जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 828/2008
श्री राम स्वरूप,
पुत्र श्री टांई,
निवासी-मकान सं.1/8,
सेक्टर-डी, प्रियदर्शिनी कालोनी,
सीतापुर रोड, लखनऊ।
......... परिवादी
बनाम
उ0 प्र0 आवास एवं विकास परिषद,
104, महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ।
द्वारा- आवास आयुक्त।
..........विपक्षी
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी को इस हेतु निर्देशित करने कि परिवादी को भवन का आवंटन पत्र जारी कर भवन का कब्जा प्रदान करें तथा विपक्षी से क्षतिपूर्ति हेतु रू.50,000.00 तथा वाद व्यय हेतु रू.5,500.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि उसने दैनिक श्रमिकों, गरीबों एवं दलितों को भवन उपलब्ध कराने संबंधी विपक्षी द्वारा संचालित 10 रूपये प्रतिदिन की आवासीय योजना के अंतर्गत हरदोई रोड योजना में एक भवन प्राप्त करने हेतु दिनांक 28.05.1997 को आवेदन पत्र द्वारा ड्राफ्ट दिनांकित 28.05.1997 के माध्यम से वांछित धनराशि रू.500.00 विपक्षी के संपत्ति प्रबंध कार्यालय, इंदिरा नगर, लखनऊ में जमा करके अपना पंजीकरण कराया जो संपत्ति प्रबंध कार्यालय की प्राप्ति डायरी सं.1174, दिनांक 28.05.1997 पर अंकित है। आवेदन पत्र देने के बाद विपक्षी द्वारा भवन के आवंटन/लाटरी के संबंध में कोई सूचना परिवादी
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को नहीं दी गई तो परिवादी द्वारा विपक्षी के कार्यालय से व्यक्तिगत रूप से संपर्क करके जानकारी करनी चाही, परंतु स्पष्ट जानकारी विपक्षी द्वारा नहीं दी गई। परिवादी द्वारा इस संबंध में अनेक पत्र भी विपक्षी को दिये गये, परंतु विपक्षी द्वारा भवन के आवंटन के संबंध में परिवादी को कोई सूचना नहीं दी गई और न ही कोई कार्यवाही की गई। परिवादी द्वारा विपक्षी के आवास आयुक्त एवं संपत्ति प्रबंध अधिकारी को एक पत्र दिनांकित 31.05.2008 व्यक्तिगत रूप से प्राप्त कराकर अपनी आवासीय समस्या के निराकरण हेतु अनुरोध किया गया जिसके उत्तर में विपक्षी के संपत्ति प्रबंध कार्यालय द्वारा एक पत्र दिनांकित 04.06.2008 परिवादी को भेजा गया जिसके माध्यम से परिवादी को सूचित किया गया कि कार्यालय अभिलेखों के अनुसार परिवादी के आवेदन पत्र सं.8159 पर किसी अन्य व्यक्ति राम लखन का नाम अंकित है, अतः परिवादी अपनी बैंक की पासबुक तथा पता संबंधी कागजात के साथ-साथ अपने हस्ताक्षर तथा फोटो प्रमाणित कराकर कार्यालय में उपस्थित हो जिससे कि परिवादी को पंजीकरण की धनराशि का चेक वापस किया जा सके। विपक्षी के उपरोक्त पत्र से स्पष्ट है कि उनके भ्रष्ट कर्मचारियों/अधिकारियों द्वारा राम लखन से मिली भगत करके परिवादी के पंजीकरण फार्म सं.8159 पर कूट रचना कर परिवादी राम स्वरूप के स्थान पर राम लखन का नाम अंकित करके राम लखन को भवन आवंटित कर दिया गया। विपक्षी का यह कृत्य सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार प्रक्रिया का द्योतक है। परिवादी द्वारा उपरोक्त पत्र के विरोध स्वरूप अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक विधिक नोटिस दिनंाकित 18.09.2008 पंजीकृत डाक से विपक्षी को भेजा, परंतु विपक्षी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया एवं न ही कोई कार्यवाही की गयी। अतः परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी को इस हेतु निर्देशित करने कि परिवादी को भवन का आवंटन पत्र जारी कर भवन का कब्जा प्रदान करें तथा विपक्षी से क्षतिपूर्ति हेतु रू.50,000.00 तथा वाद व्यय हेतु रू.5,500.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी की ओर से अपना लिखित कथन दाखिल किया गया जिसमें मुख्यतः यह कथन किया गया है कि जब तक पंजीकृत व्यक्ति को भवन या भूखंड आवंटित नहीं हो जाता है तब तक पंजीकृत व्यक्ति उपभोक्ता की परिभाषा की परिधि में नहीं आता है जैसा कि उपभोक्ता
