AMIT filed a consumer case on 16 Feb 2016 against awas vikas in the Kanpur Nagar Consumer Court. The case no is CC/397/2010 and the judgment uploaded on 04 Mar 2017.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
श्रीमती सुधा यादव........................................सदस्या
उपभोक्ता वाद संख्या-397/2010
अमित सिंह पुत्र स्व0 जगदीष सिंह, निवासी कृश्णा नगर भर्थना रोड, जनपद इटावा।
................परिवादी
बनाम
सम्पत्ति प्रबन्ध अधिकारी, सम्पत्ति प्रबन्ध कार्यालय उ0प्र0 आवास एवं विकास परिशद, आफिस काम्प्लेक्स केषवपुरम कल्याणपुर, कानपुर नगर।
...........विपक्षी
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 23.06.2010
निर्णय की तिथिः 28.02.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादी को विपक्षी से जमा धनराषि रू0 5400.00, वर्श 1986 से मय 18 प्रतिषत ब्याज, वापस दिलायी जाये, रू0 20,000.00 क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया जाये तथा रू0 2500.00 परिवाद व्यय दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि विपक्षी परिशद द्वारा आवासीय भवन वितरण के सम्बन्ध में वर्श 1979 में एक विज्ञप्ति जारी की थी। जिसके अनुपालन में परिवादी के पिता स्व0 जगदीष सिंह सेवानिवृत्त सूबेदार पुत्र श्री महादेव सिंह ने माह फरवरी 1979 में मध्यम वर्ग आवासीय भवन आवंटन के लिए कानपुर षहर के लिए रू0 500.00 का एक बैंक ड्राफ्ट प्रेशित किया था। जिसके उपरान्त विपक्षी ने परिवादी के पिता जगदीष सिंह को पंजीकरण नं0-के0एन0पी0/एम/ 563 आवंटित किया था। माह जनवरी 1986 में विपक्षी द्वारा परिवादी के पिता श्री जगदीष सिंह से रू0 4900.00 की मांग की गयी, जिसे परिवादी के पिता ने बैंक ड्राफ्ट सं0-टी0टी0ए0/17073945 दिनांकित 01.01.1986 को प्रेशित किया, जो विपक्षी को प्राप्त हुआ। परिवादी के पिता द्वारा विपक्षी
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को दिनांक 13.06.86 को एक प्रार्थनापत्र प्रेशित किया गया था, जिसमें यह उल्लेख था कि उपरोक्त जमा धनराषि की प्राप्ति रसीद प्राप्त करायें। जिसके आधार पर आवास विकास कार्यालय के लिपिक द्वारा सम्बन्धित स्थान को अवगत कराया गया जो कि रजिस्टर्ड पत्र सं0-539 दिनांक 14.01.86 को प्राप्त करा दिया गया था। परिवादी के पिता द्वारा दिनांक 23.06.86 को एक प्रार्थनापत्र पुनः विपक्षी के कार्यालय में प्रस्तुत किया, जिसमें मांग की गयी कि, पंजीकरण कार्ड सं0-के0एन0पी0/एम0/563/1979 बैंक ड्राफ्ट के साथ नहीं भेजा गया था, जिसे वह जमा करना चाहते हैं तथा नया कार्ड देने की प्रार्थना की। परिवादी के पिता की मांग पर उन्हें नया पंजीकरण कार्ड प्रदान किया गया। परिवादी के पिता के माध्यम से माह अप्रैल 1986 में एक पंजीकृत पत्र के माध्यम से यह जानना चाहा कि परिवादी के पिता को कब तथा कहां व किस वर्श आवासीय भवन मिलने की उम्मीद है। वर्श 1979 से लेकर वर्श 1990 तक भवन आवंटित न होने पर परिवादी के पिता मजबूर होकर जनपद इटावा में मकान बनवाकर निवास करना प्रारम्भ कर दिया। परिवादी के पिता ने अथक प्रयास किया कि विपक्षी के माध्यम से उन्हें आवासीय भवन प्राप्त हो सके। जिसके बावत