है कि क्या ऋण करार पत्र में अंकित ऋण धनराशि गलत है और ऋण करार पत्र में वास्तविक ऋण की धनराशि से अधिक धनराशि अंकित की गई है। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित आधार है कि पक्षों के बीच विवाद के निस्तारण हेतु तथ्य का जटिल प्रश्न निर्णीत होना आवश्यक है, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद में निर्णीत नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने जो परिवाद यह मानकर निरस्त किया है कि पक्षों के बीच विवाद का निस्तारण सिविल कोर्ट ही कर सकती है वह उचित है।
अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 से आर्थिक सहायता मोटर साइकिल क्रय करने हेतु प्राप्त की है। अत: अपीलार्थी/परिवादी प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की सेवा का उपभोक्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा- 2 (1) (डी) के अन्तर्गत है, परन्तु उपरोक्त विवेचना के आधार पर
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अपीलार्थी/परिवादी और प्रत्यर्थी/विपक्षी के बीच विवादित बिन्दु पर निर्णय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद में दिया जाना सम्भव नहीं है। अत: मैं इस मत का हॅू कि जिला फोरम के निर्णय में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1