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संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (डी) में परिभाषित है। जिला फोरम को पंजीकरण के समय तय हुई शर्तों के संबंध में परिवाद सुनने व तय करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के सेक्शन-2 (ओ) सर्विस को परिभाषित किया गया है तथा परिषद पंजीकृत व्यक्तियों को पंजीकरण के आधार पर परिषद नियमानुसार भवन/भूखंड उपलब्ध कराती है। यह कार्य अचल संपत्ति से संबंधित है और अचल संपत्ति से संबंधित कोई भी सर्विस की परिभाषा की परिधि में नहीं आता है। उक्त दोनों ही स्थितियों में परिवादी द्वारा कराया गया पंजीकरण सर्विस की परिभाषा में नहीं आता है। भूखंड और उस पर बनाया गया भवन पूर्ण समय से अचल संपत्ति है और ऐसे मामले की सुनवाई सिविल न्यायालय में ही हो सकती है। उपरोक्त स्थिति में फोरम को परिवाद सुनने का अधिकार नहीं है। उक्त योजना अपरिहार्य कारणों से क्रियान्वित नहीं हो सकी और सभी पंजीकृत आवेदकों को पंजीकृत डाक से जमा धनराशि पर नियमानुसार ब्याज सहित रकम वापस कर दी गयी। अतः भवन के आवंटन/लाटरी का कोई प्रश्न नहीं उठता। परिवादी कभी व्यक्तिगत रूप से कार्यालय नहीं आया और परिवाद में इसका स्पष्ट उल्लेख भी नहीं है कि वह किस व्यक्ति से आकर मिला। जब योजना का क्रियान्वयन ही नहीं हुआ तो भवन देने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। परिवादी द्वारा भरे गए आवेदन पत्र में कुछ कटिंग होने के कारण कार्यालय अभिलेख में परिवादी के आवेदन पत्र सं.8159 पर राम लखन नाम अंकित हो गया और परिवादी द्वारा दिनांक 31.05.2008 को दिए गए पत्र के उत्तर में विभाग ने एक पत्र भेजा जो दिनांक 04.06.2008 को परिवादी को प्राप्त हुआ जिसमें स्पष्ट रूप से परिवादी को सूचित किया गया था कि कार्यालय अभिलेख में परिवादी के आवेदन पत्र सं.8159 पर किसी अन्य व्यक्ति राम लखन का नाम अंकित है, अतः वह अपने बैंक की पासबुक तथा पता संबंधी कागजात के साथ-साथ अपने हस्ताक्षर तथा फोटो प्रमाणित कराकर कार्यालय में उपस्थित हो जिससे कि परिवादी को पंजीकरण की धनराशि का चेक वापस किया जा सके। परिवादी द्वारा मिथ्या आरोप लगाया गया है कि विपक्षी के भ्रष्ट अधिकारी द्वारा राम लखन से मिलीभगत की गयी है जो गलत, झूठ एवं बेबुनियाद है। जब उक्त योजना का क्रियान्वयन ही नहीं हुआ तो कथिन राम लखन को भवन
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आवंटित करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। परिवादी को चेक सं.550662 दिनांक 24.05.2001 को परिवादी द्वारा दिये गये पते पर विपक्षी द्वारा पंजीकरण धनराशि ब्याज सहित भेजा गया था जो अप्राप्त व पता गलत होने के कारण वापस आ गया। पुनः परिवादी द्वारा दिये गये सही पते पर उक्त चेक को रिवेलीडेट कराकर दिनांक 02.02.2009 को भेजा गया जो परिवादी को प्राप्त हो चुका है। विपक्षी द्वारा अनुचित व्यापार प्रक्रिया एवं सेवा में कमी नहीं की गयी है। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
परिवादी की ओर से विपक्षी के लिखित कथन के विरूद्ध आपत्ति दाखिल की गयी।
परिवादी की ओर से अपना शपथ पत्र मय संलग्नक 2 तथा 5 संलग्नक अपने परिवाद पत्र के साथ दाखिल किये गये। विपक्षी की ओर से श्री आर0के0 गौड़, संपत्ति प्रबंध अधिकारी, उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद का शपथ पत्र दाखिल किया।
पक्षकार के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
अब देखना यह है कि क्या परिवादी द्वारा हरदोई रोड योजना में जो पंजीकरण दिनांक 28.05.1997 को कराया गया उसके आधार पर विपक्षी द्वारा कोई आवास आवंटित न करके विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है या नहीं तथा क्या परिवादी अपने पंजीकरण के आधार पर भवन का आवंटन कराने का अधिकारी है या नहीं।