उनके द्वारा विपक्षी के कोश में रू0 500$4900 कुल रू0 5400.00 जमा किया गया था। भवन न मिलने पर वर्श 1991 में उनके द्वारा विपक्षी को प्रार्थनापत्र प्रेशित किया गया, जिस पर आयुक्त कार्यालय आवास एवं विकास परिशद लखनऊ के समक्ष धनराषि वापस लिये जाने के बावत सभी मूल कागजातों को जमा कर दिया, जिसको कार्यालय लिपिक श्री दिनेष ने प्राप्त कर प्राप्ति स्वीकृति पर हस्ताक्षर किये। किन्तु समय व्यतीत होने के बावजूद रकम वापस नहीं की गयी। परिवादी के पिता द्वारा विपक्षी को धन वापसी के सम्बन्ध में कई पत्र भेजे गये, किन्तु विपक्षी द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया। परिवादी के पिता श्री जगदीष सिंह की मृत्यु दिनांक 13.02.09 को बीमारी के कारण हो गयी। परिवादी के पिता की मृत्यु के उपरान्त परिवादी द्वारा जरिये अधिवक्ता दिनांक 13.04.09 को विपक्षी को नोटिस भेजी गयी। जिसके जवाब में विपक्षी द्वारा पत्रांक संख्या-2104
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दिनांकित 22.04.09 परिवादी के अधिवक्ता को भेजा गया, जिसमें यह उल्लिखित किया गया कि भवन सं0-38 एम0आई0जी0 जगदीष सिंह को आवंटित किया गया, भवन के विरूद्ध वांछित धनराषि जमा न किये जाने के कारण उपरोक्त भवन आवंटन निरस्त कर दिया गया। निरस्तीकरण के पष्चात कटौती योग्य धनराषि रू0 16,636.10 की गयी तथा वापसी योग्य धनराषि षेश नहीं है। परिवादी द्वारा पत्रांक 2969 दिनांकित 28.05.09 जमा पंजीकरण धनराषि वापसी के सम्बन्ध में पुनः परिवादी के अधिवक्ता को पत्र प्रेशित किया गया, जिसमें पूर्व पत्र सं0-2104 दिनांकित 22.04.09 का हवाला दिया गया। किन्तु विपक्षी द्वारा परिवादी की नहीं सुनी गयी। अतः विवष होकर परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र का अन्यान्य बिन्दुओं पर खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवादी का यह कथन स्वीकार्य है कि परिवादी के पिता स्व0 जगदीष सिंह ने वर्श 1979 में रू0 500.00 जमा कर, मध्यम आय वर्ग भवन हेतु आवेदन किया था। उनके आवेदन पर उन्हें पंजीकरण सं0-के.एन.पी./एम.563 में पंजीकृत कर उन्हें लाटरी के माध्यम से मध्यय आय वर्ग हेतु भवन सं0-38 किष्त पद्धति पर आवंटित कर प्रदेषन पत्र सं0-3019/सं0प्र0 दिनांकित 02.05.87 निर्गत किया गया था। आवास विकास परिशद द्वारा पूर्व पंजीकृत आवेदकों से बढ़ी हुई पंजीकरण धनराषि की अंतर धनराषि जमा कराने हेतु लेखा षीर्शक पंजीकरण का अंतर 1985 प्रारम्भ की गयी, जिसके तहत पूर्व पंजीकृत आवेदकों को अंतर धनराषि जमा करनी थी, परन्तु परिवादी के पिता द्वारा कथित पंजीकरण अंतर धनराषि के जमा होने की पुश्टि कार्यालय अभिलेखों से नहीं हो पायी। फिर भी परिवादी के पिता को उनके पूर्व पंजीकरण सं0-के.एन.पी./एम-563 जमा रू0 500.00 के आधार पर भवन सं0-एम.आई.जी. 38 आवंटित कर प्रदेषन पत्र दिनांकित 02.05.87 उनके द्वारा दिये गये पते पर प्रेशित किया गया तथा परिवादी के पिता द्वारा आवंटित भवन के विरूद्ध
