राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1903/1996
( मौखिक )
( जिला फोरम, झॉसी द्वारा परिवाद संख्या-156/1995 में पारित आदेश दिनांकित 17-10-1996 के विरूद्ध )
- Allahabad Bank Civil Lines, through its Branch Manager.
- Sri S.B. Agarwal Branch Manager, civil Lines, Jhansi.
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Sri Babu Lal Sahu S/o Sri N.D.Sahu, R/o H.No. 112 Gudri Bazar (Near Kalari) Jhansi.
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
1- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2- माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विनय शंकर।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री बाबू लाल साहू।
दिनांक : 23-08-2016
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-संख्या-156/1995 में जिला फोरम,झॉसी द्वारा दिनांक 17-10-1996 को निर्णय पारित करते हुए विपक्षी/अपीलार्थी को आदेशित किया गया कि वह 4,376/-रू0 की धनराशि परिवादी के प्रश्नगत खाते में एक माह के अंदर क्रेडिट कर दे एवं उपरोक्त धनराशि पर दिनांक 07-10-1994 से क्रेडिट किये जाने की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज भी परिवादी के खाते में क्रेटिड कर करें। जिला मंच द्वारा प्रश्नगत आदेश के माध्यम से 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति व 500/-रू0 वाद व्यय के बावत भी विपक्षी/अपीलार्थी के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है। उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से वर्तमान अपील योजित की गयी है और मुख्य रूप से आधार अपील में यह अभिवचित किया गया है कि जिला मंच द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की सेवा की कमी के संदर्भ में जो निष्कर्ष दिया गया है वह विधि अनुकूल नहीं है और स्पष्ट रूप से यह अभिवचित किया गया कि अभिवचित धनराशि परिवादी के खाते से अन्तरित करके परिवादी की पत्नी के खाते में क्रेडिट कर दिया गया और ऐसा परिवादी की ओर से प्रस्तुत पत्र दिनांकित 22-02-1994 के आधार पर किया गया एवं परिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया कि अधिक धनराशि का भुगतान जो परिवादी की पत्नी को उपलब्ध करा दिया गया उस संदर्भ में वह धनराशि वापस कर दी जायेगी। इस आशय का वचन दिया गया और 50/-रू0 टोकन धनराशि भी परिवादी द्वारा जमा की गयी परनतु परिवादी द्वारा प्रश्नगत धनराशि की अदायगी नहीं की गयी अत: बैंक द्वारा एफ0डी0आर0 जो परिवादी और उसकी पत्नी के नाम से था उससे अरजेस्टमेंट कर दिया गया और इस संदर्भ में परिवादी की पत्नी द्वारा भी बैंक को पत्र लिखा गया था जिसकी फोटोप्रतियॉं प्रस्तुत की गयी है।
जिला मंच द्वारा उपरोक्त तथ्यों पर विचार नहीं किया गया अत: अपील स्वीकार करते हुए जिला मंच द्वारा पारित आदेश को अपास्त किया जाना चाहिए।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विनय शंकर उपस्थित आए। प्रत्यर्थी बाबू लाल स्वयं उपस्थित।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता एवं प्रत्यर्थी को विस्तार से सुना गया और प्रश्नगत निर्णय व उपलब्ध अभिलेखों का गंभीरता से परिशीलन किया गया।
परिवाद पत्र का अभिवचन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का बैंक एकाउन्ट विपक्षी की ब्रांच में था और परिवादी की पत्नी का सिटी ब्रांच इलाहाबाद बैंक में खाता था। दिनांक 07-10-1994 को परिवादी ने अपने खाते का बैंक में पहुँचकर निरीक्षण किया तो यह बात प्रकाश में आयी कि मु0 4,376/-रू0 की धनराशि दूसरी व्यक्ति के एकाउन्ट में अन्तरित कर दी गयी थी जबकि इस संदर्भ में परिवादी से कोई अनापत्ति प्राप्त नहीं की गयी थी। परिवादी ने इस संदर्भ में जब विपक्षी संख्या-2 तत्कालीन ब्रांच मैनेजर से शिकायत की तो उन्होंने परिवादी के साथ दुर्व्यवहार किया अत: परिवादी द्वारा प्रश्नगत परिवाद इस अनुतोष के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी के खाते में उपरोक्त धनराशि मय ब्याज के क्रेडिट कर दी जाए और 15,000/-रू0 मानसिक कष्ट और आर्थिक क्षति के रूप में दिलाये जाने हेतु भी अनुतोष की मांग की है।
