Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

CC/514/13

RAJ KISHORE - Complainant(s)

Versus

AWAS AYUCT - Opp.Party(s)

03 Mar 2017

ORDER

 
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
 
   अध्यासीनः   डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
श्रीमती सुधा यादव........................................सदस्या
 
               
 
उपभोक्ता वाद संख्या-514/2013
राजकिषोर बाजपेई श्री उमाषंकर बाजपेई निवासी-180 संजय नगर, मछरिया कालोनी, कानपुर नगर।
                                  ................परिवादी
बनाम
1. सम्पत्ति प्रबन्ध अधिकारी उत्तर प्रदेष आवास एवं विकास परिशद, योजना संख्या-2 हंसपुरम (हमीरपुर रोड) कानपुर नगर।
2. आवास आयुक्त, उत्तर प्रदेष आवास एवं विकास परिशद, 104 महात्मा गांधी नगर, लखनऊ।
                           ...........विपक्षीगण
परिवाद दाखिला तिथिः 07.10.2013
निर्णय तिथिः 14.06.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.   परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षीगण को आदेषित किया जाये कि वे परिवादी के भवन को किसी प्रकार की क्षति न पहुॅचाये तथा परिवादी के पष्चिम के रास्ते को बन्द न करें, परिवादी को मानसिक क्षति के लिए रू0 2,00,000.00 तथा वाद व्यय हेतु रू0 5500.00 अदा करे, परिवादी को उसकी भवन से सटी भूमि जिसकी चौहद्दी परिवादी के मकान सं0-2सी/387 पष्चिम में रिक्त, बदहू 6 मीटर रोड, उत्तर में 6 मीटर सड़क तथा दक्षिण में मकान नं0-2 सी/388 है, को वर्तमान दर पर परिवादी के हक में आवंटित करने एवं रजिस्ट्री किये जाने का आदेष पारित किया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी को विपक्षीगण से दिनांक 17.12.98 को लाटरी द्वारा हंसपुरम योजना में भवन सं0-2सी-387 कार्नर के रूप में आवंटित हुआ था। आवंटन पत्र के पैरा ’’क’’ में भवन का कार्नर होना भी लिखा है। परिवादी 
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आवंटन की षर्तों के मुताबिक किष्तें मय कार्नर चार्ज के निरन्तर जमा करता चला आ रहा है तथा परिवादी को दिनांक 06.03.99 को विपक्षी द्वारा कब्जा भी प्रदान कर दिया गया था, जिसमें परिवादी अपने परिवार के साथ पिछले 15 वर्शों से निवास करता चला आ रहा है और कार्नर  भवन का उपयोग कर रहा है। परिवादी ने प्रष्नगत भवन के आगे पड़ी भूमि को आवंटित किये जाने हेतु अधिषाशी अभियन्ता को दिनांक 05.06.06 व     06.08.13 को प्रार्थनापत्र भी दिया तथा व्यक्तिगत रूप से विपक्षीगण से मिला, किन्तु विपक्षीगण द्वारा उक्त रिक्त भूमि को आवंटित नहीं किया गया। अधिषाशी अभियन्ता द्वारा पार्शद कोटे से नाली, सड़क व पार्क का निर्माण करवाया जारहा है, जिसमें परिवादी के कार्नर भवन के पष्चिम का रास्ता व कार्नर की सड़क 6 मीटर भी पार्क में षामिल कर पूरा रास्ता अवरूद्ध किया जा रहा है तथा प्रष्नगत भवन कार्नर का नहीं है। यह कहा जा रहा है कि लगभग 50 गज भूमि रिक्त पड़ी है, जो परिवादी के भवन से सटी हुई है तथा परिवादी के लिए ही उपयोगी है। परिवादी के उक्त भवन का कार्नर खत्म करने के लिए परिवादी द्वारा कराये गये भवन निर्माण को तुड़वाना पड़ेगा, जिससे परिवादी को अपूर्णनीय क्षति होगी। विपक्षीगण मानने को तैयार नहीं है। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में उल्लिखित कतिपय तथ्यों का खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवादी को भवन सं0-2सी-387 कार्नर के रूप में मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी द्वारा सेक्टर-2 के आफर किये गये दुर्बल आय वर्ग भवनों की सूचित स्वीकृत की गयी भूल्यांकन सूची में कार्नर का भवन होने की सूचना पर उत्तरदाता विपक्षी द्वारा आवंटित किया गया एवं परिवादी द्वारा प्रदेषनपत्र के अनुसार कब्जा विशयक औपचारिकताओं की पूर्ति करने पर उत्तरदाता विपक्षी द्वारा परिवादी को कब्जा दिये जाने हेतु अधिषाशी अभियन्ता को पत्र दिनांक  06.03.99 प्रेशित किया गया, जिसके उपरांत परिवादी को भवन का भौतिक 
