जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद 157/2015
पुसाराम पुत्र श्री बाबूलाल, जाति-हिन्दू तेली, निवासी-तेलीवाडा, नागौर, तहसील व जिला- नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, जरिये अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, प्रधान कार्यालय, विद्युत भवन, पंचषील नगर, अजमेर।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री दिनेष हेडा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 21.06.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से एक विद्युत कनेक्षन ले रखा है, जिसके खाता संख्या 0707-0204 है। परिवादी द्वारा अप्रार्थीगण की ओर से जारी समस्त वैध बिलों का भुगतान निर्धारित समयावधि में किया जाता रहा है। इस बीच अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को माह जून, 2015 में 1,52,813/- रूपये का बिल जारी किया गया, जिसमें काॅलम संख्या 21 में अन्य देय/जमा कोड विद्युत षुल्क के तहत 1,23,276.47 रूपये का उल्लेख किया गया। जबकि परिवादी में ऐसी कोई राषि बकाया नहीं थी। इस पर परिवादी, अप्रार्थी संख्या 3 के कार्यालय में गया तथा बिल संषोधन का निवेदन किया तो उन्होंने बताया कि उसके परिसर में दिनांक 24.09.2011 को सतर्कता जांच की गई है और इसी के तहत मौके पर सतर्कता जांच प्रतिवेदन तैयार किया गया है। जिसके अनुसार उक्त राषि जमा करवानी होगी। इस दौरान उन्होंने बिल में भी उक्त वीसीआर बाबत् पृश्ठांकन कर दिया। जबकि परिवादी को उक्त वीसीआर के आधार पर देय राषि बाबत् आज तक कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही अप्रार्थीगण ने विहित अवधि में ऐसी कोई कार्रवाई की। विधि अनुसार भी दो वर्श के पष्चात् विधिक देय राषि भी अप्रार्थीगण परिवादी से वसूल नहीं कर सकते। अप्रार्थीगण ने चार साल बाद उक्त राषि की मांग की है जो किसी भी प्रकार से विधि अनुसार नहीं है। इस प्रकार उक्त राषि की मांग अवैध होने से राषि निरस्त होने योग्य है। परिवादी के यहां 25 एचपी का स्वीकृत एवं कनेक्टेड लोड है जबकि अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी के यहां 31 या 31.34 एचपी का लोड काम में लेना बताया गया है, जो परिवादी द्वारा उपयोग में नहीं लिया गया है। परिवादी की उपस्थिति में अप्रार्थीगण द्वारा उसके परिसर पर कभी भी लोड की गणना नहीं की गई और मनमाना प्रकार से लोड बताया जा रहा है। परिवादी अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिलों को समय-समय पर भुगतान करता आ रहा है। लेकिन अप्रार्थीगण चार साल पुरानी वीसीआर राषि उसमें निकालकर अवैध वसूल करने पर आमाद है। अप्रार्थीगण की ओर से इस बारे में उसे कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया गया है और अब तो उक्त वसूली की आड में परिवादी का विद्युत कनेक्षन विच्छेद करने की धमकियां दे रहे हैं। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः अप्रार्थीगण की ओर से तथाकथित तैयार की गई वीसीआर दिनांक 24.09.2011 को निरस्त किया जावे एवं उक्त वीसीआर के आधार पर माह जून, 2015 के बिल में जोडी गई राषि 1,23,276/- रूपये एवं षास्ति को निरस्त कर संषोधित बिल जारी करने का आदेष अप्रार्थीगण को जारी किया जावे। साथ ही परिवादी को परिवादी में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी द्वारा अपने परिसर में स्वीकृत विद्युत भार से अधिक विद्युत भार काम में लिया जा रहा था। अप्रार्थीगण निगम के सतर्कता अधिकारी अधिषाशी अभियंता (सतर्कता) द्वारा परिवादी के परिसर में लगे विद्युत कनेक्षन की जांच की गई। इस दौरान परिवादी अपने स्वीकृत विद्युत भार 25 एचपी के स्थान पर 30 एचपी व 1 किलोवाट विद्युत भार का उपयोग व उपभोग करता पाया गया। परिवादी का यह कृत्य विद्युत दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। इस पर सतर्कता अधिकारी द्वारा परिवादी के खिलाफ वीसीआर षीट संख्या 17275/29 भरी गई तथा उसमें मौके पर पाये गये समस्त तथ्यों का भी उल्लेख किया गया। वीसीआर षीट में परिवादी द्वारा काम में लिये जा रहे लोड का भी सम्पूर्ण विवरण अंकित किया गया तथा उक्त वीसीआर षीट के मुताबिक मौके पर उपस्थित व्यक्ति पुसाराम ने हस्ताक्षर भी किये है तथा जांच प्रतिवेदन की एक प्रति भी प्राप्त की है। परिवादी के विद्युत खाते की जांच अप्रार्थीगण निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा की जाकर आॅडिट रिपोर्ट तैयार की गई। जिसमें निगम के आंतरिक अंकेक्षण दल ने परिवादी द्वारा अधिक लोड के उपभोग को आधार मानते हुए वीसीआर षीट के आधार पर माह अक्टूबर 2011 से माह नवम्बर 2014 तक का निगम नियमानुसार चार्ज वसूला गया है। इस अवधि में आॅडिट पार्टी ने जांच कर 1,19,305/- रूपये चार्जेज निकाले हैं। उक्त राषि परिवादी के खाते में जोडने से पूर्व परिवादी को नोटिस संख्या 3973 दिनांक 04.03.2015 दिया गया मगर परिवादी द्वारा उक्त नोटिस पर किसी भी प्रकार की आपति/एतराज नहीं किया गया। इस प्रकार निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा सही व नियमानुसार आॅडिट रिपोर्ट तैयार कर आॅडिट चार्ज निकाला गया है। जिसे अप्रार्थीगण वसूलने के अधिकारी है। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद को मय हर्जा खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही माह अक्टूबर, 2011 से लेकर माह जून, 2015 तक के विद्युत बिल क्रमषः प्रदर्ष 1 से प्रदर्ष 33 एवं वीसीआर षीट की रिपोर्ट प्रदर्ष 34 की फोटो प्रतियां पेष करते हुए तर्क दिया है कि परिवादी द्वारा नियमानुसार विद्युत बिल जमा करवाये जाते रहे हैं लेकिन अप्रार्थीगण ने मनमाने रूप से वीसीआर षीट तैयार कर माह जून, 2015 में कुल 1,52,813/- रूपये का बिल जारी कर दिया जो कि निरस्त होने योग्य है। उनका तर्क रहा है कि विधि अनुसार दो वर्श के पष्चात् विधिक देय राषि भी अप्रार्थीगण विद्युत अधिनियम के आज्ञापक प्रावधानों के तहत परिवादी से वसूल करने के अधिकारी नहीं है क्योंकि जून, 2015 में जारी विवादित बिल के जरिये जिस राषि की मांग की गई है वह मियाद बाहर है। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क रहा है कि इस बिल के जरिये जिस राषि की मांग की गई है वह अक्टूबर, 2011 से गणना कर वसूली योग्य बताई गई है। जबकि विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 56 (2) के प्रावधान अनुसार दो वर्श की अवधि के पष्चात् राषि वसूली योग्य नहीं है। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिल माह जून, 2015 को निरस्त किया जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में परिवादी परिसर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा किये जाने पर परिवादी द्वारा मौके पर स्वीकृत विद्युत भार 25 एचपी से अधिक 30 एचपी व 01 किलोवाट विद्युत भार का उपयोग किया जा रहा था। ऐसी स्थिति में मौके पर पाये गये समस्त तथ्यों को उल्लेख वीसीआर षीट में किया गया है तथा बाद में आंतरिक अंकेक्षण दल ने परिवादी द्वारा अधिक लोड के उपभोग को आधार मानते हुए अक्टूबर, 2011 से नवम्बर, 2014 तक की बकाया राषि वसूली योग्य बताई एवं इसी सम्बन्ध में परिवादी को नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी किया गया है। यह भी तर्क दिया गया है कि आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर बकाया निकाली गई राषि सही एवं नियमानुसार है, जिसे अप्रार्थीगण प्राप्त करने के अधिकारी है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 4 के आधार पर आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 2 अनुसार कुल 1,19,305/- रूपये बकाया होने पर दिनांक 04.03.2015 को नोटिस प्रदर्ष ए 1 परिवादी को जारी किया गया था। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि डिमांड की गई राषि मियाद बाहर हो। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014
(2.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014
(3.) माननीय अपीलेट ट्रिब्यूनल फोर इलेक्ट्रिसिटी द्वारा अपील संख्या 202 व 203/2006 अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम मैसर्स सिसोदिया मार्बल व ग्रेनाइट प्रा. लि. व अन्य में पारित आदेष दिनांक 14.11.2006
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण के द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालय द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 4 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी के कार्यस्थल पर स्थापित विद्युत सम्बन्ध एवं मीटर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा दिनांक 24.09.2011 को की गई थी, जिसके अनुसार मौके पर स्वीकृत विद्युत भार 25 एचपी से अधिक 30 एचपी व 01 किलोवाट विद्युत भार का उपभोग किया जाना पाया गया था। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि इसी वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 4 के आधार पर ही आॅडिट पार्टी द्वारा गणना कर परिवादी के विरूद्ध 1,19,305/- रूपये बकाया राषि निकालते हुए परिवादी को नोटिस प्रदर्ष ए 1 दिनांक 04.03.2015 को दिया गया था। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण द्वारा डिमांड की जा रही राषि मियाद बाहर नहीं हो सकती।
7. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिल जून, 2015 के जरिये चाही गई राषि को मियाद बाहर होना बताया गया है। विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 56 (2) का सावधानीपूर्वक अवलोकन करने के साथ ही अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय माननीय अपीलेट ट्रिब्यूनल फोर इलेक्ट्रिसिटी द्वारा अपील संख्या 202 व 203/2006 में पारित निर्णय दिनांक 14.11.2006 के पैरा संख्या 17 में माननीय न्यायाधिपति अनिलदेवसिंह एवं माननीय न्यायाधिपति असगर अली खान का मत रहा है कि
Thus in our opinion, the liability to pay electricity charges is created on the date electricity is consumed or the date the meter reading is recorded or the date meter is found defective or the date theft of electricity is detected but the charges would become first due for payment only after a bill or demand notice for payment is sent by the licensee to the consumer. The date of the first bill@demand notice for payment, therefore, shall be the date when the amount shall become due and it is from that date the period of limitation of two years as provided in section 56 ¼2½ of the Electricity Act, 2003 shall start running. In the instant case. The meter was tested on 03.03.2003 and it was allegedly found that the meter was recording energy consumption less than the actual by 27.63%. Joint inspection report was signed by the consumer and licensee and thereafter, the defective meter was replaced on 05.03.2003. The revised notice of demand was raised for a sum of Rs. 4,28,034/- on 19.03.2005. Though the liability may have been created on 03.03.2003. when the error in recording of consumption was detected, the amount become payable only on 19.03.2005. the day when the notice of demand was raised. Time period of two years, prescribed by Section 56 ¼2½. for recovery of the amount started running only on 19.03.2005. Thus, the first respondent cannot plead that the period of limitation for recovery of the amount has expired.’
माननीय अपीलेट ट्रिब्यूनल फोर इलेक्ट्रिसिटी द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णय में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण द्वारा जारी नोटिस प्रदर्ष ए 1 दिनांक 04.03.2015 तथा इस सम्बन्ध में जारी बिल माह जून, 2015 के जरिये डिमांड की गई राषि मियाद बाहर नहीं हो सकती।
8. पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि इस मामले में परिवादी के विरूद्ध वी.सी.आर. षीट के आधार पर आॅडिट पार्टी द्वारा गणना की जाकर बकाया राषि निकालते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 04.03.2015 को डिमांड नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी करते हुए ही माह जून, 2015 का बिल प्रदर्ष 33 जारी किया गया है। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर स्पश्ट है कि वीसीआर षीट के आधार पर आॅडिट पार्टी द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई करते हुए अप्रार्थीगण द्वारा बकाया राषि की वसूली हेतु परिवादी को दिनांक 04.03.2015 को एक नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी किया गया है। यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी ने 25 एचपी स्वीकृत भार का एक विद्युत सम्बन्ध एस.आई.पी. श्रेणी का ले रखा है जबकि सतर्कता जांच रिपोर्ट अनुसार मौके पर 25 एचपी के स्वीकृत भार से अधिक 30 एचपी व 01 किलोवाट विद्युत भार का उपभोग किया जा रहा था। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
It is also an admitted fact that the outstanding amount in the disputed electric bill challenged by the complainant has been sought from him, has been computed on the basis of audit report. This Commission in appeal NO. 1496/1995 titled RSEB Vs. Dallu Ram decided on 01.11.1999 has held that an amount can be recovered from the consumer on the basis of audit report and the validity of the audit report can be challenged in a Civil Court, but such a demand cannot be termed as a deficiency in service.
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी सतर्कता जांच रिपोर्ट के पष्चात् आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
आदेश
9. परिणामतः परिवादी पुसाराम द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
10. आदेश आज दिनांक 21.06.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या