जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं 99/2016
दाउद अली खां पुत्र गुलाम महबूब खां, जाति-कायमखानी, निवासी-सुदरासन, तहसील-डीडवाना, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जरिये अध्यक्ष/प्रबंध निदेषक, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, मौलासर, जिला-नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. परिवादी स्वयं उपस्थित।
2. श्री सुनील डागा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 21.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से एक घरेलू विद्युत कनेक्षन ग्राम सुदरासन में ले रखा है। जिसके खाता संख्या 1801-0019 है। परिवादी उक्त विद्युत कनेक्षन पेटे अप्रार्थीगण की ओर से जारी समस्त वैध बिलों का भुगतान समय-समय पर करता आ रहा है। इस बीच अप्रार्थीगण ने परिवादी को मार्च, 2013 में जारी बिल में पिछले बिल की बकाया राषि 7901.62 रूपये अंकित करते हुए 8543/- रूपये का बिल जारी कर दिया। इस पर परिवादी ने अप्रार्थीगण के यहां जाकर पता किया तो बताया गया कि इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। इस पर परिवादी ने उक्त राषि जमा करवा दी। इसके बाद अप्रार्थीगण की ओर से दिनांक 05.08.2015 को परिवादी को एक नोटिस भेजा गया, जिसमें 41,200/- रूपये हर्जाना राषि भरने का कहा गया। पता करने पर अप्रार्थीगण की ओर से बताया गया कि आपके द्वारा पिछवाडे में खम्भे पर तार डाला गया। इस पर परिवादी की ओर से कहा गया कि हम तार क्यों डालेंगे। बाद में जांच में पाया गया कि वह तार परिवादी के पडौसी का था। इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने परिवादी पर राषि जमा कराने का दबाव डालते हुए कनेक्षन काटने की धमकी दी। इस पर परिवादी ने यह राषि तीन किष्तों में जमा करवा दी। इसके बाद अप्रार्थीगण ने अक्टूबर, 2015 में परिवादी को 540/- रूपये का बिल जारी किया एवं जनवरी, 2016 में 30,967/- रूपये का बिल जारी कर दिया। जिस पर परिवादी ने दिनांक 27.01.2016 को उक्त बिल की राषि में से 1,861/- रूपये जमा करवा दिये तथा षेश राषि परिवादी ने इसलिए जमा नहीं करवाई कि इतनी बडी राषि का बिल होने पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 3 के यहां षिकायत की तो अप्रार्थी संख्या 3 ने कहा कि अप्रार्थी संख्या 2 के समक्ष कार्यवाही करें, वो उक्त राषि माफ कर सकते हैं। अप्रार्थी संख्या 3 के कहने से ही परिवादी ने 1,861/- रूपये जमा करवाये। इसके बावजूद अप्रार्थीगण के कार्मिक ने दिनांक 06.02.2016 को उसका विद्युत सम्बन्ध विच्छेद कर दिया, जो आज दिन भी विच्छेद है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी के विरूद्ध बनाई गई आॅडिट रिपोर्ट दुरूस्त कराई जाये, गलत, अनुचित एवं अवैध आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर जो कार्यवाही की गई है उसे रोका जाये। अप्रार्थीगण को अनुचित राषि वसूलने से रोका जाये तथा उसका विद्युत सम्बन्ध पुनः जुडवाया जाए। परिवादी की ओर से पूर्व में जो अधिक राषि जमा करवाई गई है, उसे आगे के बिलों में समायोजित करने का आदेष करवाया जाये। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब प्रस्तुत कर बताया गया है कि परिवादी के परिसर की जांच अप्रार्थीगण निगम के सहायक अभियंता (पवस) मौलासर, द्वारा दिनांक 05.08.2015 को की गई। इस दौरान पाया गया कि परिवादी अपने घरेलू कनेक्षन के अतिरिक्त मकान के पीछे रोड पर स्थित सिंगल फेज एल.टी. लाइन में अंकुडे डालकर विद्युत चोरी करते पाया गया। इस पर अप्रार्थी निगम के सहायक अभियंता ने जांच कर मौके पर नियमानुसार वीसीआर षीट सं. 22240/09 भरी गई। वीसीआर षीट में मौके पर पाये गये सभी तथ्यों का भी अंकन किया गया। वीसीआर षीट के आधार पर असेसमेंट कर राषि तय की गई। परिवादी ने उक्त विद्युत चोरी को सही मानते हुए अप्रार्थीगण के कार्यालय में राषि भी जमा करवा दी। परिवादी अप्रार्थीगण का सद्भावी उपभोक्ता नहीं है। परिवादी को मार्च, 2013 की बिल भी सही जारी किया गया। परिवादी द्वारा पूर्व के बिलों की राषि जमा नहीं करवाने के कारण ही बकाया राषि 8857.39 रूपये जोडकर जारी किया गया। परिवादी के विद्युत खातों की जांच अप्रार्थीगण निगम के अंकेक्षण दल द्वारा की गई। अंकेक्षण दल ने पूर्व में कम ली गई राषि का चार्ज निकाला है। अंकेक्षण दल ने पूर्व में निगम नियमानुसार लिये जाने वाले यूनिट में से पूर्व में लिये गये यूनिट को कम करके ही आॅडिट रिपोर्ट तैयार की है। जो नियमानुसार एवं सही है। हस्तगत प्रकरण आॅडिट रिपोर्ट का है, जिसे मंच में चैलेज नहीं किया जा सकता। अतः परिवादी का परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही जनवरी, 2016 का बिल प्रदर्ष 1, परिवादी द्वारा दिनांक 15.02.2016 को अप्रार्थी पक्ष को दिया आवेदन प्रदर्ष 2, परिवादी द्वारा दिया गया नोटिस प्रदर्ष 3, विद्युत बिल क्रमषः प्रदर्ष 4, 5 व 6, परिवादी द्वारा सहायक अभियंता को दिया आवेदन प्रदर्ष 7 एवं आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष 8 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। परिवादी