Rajasthan

Nagaur

CC/239/2015

Parasram - Complainant(s)

Versus

AVVNL,Ajmer - Opp.Party(s)

Sh RK Soni

15 Jun 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/239/2015
 
1. Parasram
thathero ka mohalla,nagaur
Nagaur
Rajasthan
...........Complainant(s)
Versus
1. AVVNL,Ajmer
hathi bhata
Ajmer
Rajasthan
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh RK Soni, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 239/2015

 

परसराम पुत्र श्री हिम्मतराम, जाति-आचार्य, निवासी- ठठेरों का मौहल्ला, नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                                                                                                              -परिवादी 

बनाम

 

1.            सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।

2.            अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।

3.            अध्यक्ष, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर।

                                               

                                                      -अप्रार्थीगण

 

समक्षः

1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री रामकिषोर सोनी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                      आ  दे  ष                        दिनांक 15.06.2016

 

 

1.            यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी का एक घरेलू विद्युत कनेक्षन खाता संख्या 2421-0112 है। परिवादी ने समय-समय पर अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिलों को यथा समय भुगतान किया है। परिवादी की पत्नी पिछले दस सालों से लकवे की बीमारी से ग्रसित है, जिसके चलते परिवादी उसके इलाज के लिए आए दिन नागौर से बाहर ही रहता है तथा इसी वजह ने परिवादी ने विद्युत कनेक्षन की आवष्यकता नहीं होने से काफी साल पहले ही अपना कनेक्षन विच्छेद करवा लिया था। अभी हाल ही में परिवादी अपने नागौर स्थित मकान में आकर रहने लगा। इसकी जानकारी अप्रार्थीगण को होने पर अप्रार्थी संख्या 1, दिनांक 15.10.2015 को षाम करीब 7 बजे प्रार्थी के घर आया और उसकी पत्नी से कनेक्षन पुनः चालू नहीं कराने का कारण पूछा तो उसने अस्वस्थता का हवाला दिया तथा बताया कि वे लोग अक्सर उसके इलाज के लिए बाहर ही रहते हैं तथा बरसों बाद इस घर में आये हैं, जिसके चलते उनको विद्युत की जरूरत नहीं होने के कारण कनेक्षन कटवा दिया। इस पर अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने कर्मचारियों को आदेष दिया कि परिवादी के घर पर लगा मीटर व केबल उतार लो। इस पर कर्मचारियों ने उसका मीटर व केबल उतार कर ले गये। जब परिवादी घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने उसे यह सब बताया तो प्रार्थी दिनांक 16.10.2015 को अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय में गया तथा उनसे कनेक्षन चालू कराने के बारे में पूछा तो उन्होंने परिवादी में 14,623/- रूपये बकाया बताये तथा कहा कि यदि वह यह राषि जमा करवाये तो उसे नियमानुसार छूट देकर 13,060/- रूपये ही जमा कराने होंगे। इस पर परिवादी ने यह राषि जमा करवा दी। इस दौरान अप्रार्थीगण ने परिवादी को 16.10.2015 को दोपहर तक कनेक्षन चालू करने का आष्वासन दिया लेकिन कनेक्षन चालू नहीं किया। तब परिवादी ने कनेक्षन चालू कराने का निवेदन किया तो अप्रार्थी संख्या 1 ने कहा कि हमने तो तुम्हारी षीट भर दी है। पहले षीट की राषि जमा कराओ फिर कनेक्षन चालू करंेगे। तो परिवादी ने अप्रार्थीगण से निवेदन किया कि उसने ऐसा कोई काम ही नहीं किया जिससे उसकी षीट भरी गई हो फिर भी अप्रार्थीगण नहीं माने। इस तरह परिवादी से राषि वसूलने के बावजूद अप्रार्थीगण ने उसका विद्युत कनेक्षन चालू नहीं किया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः परिवादी से वसूल की गई राषि के बदले परिवादी का विद्युत कनेक्षन चालू करवाया जाये। इसके अलावा परिवादी को परिवाद में अंकित अन्य अनुतोश दिलाये जावे।

 

