(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 985/2016
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, रामपुर द्वारा परिवाद सं0- 116/2013 में पारित निर्णय व आदेश दि0 26.04.2016 के विरूद्ध)
Naresh pal son of Late Lekhraj Resident of Village Khajuriya khurd Tehsil Bilaspur District Rampur.
……….Appellant
Versus
- Bajaj Allianz life insurance company limited. Branch Rampur, District Rampur. Through its Manager.
- Bajaj allianz life insurance company limited 116-A, Civil Lines, Badaun road, Near Circuit house crossing, Bareilly-234311. (Head Office: G Plaza, Airport road, Yaravada, Pune-411006)
- Punjab and Sindh bank Branch Aharo, Tehsil Bilaspur, District Rampur, Through its Branch Manager.
…………Respondents
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विष्णु कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण सं0- 1 और 2 की ओर से उपस्थित : श्री एस0बी0 श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 22.07.2019
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 116/2013 नरेश पाल बनाम प्रबंधक बजाज एलियांज लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 व दो अन्य में जिला फोरम, रामपुर द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 26.04.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी नरेश पाल ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विष्णु कुमार मिश्रा और प्रत्यर्थीगण सं0- 1 व 2 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0बी0 श्रीवास्तव उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी और प्रत्यर्थीगण सं0- 1 व 2 के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
मैंने उभय पक्ष की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरुद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसके पिता लेखराज ने अपने जीवनकाल में दि0 26.11.2012 को परिवाद के विपक्षी सं0- 3 के माध्यम से एक बीमा पॉलिसी 2,50,000/-रू0 की विपक्षीगण सं0- 1 व 2 से ली थी और प्रीमियम धनराशि 9,984/-रू0 उन्होंने अदा की थी तथा पॉलिसी में अपना नामिनी परिवादी को नामित किया था।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि पॉलिसी लेते समय उसके पिता बीमार नहीं थे। दि0 10.01.2013 को अचानक उनकी मृत्यु हो गई जिसकी सूचना अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण को दी और विपक्षी सं0- 3 के माध्यम से विपक्षीगण सं0- 1 व 2 के यहां बीमा धनराशि हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने अपीलार्थी/परिवादी को बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण सं0- 1 व 2 ने लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि पॉलिसी जारी होने के 3 माह के अन्दर अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता की मृत्यु हो गई। अत: अपीलार्थी/परिवादी द्वारा सूचना दिये जाने पर प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने जांच करायी तो पता चला कि अपीलार्थी/परिवादी के पिता ने दि0 21.05.2010 को अपना चेकअप डॉक्टर विशेष कुमार रामपुर से कराया था जिसमें उन्हें Chronic Obstructive Pulmonary Disease and CVT Cerebral Venous Thrombosis, Blood Sugar and Serum Creatinine की बीमारी पायी गई थी, परन्तु बीमाधारक अपीलार्थी/परिवादी के पिता ने अपनी बीमारी को बीमा प्रस्ताव में छिपाया है और साथ ही अपनी वास्तविक आयु को भी कम बताया। अत: अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता द्वारा गलत कथन के आधार पर बीमा पॉलिसी प्राप्त किये जाने के आधार पर विपक्षीगण सं0- 1 व 2 की बीमा कम्पनी को अपीलार्थी/परिवादी का बीमादावा अस्वीकार करने का अधिकार है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0- 3 नोटिस तामीला के बाद भी जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ है और न ही लिखित कथन प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता ने अपनी आयु और स्वास्थ्य के सम्बन्ध में गलत सूचना देकर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है। अत: बीमा कम्पनी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी का बीमादावा अस्वीकार किये जाने हेतु उचित आधार है और ऐसा कर बीमा कम्पनी ने सेवा में कमी नहीं की है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरुद्ध है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने बीमा प्रस्ताव में गलत आयु बताने के आधार पर जो बीमादावा निरस्त किया है वह उचित नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवकता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता को बीमा पॉलिसी लेने के पहले कोई बीमारी नहीं थी और यह कहना सही नहीं है कि उन्होंने बीमा प्रस्ताव में अपनी पूर्व बीमारी को छिपाकर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है।
प्रत्यर्थी/बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता ने अपनी आयु और स्वास्थ्य के सम्बन्ध में बीमा प्रस्ताव में गलत घोषणा कर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है। अत: बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमादावा अस्वीकार कर सेवा में कमी नहीं की है। जिला फोरम का निर्णय व आदेश उचित और विधि सम्मत है इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता ने प्रश्नगत बीमा पॉलिसी के प्रस्ताव में अपनी वास्तविक आयु 68 वर्ष को छिपाकर 60 वर्ष दर्शित किया है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि संलग्नक 1/21 के अनुसार डॉ0 अखिल अग्रवाल की जांच के समय बीमाधारक लेखराज ने अपनी आयु दि0 22.05.2010 को 70 वर्ष बतायी है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्लेख किया है कि विपक्षीगण सं0- 1 व 2 के गवाह समीर खां ने अपने शपथ पत्र के साथ बतौर संलग्नक जो अभिलेखीय साक्ष्य दाखिल किया है उससे स्पष्ट है कि पॉलिसी