राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 901/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, वाराण्ासी द्वारा परिवाद सं0- 49/2010 में पारित आदेश दि0 02.03.2016 के विरूद्ध)
Jageesh mishra S/o Sri Dev dutt mishra, R/o H. No.-B-32/47A-1-K, Saket nagar Lanka, District- Varanasi.
………..Appellant
Versus
M/s Vinayak bajaj, AS20/52A the mol cantonment, Varanasi, through bajaj auto Ltd. Com. Akunthi, Puna, Maharashtra.
………… Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अनिल कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री बदरूल हसन,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 20.12.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 49/2010 जगीश मिश्रा बनाम फर्म विनायका बजाज एवं एक अन्य में जिला फोरम, वाराणसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 02.03.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद खारिज कर दिया है, अत: क्षुब्ध होकर परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बदरूल हसन उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
प्रत्यर्थी की ओर से लिखित आपत्ति भी अपील के विरुद्ध प्रस्तुत की गई है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरुद्ध उपरोक्त परिवाद इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने बजाज एक्स सी0डी0 135 मोटर साइकिल विपक्षी सं0- 2 बजाज आटो लि0 के वाराणसी के शोरूम विपक्षी सं0- 1 फर्म विनायका बजाज से दि0 03.07.2009 को खरीदा जिसका पंजीयन नं0- यू0पी065ए0पी0 2115 है। उसकी इस मोटर साइकिल का इंजन थोड़ी देर चलने पर अत्यधिक गर्म हो जाता था और चलने की गति कम हो जाती थी तथा वाहन का क्लच कड़ा व जाम हो जाता था। इसके साथ वाहन चलाते समय गियर से अपने आप न्यूट्रल हो जाता था। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी के शोरूम व वर्कशाप विनायका बजाज में शिकायत दर्ज करायी, परन्तु शिकायत दूर नहीं की गई। सर्विस सेन्टर में शिकायत दूर न होने पर उसने कम्पनी को ई-मेल दि0 23.07.2009 के द्वारा सूचना दी, जिस पर कम्पनी ने कुछ सूचना मांगी जिसे दि0 24.07.2009 को अपीलार्थी/परिवादी ने कम्पनी को भेजा, परन्तु वाहन की खराबी दूर नहीं की गयी। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के सर्विस सेन्टर के कर्मचारियों द्वारा बताया गया कि इंजन के निर्माण में दोष के कारण यह खराबी है कम्पनी के इंजीनियर आने पर ही यह खराबी दूर हो सकती है। अत: अपीलार्थी/परिवादी प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के सर्विस सेन्टर जाकर कम्पनी के इंजीनियर के बारे में पूछताछ करता रहा, परन्तु उसकी शिकायत दूर नहीं की गई। उसके बाद दि0 11.11.2009 को उसने अपना वाहन कम्पनी के फोन पर सर्विस सेन्टर भेजा, फिर भी उपरोक्त त्रुटि दूर नहीं हुई। अत: उसने विधिक नोटिस विपक्षीगण को दी और कोई कार्यवाही न होने पर परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद के कथन का खण्डन किया गया है और परिवाद का विरोध किया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि वाहन में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि नहीं है और परिवादी मनीष मिश्रा विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी की मोटर साइकिल में तकनीकी त्रुटि न होना बिना किसी उचित आधार के माना है। अपीलार्थी द्वारा मोटर साइकिल में कथित तकनीकी त्रुटि को देखने हेतु जिला फोरम को धारा 13(4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत मोटर साइकिल का इस क्षेत्र के विशेष्ाज्ञ व्यक्ति या संस्था से निरीक्षण कराकर विशेषज्ञ आख्या प्राप्त करनी चाहिए थी, परन्तु जिला फोरम ने विशेषज्ञ आख्या प्राप्त किये बिना, बिना किसी उचित आधार के यह माना है कि मोटरसाइकिल में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि नहीं है, जब कि वास्तविकता यह है कि मोटर साइकिल में कथित उपरोक्त त्रुटि शुरू से है जो निर्माण सम्बन्धी त्रुटि है और उसका निवारण नहीं किया जा सका है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अपास्त कर अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाना आवश्यक है।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी मोटर साइकिल में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि साबित करने में असफल रहा है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर कोई गलती नहीं की है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि परिवाद सन 2010 में प्रस्तुत हुआ है और बहस के समय स्वीकार किया गया कि गाड़ी अब भी परिवादी के पास है तथा चल रही है। गाड़ी में कोई निर्माण सम्बन्धी त्रुटि है इस पर विशेषज्ञ की कोई रिपोर्ट परिवादी की तरफ से प्रस्तुत नहीं की गई। अत: उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं को देखते हुए यह पाया जाता है कि परिवादी की गाड़ी में कोई निर्माण सम्बन्धी त्रुटि नहीं है। इसके साथ ही जिला फोरम ने निर्णय में यह भी उल्लेख किया है कि श्री मनीष मिश्रा विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है। इन्हीं आधारों पर जिला फोरम ने परिवाद निरस्त किया है।
परिवाद पत्र के उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने मोटर साइकिल दि0 03.07.2009 को खरीदा है और वर्ष 2010 में परिवाद मोटर साइकिल में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि के कथन के आधार पर प्रस्तुत किया है, परन्तु जिला फोरम ने परिवाद के निस्तारण में करीब छ: साल का समय लगाया है, फिर भी सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। अपीलार्थी/परिवादी की मोटर साइकिल में क्या कोई निर्माण सम्बन्धी त्रुटि है? इस संदर्भ में धारा 13(4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत इस क्षेत्र के विशेष्ाज्ञ व्यक्ति या संस्था से मोटर साइकिल व उसके इंजन का परीक्षण कराकर आख्या प्राप्त किया जाना आवश्यक है, परन्तु जिला फोरम ने धारा 13(4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त अधिकार का प्रयोग कर उचित प्रक्रिया अपनाये बिना परिवाद का निस्तारण छ: साल बाद किया है जो उचित नहीं है। परिवादी जगीश मिश्रा है जब कि जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि मनीष मिश्रा विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी जगीश मिश्रा विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है। यह जिला फोरम ने नहीं कहा है और न इस संदर्भ में कोई उल्लेख किया है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय त्रुटि पूर्ण प्रतीत होता है। अत: अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अपास्त कर पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला फोरम धारा 13(4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी/परिवादी की मोटर साइकिल का सम्बन्धित क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्ति या संस्था से परीक्षण कराकर निर्माण सम्बन्धी त्रुटि के सम्बन्ध में एक्सपर्ट रिपोर्ट प्राप्त करे और उसके बाद उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर पुन: विधि के अनुसार निर्णय और आदेश पारित करें।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दि0 28.01.2019 को उपस्थित हों।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1