जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं 201/2015
श्री सुनील कुमार पुत्र श्री मदनलाल पारीक, जाति-पारीक, निवासी-चितावा, तहसील-कुचामन षहर व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, कुचामन सिटी, जिला नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री सुरेन्द्र कुमार ज्याणी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 20.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से एक घरेलू विद्युत कनेक्षन खाता संख्या 2305-0387 ले रखा है। परिवादी, अप्रार्थीगण की ओर से जारी समस्त वैध विद्युत बिलों का समय-समय पर भुगतान करता आ रहा है। परिवादी के घर पर लगा विद्युत मीटर सही एवं चालू हालत में है, जो आज दिन भी सही रूप से कार्य कर रहा है, जिसमें लगभग 815 यूनिट आई हुई है। जिसकी पुश्टि अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा जारी किये गये विद्युत बिलों से होती है। इस बीच अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को फरवरी, 2015 में 2,560/- रूपये, अप्रेल, 2015 में 3,166/- रूपये एवं जून, 2015 में 3,180/- रूपये का गलत बिल जारी कर दिया गया जबकि परिवादी के यहां लगा मीटर सही एवं चालू हालत में था। इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने मीटर रीडिंग के आधार पर बिल जारी नहीं कर गलत रूप से एवरेज के आधार पर बिल जारी कर दिये। जो खारिज होने योग्य है। इसके अलावा अप्रार्थीगण की ओर दिनांक 04.07.2015 को परिवादी को 25,828/- रूपये जमा करवाने का नोटिस भी दिया गया। जिस पर परिवादी अप्रार्थी संख्या 3 के कार्यालय में गया तथा पूछताछ की तो उसे बताया गया कि उसके परिसर की वीसीआर भरी गई है, जिसके अनुसार ही उक्त नोटिस भेजा गया है। अप्रार्थी संख्या 3 ने उसे वीसीआर की प्रति भी दिखाई। इस पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 3 से वीसीआर की फोटो प्रति मांगी जो उसे अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा दी गई। उक्त वीसीआर को देखा तो उसमें सभी कार्यवाहियां आधी अधूरी अंकन की हुई थी। जिससे साफ है कि अप्रार्थीगण ने कार्यालय में बैठकर ही उक्त वीसीआर भरी है कारण कि परिवादी से सम्बन्धित सम्पूर्ण रेकर्ड अप्रार्थीगण के पास रहता है। जिससे वे कभी भी कोई वीसीआर भर सकते हैं। अप्रार्थीगण ने उक्त वीसीआर मौके पर जाकर नहीं भरी कारण कि वीसीआर में मौके का कोई विवरण अंकित नहीं किया। केवल मात्र काले रंग की अन्य केबल का उल्लेख करते हुए वीसीआर भर दी गई जबकि न तो ऐसी कोई केबल जब्त की गई न ही वीसीआर में ऐसा कोई उल्लेख किया गया। इस तरह अप्रार्थीगण ने परिवादी के विरूद्ध झूठी वीसीआर भरी है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी की तारीफ में आता है। अतः अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को गलत तौर पर फरवरी, 2015 में 2,560/- रूपये, अप्रेल, 2015 में 3,166/- रूपये एवं जून, 2015 में 3,180/- रूपये सहित कुल 8,906/- रूपये के भेजे गये बिल एवं बिना सुनवाई का अवसर दिये मनवाने तरीके से अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए गलत रूप से भेजी गई नोटिस राषि 25,828/- रूपये को भी निरस्त किया जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब प्रस्तुत कर बताया गया है कि परिवादी के परिसर की जांच निगम के सहायक अभियंता (सतर्कता) द्वारा दिनांक 25.06.2015 को की गई। इस दौरान पाया गया कि परिवादी मौके पर सिंगल फेस ट्रांसफार्मर से मीटर तक आने वाली केबल के अलावा ट्रांसफार्मर से काले रंग की एक अन्य केबल डायरेक्ट लगाकर बिजली की चोरी करता पाया गया। इस पर अप्रार्थी निगम के सतर्कता अधिकारी ने जांच कर मौके पर नियमानुसार वीसीआर षीट संख्या 10508/25, दिनांक 25.06.2015 तैयार की गई। मौके पर जो साक्ष्य थे उनका विवरण वीसीआर षीट में इन्द्राज किया गया। यह भी बताया गया है कि परिवादी द्वारा मीटर के अलावा ट्रांसफार्मर से डायरेक्ट तार जोडने के कारण ही मीटर रीडिंग पुस्तिका में डी लिखा है। परिवादी के विरूद्ध भरी गई वीसीआर षीट के आधार पर गणना करके कर नोटिस दिनांक 04.07.2015 दिया गया। परिवादी का उक्त कृत्य विद्युत चोरी की श्रेणी में आता है तथा परिवादी ने विद्युत चोरी की जुर्माना राषि से बचने के लिए झूठे तथ्यों के आधार पर यह परिवाद पेष किया है। जो मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही अक्टूबर, 2014 का बिल प्रदर्ष 1, दिसम्बर, 2014 का बिल प्रदर्ष 2, फरवरी, 2015 का बिल प्रदर्ष 