लेने के लगभग 2 वर्ष से अधिक पहले बीमाधारक डायबिटीज की बीमारी से पीडि़त था और 2 वर्ष से अधिक समय से उसका इलाज डॉ0 विशेष रामपुर डॉ0 अखिल अग्रवाल मुरादाबाद के यहां चल रहा था। अत: जिला फोरम ने यह निष्कर्ष अंकित किया है कि अपीलार्थी/परिवादी के पिता बीमाधारक को प्रश्नगत बीमा पॉलिसी लेने के पहले से ही बीमारी थी और उन्होंने अपनी बीमारी को बीमा प्रस्ताव में छिपाया है तथा इस सम्बन्ध में गलत सूचना दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी आयु के सम्बन्ध में गलत सूचना बीमा प्रस्ताव में दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने Assistant Director & Anr. Versus Basta ram II (2017) CPJ 520 (NC) के वाद में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय संदर्भित किया है जिसके अवलोकन से स्पष्ट है कि इस वाद में बीमाधारक ने अपनी आयु बीमा प्रस्ताव के समय 40 वर्ष बतायी थी जब कि बीमा कम्पनी के कथनानुसार दि0 14.04.2001 को उसकी आयु 54 वर्ष थी और पॉलिसी लिये जाने के समय 61 वर्ष थी।
उपरोक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह माना है कि बीमाधारक द्वारा गलत आयु बताने के आधार पर बीमादावा निरस्त किया जाना उचित नहीं है, क्योंकि बीमाधारक द्वारा कथित आयु में 1 - 2 साल का अन्तर हो सकता है। बतायी गयी आयु और वास्तविक आयु में इतना अधिक अन्तर आसानी से देखकर समझा जा सकता है। इसके साथ ही बीमाधारक का डॉक्टरी परीक्षण भी हुआ है जिसमें उसके द्वारा घोषित आयु को गलत नहीं कहा गया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Azaz Haider Versus L.I.C. of India IV (2017) CPJ 452 (NC) के वाद में दिया गया निर्णय भी संदर्भित किया है जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग ने माना है कि उचित सत्यापन और डॉक्टरी जांच के बाद पॉलिसी जारी किये जाने के बाद गलत आयु बताने के आधार पर बीमादावा रिपूडिएट किया जाना उचित नहीं है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Met Life India Insurance Company Ltd. Versus Usirikayala Sreenivasa Rao I (2016) CPJ 91 (NC) के वाद में दिया गया निर्णय भी संदर्भित किया है जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग ने कहा है कि पूर्व बीमारी की घोषणा बीमा प्रस्ताव में न किये जाने पर बीमादावा तभी निरस्त किया जा सकता है जब बीमारी की जानकारी बीमाधारक को बीमा प्रस्ताव भ्ारते समय रही हो।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में उभय पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों पर विचार कर यह निष्कर्ष निकाला है कि बीमा प्रस्ताव फार्म भरते समय अपीलार्थी/परिवादी के बीमाधारक पिता की आयु 68 वर्ष थी जब कि उसने 60 वर्ष अपनी आयु बीमा प्रस्ताव में दर्शित की है। जिला फोरम का यह निष्कर्ष उपलब्ध साक्ष्यों की उचित व विधिक विवेचना पर आधारित है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता जिला फोरम के निष्कर्ष को गलत व आधार रहित दर्शित नहीं कर सके हैं। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि अपीलार्थी/परिवादी के पिता ने अपनी गलत आयु घोषित कर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है। अपीलार्थी/परिवादी के पिता को बीमा पॉलिसी जारी करने के पूर्व उनका मेडिकल परीक्षण होना नहीं बताया गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी के पिता द्वारा घोषित आयु पर विश्वास करते हुए बीमा कम्पनी ने उसे बीमा पॉलिसी जारी की है। वास्तविक आयु अपीलार्थी/परिवादी के पिता द्वारा घोषित करने पर बीमा पॉलिसी उसे जारी नहीं की जा सकती थी। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि अपीलार्थी/परिवादी के पिता ने अपनी आयु के सम्बन्ध में गलत सूचना देकर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है।
जिला फोरम के निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी की पूर्व बीमारी के सम्बन्ध में जिला फोरम ने जो निष्कर्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण सं0- 1 व 2 के गवाह समीर खां के शपथ पत्र के संलग्नकों के आधार पर निकाला है वह भी विधि विरुद्ध नहीं कहा जा सकता है।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण सं0- 1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Reliance Life Insurance Co. Ltd. & Anr. Versus Rekhaben Nareshbhai Rathod II (2019) CPJ 53 (SC) के वाद में दिये गये निर्णय में मैटेरियल फैक्ट की व्याख्या करते हुए मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न उल्लेख किया है:-
“Whether a question concealed is or is it not material is a question of fact. As this Court held in Satwant Kaur (Supra).
Any fact which goes to the root of the contract of insurance and has a bearing on the risk involved would be material”
मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट है कि बीमा पॉलिसी प्राप्त करने हेतु आयु मैटेरियल फैक्ट है। अत: अपीलार्थी/परिवादी के पिता ने जो अपनी वास्तविक आयु को छिपाकर अपनी आयु के सम्बन्ध में गलत सूचना देकर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है उससे यह स्पष्ट है कि उन्होंने यह पॉलिसी मैटेरियल फैक्ट के सम्बन्ध में गलत सूचना देकर प्राप्त की है। अत: प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्पनी को बीमादावा निरस्त करने हेतु विधिक अधिकार प्राप्त है।
उपरोक्त विवेचना एवं मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Reliance Life Insurance Co. Ltd. & Anr. Versus Rekhaben Nareshbhai Rathod II (2019) CPJ 53 (SC) के वाद में प्रतिपादित सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूं कि बीमा कम्पनी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी का बीमादावा रिपूडिएट किये जाने हेतु उचित आधार है और जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर कोई गलती नहीं की है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1