// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम,बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक cc/2013/45
प्रस्तुति दिनांक 01/03/2013
श्रीमती कमलेश सैनी,
पत्नी स्व0 महेश सैनी, उम्र 47 वर्ष,
काठी रोड,नियर जैन मंदिर,
पेण्ड्रारोड
जिला बिलासपुर छ.ग. .................आवेदिका /परिवादी
विरूद्ध
भारतीय जीवन बीमा निगम,
द्वारा मण्डल प्रबंधक, मंडल कार्यालय,
डा0शिवदुलारे मिश्रा परिसर,व्यापार विहार
बिलासपुर
जिला बिलासपुर छ.ग. .........अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 18/03/2015 को पारित)
१. आवेदिका श्रीमती कमलेश सैनी ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक बीमा निगम के विरूद्ध बीमा दावा को अस्वीकार कर सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक बीमा निगम से बीमा दावा की राशि 2,00,000/- रू0 को ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदिका का पति स्व.महेश सैनी अपने जीवन काल में अनावेदक बीमा निगम से दिनांक 29/11/2007 को एक लाख रूपये मूल्य के एल0आई0सी0 प्राफिट प्ल बीमा पॉलिसी तथा दिनांक 11/03/2010 को एक लाख रूपये मूल्य के एल0आई0सी0 वेल्यू प्लस बीमा पॉलिसी क्रय किया था। यह कहा गया है कि आवेदिका का पति पॉलिसी प्रस्ताव के समय पूर्ण रूप से स्वस्थ था और उसके स्वास्थ्य के संबंध में अपने अधिकृत डॉक्टर से रिपोर्ट प्राप्त करने के उपरांत ही अनावेदक बीमा निगम दोनों पॉलिसी प्रस्ताव स्वीकार किया था, किंतु दिनांक 26/09/2010 को हार्टअटैक के कारण सामान्य मृत्यु होने पर जब आवेदिका द्वारा नॉमिनी होने के नाते पॉलिसी से उत्पन्न लाभों को प्राप्त करने के लिए सारी औपचारिकताओं सहित दावा आवेदन प्रस्तुत किया गया तो उसे अनावेदक बीमा निगम बिना किसी प्रमाण के अनुचित रूप से दिनांक 02/08/2012 को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि बीमाधारक विगत 10 वर्षों से हाइपरटेंशन का मरीज था, जिस तथ्य को उसके द्वारा जानबूझकर बीमा प्रस्ताव में छिपाया गया । अत: अनावेदक बीमा निगम के इस सेवा में कमी के लिए यह परिवाद पेश करते हुए उससे वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया गया है ।
3. अनावेदक बीमा निगम की ओर से जवाब पेश कर आवेदिका के पति द्वारा प्रश्नाधीन बीमा पॉलिसी लिया जाना तो स्वीकार किया गया किंतु परिवाद का विरोध इस आधार पर किया गया कि बीमाधारक के पॉलिसी लिए जाने के 3 वर्ष के भीतर मृत्यु हो जाने से दावा शीघ्र श्रेणी के अंतर्गत आने से जांच कराई गई, तब पता चला, कि बीमाधारक पॉलिसी लिए जाने के पूर्व 10-12 वर्षों से उच्च रक्त चाप (हाईपरटेंशन) की बीमारी से पीडित था, किंतु इस तथ्य को उसके द्वारा जानबूझकर पॉलिसी प्रस्ताव में छिपाया गया, जिसके कारण ही आवेदिका का बीमादावा निरस्त किया गया और सेवा में कोई कमी नहीं की गई, उक्त आधार पर अनावेदक बीमा निगम ने आवेदिका के परिवाद को निरस्त किए जाने का निवेदन किया है ।
4. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
5. देखना यह है कि क्या अनावेदक बीमा निगम द्वारा आवेदिका का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में कमी की गई \
सकारण निष्कर्ष
6. आवेदिका के पति स्व.महेश सैनी द्वारा अपने जीवन काल में अनावेदक बीमा निगम से प्रश्नाधीन दोनों पॉलिसियां लिये जाने का तथ्य मामले में विवादित नहीं है। यह भी विवादित नहीं है कि उपरोक्त पॉलिसियों के संबंध में आवेदिका द्वारा प्रस्तुत बीमा दावा अनावेदक बीमा निगम द्वारा निरस्त कर दिया गया है।
7. आवेदिका का कथन है कि उसका पति पॉलिसी प्रस्ताव के समय पूर्ण रूप से स्वस्थ था और उसके स्वास्थ्य के संबंध में अपने अधिकृत डॉक्टर से रिपोर्ट प्राप्त करने के उपरांत ही अनावेदक बीमा निगम दोनों पॉलिसी प्रस्ताव स्वीकार किया था, फिर भी उसके द्वारा बिना किसी उचित प्रमाण के उसका दावा इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि उसका पति विगत 10-12 वर्षों से हायपरटेंशन की बीमारी से पीडित था और इस तथ्य को उसके द्वारा जानबूझकर पॉलिसी प्रस्ताव में छिपाया गया, जो कि सेवा में कमी है फलस्वरूप उसने यह परिवाद पेश करना बतलायी है ।
