Uttar Pradesh

Fatehpur

CC/102/2015

KAMLESH AGRAHARI - Complainant(s)

Versus

B.M. LIC - Opp.Party(s)

22 Aug 2017

ORDER

समक्ष: जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, फतेहपुर।

अध्यासीन:     श्रीमती रेनू केसरवानी........................................पी0 सदस्य

            श्री शैलेन्द्र नाथ..........................................................सदस्य

उद्घोषित:   श्री शैलेन्द्र नाथ..........................................................सदस्य

 

उपभोक्ता परिवाद संख्या-102/2015

कमलेश अग्रहरी उम्र 50 वर्ष पत्नी श्री जगन्नाथ प्रसाद निवासी 57 गणपति कालोनी गंगात्रीनगर डांडी कृषि संस्थान के पास नैनी इलाहाबाद।    

                                                     ...............परिवादिनी।

बनाम

भारतीय जीवन बीमा निगम जरिये शाखा प्रबन्धक भा0जी0बी0 निगम सिविल लाइन पटेल नगर फतेहपुर।        

                                                         .............विपक्षी।

 

 

             परिवाद दर्ज रजिस्टर होने का दिनांक:-05.08.2015

                         बहस सुनने का दिनांक:-18.08.2017

                             निर्णय का दिनांक:-22.08.2017

:::निर्णय:::

      परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी के विरूद्ध इस आशय का प्रस्तुत किया है कि वह अपने मृतक पुत्र प्रवीण अग्रहरी की मां व प्राकृतिक संरक्षक है।  उक्त प्रवीण अग्रहरी का विपक्षी के यहॉ पालिसी नं0-313669650 द्वारा बीमा कराया गया था जिसकी बीमा अवधि में दिनांक 13.4.2014 को विल्डमफाल जिला मिर्जापुर में स्नान करते समय जल में डूबने से अकस्मात दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी।  चूॅकि मृत्यु दुर्घटना में हुयी है इसलिये पालिसी तालिका 75-20-20 के नियमानुसार बीमा मु0 50000/-रू0 के एवज में दुगना यानी 100000/-रू0 देना चाहिये था परन्तु विपक्षी द्वारा उक्त प्रवीण अग्रहरी के संरक्षक को मात्र 60101/- रू0 दिनांक 19.9.14 को जरिये चेक दिये गये, शेष मु0 39899/- रू0 अब तक नहीं दिये गये हैं, अत: परिवादिनी ने विपक्षी से शेष धनराशि मु0 39899/- रू0 + 2 प्रतिशत की दर से अवशेष 15 माह का ब्याज मु0 11970/- रू0, अधिवक्ता एवं अन्य खर्च 2101/- रू0 कुल 53970/- रू0 व अन्य न्यायोचित प्रतिकर दिलाने की मॉग की है।

     परिवादिनी का संक्षेप में अभिकथन इस प्रकार है कि वह अपने मृतक पुत्र प्रवीण अग्रहरी की मां व प्राकृतिक संरक्षक है और प्रवीण अग्रहरी का विपक्षी के यहॉ पालिसी नं0-313669650 द्वारा बीमा कराया गया था जिसकी बीमा अवधि में दिनांक 13.4.2014 को विल्डमफाल जिला मिर्जापुर में स्नान करते समय जल में डूबने से अकस्मात दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी।  चूॅकि बीमाधारक की मृत्यु दुर्घटना में हुयी

 