2.            अप्रार्थी पक्ष की ओर से जवाब प्रस्तुत कर बताया गया है कि परिवादी का विद्युत कनेक्षन वर्श 2006 मंे बकाया राषि के आधार पर विच्छेद किया गया था तथा परिवादी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है। यह बताया गया है कि परिवादी के परिसर की जांच अप्रार्थी विभाग के अधिकारियों द्वारा दिनांक 15.10.2015 को किये जाने पर पाया कि परिवादी अवैध रूप से विद्युत का उपभोग कर रहा था जबकि परिवादी का विद्युत कनेक्षन वर्श 2006 में ही विच्छेद कर दिया गया था। दिनांक 15.10.2015 को वी.सी.आर. षीट भरी गई जिसके अनुसार परिवादी का कृत्य भारतीय विद्युत अधिनियम की धारा 135 के तहत विद्युत चोरी की श्रेणी में आने से दण्डनीय अपराध है। यह भी बताया गया है कि परिवादी द्वारा विद्युत चोरी किये जाने से वी.सी.आर. षीट भरी जाकर नियमानुसार एसेसमेंट कर बकाया राषि जमा करवाने हेतु दिनांक 23.10.2015 को परिवादी को नोटिस दिया गया है। यह भी बताया गया है कि परिवादी के परिसर से दिनांक 15.10.2015 को अवैध रूप से विद्युत उपभोग में लिये जाने के कारण सर्विस लाईन उतारकर ले जाने के अगले दिन ही परिवादी विद्युत सम्बन्ध पुनः चालू करवाने हेतु आवेदन पेष किया, जिससे भी स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा विद्युत की चोरी की जा रही थी। यह बताया गया है कि परिवादी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।

 

3.            दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।

 

4.            बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही बिल प्रदर्ष 1 एवं परिवादी द्वारा विद्युत सम्बन्ध पुनः जुडवाने हेतु अप्रार्थी पक्ष को दिया गया आवेदन दिनांकित 16.10.2015 प्रदर्ष 2 की फोटो प्रतियां पेष की गई हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी ने दिनांक 16.10.2015 को ही विद्युत सम्बन्ध पुनः जुडवाने हेतु आवेदन प्रस्तुत करने के साथ ही बकाया राषि 13,060/- रूपये जमा करवा दिये थे लेकिन उसके बावजूद विद्युत सम्बन्ध चालू नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार किया जावे।

 

5.            उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अप्रार्थी पक्ष की ओर से प्रस्तुत प्रलेख नोटिस प्रदर्ष ए 1, वी.सी.आर. षीट प्रदर्ष ए 2 व कार्यालय टिप्पणी प्रदर्ष ए 3 की ओर मंच/न्यायालय का ध्यान आकर्शित कर तर्क दिया है कि दिनांक 15.10.2015 को मौके की जांच करने पर उपभोक्ता विद्युत चोरी करते हुए पाया गया जबकि कार्यालय रिपोर्ट अनुसार परिवादी का कनेक्षन वर्श 2006 से कटा हुआ था। वी.सी.आर. षीट के आधार पर कार्यालय टिप्पणी प्रदर्ष ए 3 अनुसार राषि की गणना कर परिवादी को दिनांक 23.10.2015 को नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी किया गया है। उनका तर्क रहा है कि परिवादी का कृत्य विद्युत चोरी का होकर दण्डनीय अपराध रहा है एवं ऐसे मामले उपभोक्ता न्यायालय के श्रवणाधिकार में नहीं होने के कारण  खारिज किया जावे। यह भी तर्क दिया गया है कि परिवादी द्वारा दिनांक 16.10.2015 को विद्युत सम्बन्ध पुनः चालू करवाने बाबत् आवेदन अवष्य पेष किया है लेकिन इस सम्बन्ध में आवष्यक षुल्क जमा नहीं करवाया गया तथा न ही अन्य औपचारिकताएं पूरी की गई। यह भी बताया गया है कि वी.सी.आर. षीट अनुसार परिवादी का कृत्य विद्युत चोरी का रहा है, ऐसी स्थिति में परिवादी का मामला उपभोक्ता न्यायालय में चलने योग्य नहीं है। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-

 

(1.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद

(2.) माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/13 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड आदेष दिनांक 01.12.2014

(3.) माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा अपील संख्या 674/2010 एसिसटेंड इंजीनियर, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम कैलाषचन्द्र आदेष दिनांक 13.03.2014

 

6.            पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर अप्रार्थी पक्ष की ओर से प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णयों में माननीय न्यायालयों द्वारा अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री अनुसार अप्रार्थी पक्ष का कथन रहा है कि परिवादी का विद्युत सम्बन्ध बकाया राषि जमा नहीं करवाने के कारण वर्श 2006 से ही विच्छेद किया हुआ था। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रलेख सतर्कता जांच प्रतिवेदन प्रदर्ष ए 2 का अवलोकन पर स्पश्ट है कि दिनांक 15.10.2015 को चैकिंग पार्टी ने परिवादी के परिसर पर निरीक्षण किया तो परिवादी अपने परिसर पर बिजली का उपभोग करते हुए पाया गया जबकि कार्यालय रिपोर्ट अनुसार परिवादी का विद्युत कनेक्षन वर्श 2006 से कटा हुआ था। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से यह भी स्पश्ट है कि दिनांक 15.10.2015 की वी.सी.आर. षीट के आधार पर ही बकाया राषि की गणना करते हुए कार्यालय टिप्पणी प्रदर्ष ए 3 निगम के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत की गई एवं इसी आधार पर परिवादी कोे नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी कर 39,981/- रूपये की मांग की गई है।    माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में अभिनिर्धारित किया है कि Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003.