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कब्जा दिया गया। परिवादी को स्थल पर भौतिक कब्जा दिये जाने पर आवास आयुक्त द्वारा स्वीकृत लेआउट के अनुसार कब्जा दिया गया। परिवादी को आवंटित भवन कार्नर का नहीं है। बल्कि परिवादी के आवंटित भवन के मात्र उत्तर सीमा में 6 मीटर  रोड है तथा पष्चिम सीमा में रोड नहीं बल्कि खुली भूमि है। अधिषाशी अभियन्ता के पत्र सं0-502 दिनांकित 07.03.14 के द्वारा भवन सं0-2सी-387 को कार्नर का नहीं बताया गया है। उक्त भूमि लेआउट हेतु ओपेन स्पेस निर्धारित है, जिसका आवंटन किया जाना संभव नहीं है। परिवादी को आवंटित भवन के उत्तर सीमा में 6 मीटर चौड़ी रोड है तथा पष्चिम सीमा में रोड नहीं है बल्कि खुली भूमि ओपेन लेआउट के अनुसार निर्धारित है। परिवादी को आवंटित भवन सं0-387 कार्नर के रूप में मुख्य वित्त लेखाधिकारी द्वारा सेक्टर-2 आफर किये गये दुर्बल आय वर्ग भवनों की सूचित स्वीकृत की गयी भूल्यांकन सूची में कार्नर का भवन होने की सूचना पर विपक्षीगण द्वारा आवंटित किया गया प्रदेषन पत्र त्रुटिपूर्ण निर्गत हो गया है और वर्तमान में अधिषाशी अभियन्ता के उत्तरदाता विपक्षी को प्रेशित कार्यालय पत्र सं0-502 दिनांकित 07.03.14 से परिवादी को सूचित है और तदनुसार परिवादी स्वयं को कार्नर के रूप में आवंटित भवन मूल्य में से आगणित 10 प्रतिषत कार्नर मूल्य को वापस पाने का हकदार है। इस प्रकार परिवादी का 15 वर्शों से कार्नर भवन के रूप में उपयोग करने का कथन गलत है। आवंटित भवन के अन्य किसी सीमा में रोड मानकर कोई निकास का या अन्य निर्माण किया गया है, तो वह अनाधिकृत है तथा उसको तुड़वाकर भवन के निर्माण को साइट प्लान के अनुसार सही करने पर यदि कोई क्षति परिवादी को पहुॅचती है तो उसके लिए परिवादी कोई क्षतिपूर्ति विपक्षी से पाने का हकदार नहीं है। परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
4. विपक्षीगण की ओर से अतिरिक्त जवाब दावा प्रस्तुत करके, यह कहा गया है कि परिवादी को आवंटित भवन का प्रदेषन पत्र त्रुटिवष कार्नर षब्द लिखकर प्रेशित है। कार्नर के लिए परिवादी द्वारा जमा       की गयी धनराषि परिवादी नियमानुसार वापस प्राप्त करने का अधिकारी है। 
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परिशद अधिनियम 1965 की धारा-87 के अनुसार यदि किसी परिशद कर्मचारी द्वारा स्वयं के दायित्वाधीन पदीय कर्तव्यों के निर्वाह करने में कोई लिपिकीय व मानवीय भूल हुई है, तो उ0प्र0 आवास एवं विकास परिशद अधिनियम 1965 की धारा-87 में प्रावधानित है। तद्नुसार परिवादी को आवंटित भूमि में कारित लिपिकीय व मानवीय भूलवष आवंटित भवन का कार्नर नहीं होने के बावजूद कार्नर लिख जाने से परिवादी परिशद नियमों के प्रतिकूल कोई लाभ पाने का अधिकारी नहीं है तथा परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 07.10.13, 19.09.14 एवं 09.03.16 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्न कागज 1 लगायत् 8, व 8/1 8/18 एवं 9 लगाय्त 13 लगायत्  तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6. विपक्षीगण ने अपने कथन के समर्थन में अरूण कुमार टण्डन सम्पत्ति प्रबन्ध अधिकारी का षपथपत्र दिनांकित 05.11.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची कागज सं0-2 के साथ संलग्न कागज 2/1 लगायत् 2/8 दाखिल किया है।
निष्कर्श
7. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-5 व 6 में वर्णित षपथपत्रीय व अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। पक्षकारों की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त साक्ष्यों में से मामले को निर्णीत करने में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही आगे उल्लेख किया जायेगा।
उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से        तथा उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये समस्त षपथपत्रीय साक्ष्यों एवं 
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प्रलेखीय साक्ष्यों के अवलोकनोपरान्त यह विदित होता है कि परिवादी द्वारा स्वयं को भवन सं0-2सी/387 कार्नर का भवन आवंटित बताया गया है और उक्त भवन से सटी हुई भूमि 50 वर्ग गज जिसका विवरण निर्णय के प्रस्तर-1 में दिया गया है-को विपक्षी से अपने हक में आवंटित किये जाने की याचना की गयी है। परिवादी द्वारा अपने कथन के समर्थन में सूची के साथ भवन सं0-2सी/387 का आवंटन पत्र व अन्य प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। आवंटन पत्र में ही प्रष्नगत भवन कार्नर का बताया गया है। परिवादी की ओर से प्रस्तुत साइट प्लान के अनुसार भी प्रष्नगत भवन कार्नर का प्रतीत होता है। विपक्षीगण के द्वारा प्रष्नगत भवन सं0-2सी/387 को कार्नर का भवन आवंटित किया जाना व आवंटन पत्र में तत्संबधी तथ्यों को अंकित किया जाना स्वीकार किया गया है। किन्तु विपक्षीगण के द्वारा परिवादी का उपरोक्त प्रष्नगत भवन कार्नर का होने का लिपकीय त्रुटि बतायी गयी है। विपक्षीगण के द्वारा अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में षपथपत्र के अतिरिक्त अन्य कोई प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि जिन तथ्यों को अन्य प्रलेखीय साक्ष्यों से साबित किया जा सकता हो, उन्हें मात्र षपथपत्रीय साक्ष्य से प्रमाणित नहीं माना जा सकता। परिवादी द्वारा अपने उपरोक्त भवन के साथ सटी हुई 50 वर्ग गज भूमि जिसका विवरण निर्णय के प्रस्तर-1 में दिया गया है, का होना तथा उसे अपने पक्ष में आवंटित कराये जाने के सम्बन्ध में यह कथन किया गया है कि परिवादी के उक्त भवन का कार्नर खत्म करने के लिए परिवादी द्वारा कराये गये भवन निर्माण को तुड़वाना पड़ेगा, जिससे परिवादी को अपूर्णनीय क्षति होगी। प्रष्नगत खुली भूमि पर विगत 15 वर्शों से परिवादी, उपरोक्त भवन के साथ काबिज रहता चला आ रहा है, यह भी कथन परिवादी की ओर से किया गया है। परिवादी द्वारा यह भी कथन किया गया है कि परिवादी ने उक्त रिक्त भूमि को अपने पक्ष में आवंटित करने हेतु अधिषाशी अभियन्ता को दिनांक 05.06.06 तथा 06.08.13 को प्रार्थनापत्र भी दिया तथा व्यक्तिगत रूप से मिला भी, किन्तु विपक्षीगण के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अधिषाशी अभियन्ता द्वारा पार्शद कोटे से नाली, सड़क, व पार्क का  निर्माण करवाया 
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जा रहा है। यदि उक्त निर्माण उक्त खुले स्थान पर हो जाता है, तो परिवादी के कार्नर भवन के पष्चिम का रास्ता व सड़क का रास्ता 6 मीटर रोड भी पार्क में षामिल हो जायेगी और परिवादी का रास्ता अवरूद्ध हो जायेगा। अतः उक्त रिक्त भूमि परिवादी के पक्ष में आवंटित की जाये। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण द्वारा स्वीकार किया गया है कि प्रष्नगत भवन के लिए प्रष्नगत कार्नर चार्जेज विपक्षीगण के द्वारा परिवादी से लिया गया है। किन्तु विपक्षीगण के द्वारा प्रस्तुत किये गये जवाब दावा के अवलेकन से यह भी स्पश्ट होता है कि विपक्षीगण द्वारा अभी तक प्रष्नगत भवन के कार्नर के होने के सम्बन्ध में ली गयी अतिरिक्त धनराषि वापस नहीं की गयी है। मात्र यह कहा गया है कि परिवादी नियमानुसार उक्त धनराषि प्राप्त करने का अधिकारी है। जिससे यह भी सिद्ध होता है कि स्वयं विपक्षीगण के द्वारा सेवा में कमी कारित की गयी है। विपक्षीगण के द्वारा मात्र यह कह देने से कि त्रुटिवष उनके द्वारा प्रष्नगत भवन कार्नर के रूप में आवंटित कर दिया गया है-से विपक्षीगण को उनके उत्तरदायित्व से अवमुक्त नहीं किया जा सकता।