है इसलिये पालिसी तालिका 75-20-20 के नियमानुसार उसे बीमा मु0 50000/-रू0 के एवज में दुगना यानी 100000/-रू0 दिया जाना चाहिये था परन्तु विपक्षी द्वारा उक्त प्रवीण अग्रहरी के संरक्षक को मात्र 60101/- रू0 दि0 19.9.14 को जरिये चेक दिये गये हैं, शेष मु0 39899/- रू0 उसे अब तक नहीं दिये गये हैं।  इस हेतु परिवादिनी ने विपक्षी से कर्इ बार सम्पर्क किया और दि0 09.01.2015 को रजिस्टर्ड प्रार्थना पत्र भेजा तथा जरिये अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण गुप्ता एक रजिस्टर्ड पत्र दिनांक 04.06.2015 व 09.01.2015 को भेजा फिर भी न कोर्इ कार्यवाही की गयी और न ही उसे शेष धनराशि अदा की गयी और दिनांक 17.2.2015 को उसे विभाग द्वारा पत्र भेजकर सूचित किया गया कि आपको मॉगी गयी जानकारी नहीं दी जा सकती।  इस प्रकार परिवादिनी को काफी मानसिक, आर्थिक व शारीरिक कष्ट हुआ और वाद का कारण दिनांक 19.9.2014 को उस समय उत्पन्न हुआ जब उसे विपक्षी द्वारा मु0 60101/- रू0 का आंशिक भुगतान किया गया, अत: परिवादिनी ने विपक्षी से शेष धनराशि मु0 39899/- रू0 2 प्रतिशत की दर से अवशेष का 15 माह का ब्याज मु0 11970/- रू0, अधिवक्ता एवं अन्य खर्च हेतु मु0 2101/-रू0 सहित कुल 53970/- रू0 व अन्य न्यायोचित प्रतिकर दिलाने की मॉग की है।

     कथन के समर्थन में परिवादिनी ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-4/1-3 दाखिल किया है तथा अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-11/1-3 दाखिल किया है एवं 7 प्रपत्रों की फोटोप्रतियॉं दाखिल की हैं जिनमें प्रवीण अग्रहरी के मृत्यु प्रमाण पत्र की फोटोप्रति कागज सं0-5/1, दावेदार का बयान की फोटोप्रति कागज सं0-5/2, थाना कोतवाली देहात जनपद मीरजापुर के प्रपत्र दिनांकी 14.4.2014 की फोटोप्रति कागज सं0-5/3, परिवादिनी द्वारा बीमा कम्पनी को पे्रषित पत्र दिनांकी 09.01.2015 की फोटोप्रति कागज सं0-5/4, रजिस्ट्री रसीद दिनांकी 09.01.2015 की फोटोप्रति कागज सं0-5/5, जरिये अधिवक्ता बीमा कम्पनी को आर0टी0आर्इ0 एक्ट के अन्तर्गत पे्रषित पत्र दिनांकी 4.6.2015 की फोटोप्रति कागज सं0-5/6 व बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी के अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण गुप्ता को सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत प्रेषित उत्तर की फोटोप्रति कागज सं0-5/7 है।  इसी प्रकार परिवादिनी की ओर से जरिये सूची कागज सं0-21/1 धन वापसी पालिसी नियम 75/20, 93/25 की फोटोप्रति दाखिल की गयी जो कागज सं0-21/2 ता 21/5 है एवं दिनांक 22.8.2017 को प्रवीण अग्रहरी की हार्इ स्कूल परीक्षा वर्ष 2008 की फोटोप्रति दाखिल की गयी।  परिवादिनी ने अपना रिपुटल कागज सं0-20/1 ता 20/3 व अपनी लिखित बहस कागज संख्या-14 एवं एक प्रपत्र तालिका 75-93 की