 

7.            माननीय राज्य आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा निर्णित अपील संख्या 674/2010 एसिसटेंड इंजीनियर, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम कैलाषचन्द्र आदेष दिनांक 13.03.2014 मामले में परिवादी ने अपनी फ्लोर मील पर 5 एच.पी. का विद्युत सम्बन्ध ले रखा था, जहां विजिलेंस पार्टी द्वारा दिनांक 29.05.2009 को निरीक्षण करने पर पाया कि परिवादी मौके पर 6.21 एच.पी. लोड का उपभोग कर रहा था जबकि मीटर धीरे चल रहा था, ऐसी स्थिति में वी.सी.आर. षीट के आधार पर गणना कर डिमांड नोटिस जारी किया गया था। यह मामला माननीय राज्य आयोग के समक्ष आने पर यही अभिनिर्धारित किया गया कि जहां उपभोक्ता अनाधिकृत रूप से विद्युत उपभोग करते पाया जाता है तथा वी.सी.आर. षीट के आधार पर गणना कर डिमांड नोटिस जारी कर वसूली की कार्रवाई प्रारम्भ की जाती है, वहां ऐसे मामले की सुनवाई का अधिकार उपभोक्ता न्यायालय को नहीं रहता है।                             

 

         इसी प्रकार  अपील संख्या 934/13 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड आदेष दिनांक 01.12.2014 वाला मामला भी विजिलेंस पार्टी द्वारा निरीक्षण से सम्बन्धित है तथा निरीक्षण के समय मीटर बंद पाया गया था एवं उपभोक्ता के परिसर में व्यावसायिक विद्युत सम्बन्ध रहा था, ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग का यही मत रहा कि उपभोक्ता न्यायालय को परिवाद की सुनवाई का अधिकार नहीं है।

 

8.            उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णयों में माननीय न्यायालयों द्वारा अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में हस्तगत मामले की पत्रावली का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि इस मामले में परिवादी के परिसर पर लगा विद्युत सम्बन्ध वर्श 2006 से ही बकाया राषि जमा नहीं कराने के कारण कटा हुआ था, जहां विजिलेंस कमेटी ने दिनांक 15.10.2015 को मौके का निरीक्षण किया तो परिवादी अनाधिकृत रूप से विद्युत उपभोग करता पाया गया जो कि भारतीय विद्युत अधिनियम की धारा 135 के प्रावधान अनुसार विद्युत चोरी की श्रेणी में आता है। यह भी स्पश्ट है कि वी.सी.आर. षीट के आधार पर ही गणना कर बकाया राषि की वसूली हेतु परिवादी को नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी किया गया। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता न्यायालय के श्रवणाधिकार में नहीं आता है तथा परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। जहां तक परिवादी के परिसर में पुनः विद्युत सम्बन्ध चालू करने का प्रष्न है तो इस सम्बन्ध में अप्रार्थी पक्ष द्वारा स्पश्ट किया गया है कि पुनः विद्युत सम्बन्ध चालू करवाने बाबत् आवष्यक षुल्क परिवादी द्वारा जमा नहीं करवाया गया है एवं इस सम्बन्ध में आवष्यक औपचारिकताएं भी पूर्ण नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में यही निर्देष दिया जा सकता है कि यदि परिवादी अपने परिसर पर पुनः विद्युत सम्बन्ध जुडवाना चाहता है तो परिवादी को चाहिए कि आवष्यक औपचारिकताएं पूर्ण कर इस सम्बन्ध में आवष्यक षुल्क जमा करवाने के साथ ही बकाया राषि(यदि कोई हो तो) राषि जमा करवाये तो अप्रार्थीगण नियमानुसार परिवादी का विद्युत सम्बन्ध पुनः चालू करेंगे।

 

 

आदेश

 

9.            परिणामतः परिवादी परसराम द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा। पक्षकारान खर्चा अपना-अपना वहन करें।

 

10.          आदेश आज दिनांक 15.06.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।          ।ईष्वर जयपाल।        ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।

     सदस्य                     अध्यक्ष                    सदस्या

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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