Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/401

Bank Of Baroda - Complainant(s)

Versus

Baij Nath Vishwakarma - Opp.Party(s)

Hari Prasad Srivastav

26 Sep 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/401
( Date of Filing : 09 Mar 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Bank Of Baroda
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Baij Nath Vishwakarma
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 26 Sep 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-401/2009

बैंक आफ बड़ौदा, ब्रांच स्‍टेशन रोड भदोही तथा दो अन्‍य बनाम बैजनाथ विश्‍वकर्मा पुत्र श्री राम नारायण विश्‍वकर्मा

 

समक्ष:-                                                   

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

दिनांक : 26.09.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.    परिवाद संख्‍या-109/2007, बैजनाथ विश्‍वकर्मा बनाम बैंक आफ बड़ौदा तथा दो अन्‍य में विद्वान जिला आयोग, सन्‍त रविदास नगर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 5.2.2009 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई अपील पर अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री हरी प्रसाद श्रीवास्‍तव तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजीव श्रीवास्‍तव को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।

2.    विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए अंकन 65,007/-रू0 7 प्रतिशत ब्‍याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है तथा अंकन 5,000/-रू0 वाद व्‍यय भी अदा करने के लिए आदेशित  किया है।

3.    परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी ने विपक्षी बैंक आफ बड़ौदा में दिनांक 22.5.2000 को अंकन 40,000/-रू0 टर्म डिपाजिट योजना के अंतर्गत दो वर्ष की अवधि के लिए जमा किए थे और रसीद संख्‍या-729352 प्राप्‍त की थी, जिसकी परिपक्‍वता अवधि दिनांक 22.5.2022 थी। यह एफडीआर परिवादी से खो गया, जिसकी सूचना बैंक को दी गई        और  बैंक  द्वारा डुप्‍लीकेट एफडीआर जारी कर दिया गया, जिसका नम्‍बर

 

-2-

734602 है। इस एफडीआर को पुन: दो वर्ष यानी दिनांक 22.5.2004 तक के लिए नवीनीकरण किया गया, इसके बाद वर्ष 2004 से 2005 एवं वर्ष 2005 से 2006 एवं 2007 हेतु क्रमश: एक-एक वर्ष के लिए नवीनीकरण किया गया। बैंक कर्मी द्वारा एफडीआर के पीछे नवीनीकरण की तिथि भी अंकित की गई थी। इस सम्‍पूर्ण राशि की परिपक्‍वता राशि अंकन 65,007/-रू0 है। दिनांक 10.7.2007 को भुगतान के लिए एफडीआर को बैंक में प्रस्‍तुत किया गया तब बताया गया कि एफडीआर संख्‍या-729352 पर भुगतान हो चुका है और खाता शून्‍य है।

4.    विद्वान जिला आयोग द्वारा उपरोक्‍त वर्णित तथ्‍यों को स्‍थापित मानते हुए अंकन 65,007/-रू0 7 प्रतिशत ब्‍याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया गया।

5.    अपील के ज्ञापन तथा अधिवक्‍ता के मौखिक तर्कों का सार यह है कि परिवादी का यह दायित्‍व था कि वह मूल एफडीआर बैंक में जमा करता। मूल एफडीआर पर धनराशि निकाल ली गई, इसलिए बैंक अब किसी राशि को अदा करने के लिए उत्‍तरदायी नहीं है। यह भी कथन किया गया कि प्रश्‍नगत मामला धोखे से संबंधित है, जिस पर विस्‍तृत साक्ष्‍य की आवश्‍यकता है, इसलिए उपभोक्‍ता मंच द्वारा यह मामला निस्‍तारित योग्‍य नहीं है।

6.    प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि मूल एफडीआर की सूचना देने के पश्‍चात बैंक द्वारा डुप्‍लीकेट एफडीआर जारी कर दिया गया, जिसका अनेक बार नवीनीकरण किया गया और अंत में दिनांक 10.7.2007 को एफडीआर की राशि के भुगतान के लिए बैंक के समक्ष एफडीआर प्रस्‍तुत किया गया।

7.    अपीलार्थी बैंक द्वारा इस तथ्‍य से इंकार नहीं किया गया है कि एफडीआर  संख्‍या-729352  के गुम होने की सूचना नहीं दी गई, इस तथ्‍य

 

-3-

से भी इंकार नहीं किया गया कि परिवादी के पक्ष में डुप्‍लीकेट एफडीआर जारी नहीं किया गया, इस तथ्‍य से भी इंकार नहीं किया गया कि एफडीआर अनेक बार नवीनीकृत हुआ है। बैंक का केवल यह कथन है कि एफडीआर संख्‍या-729352 पर धनराशि निकाल ली गई है, परन्‍तु चूंकि इस एफडीआर के खोने की सूचना बैंक को दी जा चुकी थी और बैंक द्वारा डुप्‍लीकेट एफडीआर जारी किया जा चुका था तब इस एफडीआर पर धनराशि अदा करने का कोई औचित्‍य नहीं था। बैंक कर्मी की लापरवाही के कारण यह घटना घटित हुई है, जिसके लिए स्‍वंय बैंक उत्‍तरदायी है और यदि बैंक यह समझता है कि इस धनराशि की निकासी में किसी ने धोखा कारित किया है तब बैंक संबंधित व्‍यक्ति के खिलाफ धोखे की कार्यवाही करने के लिए स्‍वतंत्र है, परन्‍तु परिवादी को अपनी राशि की वसूली से वंचित नहीं किया जा सकता, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में कोई हस्‍तक्षेप अपेक्षित नहीं है। तदनुसार प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

8.    प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)                           (सुशील कुमार(

  सदस्‍य                                   सदस्‍य

  लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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