का तर्क रहा है कि वह हमेंषा अपना विद्युत बिल समय पर जमा कराता रहा है लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा फर्जी वीसीआर एवं आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर अधिक राषि का बिल जारी किया गया जिसमें से कुछ राषि परिवादी द्वारा जमा भी करवाई गई है लेकिन इसके बावजूद दिनांक 06.02.2016 को परिवादी का विद्युत सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर आॅडिट रिपोर्ट एवं वीसीआर के आधार पर जारी नोटिसबाजी को रोकने का आदेष देने के साथ ही विद्युत सम्बन्ध पुनः जोडने का आदेष दिया जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थी पक्ष की ओर से जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, नोटिस प्रदर्ष ए 2, सतर्कता जांच प्रतिवेदन प्रदर्ष ए 3 एवं आॅडिट सम्बन्धी निर्देष-पत्र प्रदर्ष ए 4 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में परिवादी के परिसर की जांच सहायक अभियंता द्वारा किये जाने पर परिवादी अपने घरेलू कनेक्षन के अतिरिक्त मकान के पीछे रोड पर स्थित सिंगल फेज एल.टी. लाइन में अंकुडे डालकर विद्युत चोरी करते पाया गया। जिस पर वीसीआर रिपोर्ट तैयार की गई। इसी वीसीआर रिपोर्ट के आधार पर गणना कर बकाया राषि की वसूली हेतु नोटिस प्रदर्ष ए 2 दिनांक 31.08.2015 जारी किया गया। यह भी बताया गया है कि परिवादी द्वारा चोरी के कृत्य को स्वीकार करते हुए राषि अप्रार्थीगण के कार्यालय में जमा भी करवाई गई है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि निर्देषानुसार परिवादी के विद्युत खाता की आॅडिट की गई तथा आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर ही परिवादी को नोटिस जारी कर बकाया राषि की वसूली की जा रही है। यह भी बताया गया है कि परिवादिया का कृत्य विद्युत चोरी का होकर दण्डनीय अपराध रहा है। ऐसी स्थिति में परिवादिया का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आने से खारिज होने योग्य है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014
(2.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद
(3.) राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014
6. पक्षकारान द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा प्रस्तुत विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालयों द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 3 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी के परिसर में स्थापित विद्युत सम्बन्ध एवं मीटर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा दिनांक 05.08.2015 को की गई थी, जिसके अनुसार परिवादी अपने घरेलू कनेक्षन के अतिरिक्त मकान के पीछे रोड पर स्थित सिंगल फेज एल.टी. लाइन में अंकुडे डालकर विद्युत चोरी करते पाया गया। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 3 एवं आॅडिट रिपोर्ट ए 1 के आधार पर ही गणना कर बकाया राषि जोडते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 31.08.2015 को नोटिस प्रदर्ष ए 2 जारी किया गया है। हस्तगत मामले के तथ्यों एवं पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए स्पश्ट है कि मामला आॅडिट रिपोर्ट, वीसीआर षीट एवं विद्युत चोरी से सम्बन्धित रहा है तथा ऐसे मामले में परिवाद जिला उपभोक्ता मंच में पोशणीय न होने से इस सम्बन्ध में गुणावगुण के आधार पर कोई निश्कर्श दिया जाना उचित नहीं होगा। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, आदेष दिनांकित 01.12.2014 वाला मामला भी वीसीआर षीट से सम्बन्धित था एवं जांच के समय मीटर बंद पाया गया था, ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग द्वारा यही अभिनिर्धारित किया गया कि जहां वीसीआर के आधार पर बकाया की गणना कर धारा 126 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो तथा कार्रवाई धारा 135 से 140 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो वहां उपभोक्ता न्यायालय को परिवाद सुनवाई का अधिकार नहीं बनता है।
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
It is also an admitted fact that the outstanding amount in the disputed electric bill challenged by the complainant has been sought from him, has been computed on the basis of audit report. This Commission in appeal NO. 1496/1995 titled RSEB Vs. Dallu Ram decided on 01.11.1999 has held that an amount can be recovered from the consumer on the basis of audit report and the validity of the audit report can be challenged in a Civil Court, but such a demand cannot be termed as a deficiency in service.
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी सतर्कता जांच रिपोर्ट एवं आंतरिक अंकेक्षण दल की रिपोर्ट अनुसार बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी दाउद अली खां द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
8. आदेश आज दिनांक 21.07.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या