जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 153/2015
देवाराम पुत्र श्री लादूराम, जाति-जाट, निवासी-डेह रोड, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
1. अध्यक्ष, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री बाबूलाल खोजा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 06.04.2016
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से थ्री फेस विद्युत कनेक्षन ले रखा है। जिसका विद्युत मीटर संख्या 9343074 लगा हुआ है तथा खाता सं 0407/0462 है। परिवादी उक्त कनेक्षन के विद्युत उपभोग के अनुसार जारी बिलों का भुगतान लगातार करता आ रहा है। इस बीच अप्रार्थीगण ने माह अक्टूबर, 2013 में परिवादी को एक बिल राषि 1,55,222/- रूपये का भेजा, जिसमें 1,49,475.80/- रूपये पिछला बकाया बताया। इस पर परिवादी ने उक्त विवादित बिल को लेकर न्यायालय में परिवाद पेष किया। न्यायालय में वाद दायर होने के बाद परिवादी ने 01.11.2013 को अप्रार्थीगण के यहां समझौता के लिए आवेदन किया। जिस पर अप्रार्थीगण एवं परिवादी के बीच समझौते में तय हुआ कि परिवादी को 1,55,222 रूपये का भुगतान करना होगा, इसके अलावा कोई राषि का भुगतान परिवादी को नहीं करना होगा। समझौते के अनुसार अप्रार्थीगण ने परिवादी को रियायत देते हुए तय किया कि परिवादी उक्त रकम किष्तों में जमा कराएगा। समझौते के मुताबिक परिवादी ने बकाया राषि का भुगतान अलग अलग तिथियों में किष्तों में कर दिया। जिसके तहत दिनांक 18.11.2013 को 50,000/- रूपये, 29.03.2014 को 35,000/- रूपये, 11.07.2014 को 40,000/- रूपये, 12.09.2014 को 15,000/- रूपये, 26.11.2014 को 20,000/- रूपये, 30.12.2014 को 10,000/- रूपये, 24.01.2015 को 10,000/- रूपये, 08.03.2015 को 20,000/- रूपये, 28.03.2015 को 13,751/- रूपये तथा दिनांक 25.05.2015 को 7,946/- रूपये का भुगतान परिवादी द्वारा किया गया। इस तरह परिवादी ने समझौते के मुताबिक बकाया राषि का भुगतान कर दिया। परिवादी ने अंतिम बिल का भुगतान 25 मई, 2015 को किया। इस बिल से पूर्व परिवादी में कोई राषि बकाया नहीं थी। कारण कि परिवादी ने समझौते के मुताबिक सम्पूर्ण राषि का भुगतान कर दिया था। इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने जून, 2015 में 1,38,144/- रूपये का एक बिल और बकाया निकालते हुए जारी कर दिया। अप्रार्थीगण की ओर से उक्त बिल के काॅलम संख्या 21 में अन्य देय के रूप में 1,38,144/- रूपये बकाया बताये गये। परिवादी को जब दिनांक 27.06.2015 को उक्त बिल मिला तो परिवादी आष्चर्यचकित रह गया कि सम्पूर्ण राषि जमा कराने के बाद भी यह गलत बिल कैसे आ गया। इस पर परिवादी अप्रार्थीगण के कार्यालय गया तथा पूर्व में बकाया 1,55,222/- रूपये की राषि समझौते के मुताबिक जमा करा देने की बात से अवगत कराया तथा बिलों की फोटो प्रतियां भी पेष की मगर अप्रार्थीगण ने परिवादी को कोई संतोशजनक जवाब नहीं दिया और ना ही बकाया राषि निकालने का कारण बताया तथा कहा कि आपको 1,38,144/- रूपये का भुगतान करना ही होगा अन्यथा कनेक्षन काट दिया जायेगा। समझौता कोर्ट में दिखाते रहना और कोर्ट के फैसले का इंतजार करते रहना। जिस पर परिवादी निराष होकर आ गया। अप्रार्थीगण ने परिवादी को गलत रूप से बकाया राषि 1,38,144/- दर्षाते हुए बिल जारी किया है। अप्रार्थीगण परिवादी से गलत राषि वसूल करने एवं उसे विद्युत से वंचित करना चाहते हैं। जो अप्रार्थीगण की सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अप्रार्थीगण की ओर से जून, 2015 में 1,38,144/- रूपये बकाया बताकर जारी किये गये बिल को निरस्त किया जावे एवं नया बिल जारी किया जावे तथा मानसिक संताप एवं परिवाद व्यय के पेटे राषि दिलाई जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी द्वारा विद्युत बिल की राषि अवष्य जमा करवाई जा रही थी लेकिन अप्रार्थीगण के अंकेक्षण दल द्वारा निकाली गई सम्पूर्ण राषि परिवादी द्वारा जमा नहीं करवाई गई थी। परिवादी के परिसर की जांच निगम के सतर्कता अधिकारी द्वारा की गई, जांच के समय परिवादी द्वारा तीन अन्य दुकानों में विद्युत आपूर्ति की जा