8. इसके विपरीत अनावेदक बीमा निगम का कथन है कि बीमाधारी की मृत्यु पॉलिसी लिए जाने के तीन वर्ष के भीतर होने से उनके द्वारा शीघ्र दावा श्रेणी के अंतर्गत मामले की जांच कराई गई, तब उन्हें पता चला, कि आवेदिका का पति पॉलिसी प्रस्ताव भरे जाने के पूर्व ही 10-12 वर्षों से उच्च रक्त चाप (हाईपरटेंशन) की बीमारी से पीडित था, किंतु इस तथ्य को उसके द्वारा जानबूझकर पॉलिसी प्रस्ताव में छिपाया गया, जिसके कारण ही उनके द्वारा आवेदिका का बीमादावा उचित रूप से निरस्त किया गया और सेवा में कोई कमी नहीं की गई।
9. आवेदिका अपने कथन के समर्थन में सूचना अधिकार अधिनियम के तहत अनावेदक बीमा निगम से प्राप्त उसके अधिकृत चिकित्सक डा0व्ही0के0ताम्रकार के स्वास्थ्य परीक्षण संबंधी गोपनीय रिपोर्ट की कॉपी पेश किया है, जिसे अनावेदक बीमा निगम द्वारा कोई चुनौती नहीं दी गई है और न ही ऐसा कुछ कहा गया है कि उक्त चिकित्सकीय रिपोर्ट गलत होने से उनके द्वारा संबंधित डॉक्टर के विरूद्ध कोई कार्यवाही की जा रही है। फलस्वरूप उक्त अखंडित चिकित्सकीय रिपोर्ट से आवेदिका के उस कथन की पुष्टि होती है, जिसका कहना है कि उसका पति पॉलिसी प्रस्ताव के समय पूर्ण रूप से स्वस्थ था।
10. अनावेदक बीमा निगम अपने कथन के समर्थन में कि आवेदिका का पति पॉलिसी प्रस्ताव के पूर्व विगत 10-12 वर्षौ से हायपरटेंशन का मरीज था, चिकित्सकीय प्रमाणपत्र दिनांक 28/01/2012, दिनांक 28/06/2012 एवं विशेषज्ञ अभिमत दिनांक 11/03/2010 की कॉपी संलग्न किया है, किंतु उनके समर्थन में किसी भी चिकित्सक का कोई शपथपत्र दाखिल नहीं किया गया है । फलस्वरूप आवेदिका द्वारा पेश चिकित्सकीय साक्ष्य के परिपेक्ष्य में अनावेदक बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत चिकित्सकीय साक्ष्य मामले में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं पाया जाता।
11. इसके अलावा अनावेदक बीमा निगम की ओर से पेश आवेदिका के पति के बीमा प्रस्ताव के अवलोकन से भी यह स्पष्ट नहीं होता कि उक्त प्रस्ताव आवेदिका के पति द्वारा स्वयं भरा गया था, बल्कि यही प्रकट होता है कि वह अनावेदक बीमा निगम के किसी बीमा एजेंट द्वारा भरा गया था, इसके अलावा उक्त बीमा प्रस्ताव आवेदिका के पति के बताए अनुसार ही दर्ज किया गया था, इस बात को भी दर्शित करने के लिए अनावेदक बीमा निगम की ओर से न तो संबंधित बीमा एजेंट का शपथपत्र दाखिल किया गया है और न ही उक्त बीमा प्रस्ताव के किसी साक्षी का । फलस्वरूप हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अनावेदक बीमा निगम यह स्थापित करने में असफल रहा है कि आवेदिका का पति पॉलिसी लिए जाने के पूर्व 10-12 वर्षों से उच्च रक्त चाप (हाईपरटेंशन) का मरीज था, तथा इस तथ्य को उसके द्वारा जानबूझकर पॉलिसी प्रस्ताव में छिपाया गया था।
12. कोई भी व्यक्ति बीमा पॉलिसी को इस आशा और विश्वास के साथ लेता है कि उसकी मृत्यु की दशा में उसके परिवार को हानि नहीं होगी और वे बीमा राशि से जीवित रहने योग्य होंगे । ऐसे व्यक्तियों के मध्यम वर्ग से संबंधित होने, साथ ही बीमा निगम पर निर्भर होने की दशा में निगम के अधिकारियों का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे दावेदारों के मामले को उनकी सहायता करने के रूप में विचार करें न कि उसके दोषों को देखने के रूप में व्यवहृत करें । प्रश्नगत मामले में अनावेदक बीमा निगम ने आवेदिका के दावा निराकरण के पूर्व मस्तिष्क का पूर्ण एवं ध्यानपूर्वक प्रयोग नहीं किया तथा उसके द्वारा आवेदिका के दावा को अस्वीकार कर सेवा में कमी की गई । अत: हम आवेदिका के पक्ष में अनावेदक बीमा निगम के विरूद्ध निम्न आदेश पारित करते हैं :-
अ. अनावेदक बीमा निगम, आवेदिका को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर बीमाधन की राशि 2,00,000/- रू.(दो लाख रू.) का भुगतान पॉलिसी के अंतर्गत उपलब्ध सभी लाभों के साथ करेगा तथा चूक की दशा में आवेदिका को उक्त रकम पर ताअदायगी 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करेगा ।
ब. अनावेदक बीमा निगम, आवेदिका को क्षतिपूर्ति के रूप में 25,000/- रू.(पचीस हजार रू.) की राशि भी अदा करेगा।
स. अनावेदक बीमा निगम, आवेदिका को वादव्यय के रूप में 3,000/- रू.(तीन हजार रू.) की राशि भी अदा करेगा।
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य