जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 260/2015
विजय प्रकाष सोनी पुत्र श्री बंकटलाल सोनी, जाति-सोनी, निवासी- बाठडियों का चैक, नागौर षहर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। - परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जरिये अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, अजमेर।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
3. सहायक अभियंता (प.व.स.), अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर, जिला-नागौर (राज.)।
- अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री षिवचन्द पारीक, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 04.05.2016
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के बडे पिता सत्यनारायण ने एक विद्युत कनेक्षन ले रखा था। बडे पिता ने षादी नहीं कर रखी थी तथा बिना षादी किये ही वो फौत हो गये। उनकी मृत्यु के बाद उनके विद्युत कनेक्षन का उपयोग परिवादी करता आ रहा है तथा नियमानुसार बिल भी जमा कराता आ रहा है। परिवादी ने अप्रार्थीगण की ओर से मार्च, 2015 तक जारी बिलों का नियमित भुगतान किया है अर्थात् मार्च, 2015 तक परिवादी के खाते में अप्रार्थीगण की कोई राषि बकाया नहीं रही थी। इस बीच मई, 2015 में अप्रार्थीगण ने जो विद्युत बिल जारी किया उसमें 321 यूनिट दर्षाते हुए जारी किया तथा मीटर की स्थिति को 1306 पठन पर बंद बताते हुए जारी किया। इस तरह अधिक यूनिट दर्षाकर बिल जारी करने पर परिवादी ने अप्रार्थीगण के कार्यालय में षिकायत की तो अप्रार्थी संख्या 3 ने उसे अगले बिल में सुधारने का आष्वासन दे दिया।
इसके बाद मई, 2015 में जो बिल जारी किया उसमें भी 387 यूनिट का उपभोग बताते हुए मीटर की स्थिति को बंद बताया। तो फिर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 3 को षिकायत की तो उन्होंने तकनीकी त्रुटि बताते हुए फिर से अगले बिल में सुधार का आष्वासन दे दिया। इसके बाद सितम्बर, 2015 में भी 390 यूनिट का उपभोग बताते हुए बिल जारी कर दिया। इस पर परिवादी फिर से अप्रार्थी संख्या 3 के कार्यालय में गया तथा अप्रार्थी संख्या 3 को एक आवेदन प्रस्तुत करते हुए सही रीडिंग के अनुसार बिल जारी करने एवं पुराने बिलों में सुधार का आग्रह किया। तब अप्रार्थी संख्या 3 ने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से मीटर की रिपोर्ट तलब की। इसके बाद अप्रार्थी संख्या 3 के कर्मचारियों ने 15.09.2015 को मीटर की रिपोर्ट कार्यालय में प्रस्तुत की जिसके अनुसार परिवादी के परिसर में लगा मीटर ओके था तथा 15.09.2015 को मीटर की रीडिंग 1593 आई हुई बताई। इसके बावजूद अप्रार्थी संख्या 3 ने बिलों में कोई सुधार नहीं किया तथा परिवादी को बिल की कुल राषि में से 6,000/- रूपये आंषिक भुगतान के रूप में जमा कराने का आदेष दिया।
इसके बाद नवम्बर, 2015 में अप्रार्थीगण ने उसका विद्युत उपभोग 258 यूनिट बताते हुए 12,605/- रूपये का बिल जारी कर दिया। जबकि अप्रार्थीगण द्वारा जारी विपत्रों व अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा तलब की गई मीटर रिपोर्ट तथा मीटर की जांच से यह प्रमाणित है कि परिवादी के परिसर में लगा मीटर न तो कभी बंद रहा, न खराब रहा। इसके बावजूद अप्रार्थी संख्या 3 के कर्मचारियों ने अपने दस्तावेजों में मिथ्या प्रविश्टियां कर परिवादी को गलत बिल भेजे जाते रहे तथा परिवादी द्वारा बार-बार निवेदन करने पर भी विद्युत बिल/विपत्रों में कोई सुधार नहीं किया गया। अप्रार्थीगण का यह कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है।
अतः परिवादी को माह मई, 2015 से नवम्बर, 2015 जारी विद्युत विपत्र निरस्त किये जावें तथा उनके स्थान पर वास्तविक उपभोग के संषोधित बिल जारी किये जावें। आगे भी ऐसे बिल जारी किये जाते हैं तो उन्हें भी निरस्त कर वास्तविक उपभोग के संषोधित बिल जारी किये जावें। परिवादी को मानसिक क्षति के 30,000/- रूपये एवं परिवाद खर्च के 5,000/- रूपये दिलाये जावें।
2. अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत जवाब परिवाद के सार संकलन के अनुसार परिवादी के कुछ अभिकथनों को अस्वीकार करते हुए माह मई, 2015 से जनवरी, 2016 तक भूलवष औसत आधार पर विद्युत बिल जारी करना स्वीकार किया है तथा कथन किया कि भूलवष बिल जारी होने के कारण ही अप्रार्थीगण ने परिवादी के परिसर में लगे विद्युत मीटर की जांच करवाकर 12,004/- रूपये मय एलपीएस के्रडिट कर बिल में संषोधन कर दिया है। जिसके पष्चात् कोई विवाद षेश नहीं रह गया है। अप्रार्थीगण के उपभोक्ता ज्यादा है, जिसके चलते कई बार भूलवष भी गलती के कारण गलत बिल जारी हो जाते हैं।
जवाब में यह भी कथन किया कि उपभोक्ताओं के विद्युत बिलों एवं षिकायत के निवारण के लिए निगम में समझौता समिति बनी हुई है। परिवादी यदि समझौता समिति में आता तो उसे नियमानुसार राहत दी जा सकती थी। मगर वो समझौता समिति की बजाय सीधा मंच में आया। परिवादी के पक्ष में 12,004/- रूपये क्रेडिट किये जा चुके हैं। अतः परिवाद परिवादी मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया।
5. अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत जवाब एवं बहस के दौरान पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिए तर्क को देखते हुए यह स्वीकृत स्थिति है कि अप्रार्थी विद्युत निगम द्वारा विवादित राषि 12,004/- रूपये जो कि परिवादी को जारी विद्युत बिलों में अंकित की जा रही थी उसे सही करते हुए परिवादी के खाता में क्रेडिट की जा चुकी है तथा इस सम्बन्ध में पक्षकारान में कोई विवाद षेश नहीं रहा है। लेकिन परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी की ओर से दिनांक 09.09.2015 को अप्रार्थी संख्या 3 के वहां लिखित आवेदन प्रस्तुत करने के बावजूद बिल में सुधार नहीं किया गया बल्कि यह परिवाद पेष करने के बाद विवादित राषि कम करते हुए परिवादी के खाता में के्रडिट की है। ऐसी स्थिति में परिवादी को हुई मानसिक परेषानी बाबत् हर्जा दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय भी दिलाया जाये। जबकि अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी द्वारा आवेदन पेष करने के पष्चात् रिपोर्ट लेकर षीघ्र ही बिल में सुधार कर दिया गया था। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी ने मार्च, 2015 से लेकर नवम्बर, 2015 के विद्युत बिल क्रमषः प्रदर्ष 1 से प्रदर्ष 5 पेष करने के साथ ही अप्रार्थी के वहां दिया गया आवेदन प्रदर्ष 6 व टेस्टिंग रिपोर्ट प्रदर्ष 7 भी पेष की है। प्रदर्ष 6 आवेदन दिनांक 09.09.2015 को पेष किया गया है जबकि माह नवम्बर, 2015 के बिल प्रदर्ष 5 में भी विवादित राषि अंकित है। जिससे स्पश्ट है कि नवम्बर, 2015 का बिल प्रदर्ष 5 जारी होने तक विवादित राषि क्रेडिट नहीं की गई थी। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत कार्यालय टिप्पणी प्रदर्ष ए 1 के अनुसार विवादित राषि 12,004/- रूपये कम करने योग्य मानी गई है तथा इस कार्यालय टिप्पणी के अवलोकन से स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करने के पष्चात् ही विवादित राषि कम की गई है। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण के सेवा दोश के कारण परिवादी को परेषान होकर न्यायालय/मंच में परिवाद प्रस्तुत करना पडा। ऐसी स्थिति में परिवादी को हुई मानसिक परेषानी के रूप में 2,000/- एवं परिवाद व्यय के 1,000/- रूपये दिलाना न्यायोचित है।
आदेश
1. परिवादी विजय प्रकाष सोनी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि परिवादी अप्रार्थीगण द्वारा किये गये सेवा दोश के कारण हुई मानसिक परेषानी हेतु बतौर क्षतिपूर्ति 2,000/- रूपये तथा परिवाद व्यय के रूप में 1,000/- रूपये प्राप्त करने का अधिकारी है। अप्रार्थीगण को आदेष दिया जाता है कि उपर्युक्त राषि परिवादी के परिसर में स्थापित विद्युत कनेक्षन खाता संख्या 1603/0078 बाबत् भविश्य में जारी विद्युत बिलों में समायोजित की जावे।
2. आदेष आज दिनांक 04.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या