रही थी। परिवादी एसआईपी श्रेणी के विद्युत कनेक्षन का उपभोग एनडीएस श्रेणी में करता पाया गया। परिवादी का उक्त कृत्य विद्युत चोरी व दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। अतः यह प्रकरण उपभोक्ता विवाद में ही नहीं आता है। अप्रार्थीगण ने जवाब में यह भी कहा कि परिवादी ने मंच में परिवाद संख्या 56/2012 देवाराम बनाम अविविएनएल प्रस्तुत किया था, जिसमें दिनांक 25.09.2013 को निर्णय करते हुए परिवादी के परिवाद को खारिज किया गया था। माननीय मंच में परिवाद विचाराधीन रहने के कारण वीसीआर षीट की राषि परिवादी के खाते में नहीं जोडी गई। उसी वीसीआर षीट का चार्ज अप्रार्थीगण निगम की आॅडिट पार्टी ने निकाला है। परिवादी ने माह अक्टूबर, 2011 में अपने बिल सम्बन्धी विवाद को निगम की वृत स्तरीय समझौता समिति में प्रस्तुत किया था, जिसमें अप्रार्थीगण की समझौता समिति ने परिवादी के माह अक्टूबर, 2011 के विद्युत बिल में 50 प्रतिषत छूट प्रदान कर परिवादी को 20,792/- रूपये का क्रेडिट दिया गया। जिसके बाद षेश राषि परिवादी ने किष्तों में जमा करवाई है। परिवादी को यह अवगत कराया जा चुका है कि निगम की आॅडिट पार्टी ने वीसीआर षीट का असेसमेंट कर बकाया राषि निकाली है, जो परिवादी द्वारा आवष्यक रूप से जमा करवाई जानी है। अतः परिवादी का परिवाद खारिज किया जावे।
3. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। बहस के दौरान परिवादी की ओर से अक्टूबर, 2011 से लेकर माह मई, 2015 तक के बिलों की फोटो प्रतियां पेष करते हुए तर्क दिया कि परिवादी के खाते में मई, 2015 तक अप्रार्थीगण की कोई राषि बकाया नहीं है। लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थीगण द्वारा दिनांक 27.03.2016 को बिना विधिक प्रक्रिया का पालन किये विद्युत सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया, जिसे पुनः संयोजित करने बाबत् परिवादी ने दिनांक 30.03.2016 को इस मंच के समक्ष आवेदन भी पेष किया है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण द्वारा माह जून, 2015 में जारी विवादित बिल प्रदर्ष 1 में जिस राषि की मांग की गई है वह गलत होने के साथ मियाद बाहर है। क्यांेकि इस बिल के जरिये जिस राषि की मांग की गई है वह सितम्बर, 2011 से नवम्बर, 2014 की अवधि की बताई गई है। जबकि विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 56 (2) के प्रावधान अनुसार दो वर्श की अवधि के पष्चात् राषि वसूली योग्य नहीं है। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिल माह जून, 2015 को निरस्त किया जाकर अप्रार्थीगण को आदेष दिया जावे कि परिवादी का विद्युत सम्बन्ध अविलम्ब पुनः स्थापित करे। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कोंं के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) 2008 एन.सी.जे. 213 (एन.सी.) हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अग्रवाल आईस फैक्ट्री।
(2.) 2014 एन.सी.जे. 312 (एन.सी.) श्री अविनाष बनाम एक्जीक्यूटिव इंजिनियर।
(3.) 2009 एन.सी.जे. 243 (एन.सी.) मितकरी वी.बी. बनाम महाराश्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूषन कम्पनी लिमिटेड।
4. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में परिवादी परिसर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा किये जाने पर परिवादी द्वारा तीन अन्य दुकानों में विद्युत आपूर्ति की जा रही थी एवं एस.आई.पी. विद्युत कनेक्षन का उपभोग एन.डी.एस. श्रेणी में करते हुए पाया गया था, परिवादी का यह कृत्य विद्युत चोरी एवं विद्युत दुरूपयोग की श्रेणी में आने से हस्तगत मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर बकाया निकाली गई राषि सही एवं नियमानुसार है, जिसे अप्रार्थीगण प्राप्त करने के अधिकारी है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 3 के आधार पर आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 2 अनुसार कुल 1,38,144/- रूपये बकाया होने पर दिनांक 26.05.2015 को नोटिस प्रदर्ष ए 1 परिवादी को जारी किया गया था। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि डिमांड की गई राषि मियाद बाहर हो। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे। अप्रार्थीगण के विद्वान ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014