फोटोप्रति कागज सं0-15 दाखिल की।    

     विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज संख्या-10/1 ता 10/2 प्रस्तुत किया गया जिसमें उल्लिखित किया गया है कि परिवाद की दफा-1 में उल्लिखित तथ्य में पालिसी का होना तथा पालिसी धारक की मृत्यु होना स्वीकार है तथा परिवाद की दफा-2, 4, 5, 7, 8 व 9 को स्वीकार नहीं किया गया है।  दफा-3 का लिखित तथ्य स्वीकार है एवं पालिसी की शर्तों के अनुसार नियमानुसार परिवादिनी को भुगतान किया गया है, अन्य कोर्इ धनराशि किसी मद की देय नहीं है।  दफा-6 के लिखित तथ्य में अधिवक्ता द्वारा आर.टी.आर्इ. सूचना के माध्यम से जानकारी चाही गयी है जो परिवादिनी की जानिब से नहीं रही इसलिये उसने उसका समुचित जवाब नियमानुसार पे्रषित नहीं किया गया एवं विपक्षी द्वारा दफा-8 में यह भी उल्लिखित किया गया कि परिवादिनी मु0 39899/- रू0 पाने की अधिकारिणी नहीं है।  उसके द्वारा न तो महिला समझ कर उसे उत्पीड़ित किया गया और न ही किसी प्रकार से मानसिक कष्ट व आर्थिक नुकसान पहुॅचाया गया।  परिवादिनी को न तो कोर्इ वाद कारण प्राप्त हुआ और न ही फोरम को सुनवार्इ का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।  यह भी कहा गया कि दफा-10 के जवाब की आवश्यकता नहीं है तथा परिवाद की दफा-11 का लिखित तथ्य मय अनुतोष उत्तरदाता विपक्षी को स्वीकार नहीं है।  प्रस्तुत परिवाद के जरिये मु0 39899/- रू0 2 प्रतिशत की दर से अवशेष का 15 माह का ब्याज मु0 11970/- रू0 तथा अधिवक्ता व अन्य खर्च के मद में मु0 2101/- रू0 कुल 53970/- रू0 परिवादिनी विपक्षी से प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है और न ही कोर्इ अन्य अनुतोष परिवादिनी उससे प्राप्त करने की अधिकारिणी है एवं परिवाद सव्यय खारिज होने योग्य है।  अतिरिक्त कथन में कहा गया है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संधारणीय नहीं है।  बीमित प्रवीण अग्रहरी की पालिसी नम्बर-313669650 का बीमा धन मु0 50,000/- रू0 का रहा है जो सामान्य बीमा रहा जिसमे कोर्इ अतिरिक्त प्रीमियम एक्सीडेन्टल मृत्यु अर्थात् (DAB) की नहीं ली गयी इसलिये परिवादिनी को बीमित की मृत्यु के उपरान्त दुर्घटना मृत्यु में DAB क्लेम नहीं दिया गया।  पालिसी की शर्तों के अनुसार केवल मृत्यु दावा मु0 60101/- रू0 का ही देय रही जिसका भुगतान उसके द्वारा किया जा चुका है और कोर्इ धनराशि किसी भी तरह की DAB क्लेम के रूप में देय नहींं है इसलिये परिवादिनी का दावा पोषणीय नहीं है एवं काबिले निरस्त है।

     विपक्षी की ओर से श्री के0के0 त्रिपाठी मुख्य प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय 104, सिविल लाइन्स, जिला फतेहपुर का साक्ष्य शपथ पत्र सं0

 12/1-2 दाखिल किया गया।

     विपक्षी की ओर से जरिये सूची कागज संख्या-16/1 पालिसी की प्रमाणित फोटो प्रति कागज सं0-16/2-3 दाखिल की गयी एवं जरिये सूची कागज सं0-17/1 मूल पालिसी बाण्ड कागज सं0-17/2 दाखिल किया गया तथा जरिये सूची कागज सं0-19/1 तीन अभिलेखों की फोटोप्रतियॉं क्रमश: बीमा प्रपत्र दिनांकी 14.3.1987 की फोटोप्रति कागज सं0-19/2, पालिसी स्टेटस की प्रति कागज सं0-19/3 व 19/4 व बीमा निगम की नियमावली Accidental Death and Disability Benefit Rider UIN-512B209V01 w.e.f. प्रपत्र दिनांकी 03.01.2014 की फोटोप्रति कागज सं0-19/5 ता 19/21 दाखिल की गयी है।

     उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुनी गयी एवं दाखिल प्रपत्रों, अभिलेखों व लिखित बहस आदि का परिशीलन किया गया।

