Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/495

Agra Development Authority - Complainant(s)

Versus

Awadh Bihari Bansal - Opp.Party(s)

R K Gupta

21 Jul 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/495
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Agra Development Authority
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Awadh Bihari Bansal
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 21 Jul 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-495/2012

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्वितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्‍या 421/08 में पारित निर्णय दिनांक 21.09.11 के विरूद्ध)

आगरा डेवलपमेन्‍ट अथारिटी जयपुर हाउस, आगरा द्वारा सक्रेटरी।

                                                  .........अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्

अवध बिहारी बंसल, अधिवक्‍ता पुत्र श्री दीनानाथ बंसल निवासी

फ्लैट नं0 307, फ्रेन्‍डस अपार्टमेन्‍ट, चर्च रोड, सिविल लाइन्‍स जिला

आगरा।                                            .........प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री महेश चंद, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : श्री आर0के0 गुप्‍ता, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     : सुचिता सिंह, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 12.09.2017

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      यह अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम द्वितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्‍या 421/08 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दि. 21.09.2011 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है। जिला मंच ने निम्‍न आदेश पारित किया है:-

      '' परिवाद पत्र स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह भवन संख्‍या ए-44, शास्‍त्रीपुरम, फेस-1 आगरा में व्‍याप्‍त समस्‍त निर्माणदोषों को मानकों के अनुसार इस निर्णय के 60 दिवस के भीतरपूर्ण कर भवन का कब्‍जा परिवादी को उपलब्‍ध कराये एवं कब्‍जा उपलब्‍ध कराने के 6 माह पश्‍चात परिवादी से किश्‍तों का भुगतान प्रदेशनपत्र के अनुसार प्राप्‍त करे, कब्‍जा उपलब्‍ध कराने से पूर्व की समस्‍त ब्‍याज व दंड ब्‍याज एतद्द्वारा निरस्‍त की जाती है। इसके अतिरिक्‍त विपक्षी परिवादी को रू. 5000/- क्षतिपूर्ति व रू. 3000/- परिवाद व्‍यय के भी अदा करेगा। अवहेलना पर परिवादी परिवाद व्‍यय व क्षतिपूर्ति की धनराशि पर निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक 9 प्रतिशत की दर से ब्‍याज पाने का अधिकारी होगा।''

संक्षेप में परिवादी के अनुसार तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दि. 04.05.89 को अपीलार्थी द्वारा प्रकाशित विज्ञापन के क्रम में ताजनगरी योजना में एमएमआईजी भवन का

-2-

पंजीकरण दि. 31.05.89 को कराया था, उसकी धनराशि रू. 15000/- दि. 31.05.89 को जमा कराई। अपीलार्थी/विपक्षी ने एक अन्‍य विज्ञप्ति दि. 05.09.90 को प्रकाशित कराई कि ताजनगरी योजना में जिन आवेदकों को भवन आवंटित नहीं हुए हैं वे शास्‍त्रीनगर योजना में अपना भवन आवंटित करा सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत विपक्षी के पत्र दि. 22.01.92 द्वारा परिवादी को भवन आरक्षित कर दिया तथा परिवादी ने आरक्षित धनराशि रू. 15500/- दि. 07.02.92 को विपक्षी के पास जमा कर दिया। विपक्षी/अपीलार्थी ने दि. 11.12.92 को परिवादी को सूचित किया कि उसे शास्‍त्रीनगर योजना में एमएमआईजी संख्‍या 44 आवंटित कर दी गई है। परिवादी ने उक्‍त योजना के अंतर्गत आवंटन के समय मांगी गई धनराशि रू. 15500/- एवं 90 वर्ष का पट्टा करार रू. 7224/- कुल रू. 22724/- दि. 07.01.93 का जमा कर दिया। अपीलार्थी/विपक्षी ने उक्‍त भवन का मूल्‍य रू. 154099.60 पैसे निर्धारित किया गया, परन्‍तु भवन का कब्‍जा नहीं दिया गया। परिवादी का कथन है कि भवन मानकों के अनुरूप नहीं था व निर्माणदोष व्‍याप्‍त थे उनको दूर नहीं किया गया और न ही उसे कब्‍जा दिया गया, अत: उसने किश्‍तों का भुगतान नहीं किया। उसने वर्ष 1996 में संपत्ति अधिकारी से व्‍यक्तिगत संपर्क किया। उसको यह आश्‍वासन दिया गया कि कब्‍जा प्राप्‍त होने के पश्‍चात ही अर्द्धवार्षिक किश्‍तें देय होंगी। परिवादी ने अनेक स्‍मृति पत्र विपक्षी को प्रेषित किया, परन्‍तु कोई भी जवाब विपक्षी ने नहीं दिया न ही भवन में निर्माण दोष को दूर किया।