(2.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014
(3.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 202 व 203/2006 अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम मैसर्स सिसोदिया मार्बल व ग्रेनाइट प्रा. लि. व अन्य में पारित आदेष दिनांक 14.11.2006
5. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण के द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा प्रस्तुुत विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालय द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 3 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी के कार्यस्थल पर स्थापित विद्युत सम्बन्ध एवं मीटर की जांच दिनांक 18.08.2011 को की गई थी, जिसके अनुसार मौके पर उपभोक्ता का मीटर जला हुआ होना, तीन दुकानों में विद्युत आपूर्ति करना, कुल स्वीकृत भार से ज्यादा भार पाया जाना, उपभोक्ता द्वारा ट्यूबवेल चलाकर पानी बेचने का काम करते हुए भी विद्युत उपभोग एन.डी.एस. श्रेणी में करना पाया गया। पत्रावली पर उपलब्ध प्रलेख प्रदर्ष ए 6 के अवलोकन पर यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी के इसी विद्युत खाता के सम्बन्ध में एक परिवाद 56/2012 इसी जिला मंच के समक्ष विचाराधीन रहा है, जिसका निस्तारण दिनांक 25.09.2013 को हुआ है। परिवादी द्वारा पूर्व में प्रस्तुत परिवाद 56/2012 में बताया गया है कि परिवादी का मीटर अक्टूबर, 2011 में बदलकर लगाया गया था, जिससे भी वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 3 की पुश्टि होती है। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि इसी वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 3 के आधार पर ही आॅडिट पार्टी द्वारा गणना कर परिवादी के विरूद्ध 1,38,144/- रूपये बकाया राषि निकालते हुए परिवादी को नोटिस प्रदर्ष ए 1 दिनांक 26.05.2015 को दिया गया था। अप्रार्थीगण द्वारा अपने जवाब में भी स्पश्ट किया गया है कि परिवादी द्वारा पूर्व में प्रस्तुत परिवाद 56/2012 विचाराधीन रहने के कारण ही वी.सी.आर. षीट की राषि परिवादी के खाते में नहीं जोडी गई थी, ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण द्वारा डिमांड की जा रही राषि मियाद बाहर नहीं हो सकती।
6. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिल जून, 2015 के जरिये चाही गई राषि को मियाद बाहर होना बताया गया है। परिवादी के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय 2008 एन.सी.जे. 213 (एन.सी.) हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अग्रवाल आईस फैक्ट्री वाले मामले में पीटिषनर हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड की ओर से तर्क दिया गया था कि वर्श 1989, 1990 व 1991 के कुछ महिनों में परिवादी का मीटर बंद या खराब रहा, जिसके कारण इस अवधि में दो बार मीटर बदला गया, जिससे यही प्रतीत होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा मीटर से छेडछाड की गई तथा बाद में आॅडिट पार्टी द्वारा बाद जांच दिनांक 26.09.1997 को 65,451/- रूपये बकाया निकाले गये। माननीय, नेषनल कमीषन का मत रहा है कि पीटिषनर ने ऐसी कोई स्पश्ट साक्ष्य नहीं दी, जिससे यह माना जा सके कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने मीटर से छेडछाड की हो तथा न ही दो बार मीटर बदले जाने मात्र के आधार पर ही यह माना जा सकता है कि परिवादी ने ही मीटर से छेडछाड की हो। माननीय नेषनल कमीषन का यह भी मत रहा है कि बकाया राषि की डिमांड छह वर्श बाद की गई है एवं यह भी स्पश्ट नहीं है कि अंतिम बिल बनाने में छह वर्श लगे हों। ऐसी स्थिति में माननीय नेषनल कमीषन द्वारा पीटिषनर हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड की याचिका खारिज की गई थी। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त न्याय निर्णय वाले मामले के तथ्यों व हस्तगत मामलें के तथ्यों में पर्याप्त भिन्नता होने के कारण यह नहीं माना जा सकता कि विवादित बिल प्रदर्ष 1 के जरिये अप्रार्थीगण द्वारा मांगी जा रही राषि मियाद बाहर हो। विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 56 (2) का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर की अपील संख्या 202 व 203/2006 में पारित निर्णय दिनांक 14.11.2006 के पैरा संख्या 17 अनुसार ष्ज्ीने पद वनत वचपदपवदए जीम सपंइपसपजल जव चंल मसमबजतपबपजल बींतहमे पे बतमंजमक वद जीम कंजम मसमबजतपबपजल पे बवदेनउमक वत जीम कंजम जीम उमजमत तमंकपदह पे तमबवतकमक वत जीम कंजम उमजमत पे विनदक कममिबजपअम वत जीम कंजम जीमजि व िमसमबजतपबपजल पे कमजमबजमक इनज जीम बींतहमे ूवनसक इमबवउम पितेज कनम वित चंलउमदज वदसल ंजिमत ं इपसस वत कमउंदक दवजपबम वित चंलउमदज पे ेमदज इल जीम सपबमदेमम जव जीम बवदेनउमतण् ज्ीम कंजम व िजीम पितेज इपसस/कमउंदक दवजपबम वित चंलउमदजए जीमतमवितमए ेींसस इम जीम कंजम ूीमद जीम ंउवनदज ेींसस इमबवउम कनम ंदक पज पे तिवउ जींज कंजम जीम चमतपवक व िसपउपजंजपवद व िजूव लमंते ंे चतवअपकमक पद ेमबजपवद 56 (2) व िजीम म्समबजतपबपजल ।बजए 2003 ेींसस ेजंतज तनददपदहण् प्द जीम पदेजंदज बंेमण् ज्ीम उमजमत ूंे जमेजमक वद 03ण्03ण्2003 ंदक पज ूंे ंससमहमकसल विनदक जींज जीम उमजमत ूंे तमबवतकपदह मदमतहल बवदेनउचजपवद समेे जींद जीम ंबजनंस इल 27ण्63ःण् श्रवपदज पदेचमबजपवद तमचवतज ूंे ेपहदमक इल जीम बवदेनउमत ंदक सपबमदेमम ंदक जीमतमंजिमतए जीम कममिबजपअम उमजमत ूंे तमचसंबमक वद 05ण्03ण्2003ण् ज्ीम तमअपेमक दवजपबम व िकमउंदक ूंे तंपेमक वित ं ेनउ व ित्ेण् 4ए28ए034ध्. वद 19ण्03ण्2005ण् ज्ीवनही जीम सपंइपसपजल उंल ींअम इममद बतमंजमक वद 03ण्03ण्2003ण् ूीमद जीम मततवत पद तमबवतकपदह व िबवदेनउचजपवद ूंे कमजमबजमकए जीम ंउवनदज इमबवउम चंलंइसम वदसल वद 19ण्03ण्2005ण् जीम कंल ूीमद जीम दवजपबम व िकमउंदक ूंे तंपेमकण् ज्पउम चमतपवक व िजूव लमंतेए चतमेबतपइमक इल ैमबजपवद 56 (2) ण् वित तमबवअमतल व िजीम ंउवनदज ेजंतजमक तनददपदह वदसल वद 19ण्03ण्2005ण् ज्ीनेए जीम पितेज तमेचवदकमदज बंददवज चसमंक जींज जीम चमतपवक व िसपउपजंजपवद वित तमबवअमतल व िजीम ंउवनदज ींे मगचपतमकण्ष्
माननीय राज्य आयोग द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णय में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण द्वारा जारी नोटिस प्रदर्ष ए 1 दिनांक 26.05.2015 तथा इस सम्बन्ध में जारी बिल माह जून 2015 के जरिये डिमांड की गई राषि मियाद बाहर नहीं हो सकती।
7. पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि इस मामले में परिवादी के विरूद्ध वी.सी.आर. षीट के आधार पर आॅडिट पार्टी द्वारा गणना की जाकर बकाया राषि निकालते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 26.05.2015 को डिमांड नोटिस प्रदर्ष ए 1 जारी करते हुए ही माह मई, 2015 का बिल प्रदर्ष 1 जारी किया गया था। परिवादी द्वारा प्रस्तुत मूल परिवाद का सावधानीपूर्वक अवलोकन करने पर स्पश्ट है कि परिवादी ने अपने परिवाद में यह कहीं भी कथन नहीं किया है कि परिवादी इसी विद्युत सम्बन्ध के उपयोग एवं उपभोग द्वारा अपना स्व नियोजन व जिविका चलाता हो। यद्यपि परिवादी द्वारा न्यायालय में बहस के दौरान इस आषय का तर्क अवष्य दिया गया है लेकिन परिवादी द्वारा प्रस्तुत मूल परिवाद में इस आषय का कोई अभिकथन नहीं है। ऐसी स्थिति में जबकि वीसीआर षीट के आधार पर आॅडिट पार्टी द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई की जा चुकी हो तो परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं रहता है तथा न ही उपभोक्ता न्यायालय में पोशणीय है। अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर की अपील संख्या 1287/2010 तथा अपील संख्या 934/2013 में पारित आदेषों से भी उपर्युक्त निश्कर्श की पुश्टि होती है।
8. परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
आदेश
9. परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
10. आदेश आज दिनांक 06.04.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या