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देय प्रदेषन पत्र में सूचित धनराषियां जमा न होने के कारण उनको नेटिस देने के पष्चात उनके आवंटित भवन का कार्यालय निरस्तीकरण आदेष पत्रांक-8724 दिनांकित 26.04.88 के द्वारा उनका आवंटन पंजीकरण नियमानुसार कटौती करते हुए निरस्त कर दिया गया। निरस्तीकरण के पष्चात उनको वापसी हेतु कोई धनराषि षेश नहीं बची। परिवादी के पिता को आवंटित भवन के मूल्य रू0 1,18,834.00 पर उनके आवंटन पर सम्पत्ति अवरूद्ध बने रहने के आधार पर दिनांक 02.05.87 से दिनांक 30.03.88 तक की अवधि का ब्याज रू0 14,636.00 एवं पंजीकरण धनराषि रू0 10000.00 का 20 प्रतिषत अर्थात रू0 2000.00 कुल रू0 16,636.00 कटौती योग्य धनराषि बनी, जिसमें परिवादी की जमा समस्त धनराषि समायोजित करने के बाद वापसी योग्य धनराषि षेश नहीं बची। परिवादी के पिता को आवंटित भवन सं0-एम.आई.जी. 38 परिवादी द्वारा धनराषि जमा न करने के कारण पत्रांक-8724 दिनांकित 26.04.88 के द्वारा निरस्त किया गया। उपरोक्त कारणों से परिवादी को कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 12.08.11 एवं 29.05.13 व 27.08.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्न कागज सं0-1 लगायत् 9 व कागज सं0-3/1 लगायत् 3/6 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में ए0के0 सिंह मण्डलीय प्रबन्धक का षपथपत्र दिनांकित 26.08.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्न कागज सं0-2/1 व 2/7 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
निष्कर्श
6. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं उभयपक्षों द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
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उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि उभयपक्षों की ओर से अपने-अपने कथन के समर्थन में षपथपत्र प्रस्तुत किये गये हैं तथा लिखित बहस दाखिल की गयी है। प्रस्तुत मामले में प्रमुख विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रष्नगत भवन से सम्बन्धित अंतर धनराषि जमा न होने के कारण नोटिस प्राप्त करायी गयी हैं?
उपरोक्त विचारणीय बिन्दु के सम्बन्ध में परिवादी की ओरसे अपने परिवाद पत्र में तथा लिखित बहस में यह कहा गया है कि परिवादी के पिता स्व0 जगदीष सिंह जो कि सेना में कार्यरत थे, ने फरवारी, 1979 में मध्यम आय वर्ग आवासीय भवन के लिए रू0 500.00 का एक बैंक ड्राफ्ट तथा रू0 4900.00 जरिये बैंक ड्राफ्ट जमा किया गया था। परिवादी के पिता जगदीष सिंह के द्वारा विपक्षी को दिनांक 13.06.86 को एक पत्र भेजा गया, जिसमें वपिक्षी से उक्त रसीद की प्राप्ति रसीद देने के लिए कहा गया था। परिवादी के पिता जगदीष सिंह द्वारा दिनांक 23.06.86 को विपक्षी को पत्र प्रेशित करके पंजीकरण कार्ड सं0-के.एन.पी./एम/563/ 1979 की मांग की गयी- जिस पर विपक्षी द्वारा नया पंजीकरण कार्ड परिवादी के पिता को उपलब्ध कराया गया। वर्श 1979 से लेकर 1990 तक विपक्षी द्वारा परिवादी के पिता को भवन आवंटित नहीं किया गया। फलस्वरूप विवष होकर परिवादी के पिता ने इटावा षहर में मकान बनवाया और रहने लगा। परिवादी के पिता जगदीष सिंह ने काफी प्रयास किया कि विपक्षी के माध्यम से आवासीय भवन मिल सके, जिसके बावत रू0 500$4900=5400.00 जमा किया था। भवन न मिलने पर 1991 में प्रार्थनापत्र दिया, जिस पर आयुक्त कार्यालय आवास एवं विकास परिशद लखनऊ में रूपये वापस लेने हेतु सभी मूल कागजात जमा कर दिया, जिसको विपक्षी के कार्यालय लिपिक दिनेष ने प्राप्त कर प्राप्ति पर हस्ताक्षर किये, लेकिन काफी समय बीतने के बाद भी रकम वापस नहीं किया। तमाम पत्राचार परिवादी के पिता जगदीष सिंह के द्वारा किये गये,