3, जून, 2015 का बिल प्रदर्ष 4, नोटिस प्रदर्ष 5 व वीसीआर षीट प्रदर्ष 6 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वास्तव में परिवादी के परिसर की सतर्कता कमेटी द्वारा कोई जांच नहीं की गई बल्कि फर्जी वीसीआर षीट तैयार कर परिवादी से अवैध मांग की जा रही है। यह भी तर्क दिया गया है कि अप्रार्थीगण ने केवल मात्र अपना टारगेट पूरा करने के लिए वीसीआर में इन्द्राज किये हैं जबकि परिवादी का मीटर हमेंषा सही व चालू हालत में रहा है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर गलत रूप से जारी बिल अपास्त किये जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण की ओर से भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही जांच के समय मौके पर लिये गये फोटो प्रदर्ष ए 1 से प्रदर्ष ए 4, नोटिस प्रदर्ष ए 5, वीसीआर षीट प्रदर्ष ए 6 एवं मीटर रीडिंग रिपोर्ट प्रदर्ष ए 7 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में परिवादी परिसर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा किये जाने पर परिवादी द्वारा मौके पर सिंगल फेस ट्रांसफार्मर से मीटर तक आने वाली केबल के अलावा ट्रांसफार्मर से काले रंग की एक अन्य केबल डायरेक्ट लगाकर बिजली की चोरी करता पाया गया। जिस पर वीसीआर रिपोर्ट तैयार की गई। इसी वीसीआर रिपोर्ट के आधार पर गणना कर बकाया राषि की वसूली हेतु दिनांक 04.07.2015 को नोटिस प्रदर्ष ए 5 जारी किया गया। यह भी तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मीटर से अलग डायरेक्ट तार जोडकर विद्युत का उपभोग करने के कारण ही मीटर रीडर की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 7 में डी अंकित किया गया है। यह भी बताया गया है कि परिवादी का कृत्य विद्युत चोरी का होकर दण्डनीय अपराध रहा है। ऐसी स्थिति में परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आने से खारिज होने योग्य है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014
(2.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण के द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालयों द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 5 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी के परिसर में स्थापित विद्युत सम्बन्ध एवं मीटर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा दिनांक 25.06.2015 को की गई थी, जिसके अनुसार परिवादी द्वारा मौके पर सिंगल फेस ट्रांसफार्मर से मीटर तक आने वाली केबल के अलावा ट्रांसफार्मर से काले रंग की एक अन्य केबल डायरेक्ट लगाकर बिजली की चोरी करता पाया गया। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 5 के आधार पर ही गणना कर सिविल दायित्व की राषि जोडते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 04.07.2015 को जारी नोटिस प्रदर्ष ए 5 अनुसार 25,828/- रूपये बकाया राषि की मांग की गई है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत मीटर रीडिंग रिपोर्ट प्रदर्ष ए 7 से भी इस तथ्य की पुश्टि होती है कि परिवादी द्वारा मौके पर ट्रांसफार्मर से डायरेक्ट तार जोडकर विद्युत उपभोग करते हुए विद्युत की चोरी की जा रही थी। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए स्पश्ट है कि मामला वीसीआर षीट एवं विद्युत चोरी से सम्बन्धित रहा है तथा ऐसे मामले में परिवाद जिला उपभोक्ता मंच में पोशणीय न होने से इस सम्बन्ध में गुणावगुण के आधार पर कोई निश्कर्श दिया जाना उचित नहीं होगा। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि
Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, आदेष दिनांकित 01.12.2014 वाला मामला भी वीसीआर षीट से सम्बन्धित था एवं जांच के समय मीटर बंद पाया गया था, ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग द्वारा यही अभिनिर्धारित किया गया कि जहां वीसीआर के आधार पर बकाया की गणना कर धारा 126 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो तथा कार्रवाई धारा 135 से 140 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो वहां उपभोक्ता न्यायालय को परिवाद सुनवाई का अधिकार नहीं बनता है।
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी सतर्कता जांच रिपोर्ट के पष्चात् बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी सुनील कुमार द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
8. आदेश आज दिनांक 20.07.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या