राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 2612/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 347/2014 में पारित आदेश दि0 30.07.2016 के विरूद्ध)
- सचिव रेलवे, रेल भवन नई दिल्ली।
- जनरल मैनेजर ईस्ट सेंट्रल रेलवे हाजीपुर बिहार।
.........अपीलार्थीगण
बनाम
अवधेश कुमार चौधरी पुत्र श्री नारायण चौधरी निवासी- एस0एम0क्यू0- 1 नेयर इनक्लेव ए0एफ0एस0 चकेरी कानपुर-208008
............;प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री पी0पी0 श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्याय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 04.10.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 347/2014 अवधेश कुमार चौधरी बनाम सचिव रेलवे व एक अन्य में जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 30.07.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“उपरोक्त कारणों से परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध आंशिक रूप से इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षीगण, परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 4,00,000.00 मय 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली अदा करे तथा रू0 25,000.00 मानसिक कष्ट एवं परिवाद व्यय के रूप में अदा करे।“
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण सचिव रेलवे, रेल भवन नई दिल्ली और जनरल मैनेजर ईस्ट सेंट्रल रेलवे हाजीपुर, बिहार ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय उपस्थित आये हैं।
हमने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम, कानपुर नगर के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह भारतीय वायुसेना में कार्यरत है। उसकी पत्नी अपने पिता तथा बच्चों को लेकर दि0 25.01.2014 को चक्रधरपुर से कानपुर सेंट्रल की यात्रा ट्रेन नं0- 22805 भुवनेश्वर नई दिल्ली सुपर फास्ट एक्सप्रेस से द्वितीय श्रेणी के कोच नं0- एस-7 में पी0एन0आर0 नं0- 6126750264 पर आरक्षित बर्थ नं0- 55 एवं 56 पर कर रही थी जब उपरोक्त ट्रेन गोमो रेलवे स्टेशन, झारखण्ड पहुंची तब उसकी पत्नी को यह ज्ञात हुआ कि उसका लेडीज पर्स जिसमें उसके गहने जो परिवाद पत्र के संलग्नक 02 के क्रम सं0- 01 ता 18 पर अंकित है चोरी चले गये। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसकी पत्नी के पिता द्वारा कई बार कोच के टी0टी0ई0 से कम्प्लेंट बुक में शिकायत दर्ज करने के लिए कहा गया, परन्तु उन्होंने कहा कि उनके पास शिकायत बुक नहीं है तब प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी के पिता द्वारा टी0टी0ई0 से उच्चाधिकारियों से टेलीफोन पर बात की गई और पुलिस बुलाये जाने की प्रार्थना की गई, परन्तु टी0टी0ई0 के द्वारा परिवादी के ससुर की मदद करने से मना कर दिया गया और टी0टी0ई0 कोच से चला गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि कोच में कोई आर0पी0एफ0 का जवान व सुरक्षा नहीं थी उसकी पत्नी घटना से बेहोश हो गई, परन्तु रेलवे का कोई स्टाफ मदद नहीं करने आया। जब ट्रेन कानपुर सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन पर पहुंची तब प्रत्यर्थी/परिवादी के अथक प्रयास से एफ0आई0आर0 अपराध संख्या शून्य पर अंकित की गई और जब परिवादी द्वारा गोमो रेलवे स्टेशन जी0आर0पी0 इंस्पेक्टर को फैक्स से सूचना भेजी गई तब गोमो रेलवे स्टेशन पर एफ0आई0आर0 दर्ज की गई। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने सचिव रेलवे भवन एफ0आर0एफ0 धनबाद, डी0आई0जी0 रांची एवं डी0आर0एम0 धनबाद को विधिक नोटिस भेजा, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई तब उसने परिवाद जिला फोरम कानपुर नगर के समक्ष प्रस्तुत किया है और गहनों के कीमत की 4,90,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के रूप में मांगा है साथ ही उस पर ब्याज और मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति भी मांगा है।
विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से यह सिद्ध नहीं होता है कि परिवादी की पत्नी उसके साले की शादी में प्रयुक्त अभिकथित गहने शादी के 15 दिन बाद अपने साथ लायी और सभी गहनें पर्स में डालकर चल रही थी। लिखित कथन में कहा गया है कि परिवादी द्वारा गहने का वजन व कीमत अंकित नहीं की गई है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने मनगढ़त कहानी बनायी है। परिवादी कोई क्लेम पाने का अधिकारी नहीं है। लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि परिवाद के निस्तारण का क्षेत्राधिकार फोरम को प्राप्त नहीं है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम कानपुर नगर को परिवाद ग्रहण कर सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है और प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है। अत: इस आधार पर उसके द्वारा प्रस्तुत परिवाद ग्राह्य नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरुद्ध है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश आधार युक्त एवं विधि सम्मत है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को अपनी पत्नी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है, अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पर संज्ञान लेकर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है वह उचित है। प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी के जेवर रेल से यात्रा करते समय रेलवे प्रशासन की सेवा में कमी के कारण चोरी गये हैं। अत: क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु भारतीय रेलवे उत्तरदायी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Chief Station Manager South East Central Railway & Ors. Versus Mamta Agrawal के वाद में दिया गया निर्णय जो IV(2017)C.P.J. 125 (NC) में प्रकाशित है, संदर्भित किया है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार अधिनियम के अंतर्गत परिवाद जिला फोरम में निम्न के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है:-
- उपभोक्ता, जिसको कि ऐसा माल विक्रय किया गया है या परिदत्त किया गया है अथवा विक्रय करने या परिदान करने के लिए सहमति दी गई है अथवा उपलब्ध कराने के लिए सहमति प्रदान की गयी है;
- कोई मान्यता-प्राप्त उपभोक्ता संगम, चाहे उपभोक्ता जिसको माल का विक्रय किया गया है या परिदान किया गया है या माल के विक्रय या परिदान करने के लिए सहमति प्रदान की गयी है या सेवा उपलब्ध करायी गयी है या सेवा उपलब्ध कराने हेतु सहमति प्रदान की गयी है, इस संगठन का सदस्य हो अथवा नहीं;
- जहां बहुसंख्यक उपभोक्ताओं का समान हित हो, तो वहां जिला फोरम की अनुमति से सभी ऐसे हितबद्ध उपभोक्ताओं की ओर से एवं उनके लिए एक या एक से अधिक उपभोक्ताओं द्वारा; अथवा
- केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, यथास्थिति, या तो व्यक्तिगत हैसियत में या साधारणतया उपभोक्ताओं के हित के प्रतिनिधि के रूप में।
परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी अपने दूध पीते बच्चे और पिता के साथ चक्रधरपुर से कानपुर सेंट्रल की यात्रा ट्रेन नं0- 22805 भुवनेश्वर नई दिल्ली सुपर फास्ट से कर रही थी तभी गोमो झारखण्ड रेलवे स्टेशन पर उसे पता चला कि उसके जेवरात की चोरी हो गई है। प्रत्यर्थी/परिवादी अपनी पत्नी के साथ यात्रा नहीं कर रहा था और न ही परिवाद पत्र में यह अभिकथित है कि पत्नी और अपने ससुर का टिकट प्रत्यर्थी/परिवादी ने कानपुर सेंट्रल से बुक करवाया था। अत: धारा 2(1)D उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं कहा जा सकता है और न ही धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उसे परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।
परिवाद पत्र के उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी चक्रधरपुर से कानपुर सेंट्रल की यात्रा उपरोक्त ट्रेन से कर रही थी और जब ट्रेन गोमो रेलवे स्टेशन झारखण्ड पहुंची तो उसे अपने जेवरात चोरी जाने की जानकारी हुई और उसी समय उसने टी0टी0ई0 से सहायता चाहा, परन्तु उन्होंने कोई सहायता नहीं की। अत: परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि परिवाद हेतु वाद हेतुक गोमो झारखण्ड में उत्पन्न हुआ है। अत: परिवाद पत्र के कथन एवं सम्पूर्ण साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत हम इस मत के हैं कि धारा 11 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार जिला फोरम कानपुर नगर परिवाद ग्रहण कर परिवाद के निस्तारण हेतु सक्षम फोरम नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पर जिला फोरम कानपुर नगर ने संज्ञान लेकर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है वह अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है। अत: जिला फोरम कानपुर नगर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद विधि के अनुसार सक्षम व्यक्ति द्वारा सक्षम जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने की छूट के साथ निरस्त किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद सक्षम व्यक्ति द्वारा सक्षम जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने की छूट के साथ निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (महेश चन्द)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1