जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 05/2014
मोहम्मद दिलशाद शेख, प्रो. वेस्टण्ड वाॅच एण्ड आॅप्टिकल, तहसील चैक, नागौर, जिला नागौर (राज)। -परिवादी
बनाम
1. एक्सिस बैंक शाखा, सुगनसिंह सर्किल के पास, नागौर जरिये शाखा प्रबन्धक
2.
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमति राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री मोहम्मद शाहिद सिलावट, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री कुन्दनसिंह आचीणा, अधिवक्ता वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे श दिनांक 05.05.2015
1. परिवाद पत्र क तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी वेस्टण्ड वाॅच एण्ड आॅप्टिकल के नाम से व्यवसाय करता है, अप्रार्थी के यहां उसका खाता है। परिवादी ने अपने प्रतिष्ठान पर एक ईडीसी ( स्वेप मशीन) लगा रखी है। जिससे परिवादी के प्रतिष्ठान पर आये उपभोक्ता परिवादी को माल के बदले दी जाने वाली राशि उक्त मशीन में अपना कार्ड स्वेप करके भुगतान करते हैं। जो सशुल्क लगाई गई है। उसमें यह शर्त है कि मशीन को महीने में एक बार भी उपयोग में नहीं लिया गया तो निश्चित शुल्क बैंक में जमा करवाना पडेगा। महीने में एक बार या उससे अधिक बार मशीन का उपयोग होता है तो परिवादी के खाते में से कोई राशि नहीं काटी जावेगी। परिवादी के खाते में से दिनांक 25.03.2013 व दिनांक 18.06.2013 को कुल 560/- रूपये की राशि गलत तरीके से काटी गई है। इस प्रकार से अप्रार्थी का उक्त कृत्य सेवा में कमी व अनुचित व्यापार व्यवहार की श्रेणी में आता है। मय ब्याज के उक्त रकम दिलायी जावे एवं मानसिक क्षतिपूर्ति व परिवाद व्यय दिलाई जावे।
2. इसके विपरित अप्रार्थी का कहना है कि परिवादी के प्रतिष्ठान में दो ईडीसी मशीन लगा रखी थी। जिसके नम्बर एमआईओ नम्बर 61312300 व एमआईओ नम्बर 6312301 थे। मशीन संख्या 6312301 का कभी उपयोग ही नहीं किया, इसलिए नाॅन ट्रांजेक्शन फीस 280/- रूपये प्रतिमाह काटी गई है।
3. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का अवलोकन किया गया। उक्त मशीनें लगी हुई होना एवं उनके उपयोग व उपभोग किये जाने की शर्तों के सम्बन्ध में कोई विवाद प्रतीत नहीं होता है। प्रदर्श ए 2 इस्टेटमेंट आॅफ एकाउंट से स्पष्ट है कि मार्च व अप्रेल, 2013 के माह में स्वेप मशीन नम्बर 61312301 का उपयोग व उपभोग परिवादी के द्वारा नहीं किया गया। इसलिए नाॅन ट्रांजेक्शन फीस विवादित रकम काटी गई, क्योंकि इस दस्तावेज का कोई खण्डन नहीं हुआ है और ना ही इस पर अविश्वास करने का कोई कारण है। इस प्रकार से परिवादी अपना परिवाद साबित करने में असफल रहा है।
आदेश
4. परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। अतः परिवाद खारिज किया जाता है। पक्षकार खर्चा अपना-अपना वहन करें।
आदेश आज दिनांक 05.05.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमति राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या