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किन्तु विपक्षी के द्वारा केई जवाब नहीं दिया गया। अन्त-तो-गत्वा परिवादी के पिता की मृत्यु दिनांक 13.02.09 को बीमारी के कारण हो गयी। विपक्षी के द्वारा अभिकथित भवन आवंटन की सूचना परिवादी के पिता को मृत्यु तक नहीं उपलब्ध करायी गयी। भवन सं0-38 की आवंटन की सूचना परिवादी को तब हुई जब परिवादी ने अपने पिता की मृत्यु के बाद जरिये अधिवक्ता श्री वीरपाल सिंह एडवोकेट के माध्यम से दिनांक 13.04.09 को विपक्षी को नोटिस प्रेशित किया। परिवादी के पिता को नोटिस पत्रांक-3593/4-6-1987 एवं 4024/5-8-1987 व निरस्तीकरण आदेष सं0-8724/26-4-1988 प्राप्त नहीं करायी गये और न ही इन पत्रों को विपक्षी द्वारा परिवादी के पिता को भेजे जाने की काई भी पोस्ट आफिस की रजिस्ट्री रसीद प्राप्त करायी गयी। ये सारे पत्र मा0 फोरम को गुमराह करने के लिए प्रस्तुत किये गये हैं। बल्कि इन पत्रों को उस समय बनाया तो गया पर परिवादी के पिता को भेजे ही नहीं गये और बिना भेजे भवन रजिस्ट्रेषन पत्रावली में लगा दिये गये। परिवादी के पिता भारतीय सेना में कार्यरत् थे और परिवादी के पिता पत्राचार केयर ऑफ 56 ए.पी.ओ. क ेपते से करते थे। जिसकी जानकारी विपक्षी को थी। क्योंकि विपक्षी ने नोटिस पत्रांक-3539/4-6-1987 168 फील्ड रेजीमेंट केयर ऑफ 56 ए0पी0ओ0 पर भेजना स्वीकार किया। जिसकी भी रजिस्ट्री रसीद विपक्षी के द्वारा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं की गयी। विपक्षी द्वारा परिवादी के इस कथन को स्वीकार किया गया है कि परिवादी द्वारा रू0 500.00 एवं रू0 4900.00 जमा करने पर मध्यम आय वर्ग का भवन आवंटित करने पर उन्हें पंजीकरण सं0-के.एन.पी./एम/563 में पंजीकृत करके उन्हें लाटरी से मध्यम आय वर्ग भवन सं0-38 किष्त पद्धति से आवंटित किया गया था। जिसके प्रदेषन पत्र की सत्यप्रति फेहरिस्त क्रमांक-1 पर दाखिल है। विपक्षी ने आवेदकों से बढ़ी हुई धनराषि में अंतर धनराषि जमा कराने हेतु लेखाषीर्शक पंजीकरण का अंतदर 1985 प्रारम्भ की गयी, जिसके पूर्व पंजीकृत आवेदकों को अंतर धनराषि जमा करनी थी। किन्तु परिवादी के पिता द्वारा कथित पंजीकरण अंतर धनराषि के जमा होने की पुश्टि कार्यालय अभिलेखों से नहीं हो पायी फिर भी परिवादी के पिता को उनके
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पूर्व पंजीकरण संख्या-के.एन.पी./एम/563 पर जमा रू0 500.00 के आधार पर भवन सं0-एम.आई.जी. 38 आवंटित कर प्रदेषन पत्र उनके दिये गये पते पर प्रेशित किया गया, परन्तु उनके द्वारा प्रदेषन पत्र में सूचित देय धनराषि जमा नहीं होने के कारण उनको नोटिस देने के पष्चात उनको आवंटित भवन का कार्यालय निरस्तीकरण आदेष पत्रांक-8724 दिनांक 26.04.88 के द्वारा उनका आवंटन पंजीकरण नियमानुसार कटौती करते हुए निरस्त कर दिया गया, जिसके पष्चात उनको वापसी योग्य कोई धनराषि षेश नहीं बची। विपक्षी द्वारा अपनी लिखित बहस में यह कहा गया है कि परिवादी के पिता के द्वारा पंजीकरण अंतर धनराषि की पुश्टि परिवादी के पिता को भवन आवंटन होने से पूर्व नहीं हो सकी। पुश्टि होने पर अंतर धनराषि परिवादी के पिता को आवंटित भवन के निरस्त होने पर कटौती धनराषि रू0 16,636.00 में समायोजित हो गयी और वापयी योग्य षेश नहीं बची।