परिवादी के इस कथन को कि उसके द्वारा दिनांक 28.05.1997 को एक ड्राफ्ट के माध्यम से रू.500.00 जमा करके हरदोई रोड योजना में पंजीकरण कराया गया था, विपक्षी को स्वीकार है। इसके अतिरिक्त परिवादी ने उपरोक्त धनराशि जमा करने की एक रसीद की फोटोप्रति दाखिल की है जिसमें परिवादी द्वारा हरदोई रोड योजना में पंजीकरण हेतु आवंटन किया जाना दृष्टिगत होता है। परिवादी के कथनानुसार उसे उपरोक्त पंजीकरण के आधार पर कोई भी भवन आवंटित नहीं किया गया। इस संबंध में उसका यह कथन है कि विपक्षी द्वारा भवन के आवंटन और लाटरी के संबंध में कोई सूचना नहीं दी गयी उसे मात्र यह सूचना पत्र दिनांक 04.06.2008 द्वारा दी गयी थी कि उसका आवेदन पत्र सं.8159 पर किसी अन्य व्यक्ति श्री राम लखन का नाम
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अंकित है। उसका यह भी कथन है क पंजीकरण सं.8159 पर कूट रचना करके विपक्षी द्वारा परिवादी के स्थान पर श्री राम लखन का नाम अंकित कर श्री राम लखन को भवन आवंटित कर दिया गया, जबकि पंजीकरण के आधार पर परिवादी श्री राम स्वरूप को भवन आवंटित किया जाना चाहिए था। विपक्षी की ओर से यह कहा गया है कि मात्र पंजीकरण करा लेने से परिवादी को भवन या भूखंड आवंटित नहीं हो जाना है और जब तक भवन या भूखंड आवंटित नहीं होता है तब तक व्यक्ति (उपभोक्ता) की परिभाषा में नहीं आता है। परिवादी हरदोई रोड योजना में पंजीकृत था, किंतु उसको कोई भी भवन आवंटित नहीं किया गया है और उसका यह कथन कि उसके पंजीकरण पर श्री राम लखन का नाम उसका नाम काटकर कूटरचित रूप से अंकित करके श्री राम लखन को भवन आवंटित किया गया इस संबंध में कोई भी साक्ष्य परिवादी की ओर से प्रस्तुत नहीं किया जा सका है। इन परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता है कि परिवादी के पंजीकरण का गलत इस्तेमाल कर परिवादी के बजाय किसी अन्य व्यक्ति को भवन आवंटित कर दिया गया है विशेषकर ऐसी स्थिति में जबकि विपक्षी द्वारा उक्त योजना का क्रियान्वयन न होना कहा गया है। इस प्रकरण में यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि का भुगतान चेक के माध्यम से किया जा चुका है जैसा कि विपक्षी की ओर से श्री आर0के0 गौड़, संपत्ति प्रबंध अधिकारी के शपथ पत्र से स्पष्ट होता है। इस संबंध में स्वयं परिवादी की ओर से भी शपथ पत्र दाखिल किया गया है जिसके साथ संलग्नक 1 के रूप में धन वापसी चेक प्रेषण के संबंध में पत्र की फोटोप्रति दाखिल की गयी है जिससे यह दृष्टिगत होता है कि परिवादी को रू.585.00 का चेक दिनांक 02.02.2009 के पत्र के साथ प्रेषित किया गया है। इस प्रकार साक्ष्य से यह भी स्पष्ट होता है कि परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि मय ब्याज वापस भी की जा चुकी है। पूर्व में विवेचित हो चुका है कि परिवादी द्वारा जो पंजीकरण कराया गया था उस पर उसे कोई भी भवन आवंटित नहीं किया गया था मात्र पंजीकरण के आधार पर किसी भी व्यक्ति को आवंटन का अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता है। परिवादी अपने द्वारा प्रदत्त साक्ष्य से यह सिद्ध करने में नितांत असफल रहा है कि उसे पंजीकरण के आधार पर भवन आवंटित किया ही जाना
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चाहिए था अथवा उसके पंजीकरण का विपक्षी द्वारा गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया है। इसके अतिरिक्त परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि मय ब्याज वापस भी की जा चुकी है। परिणामस्वरूप, विपक्षी के द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा में कोई कमी किया जाना दृष्टिगत नहीं होता है, अतः यह परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
(अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 20 मई, 2015