     परिवादिनी अपने मृतक पुत्र प्रवीण अग्रहरी की मॉ थी और उसकी संरक्षिका भी।  प्रवीण अग्रहरी के नाम विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं से मु0 50,000/- रू0 बीमा धन के रूप में दिनांक 28.2.2009 को बीमा कराया था जो दाखिल कागजात सं0-16/2 की फोटोकापी से स्पष्ट है।  यह पालिसी मनी बैक पालिसी के रूप में थी जिसमें समय-2 पर धनराशि Sum Assured  के रूप में वापस किया जाना था।  परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र की दफा-2 में इस प्रकार वर्णन किया है कि बीमा मु0 50,000/- रू0 के एवज में दो गुना अर्थात् मु0 1,00,000/- रू0 देना चाहिये था, जैसा कि आपने पालिसी लेते समय बताया था और पालिसी तालिका 75/20-20 का नियम है।  दफा-3 में यह उल्लेख किया गया है कि विपक्षी ने उक्त प्रवीण कुमार अग्रहरी के संरक्षक को मु0 100000/- रू0 के एवज में मु0 60101/- रू0 दिनांक 19.9.2014 को जरिये चेक दिये हैं, शेष मु0 39899/- रू0  अब तक नहीं दिये हैं।  परिवादिनी ने शेष धनराशि मु0 38999/- रू0 अदा करने हेतु दिनांक 09.1.2016 को व दिनांक 4.6.2015 को रजिस्टर्ड डाक से पत्र पे्रषित किया लेकिन विपक्षी द्वारा शेष धनराशि दिलाये जाने हेतु कोर्इ कार्यवाही नहींं की गयी और न कोर्इ सूचना पे्रषित की गयी।  विपक्षी ने अपने जवाबदावा की दफा-14 में इस बात का वर्णन किया है कि बीमित प्रवीण अग्रहरी की पालिसी संख्या 313669650 जिसका बीमा धन मु0 50,000/- रू0 का रहा था, सामान्य बीमा रहा है जिसमे कोर्इ अतिरिक्त प्रीमियम एक्सीडेन्टल मृत्यु अर्थात् DAB की नहीं ली गयी थी इसलिये परिवादिनी को बीमित की मृत्यु के उपरान्त DAB क्लेम नहीं दिया गया।  परिवादिनी को जो मु0 60101/- रू0 दिये गये हैं वह पालिसी के नियमों के तहत दिये गये हैं।  कोर्इ धनराशि DAB क्लेम  के  रूप  में देय नहींं है।   अब प्रश्न यह

उठता है कि परिवादिनी ने जो पालिसी अपने पुत्र के नाम ली थी वह किस समय ली गयी थी और पुत्र की आयु क्या थी।  क्या पुत्र उस समय बालिग था या नाबालिग था?  दाखिल पालिसी की फोटोकापी से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी का पुत्र पालिसी लेते समय नाबालिग था क्योंकि उसमे आयु का वर्णन 15 वर्ष दर्शाया गया है और पुत्र की मृत्यु दिनांक 13.4.2014 को हुयी थी।  पालिसी लेने के लगभग 5 वर्ष बाद उसके पुत्र की मृत्यु हुयी।  परिवादिनी का पुत्र मृत्यु के समय नाबालिग की श्रेणी में नहीं था और वह विधि के अनुसार बालिग हो गया था।  प्रश्नगत पालिसी प्राप्त करते समय जो पालिसी में वर्णित किया गया है उसमें कालम पर With profit withought DAB  का अंकन किया गया है।  इससे स्पष्ट होता है कि पालिसी नाबालिग अवस्था में प्राप्त की गयी थी और उसी के क्रम में प्रीमियम की धनराशि विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्राप्त की गयी थी और जो पालिसी प्रीमियम शर्तें थीं उसी के आधार पर बीमित धनराशि दुर्घटना के पश्चात् उपलब्ध कराया जाना था।  विपक्षी बीमा कम्पनी ने पालिसी की शर्तों के अनुसार मृतक बीमाधारक की धनराशि मु0 60101/- रू0 मय ब्याज के उपलब्ध करा दिया है जिसका उल्लेख परिवादिनी ने स्वयं अपने परिवाद पत्र में किया है।  परिवादिनी ने बीमा धनराशि मु0 50000/- रू0 के एवज में मु0 100000/- रू0 की मॉग किया है।  दाखिल पालिसी के नियमों के अनुसार मु0 100000/- रू0 धनराशि के एवज में अवशेष धनराशि दिलाया जाना न्याय की दृष्टि से उचित नहीं प्रतीत होता है क्योंकि जो पालिसी नाबालिग अवस्था में प्राप्त की गयी थी उसके प्रीमियम की धनराशि और बालिग होने की दशा में प्रीमियम की धनराशि में अन्तर होता है व अधिक होता है। परिवादिनी का पुत्र जब बालिग हो गया था तो परिवादिनी का दायित्व था कि वह विपक्षी बीमा कम्पनी को सूचित करके प्रीमियम के सम्बन्ध में जानकारी करती, जैसा कि परिवादिनी द्वारा नहींं किया गया, न ही प्रीमियम के सापेक्ष में कोर्इ प्रपत्र विपक्षी बीमा कम्पनी को पे्रषित किया गया।  बीमा कम्पनी द्वारा सूची सं0-19/1 के साथ कागज सं0-19/5 जो प्रस्तुत किया गया है उसमे प्रस्तर-6 में स्पष्ट वर्णन किया गया है कि:- “During minority of the life assured, this rider will not be available, how ever this rider will be available from the policy anniversary following the completion of age 18 years provided specific request is received by life assured with payment of additional premium.” अर्थात् बालिग होते ही तुरन्त प्रीमियम की धनराशि अदा करनी पड़ती है, जैसा कि परिवादिनी द्वारा नहीं किया गया और इस प्रपत्र के प्रस्तर-6 के विरूद्ध परिवादिनी द्वारा कोर्इ साक्ष्य नहींं प्रस्तुत किया गया है।  बीमा कम्पनी द्वारा जो Accidental Death and Disability Benefit Rider UIN-512B209V01 w.e.f.  दिनांकी 03.01.2014 की  फोटोप्रति  प्रस्तुत  की  गयी  है वह