विपक्षी बैंक द्वारा जिला मंच के समक्ष परिवाद का विरोध किया गया और यह कहा गया कि प्रश्नगत धनराशि परिवादी के खाते से अन्तरित करके उनकी पत्नी के खाते में क्रेडिट कर दी गयी एवं ऐसा परिवादी और उसकी पत्नी के अनापत्ति व्यक्त करने से किया गया है।
यह भी अभिवचित किया गया कि परिवादी एवं उसकी पत्नी के संयुक्त रूप से एफ0डी0आर0 परिपक्वता पर 21,294/-रू0 देय था वह परिवादी के एकाउन्ट में दिनांक 05-10-1994 को क्रेडिट किया गया एवं परिवादी की पत्नी द्वारा अपने खाते से अधिक धनराशि प्राप्त कर ली गयी अत: परिवादी और उसकी पत्नी द्वारा अनापत्ति व्यक्त किये जाने के कारण परिवादी के खाते से प्रश्नगत धनराशि का अन्तरण परिवादी की पत्नी के खाते में कर दिया गया। यह भी अभिवचित किया गया कि वर्तमान प्रकरण में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम प्रभावी नहीं है।
जिला मंच द्वारा उभयपक्ष के तर्कों और अभिलेखों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया कि बैंक को बिना खातेदार के अनापत्ति के उसके एकाउन्ट से धनराशि दूसरे खाते में अन्तरित नहीं किया जाना चाहिए और ऐसी स्थिति में बैंक की सेवा में कमी होना पाया गया और तद्नुसार उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
अविवादित रूप से मु0 4,376/-रू0 की धनराशि परिवादी के बैंक एकाउन्ट से उसकी पत्नी के बैंक एकाउन्ट में अन्तरित कर दिया गया और इस अन्तरण के संदर्भ में परिवादी द्वारा अनापत्ति का होना नहीं पाया गया अत: बैंक द्वारा परिवादी के खाते से जो अन्तरण किया गया वह सेवा में कमी की श्रेणी में आता है और इस संदर्भ में जिला मंच द्वारा जो निष्कर्ष दिया गया है उसमें किसी प्रकार की त्रुटि होना नहीं पाया जाता।
जिला मंच द्वारा अन्तरण करने की तिथि से परिवादी के खाते में प्रश्नगत धनराशि को क्रेडिट किये जाने की तिथि तक उपरोक्त वर्णित धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज दिलाये जाने का आदेश पारित किया गया है।
विपक्षी/अपीलार्थी बैंक है और परिवादी का जो बैंक में एकाउन्ट है वह सेविंग बैंक एकाउन्ट होना पाया जाता है और ऐसी स्थिति में 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से जो ब्याज दिलाये जाने हेतु आदेश पारित किया गया है वह उचित नहीं पाया जाता और पीठ इस निष्कर्ष पर पहुचती है कि 12 प्रतिशत वाष्रिक ब्याज की दर के स्थान पर 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाये जाना न्यायोचित और उचित होगा।
इसके अतिरिक्त जिला मंच द्वारा 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति का भी आदेश पारित किया गया है इस संदर्भ में इतना ही कहना पर्याप्त है कि जिला मंच द्वारा अभिवचित धनराशि पर ब्याज दिलाये जाने हेतु भी विपक्षी के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है ऐसी स्थिति में अलग से क्षतिपूर्ति हेतु पारित आदेश न्यायोचित नहीं पाया जाता अत: 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति हेतु पारित आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि प्रश्नगत आदेश में 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से पारित आदेश संशोधित करते हुए 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दिलाया जाना उचित होगा एवं 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के बावत पारित आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, झॉसी द्वारा परिवाद संख्या-156/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 17-10-1996 को संशोधित करते हुए ब्याज 12 प्रतिशत के स्थान पर 06 प्रतिशत किया जाता है और 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के बावत पारित आदेश अपास्त किया जाता है। निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
( न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान ) ( बाल कुमारी )
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा