जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 166/2015
कैलाष तोलावत पुत्र श्री चंचलमल तोलावत, जाति-जैन, प्रो. गणपत आईस फैक्ट्री, माही दरवाजा, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, जरिये प्रबन्धक निदेषक, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर (राज.)।
2. सहायक अभियंता (ओ. एण्ड एम.), अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री सांवरराम चैधरी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 08.06.2016
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अपने प्रतिश्ठान गणपत आईस फैक्ट्री पर अप्रार्थीगण से एक विद्युत कनेक्षन 25 एच.पी. का श्रेणी एस.आई.पी. का (स्वीकृत भार एक किलोवाट, श्रेणी एन.डी.एस.) ले रखा है। जिसके खाता संख्या 0701/0050 है। उक्त कनेक्षन के तहत ही अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को जून, 2015 का विद्युत बिल 2,81,956/- रूपये बकाया निकालते हुए जारी किया गया, इतनी बडी राषि का बिल आने पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से सम्पर्क किया तो उसे बताया गया कि उसके बकाया राषि आॅडिट पार्टी द्वारा आॅडिट की निकाली गई है। इस पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से आॅडिट पार्टी की रिपोर्ट मांगी तो अप्रार्थी संख्या 2 ने उसे आॅडिट पार्टी की रिपोर्ट दी, जिसके अनुसार आॅडिट पार्टी द्वारा उसमें माह 3/2011 से माह 4/2011 व माह 4/2012 से माह 5/2012 की अवधि में उसके मीटर को बंद व खराब बताते हुए उक्त राषि चार्ज की गई है। इस पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 को बताया कि न तो उसका मीटर बन्द रहा है और न ही खराब रहा है तथा न ही ऐसी कोई रिपोर्ट पत्रावली पर आई है। ऐसे में आॅडिट पार्टी ने उसमें रिकवरी कैसे निकाल दी? इस दौरान अप्रार्थी संख्या 2 ने कहा कि यदि उनके द्वारा जून, 2015 के बिल की अदायगी नहीं की गई तो उसका विद्युत कनेक्षन काट दिया जाएगा। इस पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से नियमानुसार बनने वाली राषि जमा करवाने का कहा तो अप्रार्थी संख्या 2 ने बिल पर 45,000/- रूपये का अंकन करते हुए उससे यह राषि जमा करवा ली तथा षेश राषि के लिए उसे आष्वस्त कर दिया। लेकिन तब से आज तक परिवादी अप्रार्थीगण के यहां चक्कर लगा रहा है। जहां तक आॅडिट पार्टी द्वारा परिवादी के मीटर को बंद/खराब बताया गया है तो ऐसा कुछ नहीं था। वास्तव में इस अवधि में परिवादी का मीटर सही व चालू हालत में था, जहां तक मीटर चेंज करने का प्रष्न है तो यह केवल अप्रार्थीगण के अधिकार का विशय है। इस तरह अप्रार्थीगण की आॅडिट पार्टी की ओर से परिवादी में गलत बकाया राषि निकाली गई है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को जून, 2015 में जारी बिल में बकाया निकाली गई राषि 2,81,956/- अवैध घोशित कर निरस्त की जावे। इसके अलावा परिवाद में अंकितानुसार अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी के यहां लगा विद्युत कनेक्षन व्यावसायिक श्रेणी (एस.आई.पी.) का है, जिसके तहत परिवादी माल बनाकर अन्य व्यक्तियों को एवं बाजार में रिसेल कर सप्लाई करता है। परिवादी का उक्त व्यवसाय उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। हस्तगत प्रकरण आॅडिट रिपोर्ट पर आधारित होने से उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है। अप्रार्थीगण ने जवाब में यह भी कहा कि परिवादी के विद्युत खाते की जांच निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा की गई। जिसके अनुसार परिवादी के यहां लगा विद्युत मीटर मार्च 2011 से अप्रेल 2011 तक बंद रहा। इसके अलावा अक्टूबर 2011 तथा अप्रेल 2012 से मई 2012 तक में भी मीटर बंद रहा। इसके बाद मीटर परिवर्तन आदेष संख्या 25943/03 दिनांक 26.09.2012 के द्वारा परिवादी के परिसर का मीटर परिवर्तित कर नया मीटर मीटर लगाया गया। जिसके अनुसार अंतिम रीडिंग का चार्ज भी परिवादी से नहीं लिया गया। इस बाद जून 2013 में तथा अप्रेल 2014 से जून 2014 तक भी परिवादी के यहां लगा मीटर बंद रहा। इस पर आॅडिट पार्टी ने निगम नियमानुसार राषि चार्ज कर आॅडिट रिपोर्ट तैयार की। जो कि परिवादी के खाते की जांच कर निगम नियमानुसार सही तैयार की गई तथा निगम नियमानुसार ही आॅडिट पार्टी ने राषि चार्ज की। उक्त आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर ही परिवादी के खाते में 2,81,956/- रूपये की राषि बकाया निकाली गई है। आॅडिट रिपोर्ट की यह राषि परिवादी के खाते में नोटिस जारी कर जोडी गई है। जिसे अप्रार्थीगण प्राप्त करने के अधिकारी है। अप्रार्थीगण निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा केवल मात्र पूर्व में कम लिये गये औसत यूनिट को निगम नियमानुसार लिये जाने वाले औसत यूनिट में से कम कम करके षेश यूनिटों का चार्ज निकाला गया है। इसमें अप्रार्थीगण द्वासरा किसी प्रकार का ब्याज या अतिरिक्त चार्ज नहीं जोडा गया है। जिससे परिवादी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ है।
इस प्रकार यह प्रकरण उपभोक्ता विवाद की परिधि में नहीं आता है। अतः इसे मय हर्जा-खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण के मीटर रीडर विद्युत उपभोग की गणना के लिए मौके पर नहीं आते हैं बल्कि मनमाने ढंग से विद्युत उपभोग की गणना कर देते हैं तथा बाद में विभागीय आॅडिट द्वारा गणना कर पिछली बकाया राषि की वसूली हेतु सुनवाई का मौका दिये बिना एवं नोटिस दिये बिना ही बकाया राषि बिल में जोडकर वसूली की जा रही है जो अप्रार्थीगण का सेवा दोश है। यह भी तर्क दिया गया है कि परिवादी का मीटर न तो कभी खराब रहा है एवं न ही बंद रहा है। इसी प्रकार मीटर रीडर द्वारा जिस अवधि में परिसर बंद बताया गया है उसे समय आईस फैक्ट्री का सीजन न होने से फैक्ट्री बंद रहती है लेकिन आॅडिट पार्टी ने गलत रूप से गणना कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया है, ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर जून, 2015 के बिल को निरस्त किया जावे। उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है तथा मीटर बाईंडर रिपोर्ट अनुसार खाता धारक गणपत आईस फैक्ट्री का विद्युत मीटर बंद होने की स्थिति में जो औसत विद्युत बिल जारी किये गये थे उस अवधि हेतु आॅडिट पार्टी द्वारा औसत यूनिट बाबत् नियमानुसार गणना कर नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद उपभोक्ता न्यायालय में पोशणीय न होने के कारण मय खर्चा खारिज किया जावे।
5. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के साथ परिवादी आईस फैक्ट्री का रजिस्टेªषन प्रदर्ष 1 एवं विवादित बिल प्रदर्ष 2 पेष किये हैं। अप्रार्थी पक्ष की ओर से अपने जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र सहित आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, मीटर परिवर्तन आदेष प्रदर्ष ए 2 से ए 6, मीटर बाईंडर रिपोर्ट प्रदर्ष ए 7 तथा नोटिस प्रदर्ष ए 8 पेष किये गये हैंै। पक्षकारान के द्वारा प्रस्तुत समस्त दस्तावेजात के अवलोकन पर यह स्वीकृत स्थिति है कि विद्युत सम्बन्ध खाता संख्या 0701/0050 गणपत आईस फैक्ट्री के नाम से रहा है। इस मामले में परिवादी अपना परिवाद मुख्यतः इस आधार पर लेकर आया है कि अप्रार्थीगण ने परिवादी को कोई नोटिस और सुनवाई का मौका दिये बिना नैसर्गिक न्याय एवं विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के विपरित बकाया राषि बिल में जोडकर वसूली हेतु जो बिल जारी किये हैं वे अप्रार्थीगण का सेवा दोश है। उक्त के विपरित अप्रार्थीगण ने स्पश्ट किया है कि मीटर बाईंडर की रिपोर्ट अनुसार मीटर खराब/बंद होने के कारण बार-बार मीटर भी बदले गये तथा आॅडिट पार्टी द्वारा विभागीय नियमानुसार औसत विद्युत उपभोग की गणना कर परिवादी के विद्युत खाता में बकाया राषि 2,81,956/- रूपये बताई, तब दिनांक 09.03.2015 को बकाया राषि की वसूली हेतु परिवादी को नोटिस प्रदर्ष ए 8 जारी किया गया जो नियमानुसार सही है।
6. पत्रावली पर उपलब्ध नोटिस प्रदर्ष ए 8 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण की ओर से दिनांक 09.03.2015 को खाताधारक गणपत आईस फैक्ट्री के नाम से एक नोटिस प्रदर्ष ए 8 प्रेशित किया गया है तथा इस नोटिस में बताया गया है कि आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा मार्च 2011 से अप्रेल 2011 एवं अप्रेल 2011 से सितम्बर 2011 तथा मार्च 2012 से मई 2012 की अवधि बाबत् गणना कर 2,81,956/- रूपये वसूली योग्य राषि बताई गई है, अतः यदि वसूली में किसी प्रकार की आपति हो तो पन्द्रह दिन के भीतर एतराज पेष करें। यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी की ओर से इस नोटिस का कोई जवाब या आपति पेष नहीं की गई है बल्कि दिनांक 22.07.2015 को यह परिवाद पेष किया गया। पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि मीटर बाईंडर की रिपोर्ट अनुसार परिवादी का मीटर लम्बे समय तक बंद या खराब रहा है एवं इस अवधि बाबत् औसत यूनिट बताते हुए बिल जारी हुए हैं तथा बाद में आॅडिट पार्टी ने विभागीय नियमानुसार औसत उपभोग की गणना कर दिसम्बर 2014 को रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 जारी करते हुए परिवादी के खाते में 2,81,956/- रूपये बकाया राषि निकाली है, जिसकी वसूली हेतु खाताधारक को नोटिस प्रदर्ष ए 8 जारी किया गया है। पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा नियमानुसार बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि
Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003.
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
It is also an admitted fact that the outstanding amount in the disputed electric bill challenged by the complainant has been sought from him, has been computed on the basis of audit report. This Commission in appeal NO. 1496/1995 titled RSEB Vs. Dallu Ram decided on 01.11.1999 has held that an amount can be recovered from the consumer on the basis of audit report and the validity of the audit report can be challenged in a Civil Court, but such a demand cannot be termed as a deficiency in service.
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी मीटर बाईंडर की रिपोर्ट के पष्चात् आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया। पत्रावली के अवलोकन पर यह भी स्पश्ट है कि परिवादी का विद्युत कनेक्षन एस.आई.पी. श्रेणी का होकर 25 एच.पी. लोड का रहा है। इस प्रकार परिवादी का विद्युत सम्बन्ध व्यावसायिक श्रेणी का रहा है। ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी कैलाष तोलावत द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।
8. आदेश आज दिनांक 08.06.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या