Uttar Pradesh

StateCommission

A/2547/2014

Haarinandan Tewari - Complainant(s)

Versus

Axis Bank - Opp.Party(s)

Surendra Saxena

25 Mar 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2547/2014
(Arisen out of Order Dated 29/10/2014 in Case No. C/102/2012 of District Mainpuri)
 
1. Haarinandan Tewari
Mohalla Kharjit Nagar (Nicat Pandey Baba wali Gali) Shahar Distt.Mainpuri
...........Appellant(s)
Versus
1. Axis Bank
Station Distt.Mainpuri
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-2547/2014

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या 102/2012 में पारित आदेश दिनांक 29.10.2014 के विरूद्ध)

हरिनन्‍दन तिवारी पुत्र श्री जगदीश प्रसाद निवासी-मोहल्‍ला खरगजीत नगर, (निकट पाण्‍डे बाबा वाली गली) शहर जनपद-मैनपुरी।                  ....................अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

शाखा प्रबन्‍धक एक्सिस बैंक शाखा स्‍टेशन रोड, शहर जनपद-मैनपुरी।                    

                                                 .................प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

 

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, सदस्‍य।

3. माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री बृजेन्‍द्र कुमार सिंह, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक : 25.03.2015

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या 102/2012 में पारित आदेश दिनांक 29.10.2014 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है, जिसके अन्‍तर्गत जिला मंच द्वारा परिवादी का परिवाद निरस्‍त किया गया।

      श्री बृजेन्‍द्र कुमार सिंह विद्वान अधिवक्‍ता अपीलार्थी को सुना गया और अभिलेख का अवलोकन किया गया।

पत्रावली का अवलोकन यह दर्शाता है कि दिनांक 29.10.2014 के प्रश्‍नगत आदेश के विरूद्ध अपील दिनांक 08.12.2014 को प्रस्‍तुत की गयी है, जो कि प्रथम दृष्‍ट्या समय-सीमा अवधि से बाधित है। अपीलार्थी की ओर से समय-सीमा अवधि में छूट सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि जिला मंच द्वारा परिवादी का परिवाद, उसके द्वारा पूर्व पारित आदेश दिनांक 20.08.2014 का अनुपालन निर्धारित समयावधि में न कर पाने के कारण दिनांक 29.10.2014 को निरस्‍त किया गया। परिवादी का स्‍वास्‍थ्‍य दिनांक 18.08.2014 को अत्‍यधिक खराब हो जाने के कारण वह जिला मंच के समक्ष निर्धारित तिथियों 20.08.2014, 27.09.2014, 21.10.2014 एवं 29.10.2014 को उपस्‍िथत  नहीं  हो  सका  एवं  पूर्व  पारित  आदेश   

 

-2-

दिनांक 20.08.2014 के अनुपालन के सम्‍बन्‍ध में अपेक्षित पैरवी न कर सका। परिवादी   दिनांक 18.08.2014 से दिनांक 01.11.2014 तक अत्‍यधिक बीमार रहा, जिसके कारण उसे अपने परिवाद में पारित आदेशों की जानकारी नहीं हो सकी और न ही उसका सम्‍पर्क अपने अधिवक्‍ता से परिवाद में पारित आदेशों के बावत हुआ। परिवादी ने अपने अधिवक्‍ता से उक्‍त वाद में पारित आदेशों के बावत दिनांक 03.11.2014 को सम्‍पर्क किया और उसी दिन जिला फोरम में जाकर वाद पत्रावली का निरीक्षण किया, तब उसे प्रश्‍नगत आदेश की जानकारी हुई। परिवादी ने प्रश्‍नगत आदेश के सम्‍बन्‍ध में दिनांक 09.11.2014 को अपने अधिवक्‍ता से विधिक परामर्श प्राप्‍त करने के लिए सम्‍पर्क किया तो उन्‍होंने परिवादी को प्रश्‍नगत आदेश के विरूद्ध राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग में अपील योजित करने की राय दी। परिवादी ने जिला फोरम के आवश्‍यक आदेशों एवं प्रपत्रों की प्रमाणित नकले प्राप्‍त करने के लिए दिनांक 20.11.2014 को आवेदन दिया, जो दिनांक 26.11.2014 को प्राप्‍त किया। परिवादी ने दिनांक 27.11.2014 को पत्रावली, आदेश व प्रपत्रों के साथ लखनऊ में अधिवक्‍ता से अपील तैयार कराने के बावत सम्‍पर्क किया। परिवादी ने दिनांक 27.11.2014 से दिनांक 07.12.2014 तक अस्‍वस्‍थ रहने के कारण अपने डाक्‍टर साहब से इलाज कराया और पूर्ण रूप से बेडरेस्‍ट किया और स्‍वस्‍थ होने के बाद अपने अधिवक्‍ता से दिनांक 07.12.2014 को मिलकर अपील के बावत तैयारी की जानकारी ली और अन्‍त में दिनांक 08.12.2014 को अपील दाखिल की गयी। अपील दाखिल करने में विलम्‍ब जानबूझकर नहीं किया गया है और जो भी विलम्‍ब हुआ है वह परिवादी की बीमारी के कारण हुआ। इस कारण विलम्‍ब क्षमा योग्‍य है।