      जिला मंच के समक्ष विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया और यह अभिकथन किया गया कि परिवादी ने विपक्षी के कार्यालय में उपस्थित होकर न तो भवन के कब्‍जा हेतु की जाने वाली औपचारिकताओं को पूर्ण किया और न ही कब्‍जा प्राप्‍त करने हेतु कोई प्रयास किया। विपक्षी के पत्र दि. 03.06.95 में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख किया गया था कि आवंटित भवन का कब्‍जा आवंटी 15 दिन में प्राप्‍त कर ले। अपीलार्थी/विपक्षी ने दि. 05.06.97 द्वारा परिवादी को भवन के मद में अंतिम कीमत का निर्धारण करते हुए कीमत का अंतर रू. 43464/- की मांग की गई जिसे परिवादी को दि. 30.06.97 तक जमा करानी थी जो परिवादी द्वारा जमा नहीं कराई गई। विपक्षी ने जो पंजीकरण पुस्तिका जारी की थी उसके नियम 38 में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख किया गया है कि इस प्राधिकरण की योजना में उपलब्‍ध संपत्ति जहां है जैसी है के आधार पर विक्रय हेतु उपलब्‍ध होगी और

 

 

-3-

आवंटन तथा कब्‍जे के उपरांत संपत्ति की परिस्थितियां अथवा अन्‍य किसी प्रकार के दोषों के संबंध में किसी शिकायत पर परिवर्तन या सुधार किसी प्रार्थना पत्र पर विपक्षी द्वारा कोई विचार नहीं किया जाएगा, अत: आवंटित भवन में कमियों के संबंध में की गई आपत्ति निराधार है। विपक्षी के पत्र दि. 05.06.97 में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख है कि आवंटित भवन की किश्‍तें दि. 01.01.96 से प्रारंभ कर दी जाएंगी तथा किश्‍तों की अदायगी न करने पर बकाया किश्‍तों की अदायगी पर विलम्‍ब ब्‍याज देय होगा।   

पीठ ने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍ताओं की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों एवं साक्ष्‍यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।

जिला मंच का आदेश दि. 21.09.11 का है और प्रस्‍तुत अपील दि. 13.03.12 को प्रस्‍तुत की गई है। इस प्रकार लगभग 4 महीने से अधिक के विलम्‍ब से अपील प्रस्‍तुत की गई है। अपीलार्थी ने विलम्‍ब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया है जो शपथपत्र से समर्थित है। प्रार्थना पत्र में विलम्‍ब को क्षमा किए जाने हेतु पर्याप्‍त कारण दर्शाए गए हैं जो स्‍वीकार योग्‍य है, अत: विलम्‍ब को क्षमा किया जाता है।

      अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में कहा है कि जिला मंच का निर्णय त्रुटिपूर्ण, अवैधानिक एवं मनमाना है। अपीलार्थी ने अपने पत्र दि. 03.01.95 द्वारा परिवादी से दो पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, स्‍टांप पत्र, लीजरेन्‍ट इत्‍यादि की मांग की गई थी और यह भी निर्देश किया गया था कि वह देरी से भुगतान पर ब्‍याज व अन्‍य औपचारिकताएं दि. 01.07.95 तक पूरा करें और कब्‍जा 15 दिन के अंदर प्राप्‍त कर लें। परिवादी ने 20/- रूपये दि. 09.06.95 को जमा किए तथा फोटोग्राफ व स्‍टांप पेपर दि. 15.06.95 को दिया, परन्‍तु कब्‍जा प्राप्‍त नहीं किया। अपीलार्थी ने अपने पत्र दि. 05.06.97 द्वारा परिवादी को यह सूचित किया कि भवन की अंतिम कीमत रू. 199563/- है और जमा धनराशि के अंतर रू. 15464/- दि. 30.06.97 तक अदा करें। परिवादी को यह भी अवगत करा दिया गया था कि पहली किश्‍त रू. 16036/- की दि. 01.01.96 से प्रारंभ होगी, परन्‍तु परिवादी ने धनराशि जमा नहीं की। अपीलार्थी ने दि. 25.01.03 को परिवादी को स्‍टेटमेन्‍ट आफ एकाउन्‍ट के साथ पत्र भेजा कि रू. 395036/- जमा करें। अपीलार्थी ने दि. 28.05.03 व 01.03.04 को परिवादी को कब्‍जा लेने हेतु पत्र भेजे। दि. 01.03.04 को भेजे गए पत्र में बैलेन्‍स धनराशि

 

 

-4-

रू. 439528/- जमा करने के निर्देश दिए गए थे, परन्‍तु परिवादी ने कोई कार्यवाही नहीं की। अपीलार्थी ने दि. 11.06.04 और 09.11.06 को पुन: पत्र भेजे, परन्‍तु परिवादी ने धनराशि जमा करने से मना कर दिया। अपीलार्थी का यह भी अभिकथन है कि परिवाद कालबाधित है, क्‍योंकि वाद हेतुक दि. 07.07.95 को उत्‍पन्‍न हुआ। अपीलार्थी ने अपने अपील में वही तथ्‍य दोहराएं हैं जो लिखित कथन में अंकित किए गए हैं।    

      प्रत्‍यर्थी ने अपनी बहस के दौरान यह तर्क दिया कि प्रत्‍यर्थी ने अपीलार्थी से बार-बार आवंटित भवन की कमियों को दूर करने का अनुरोध किया, परन्‍तु उन कमियों को ठीक नहीं किया गया न ही उनके पत्र का जवाब दिया गया। प्रत्‍यर्थी द्वारा तर्क के दौरान यह भी कहा गया कि जैसी है जहां है का अर्थ यह नहीं है कि अपीलार्थी कुछ भी प्रत्‍यर्थी को उपलब्‍ध करा दे। अपीलार्थी एक भवन निर्माण एजेन्‍सी है और उसका यह कर्तव्‍य है कि सही स्थिति में आधारभूत सुविधाओं सहित भवन को उपलब्‍ध कराए।

      यह तथ्‍य निर्विवाद है कि परिवादी को आगरा विकास प्राधिकरण ने अपने आवंटन पत्र दि. 11.12.92 के अंतर्गत परिवादी को एक एमएमआईजी भवन संख्‍या 44 आवंटित किया और आवंटन धनराशि तथा 90 वर्ष का पट्टा किराया कुल रू. 22724/- की धनराशि की मांग की, जिसे परिवादी द्वारा दि. 07.01.93 को जमा कर दिया गया। परिवादी को जिस योजना के अंतर्गत भवन आवंटित किया गया था उसकी पंजीकरण पुस्तिका के प्रस्‍तर-38 में यह स्‍पष्‍ट रूप से अंकित किया गया है कि प्राधिकरण की योजना में उपलब्‍ध संपत्ति जैसी है जहां है के आधार पर विक्रय हेतु उपलब्‍ध होगी। आवंटन तथा कब्‍जा के उपरांत संपत्ति की परिस्थितियों अथवा अन्‍य किसी प्रकार के दोषों के संबंध में किसी शिकायत पर अथवा परिवर्तन या सुधार के लिए किसी प्रार्थना पत्र पर प्राधिकरण द्वारा संभवत: कोई विचार नहीं किया जाएगा। इस शर्त 38 में आगे कहा गया है कि संपत्ति की परिस्थितियों का तात्‍पर्य भूमि तथा भवन का प्रकार तथा अवस्‍था, भूमि पर विकास की अवस्‍था, निर्माण का आकार व प्रकार वह इस हेतु ग्रहण की गई निर्दिष्टियां निर्माण कार्य में लगाई गई सामग्री तथा अन्‍य सुविधाएं व वस्‍तुएं जो भवन में उपलब्‍ध हैं संपत्ति की संज्ञा में आती हैं। इसी पंजीकरण के क्रम में परिवादी ने आवंटन के लिए आवेदन किया था और उसे प्रश्‍नगत भवन आवंटित हुआ था, अत: परिवादी व अपीलार्थी इन शर्तों से बंधे हुए हैं। विकास प्राधिकरण की किसी शर्त में