परिवादी की ओर से सूची के साथ षासनादेष सं0-1064/9- आ-1-96 आवास अनुभाग-1 लखनऊ दिनांकित 05.03.96 एवं षासनादेष सं0-858(1)/9-अर-1-98-134 विविध/96 दिनांकित 20.04.98 की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है। उक्त षासनादेषों के अवलोकन से विदित होता है कि प्राधिकरण द्वारा परिवादी को आवंटित भवन से सटी अतिरिक्त भूमि का आवंटन परिवादी के पक्ष में वर्तमान दर में किया जा सकता है। परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में विधि निर्णय मिस्टर नवीन आर0 नाथ एडवोकेट बनाम दिल्ली डेवलपमेंट अथार्टी एवं अन्य ब्प्ज्।ज्प्व्छ अलिखित निर्णीत दिनांकित 17.01.13 में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। जिसके प्रस्तर-10 में मा0 दिल्ली उच्चन्यायालय के द्वारा प्रतिपादित विधिक सिद्धांत तथ्यों की एकरूपता के कारण प्रस्तुत मामले में लागू होता है, जिसका लाभ परिवादी को प्राप्त होता है।
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उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि यद्यपि फोरम को, विकास प्राधिकरण को, किसी भी पक्ष को भूमि आवंटित करने का आदेष पारित करने का कोई अधिकार नहीं है। किन्तु परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त षासनादेष एवं उपरोक्त विधि निर्णय में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत प्रस्तुत मामले में लागू होने के कारण फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किये जाने योग्य है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षीगण, परिवादी से प्रष्नगत भूखण्ड जिसका उल्लेख निर्णय के प्रस्तर-1 में किया गया है-का आवंटन वर्तमान दर में करके, आंकलित धनराषि प्राप्त करके, परिवादी के पक्ष में रजिस्ट्री, पंजीकरण करायें। परिवादी के प्रष्नगत भवन सं0-2सी/387 को किसी प्रकार से क्षति न पहुॅचाये तथा परिवादी को परिवाद व्यय के रूप में रू0 5000.00 अदा करें। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है- उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। परिवादी का यह कथन है कि उसके भवन के पष्चिम का रास्ता बन्द करने से विपक्षीगण को रोका जाये, यह विशय उभयपक्षों की ओर से विस्तृत साक्ष्य प्राप्त करने के पष्चात ही निर्णीत किया जा सकता है, जो कि दीवानी न्यायालय द्वारा ही संभव है। अतः परिवादी की उक्त याचना पर गुण-दोश के आधार पर कोई आदेष फोरम द्वारा पारित किया जाना संभव नहीं है।
ःःःआदेषःःः
8. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षीगण, परिवादी से प्रष्नगत भूखण्ड जिसका उल्लेख निर्णय के प्रस्तर-1 में किया गया है- का आवंटन, वर्तमान दर में करके, आंकलित धनराषि प्राप्त करके,  परिवादी के  पक्ष में रजिस्ट्री,  पंजीकरण
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करायें। परिवादी के प्रष्नगत भवन सं0-2सी/387 को किसी प्रकार से क्षति न पहुॅचाये।
प्रस्तुत मामले की तथ्यों, परिस्थितियों को दृश्टिगत रखते हुए स्पश्ट किया जाता है कि उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
 
   (पुरूशोत्तम सिंह)      ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य       सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।
 
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
 
  (पुरूशोत्तम सिंह)       ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य       सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।  
 

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