Chhattisgarh

Bilaspur

CC/11/77

SHRI NAGENDRA KUMAR PANDEY - Complainant(s)

Versus

B.M. ALLAHABAD BANK - Opp.Party(s)

SHRI MUKESH SHARMA

05 Feb 2015

ORDER

District Consumer Dispute Redressal Forum
Bilaspur (C.G.)
Judgement
 
Complaint Case No. CC/11/77
 
1. SHRI NAGENDRA KUMAR PANDEY
SONGANGA TIRAHA SEEPAT ROAD BILASPUR
BILASPUR
CHHATTISGARH
...........Complainant(s)
Versus
1. B.M. ALLAHABAD BANK
IDGAH CHOWK BILASPUR
BILASPUR
CHHATTISGARH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. ASHOK KUMAR PATHAK PRESIDENT
 HON'BLE MR. PRAMOD KUMAR VARMA MEMBER
 
For the Complainant:
SHRI MUKESH SHARMA
 
For the Opp. Party:
SHRI SALIM KAJI
 
ORDER

//जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर (छ0ग0)//

                                                                               प्रकरण क्रमांक:-  सी.सी./11/77
                                                                                  प्रस्तुति दिनांक:-    04/05/2011

 
नागेन्द्र कुमार पाण्डेय, उम्र 46 वर्ष,
आत्मज डाॅ. जी.पी.पाण्डेय
सोनगंगा तिराहा पो.आ. एस.ई.सी.एल.
सीपत रोड बिलासपुर छ.ग.                 ............आवेदक/परिवादी

                 (विरूद्ध)
 
 इलाहाबाद बैंक, 
 द्वारा ब्रांच मैनेजर,
 ईदगाह चैक, 
 पुलिस लाईन बिलासपुर छ.ग.        ..........अनावेदक/विरोधी पक्षकार
  

                       //आदेश//
        (आज दिनांक 05/02/2015 को पारित)

     1. आवेदक नागेन्द्र कुमार पाण्डेय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक इलाहाबाद बैंक के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक बैंक से 2,60,000/.रु0 की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाए जाने का निवेदन किया है।  

 2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक का अनावेदक बैंक में खाता क्रमांक 50000599099 एवं 20050411966 स्थित है, जिसमें उसे बैंक द्वारा ओव्हर ड्राफ्ट एवं चेक की सुविधा प्रदान की गई है। आवेदक के अनुसार अपने एकाउंट का सत्यापन करने पर उसने पाया कि उसके द्वारा विभिन्न दिनांकों पर अविनाश पाण्डेय के पक्ष में जारी चेक की राशि में सुधार कर राशि आहरित की गई है, जिसके संबंध में अनावेदक बैंक द्वारा उचित रूप से सत्यापन का प्रयास नहीं किया गया जिसके कारण उसे 1,75,000/-रू. ब्याज के साथ नुकसान हुआ, तथा इस संबंध में बार-बार प्रयास करने पर भी अनावेदक बैंक द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। अतः उसने अनावेदक बैंक की सेवा मंे कमी के लिए यह परिवाद पेश करते हुए अनावेदक बैंक से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है। 
    3. अनावेदक  बैंक की ओर से जवाबदावा पेश कर उनके बैंक में आवेदक के दो खाता होना और उस पर उसे ओव्हर ड्राफ्ट एवं चेक की सुविधा दिए जाने का तथ्य तो स्वीकार किया गया, किंतु परिवाद का विरोध इस आधार पर किया गया कि उनके बैंक में आवेदक की ओर से अविनाश पाण्डेय ही हमेशा लेन-देन करता था, जिसकी जानकारी आवेदक को प्रतिमाह प्राप्त विवरण से हो जाया करती थी, किंतु उसके बाद भी आवेदक द्वारा उनके समक्ष कोई शिकायत नहीं की गई। आगे अनावेदक बैंक इस बात से इंकार किया कि उनके अधिकारियों द्वारा बिना किसी जाॅच पड़ताल के आवेदक के चेक का भुगतान किया गया, बल्कि कहा गया है कि आवेदक जान-बूझ कर इस मामले में अविनाश पाण्डेय को पक्षकार नहीं बनाया है, जबकि दोनों मिल कर ही चेक के जरिए उनके बैंक से राशि आहरित किए हैं, परंतु इसके बाद भी आवेदक द्वारा दुराशयपूर्वक अनावेदक बैंक से राशि वसूलने के लिए यह परिवाद पेश कर दिया है, जो 
निरस्त किए जाने योग्य है।  
    4. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुना गया । प्रकरण का अवलोकन किया गया।
    5. देखना यह है कि क्या अनावेदक बैंक द्वारा आवेदक के चेक के भुगतान के संबंध में उचित सत्यापन न कर सेवा में कमी की गई ?  
                                                                          सकारण निष्कर्ष
    6. आवेदक के अनुसार उसने अपने खाते से विभिन्न दिनांकों को अविनाश पाण्डेय के पक्ष में 50,000-50,000/-रू. का चेक जारी किया था, किंतु उसमें सुधार कर 85,000-85,000/-रू. का भुगतान प्राप्त किया गया। आवेदक अपने परिवाद में यह स्पष्ट नहीं किया है कि चेक की राशि में उक्त सुधार एवं लघुहस्ताक्षर किसके द्वारा किया गया ? इस संबंध में उसने अपने तथाकथित कर्मचारी अविनाश पाण्डेय पर भी कोई आरोप नहीं लगाया है और न ही इस मामले में उसे पक्षकार बनाया है और न ही ऐसा न करने का कोई कारण स्पष्ट किया है, जो इस बात को जाहिर करता है कि आवेदक को बैंक से प्रतिमाह प्राप्त होने वाले विवरण के जरिए चेक के संबंध में उसके खाते से हुए प्रत्येक संव्यवहार की जानकारी रही फिर भी उसने इस संबंध में अनावेदक बैंक से कोई शिकायत नहीं की और न ही इस मामले में अपने तथाकथित कर्मचारी अविनाश पाण्डेय को पक्षकार बनाया है, बल्कि इस संबंध में उसने अनावेद बैंक पर सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए यह परिवाद पेश कर दिया है, जो इस बात को जाहिर करता है कि  वास्तव में प्रश्नगत मामला सेवा में कमी का नहीं, बल्कि सांठ-गांठ कर दुराशयपूर्वक अनावेदक बैंक से राशि वसूलने का है, अतः आवेदक का परिवाद निरस्त किया जाता है। 
    7. उभय पक्ष अपना-अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे। 
आदेश पारित 


                             (अशोक कुमार पाठक)                                                              (प्रमोद वर्मा)           
                                      अध्यक्ष                                                                            सदस्य                   

 
 
[HON'BLE MR. ASHOK KUMAR PATHAK]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. PRAMOD KUMAR VARMA]
MEMBER

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