जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-302/2006
1. राम बहोर सिंह पुत्र स्व0 श्री रघुबर सिंह निवासी तोगपुर सआदतगंज फैजाबाद वर्तमान निवासी निकट हवाई पट्टी जोगी तारा रोड, फैजाबाद।
2. कंचन सिंह पत्नी श्री भगौती सिंह एडवोकेट निवासी तोगपुर सआदतगंज, फैजाबाद वर्तमान निवासी निकट - हवाई पट्टी जोगीतारा रोड, फैजाबाद।
.............. परिवादीगण
बनाम
प्रबन्धक बैंक आफ बड़ौदा नाक मुजफरा, पोस्ट-आचार्य नगर, जिला-फैजाबाद। ........ विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 02.11.2015
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादीगण के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादीगण ने बचत खाते विपक्षी बैंक में दिनांक 15.03.1999 व 10.03.1999 को खोले हैं, जिनके खाता संख्या 10921 व 10621 हैं। जिन खातों पर परिवादीगण को चेक बुक भी जारी है। सेवा षुल्क दिनांक 01-12-1994 के आधार पर खातों में न्यूनतम बैलेन्स रुपये 500/- होना चाहिए। इससे कम होने पर 10 रुपये प्रति माह प्रभार खाते कटता रहेगा। परिवादीगण के खाता संख्या 10921 में दिनांक 30.06.2006 तक रुपये 1,760/- तथा खाता संख्या 10621 में दिनांक 30.06.2006 तक रुपये 1,588/- थे जो मौजूदा समय में हैं। दिनांक 27.09.2006 को परिवादीगण ने अपने प्रष्नगत खातों में रुपये 200/- प्रत्येक खाते में जमा किया। पैसा जमा करने के बाद परिवादीगण ने जब पास बुक में रुपये चढ़ाने के लिये पास बुक बैंक मंे प्रस्तुत की तो विपक्षी बैंक ने बताया कि परिवादीगण का खात बन्द कर दिया गया है। परिवादीगण ने विपक्षी बैंक में खाता इसलिये खुलवाया था कि बैंक में कुछ पैसा पड़ा रहेगा तो ब्याज मिलेगा। लेकिन विपक्षी बैंक ने परिवादीगण को धोखे में रखा और खाते बन्द कर दिये। परिवादीगण ने विपक्षी बैंक मैनेजर से षिकायत की और कहा कि परिवादीगण को बिना सूचित किये आपने खाते क्यों बन्द कर दिये और अपनी मन मरजी से काम करते रहे, इस पर बैंक मैनेजर ने परिवादीगण को डंाटते हुए कहा कि हमें नियम सिखाते हो। अब पुनः खाता खोलने की सारी कार्यवाही करो तभी खाता चालू होगा, अब यहां से जाओ मेरा दिमाग मत खाओ नहीं तो गार्ड को बुलवा कर धक्के मार कर निकलवा दंूगा और मैनेजर ने गार्ड को बुला कर परिवादीगण को धक्के मार कर बाहर निकलवा दिया। परिवादी संख्या 1 वरिश्ठ नागरिक है जिसका सम्मान षासन भी करता है, विपक्षी बैंक मैनेजर का कृत्य सरकार की मंषा के खिलाफ है। सरकार ने सभी बैंकों को निर्देष दिया है कि अधिक से अधिक खाते बढ़ाये जायें, मगर बैंक मैनेजर खाता धारकों को अपमानित कर रहा है। विपक्षी ने ग्राहकों को लूटने का कार्यालय खोल रखा है। परिवादीगण ने विपक्षी को दिनांक 01.11.2006 को एक विधिक नोटिस दिया, जिसे विपक्षी बैंक ने अपने पत्र दिनांक 27.11.2006 से मानने से इन्कार कर दिया तथा परिवादीगणांे को पहचानने से भी इन्कार कर दिया। परिवादीगण विपक्षी बैंक के वर्श 1999 से खाता धारक हैं। इसलिये परिवादीगण को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। विपक्षी ने परिवादीगण के खाते से जितना पैसा काटा है उसे परिवादीगण के खाते में जमा करा कर उसका ब्याज भी दिलाया जाय, क्षतिपूर्ति रुपये 10,000/- तथा परिवाद व्यय रुपये 5,000/- दिलाया जाय।