 

 

-5-

परिवर्तन करने का अधिकार उपभोक्‍ता अदालतों को नहीं है। विकास प्राधिकरणों अपनी कुछ सपंत्तियों का परिस्थितिवश निस्‍तारण जैसी है जहां है के आधार पर करते रहते हैं। परिवादी को आवंटन प्राप्‍त हो जाने के बाद भवन की स्थिति के बारे में अपीलार्थी से शिकायत करने का अधिकार प्राप्‍त नहीं था। यदि उसको भवन पसंद नहीं था तो वह अपनी धनराशि नियमानुसार वापस ले सकता था, परन्‍तु वह अपीलार्थी विकास प्राधिकरण को यह मजबूर नहीं कर सकता था कि वह भवन को ठीक करके दे। विकास प्राधिकरणों में इस तरह की संपत्तियों की कीमत सभी स्थितियों को देखकर निर्धारित की जाती है। परिवादी ने आवंटन के बाद विकास प्राधिकरण की शर्तों के अनुरूप भवन का कब्‍जा नहीं लिया और न ही उसके द्वारा निर्धारित किश्‍तों को जमा किया, इस प्रकार स्‍वयं परिवादी ने शर्तों का उल्‍लंघन किया है। अपीलार्थी ने विभिन्‍न तिथियों में परिवादी को धनराशि जमा करने के लिए लिखा है, जैसाकि अपीलार्थी के पत्र दि. 05.06.97, 25.01.03, 28.05.03, 01.03.04, 11.06.04 और 09.11.06 से स्‍पष्‍ट होता है, परन्‍तु परिवादी अपनी जिद पर अड़ा रहा कि चूंकि भवन में मौजूद त्रुटियों को दूर नहीं किया गया, अत: उससे जो धनराशि मांगी जा रही है वह देय नहीं है। पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों से अपीलार्थी की सेवा में कोई त्रुटि दृष्टिगोचर नहीं होती है। जिला मंच ने आवंटन के नियम व शर्तों को नकारके अपना निर्णय दिया है, जो त्रुटिपूर्ण है व निरस्‍त किए जाने योग्‍य है। परिवादी यदि चाहे तो बकाया धनराशि प्राधिकरण में जमा कर भवन का कब्‍जा प्राप्‍त कर सकता है यदि वह बकाया धनराशि नहीं जमा करना चाहता है तो वह अपनी जमा धनराशि 6 प्रतिशत साधारण ब्‍याज सहित वापस प्राप्‍त करने का अधिकारी होगा। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

                                    आदेश

     प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 21.09.11 निरस्‍त किया जाता है। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि यदि परिवादी समस्‍त देय धनराशि पंजीकरण पुस्तिका में उल्लिखित शर्तों के अनसार इस आदेश की तिथि से 2 माह के अंदर जमा कर देता है तो वह धनराशि जमा करने की तिथि से 30 दिनों के अंदर भवन का कब्‍जा '' जहां है जैसा है, के आधार पर '' परिवादी को उपलब्‍ध कराये। यदि परिवादी देय धनराशि उपरोक्‍तानुसार निर्धारित अवधि में जमा नहीं

 

 

-6-

करता है तो वह जमा धनराशि 6 प्रतिशत साधारण ब्‍याज सहित वापिस प्राप्‍त करने का अधिकारी होगा।

      पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

      निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

 

 

        (राज कमल गुप्‍ता)                               (महेश चंद)

         पीठासीन सदस्‍य                                   सदस्‍य

राकेश, आशुलिपिक

      कोर्ट-5 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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