      उपरोक्‍त वर्णित तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में यह अवलोकनीय है कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-1166/2006 बलवन्‍त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्‍य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्‍बन्‍धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्‍यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में वह सभी सम्‍भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्‍यक देरी कारित न होने के लिए आवश्‍यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्‍यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्‍या किसी भी  प्रकार

 

 

                                   -3-          

से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्‍य बनाम रीवा कोलफील्‍ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्‍त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्‍वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्‍योंकि पर्याप्‍त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्‍यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्‍यायालय को यह विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है कि न्‍यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए अथवा नहीं और इस स्‍तर पर अपील से सम्‍बन्धित सभी संगत तथ्‍यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं। यद्यपि स्‍वाभाविक रूप से इस अधिकार को न्‍यायालय द्वारा संगत तथ्‍यों पर कुछ सीमा तक ही विचार करने के लिए प्रयुक्‍त करना चाहिए।

      हाल ही में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल तथा अन्‍य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्‍य, सिविल अपील संख्‍या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्‍पन्‍न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्‍थानों, प्रबन्‍धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्‍वीकार किए जाने योग्‍य स्‍पष्‍टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्‍य में स्‍पष्‍ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्‍य स्‍पष्‍टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्‍य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्‍व होता है कि वे अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके  लिए  समान  रूप  से

 

 

-4-

उपलब्‍ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्‍त किया जाए।

      आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्‍वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC) में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्‍पष्‍ट किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है? क्‍योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्‍बन्‍ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किए जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गयी अपील को बिना सदभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण सम्‍बन्‍धी उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा।

      उपरोक्‍त सन्‍दर्भित विधिक सिद्धान्‍तों के परिप्रेक्ष्‍य में हमने अपीलार्थी द्वारा प्रदर्शित उपरोक्‍त तथ्‍यों का अवलोकन एवं विश्‍लेषण किया है और यह पाया है कि स्‍पष्‍टतया उपरोक्‍त सन्‍दर्भित स्‍पष्‍टीकरण सदभाविक स्‍पष्‍टीकरण नहीं है, ऐसा स्‍पष्‍टीकरण नहीं है जिससे अपीलार्थी अपील योजित किए जाने में हुई देरी से बच नहीं सकता था।    दिनांक 29.10.2014 के विवादित आदेश के विरूद्ध प्रदत्‍त सीमा अवधि दिनांक 29.11.2014 तक अपील न किए जाने और दिनांक 08.12.2014 को अर्थात् लगभग 01 माह 09 दिन बाद इस अपील को योजित किए जाने का कोई स्‍पष्‍ट औचित्‍य नहीं है। देरी होने सम्‍बन्‍धी तथ्‍य को जिस प्रकार से वर्णित किया गया है, उससे यह नहीं लगता है कि उसके अलावा कोई विकल्‍प अपील में देरी से बचने का नहीं था। अत: हम   धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा प्रदत्‍त 30  दिन  की  कालावधि  के

 

 

                                   -5-            

अवसान के पश्‍चात् यह अपील ग्रहण किए जाने योग्‍य नहीं पाते हैं क्‍योंकि अपीलार्थी उस अवधि के भीतर अपील न योजित करने के सम्‍बन्‍ध में पर्याप्‍त कारण के प्रति ऐसा स्‍पष्‍टीकरण प्रस्‍तुत करने में विफल है, जिससे हमारा समाधान हो सके कि कालावधि के अवसान के पश्‍चात् अपील ग्रहण की जा सकती है। अत: यह अपील, अपील को अंगीकार किये जाने के प्रश्‍न पर सुनवाई करते हुए ही समय-सीमा से बाधित होने के कारण अस्‍वीकार की जाने योग्‍य है।

                                  आदेश

      अपील उपरोक्‍त अस्‍वीकार की जाती है।

 

 

 

   (न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र सिंह)       (जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा)        (राज कमल गुप्‍ता)     

अध्‍यक्ष                      सदस्‍य                   सदस्‍य  

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1    

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.