विपक्षी बैंक ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादीगण के परिवाद के तथ्यों को पूर्णतया विपरीत व गलत बताया है। परिवादीगण के खाता संख्या 10921 परिवादी संख्या 1 के नाम व खाता संख्या 10621 श्रीमती कंचन सिंह पत्नी भगौती सिंह के नाम वर्तमान मंे चल रहे हैं। वर्तमान में सी0बी0एस0 सिस्टम लागू होने के बाद उक्त खातों की संख्या 160201/715 व 160201/533 हो गयी है। परिवादीगण को अपने खातों का सही ज्ञान नहीं है और उन्हें गलत फहमी है कि उनके खाते बन्द कर दिये गये हैं। वास्तविकता यह है कि उक्त खाते अभी भी चल रहे हैं। परिवदी संख्या 1 के खाते में दिनांक 01.11.2014 तक रुपये 2,559/- बैलेंस है। इसी प्रकार परिवादी संख्या 2 के खाते में दिनांक 01.11.2014 तक दिनांक 31.10.2014 तक का ब्याज मिला कर रुपये 2,263/- बैलेंस है। परिवादीगणों ने अपना परिवाद अनर्गल तथ्यों पर विपक्षी बैंक को हैरान व परेषान करने के लिये योजित किया है। परिवादीगण का परिवाद विषेश हर्जा व खर्चा रुपये 10,000/- खारिज किये जाने योग्य है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादीगण एवं विपक्षी द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया। परिवादीगण ने अपने पक्ष के समर्थन में विपक्षी बैंक को जो नोटिस दिनांक 01.11.2006 को भेजा जाना बताया है उसकी कोई प्रति परिवादीगण ने दाखिल नहीं की है। जब कि विपक्षी बैंक ने परिवादीगण को जो पत्र दिनांक 27.11.2006 को भेजे थे उनकी मूल प्रतियंा परिवादी ने दाखिल की हैं जिसमें परिवादीगण से कहा गया है कि विगत दो वर्शों से परिवादीगण द्वारा अपने खाते में कोई लेन देन नहीं किया गया है, इसलिये परिवादीगण के खातों का संचालन बन्द कर दिया गया है और परिवादीगण द्वारा दिनांक 27-09-2006 को जमा किये गये रुपये 200/- निश्क्रय खाते में जमा करने के बजाय विविध खाते में जमा कर दिये गये हैं। परिवादीगण अपने खातों को सक्रिय कर ने के लिये बैंक की प्रक्रिया को पूरा करंे जिससे खाते का संचालन कर के जमा रकम आपके खाते में जमा की जा सके। इन पत्रों के साथ विपक्षी बैंक ने एक प्रारुप भी लगाया है। इस प्रकार परिवादीगण द्वारा विपक्षी बैंक को नोटिस भेजा जाना प्रमाणित नहीं है। किन्तु बैंक द्वारा परिवादीगण को भेजे गये पत्र से इतना स्पश्ट है कि परिवादीगण को अपने खातों को पुनः क्रियाषील बनाने के लिये बैंक द्वारा मांगी जाने वाली कार्यवाही पूरी करनी होगी। क्यों कि समय समय पर बैंक के नियमों में परिवर्तन आया है और भारतीय रिजर्व बैंक का भी यही कहना है कि पुराने खातों पर भी बैंक को फिर से खाता धारकों से उनके परिचय पत्र व फोटो ग्राफ लेते रहना चाहिए तथा हस्ताक्षरों का प्रमाणीकरण करते रहना चाहिए। जिससे ग्राहकों के साथ कभी कोई धोखा धड़ी न हो जाये। परिवादीगण को चाहिए कि अपने खातों को क्रियाषील बनाने के लिये बैंक द्वारा मांगी गयी कार्यवाही को पूरा कर के अपने खातों को क्रियाषील बनायें। विपक्षी बैंक ने परिवादीगण के खातों से कोई पैसे की कटौती नहीं की है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादीगण अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहे हैं। परिवादीगण का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 02.11.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष