(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
परिवाद संख्या : 151 /2016
Bhoji Ram R/o House No.-05, Village-Inayatpur, Ghaziabad. ........परिवादीगण
बनाम्
- Bajaj Allianz General Insurance Company Ltd., Block No. 04, 7th Floor, DLF Tower-15, Shivaji Marg, New Delhi-110015, through Managing Director/General Manager.
- Bajaj Allianz General Insurance Company Ltd., 2nd Floor, Building No-6, Advocates Chamber, Raj Nagar Distt. Centre, Ghaziabad-201002, through Branch Manager. .......विपक्षीगण
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
परिवादी की ओर से उपस्थित- श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित- श्री दिनेश कुमार।
दिनांक : 02-04-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवादी Bhoji Ram ने यह परिवाद विपक्षीगण Bajaj Allianz General Insurance Company Ltd., Block No. 04, 7th Floor, DLF Tower-15, Shivaji Marg, New Delhi-110015, through Managing Director/General
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Manager एवं Bajaj Allianz General Insurance Company Ltd., 2nd Floor, Building No-6, Advocates Chamber, Raj Nagar Distt. Centre, Ghaziabad-201002, through Branch Manager के विरूद्ध धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है :-
- To direct the opposite party to make the payment of insured amount Rs. (Rs. 20,90,000/-) as per policy alongwith 24% interest from the date of theft of JCB Machine to the date of actual payment.
- To direct the opposite party to pay Rs. 5,00,000/- towards compensation for physical and mental harassment.
- To direct the opposite party to pay Rs. 50,000/- towards monetary loss occurred due innumerable times of visit to their office for knowing the status of project and thereafter refund of money.
- To direct the opposite party to pay Rs. 30,000/- for cost of the case.
- Any other relief which this Hon’ble Court deems fit and proper in the interest of justice.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि परिवादी की जे0सी0बी0 मशीन विपक्षीगण की Bajaj Allianz General Insurance Company Ltd. से दिनांक 31-10-2014 से दिनांक 30-10-2015 की अवधि के लिए रू0 20,90,000/- हेतु बीमाकृत थी और बीमा अवधि में ही दिनांक 15-04-2015 को उसकी यह जे0सी0बी0 मशीन मुजफ्फरनगर से मेरठ आ रही थी
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तो रास्ते में मशीन में कुछ समस्या उत्पन्न हो गयी जिससे मशीन को 9.00 बजे रात के समय जनपद मुजफ्फरनगर के क्षेत्र में खड़ा कर चालक ने परिवादी को सूचित किया और जे0सी0बी0 मशीन को ठीक ढंग से लाक करके चालक मिस्त्री बुलाने चला गया, परन्तु जब वह वापस आया तो मशीन वहॉं पर नहीं थी तब चालक ने तुरन्त इसकी सूचना परिवादी को दिया और उसके बाद चालक और परिवादी दोनों ने जे0सी0बी0 मशीन की काफी तलाश की, परन्तु जे0सी0बी0 मशीन नहीं मिली। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी चालक के साथ थाना खतौली, जिला मुजफ्फरगनर में घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने गया, परन्तु उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी और थाने पर उसकी तहरीर रख ली गयी। तदोपरान्त परिवादी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सम्पूर्ण तथ्यों से अवगत कराते हुए प्रार्थना पत्र दिनांक 30-05-2015 को भेजा, तब दिनांक 08-06-2015 को थाने पर रिपोर्ट दर्ज की गयी, परन्तु वाद विवेचना पुलिस ने दिनांक 27-07-2015 को अंतिम रिपोर्ट न्यायालय प्रेषित कर दिया, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आदेश दिनांक 12-12-2015 के द्वारा स्वीकार कर लिया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने अपने बीमा दावे के संबंध में विपक्षी बीमा कम्पनी के समक्ष विधिवत दावा बीमा धनराशि हेतु प्रस्तुत किया, परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने उसे बीमित धनराशि अदा करने के स्थान पर पत्र दिनांक 28-08-2015 प्रेषित किया जिसमें उससे कारण स्पष्ट करने हेतु कहा गया कि घटना की सूचना 52 दिन बाद विलम्ब से देने के आधार पर क्यों न उसका क्लेम निरस्त कर दिया जाए।
परिवाद पत्र में परिवादी की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भेजे गये प्रार्थना पत्र में सम्पूर्ण तथ्य अंकित किये है और प्रार्थना पत्र की प्रति विपक्षी बीमा कम्पनी को भेजा है, फिर भी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया गया है जो बीमा
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कम्पनी की सेवा में कमी है और अनुचित व्यापार पद्धति है। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और विपक्षीगण के विरूद्ध उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और कहा गया है कि प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन की चोरी की घटना परिवादी ने दिनांक 15-04-2015 को बतायी है जबकि उसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट 52 दिन बाद दिनांक 08-06-2015को दर्ज की गयी है और बीमा कम्पनी को 60 दिन बाद घटना की सूचना दिनांक 17-06-2015 को दी गयी है।
लिखित कथन में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि परिवादी से चोरी की सूचना प्राप्त होने पर विपक्षी ने इन्वेस्ट्रिगेटर की नियुक्ति पत्र दिनांक 24-06-2015 के द्वारा की, जिसने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि बीमाधारक ने चोरी की सूचना पुलिस और बीमा कम्पनी को विलम्ब से दिया है और गॉव वालों ने जे0सी0बी0 मशीन की चोरी की घटना से अनभिज्ञता प्रकट की है। लिखित कथन के अनुसार इन्वेटिगेटर ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि परिवादी ने अपने वाहन की तलाश के लिए उचित और पर्याप्त प्रयास नहीं किया है। लिखित कथन में विपक्षी बीमा कम्पनी ने यह भी कहा है कि परिवादी ने अपने प्रश्नगत वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी नहीं बरती है। लिखित कथन में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवाद में आवश्यक पक्षकार न बनाये जाने का दोष भी है।
परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादी Bhoji Ram का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है और इसके साथ ही परिवाद पत्र के साथ प्रश्गनत बीमा कम्पनी की प्रति, प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन का फिटनेश सर्टीफिकेट, पंजीयन सर्टीफिकेट और पुलिस अधीक्षक को प्रेषित प्रार्थना पत्र
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दिनांक 30-05-1995 की प्रति एवं थाने में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति, पुलिस द्वारा प्रेषित अंतिम रिपोर्ट की प्रति व मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रति प्रस्तुत की गयी है।
परिवादी ने परिवाद पत्र के साथ विपक्षी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 28-05-2015 की प्रति भी प्रस्तुत की है जिसके द्वारा उसे नोटिस दी गयी है और कहा गया है कि क्यों न उसका बीमा दावा पालिसी की शर्त का उल्लंघन होने के कारण रिप्यूडिएट कर दिया जाए।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन के समर्थन में श्री हरप्रीत सिंह, असिस्टेट मैनेजर, लीगल का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद की अंतिम सुनवाई के समय परिवादी के विद्धान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव तथा विपक्षीगण के विद्धान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार उपस्थित आए है।
मैंने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने विपक्षी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी ने अपनी प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन न मिलने परचोरी की सूचना तुरन्त थाने पर दिया है, परन्तु थाने द्वारा रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी और उसकी तहरीर रख ली गयी, तब उसने दिनांक 30-05-2015 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र भेजा है, तब थाने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 08-06-2015 को दर्ज की गयी है। परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में हुए विलम्ब का कारण पुलिस अधीक्षक को भेजे गये पत्र में अंकित किया गया है अत: यह स्पष्ट है कि चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट तुरन्त थाने पर दी गयी है, परन्तु पुलिस ने तुरन्त चोरी की रिपोर्ट दर्ज नहीं की है। अत: प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने में विलम्ब का पर्याप्त कारण है और पुलिस को सूचना विलम्ब से दिये जाने की बात सही नहीं है।
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परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादी का बीमा दावा बिना किसी उचित आधार के अस्वीकार किया है और बीमित धनराशि का भुगतान उसे नहीं किया है। बीमा कम्पनी ने अपनी सेवा में त्रुटि की है और अनुचित व्यापार पद्धति अपनाई है। अत: परिवाद स्वीकार कर परिवादी को बीमित धनराशि के साथ याचित अनुतोष प्रदान किया जाए।
विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट, चोरी की कथित घटना के 52 दिन बाद विलम्ब से दर्ज करायी गयी है और प्रथम सूचना रिपोर्ट में विलम्ब का जो कारण उल्लिखित किया गया है वह बनावटी और कपोल कल्पित है। यदि पुलिस ने परिवादी की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी तो परिवादी पुलिस अधीक्षक को आवेदन पत्र 1-2 दिन या 1 सप्ताह में दे सकता था, परन्तु परिवादी ने पुलिस अधीक्षक को पत्र दिनांक 30-05-2015 को दिया है जब कि चोरी की घटना दिनांक 15-04-2015 को बतायी गयी है। अत: पुलिस अधीक्षक को दिये गये प्रार्थना पत्र में प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने पर दिये जाने के संबंध में किया गया कथन पूर्ण रूप से बनावटी है और कानूनी मसवरे से अंकित किया गया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी ने बीमा कम्पनी को घटना की सूचना 60 दिन बाद दिया है और इस विलम्ब का परिवादी ने कोई कारण नहीं बताया है तथा इन्वेटिगेटर की आख्या में यह आया है कि परिवादी ने प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन की तलाश हेतु उचित प्रयास नहीं किया है। अत: बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार करने हेतु उचित आधार है।
विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी द्वारा पत्र दिनांक 24-06-2015, 27-07-2015, 28-08-2015, 14-10-2015 एवं 30-10-2015 स्पष्टीकरण हेतु
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परिवादी को भेजा गया है परन्तु उसने सहयोग नहीं किया है अत: बीमा कम्पनी ने पत्रदिनांक 30-10-2015 के द्वारा बीमा दावा निरस्त कर दिया गया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णयों की निम्न नजीरें अपने तर्क के समर्थन में प्रस्तुत किया है।
- I(2018)CPJ 98 (NC) Sukhbir Kaur Vs. Bajaj Allianz Insurance Company & Anr.
- Revision Petition No. 724 of 2018 P. Khamar Pasha Vs. Branch Manager, Oriental Insurance Co. Ltd.
- Civil Appeal No. 6739 of 2010 Orinetal Insurance Co. Ltd. Vs. Parvesh Chander Chadha.
- Revision Petition No. 157 of 2016 Reliance General Insurance Company Limited. Vs. Vinod Kumar.
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।परिवाद पत्र अथवा अपने शपथ पत्र में परिवादी ने यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा है कि प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन तलाश करने पर जब नहीं मिली तो वह स्थानीय थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने कब और किस तिथि को गया तथा थाने पर लिखित तहरीर दिया।
परिवादी ने पुलिस अधीक्षक को रिपोर्ट दर्ज करने हेतु प्रार्थना पत्र दिनांक 30-05-2015 को दिया है और उसी दिन उसकी रिपोर्ट थाना खतौली जिला मुजफ्फर नगर में दर्ज करने हेतु प्रेषित की गयी है। पुलिस अधीक्षक को दिये गये प्रार्थना पत्र में भी यह उल्लेख नहीं है कि प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन की चोरी की घटना के बाद कब और किस तिथि पर परिवादी थाना
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खतौली जिला मुजफ्फर नगर गया और लिखित तहरीर थाने पर दिया।
पुलिस अधीक्षक को दिये गये प्रार्थना पत्र में परिवादी ने उल्लेख किया है कि अपनी रिपोर्ट दर्ज कराने थाना खतौली, जनपद मुजफ्फर नगर गया परन्तु पुलिस ने तहरीर लेकर रख ली और तहरीर दर्ज नहीं की। पुलिस अधीक्षक को दिये गये प्रार्थना पत्र में अंकित इस तथ्य के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि चोरी की घटना के तुरन्त बाद परिवादी थाने पर गया है और तहरीर थाने पर दिया है। पुलिस अधीक्षक को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने हेतु आवेदन पत्र दिनांक 30-05-2015 को चोरी की कथित घटना के 45 दिन बाद प्रस्तुत किया गया है। पुलिस अधीक्षक को इतने लम्बे अन्तराल के बाद आवेदन पत्र दिये जाने से यह बात संदिग्ध प्रतीत होती है कि घटना के तुरन्त बाद परिवादी ने घटना की सूचना संबंधित थाने को दिया है और संबंधित थाने ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की है, तब परिवादी ने पुलिस अधीक्षक को आवेदन पत्र दिया है। यदि वास्तव में परिवादी ने घटना के तुरन्त बाद थाने में घटना की रिपोर्ट दी होती और पुलिस रिपोर्ट दर्ज न करती तो परिवदी 45 दिन इन्तजार न करता। इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि परिवाद पत्र अथवा परिवादी के शपथ पत्र में यह उल्लेख नहीं है कि घटना की सूचना परिवादी ने कब विपक्षी बीमा कम्पनी को दी है, जबकि विपक्षी बीमा कम्पनी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि परिवादी ने घटना की सूचना 60 दिन बाद दिनांक 17-06-2015 को बीमा कम्पनी को दिया है और इस आशय का शपथ पत्र भी विपक्षी की ओर से हरप्रीत सिंह असिस्टेंट मैनेजर, लीगल का प्रस्तुत किया गया है। परिवादी द्वारा घटना की सूचना 60 दिन बाद विपक्षी बीमा कम्पनी को दिये जाने की बाबत विपक्षी द्वारा किये
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गये कथन पर अविश्वास करने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार नहीं है।अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रश्नगत जे0सी0बी0 मशीन की चोरी की सूचना घटना के 60 दिन बाद बहुत विलम्ब से दिया है और इस विलम्ब का कोई कारण न तो परिवाद पत्र में, न ही परिवादी के शपथ पत्र में बताया गया है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि परिवादी ने घटना के 45 दिन बाद दिनांक 30-05-2015 को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने हेतु आवेदन पत्र पुलिस अधीक्षक को दिया है। यदि परिवादी ने घटना के तुरन्त बाद थाने में रिपोर्ट प्रस्तुत की थी तो उसने बीमा कम्पनी को तुरन्त क्यों नहीं सूचना दिया इसका कोई कारण दर्शित नहीं किया है।
सम्पूर्ण विवेचना एवं उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों और सक्ष्यों पर विचार करते हुए यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि परिवादी ने अपनी जे0सी0बी0 मशीन की कथित चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को 60 दिन विलम्ब से दिया है। पुलिस को भी सूचना विलम्ब से 45 दिन बाद दिया है और विलम्ब का जो कारण बताया है वह विश्वसनीय नहीं है। माननीय सर्वोच्च न्यायालयद्वारा Oriental Insurance Co. Ltd. Vs. Parvesh Chander Chadha Civil Appeal No. 6739 of 2010 SLP © No. 12741. के वाद में दिये गये निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी का बीमा दावा रिप्यूडिएट किये जाने हेतु उचित आधार है। अत: बीमा कम्पनी ने परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में कोई कमी नहीं की है। अत: परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
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परिवादी द्वाराप्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
प्रदीप मिश्रा, आशु0
कोर्ट नं0-1