प्रस्तुत मामले में अब यह देखना है कि क्या विपक्षी द्वारा परिवादी को अंतर धनराषि जमा करने से सम्बन्धित नोटिस नियमानुसार प्राप्त करायी गयी है। क्योंकि परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा परिवादी के पिता को नोटिस पत्रांक-3593/4-6-1987 एवं 4024/5-8- 1987 व निरस्तीकरण आदेष सं0-8724/26-4-1988 प्राप्त नहीं कराया गया। इस सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से कागज सं0-2/2 पंजीकरण लिफाफे की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है तथा नोटिस सं0-3539 दिनांकित 04.06.87 की सत्यप्रति की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है। लिफाफे की छायाप्रति से परिवादी का वह पता जो कि उपरोक्त नोटिस में अंकित है, सत्यापित नहीं हो पा रहा है। क्योंकि सत्यापित लिफाफे की छायाप्रति अपठनीय है और उसमें पोस्टमैन ने यह रिपोर्ट अंकित की है कि, ’’दरयाप्त करने से यह पता चला है कि प्राप्तकर्ता पुराने पते पर नहीं रहता है।’’ जिससे यह सिद्ध होता है कि उपरोक्त नोटिस परिवादी को प्राप्त नहीं करायी गयी। इसके अतिरिक्त यह भी स्पश्ट करना है कि राजकीय पत्राचार में कोई भी पत्र जिस माध्यम से (सामान्य, स्पीडपोस्ट, रजिस्टर्डपोस्ट, ई-मेल) से भेजा जाता है, तो वह माध्यम पत्र के ऊपर उल्लिखित किया जाता है, किन्तु
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उपरोक्त पत्र मत उक्त माध्यम अंकित नहीं किया गया है। कागज सं0-2/4 पत्र सं0-4024 दिनाकित 05.08.87, कागज सं0-2/5 पत्र सं0- 8729 दिनांक 26.04.88 दोनों पत्रों पर पत्र प्रेशित करने का माध्यम पंजीकरण का उल्लेख किया गया है, किन्तु रजिस्ट्री रसीद नहीं लगायी गयी है। अतः विपक्षी द्वारा परिवादी को उपरोक्त नोटिस/पत्र उपलब्ध कराया जाना सिद्ध नहीं किया जा सका है।
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद, उसे, उसके द्वारा जमा की गयी धनराषि , जमा करने की तिथि से तायूम वसूली तक 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से तथा परिवाद व्यय दिलाये जाने हेतु स्वीकार किये जाने योग्य है। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है- उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःआदेषःःः
7. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी, परिवादी को, परिवादी के पिता द्वारा जमा की गयी धनराषि रू0 5400.00 मय 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से, जमा करने की तिथि 01.01.1986 से तायूम वसूली अदा करें तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय भी अदा करे।
(पुरूशोत्तम सिंह) ( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्य सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर कानपुर नगर।
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