पालिसी बीमा कम्पनी की अधिकृत नियमावली है।  दाखिल नियमावली से यह स्पष्ट

है कि परिवादिनी ने अतिरिक्त प्रीमियम की धनराशि अपने बीमित पुत्र के बालिग होने पर अदा नहींं किया था।  इस प्रकार परिवादिनी द्वारा दाखिल पालिसी प्रपत्र कागज सं0-16/2 में अंकित Money Back Policy (with Profits)  DAB  पर हित लाभ पाने की अधिकारिणी परिवादिनी नहीं है।  विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा जो धनराशि मु0 60101/- रू0 अदा की गयी है वह न्याय की दृष्टि से उचित है।  विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रस्तुत क्लेम दावा के अनुसार परिवादिनी को देय धनराशि का समय से भुगतान किया है।  विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा पालिसी के नियमों व शर्तों का सही ढंग से ऑकलन करके परिवादिनी को धनराशि अदा की गयी है।  प्रस्तुत परिवाद में सभी बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए न्याय की दृष्टि से फोरम की राय में परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है एवं निरस्त किये जाने योग्य है क्योंकि विपक्षी बीमा कम्पनी ने किसी प्रकार का विधि विरूद्ध कार्य नहीं किया है और समयानुसार बीमित धनराशि परिवादिनी को अदा कर दिया है।  परिवादिनी ने पालिसी के नियमों के विपरीत परिवाद प्रस्तुत किया है और वह हित लाभ पाने की अधिकारिणी नहीं है।  वर्णित परिस्थितियों में परिवाद व्यय उभय पक्ष द्वारा स्वयं वहन करना न्यायोचित प्रतीत होता है।

                                 आदेश

     परिवादिनी का परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी के विरूद्ध निरस्त किया जाता है। 

     उभय पक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।  पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

         (शैलेन्द्र नाथ)                        (रेनू केसरवानी)

            सदस्य,                            पी0 सदस्य, 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम,    जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम,

           फतेहपुर।                           फतेहपुर।                                  

  22.08.2017                         22.08.2017                                                

 

 

     निर्णय एवं आदेश आज खुले  मंच से हस्ताक्षरित व दिनांकित होकर  उद्घोषित किया गया।

 

 

 

          (शैलेन्द्र नाथ)                        (रेनू केसरवानी)

            सदस्य,                            पी0 सदस्य, 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम,    जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम,

           फतेहपुर।                           फतेहपुर।                                   

22.08.2017                         22.08.2017 

 

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