जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 144/2015
भैरू टोबेको कम्पनी, 76, रीको इण्डस्ट्रीयल एरिया, बासनी रोड, नागौर जरिये प्रोपराइटर महेन्द्र कुमार अग्रवाल पुत्र गिरधारी लाल, जाति- अग्रवाल, निवासी- उस्तो की बारी, बीकानेर, तहसील व जिला- बीकानेर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, जरिये अध्यक्ष/प्रबंध निदेषक, प्रधान कार्यालय, विद्युत भवन, पंचषील नगर, अजमेर अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री दिनेष हेडा एवं श्री अनिल गौड, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 13.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अपने प्रतिश्ठान भैरू टोबेको कम्पनी पर अप्रार्थीगण से एक विद्युत कनेक्षन 50 एच.पी. का श्रेणी एम.आई.पी. एलटी का (टेरिफ कोड 6000 एक्स ए का तथा सप्लाई वोल्टेज 400 वोल्ट) ले रखा है। जिसके खाता संख्या 0591/0092 है। उक्त विद्युत कनेक्षन के सम्बन्ध में जारी सभी विद्युत बिलों का भुगतान परिवादी द्वारा निर्धारित समयावधि में किया जा रहा है। इस दौरान अप्रार्थीगण की ओर से जून, 2013 से जून, 2015 तक की अवधि में अवैध एवं अनुचित तरह से बिल जारी करते हुए गलत राषि चार्ज की गई। इस बीच उक्त कनेक्षन के तहत ही अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को जून, 2015 का विद्युत बिल 8,57,252/- रूपये बकाया निकालते हुए जारी किया गया, जिस पर परिवादी को बडा आज्ञात लगा। उक्त राषि बाबत् कोई स्पश्टीकरण बिल के साथ नहीं था। इतनी बडी राषि का बिल आने पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 3 से सम्पर्क किया तथा कहा कि उससे गलत प्रकार से राषि वसूल की गई तथा अब बडी राषि बकाया निकालते हुए बिल जारी किया गया है तो अप्रार्थी संख्या 3 ने उस पर उक्त राषि जमा करवाने का दबाव डालते हुए कहा कि उक्त राषि जमा नहीं करवाने पर परिवादी का विद्युत कनेक्षन विच्छेद कर दिया जाएगा। इसके चलते परिवादी को यह परिवाद पेष करना पडा। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को माह जून, 2013 से जून, 2015 तक जारी बिल गलत व अवैध होने से निरस्त किये जावें तथा इस अवधि में परिवादी से स्थाई षुल्क मद में अवैध प्रकार से वसूल की गई राषि 1,05,613.50 रूपये एवं विद्युत खर्च की मद में अवैध प्रकार से वसूल की गई राषि 1,20,107.50 रूपये परिवादी को पुनः भुगतान करने के लिए आदेष दिया जावे तथा जून, 2015 में जारी बिल में बकाया निकाली गई राषि 8,12,364.25 रूपये निरस्त की जावे। इसके अलावा परिवाद में अंकितानुसार अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी के यहां लगा विद्युत कनेक्षन व्यावसायिक श्रेणी (एम.आई.पी.) का है एवं हस्तगत प्रकरण आॅडिट रिपोर्ट पर आधारित होने से उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है। अप्रार्थीगण ने जवाब में यह भी कहा कि परिवादी के विद्युत खाते की जांच अप्रार्थीगण निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा किये जाने पर परिवादी अपने स्वीकृत विद्युत भार से अधिक भार काम में ले रहा था, ऐसी स्थिति में डक्प् डपेनेम बींतहमए ज्तंदेवितउमत त्मदज ंदक ज्तंदेवितउमत स्वेेमे चार्ज करते हुए आॅडिट रिपोर्ट तैयार की गई। यह बताया गया है कि आॅडिट पार्टी ने परिवादी के परिसर में लगे विद्युत मीटर की रीडिंग के अनुसार ही आॅडिट षीट तैयार की है। यह भी बताया गया है कि परिवादी के माह अप्रेल, 2010 से सितम्बर, 2014 तक डक्प् उसके काॅन्ट्रेक्ट डिमांड 51 केवीए से बढती जा रही है इसलिए आॅडिट पार्टी द्वारा उपभोक्ता से डक्प् डपेनेम बींतहम के 7,27,083/- रूपये, ज्तंदेवितउमत त्मदज (क्नम जव वूदमतेीपच व िज्तंदेवितउमत पे व िछपहंउ) की राषि पूर्व में ली गई राषि को कम करके षेश राषि के 47,500/- रूपये, कुल राषि 7,99,794/- रूपये एवं ज्तंतप िक्पििमतमदबम व िथ्नमस ैनतबींतहम की राषि रूपये 12,564/- सहित कुल राषि 8,12,364/- रूपये परिवादी के खाते में निगम नियमानुसार ही डेबिट किये गये हैं। यह बताया गया है कि हस्तगत प्रकरण उपभोक्ता विवाद की परिधि में नहीं आता है। अतः इसे मय हर्जा-खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण ने नियमों के विपरित गलत, अनुचित एवं अवैध रूप से राषि वसूल की है, जिसे परिवादी पुनः प्राप्त करने का अधिकारी है। यह भी तर्क दिया कि परिवादी के परिसर पर लगा मीटर पूर्णतया सही है, लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा नियमों के विपरित गणना कर अधिक राषि वसूल की गई है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार किया जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा परिवादी के खाते की जांच कर नियमानुसार आॅडिट रिपोर्ट विद्युत मीटर की रीडिंग अनुसार तैयार कर निगम के परिपत्र दिनांक 09.02.2009 अनुसार चार्जेज की गणना कर वसूली की गई है तथा मामला आॅडिट रिपोर्ट से सम्बन्धित होने के कारण उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है, ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद
(2.) राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के साथ जुलाई, 2014 से जून, 2015 तक के विद्युत बिल, परिवादी द्वारा अप्रार्थी संख्या 3 को दिया आवेदन दिनांक 15.05.2014 व 23.06.2015 तथा फ्यूल सरचार्ज की वसूली हेतु अप्रार्थी निगम का आदेष दिनांक 25.05.2015 की फोटो प्रतियां कुल प्रदर्ष 1 से 34 पेष की गई है। अप्रार्थी पक्ष की ओर से भी आंतरिक अंकेक्षण दल की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 निगम का परिपत्र दिनांक 09.02.2009 प्रदर्ष ए 2 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन करने पर यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी के कार्यस्थल/परिसर पर एम.आई.पी. श्रेणी का विद्युत सम्बन्ध 50 एच.पी. का रहा है तथा परिवादी के इस विद्युत खाता की जांच अप्रार्थी निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा की जाकर आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर ही अन्य चार्जेज की गणना कर विवादित बिल जारी किये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की आपति रही है कि अप्रार्थीगण ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरित गलत व अनुचित रूप से राषि वसूल की है तथा इस सम्बन्ध में किसी नियम या परिपत्र का खुलासा नहीं किया। जबकि इस सम्बन्ध में पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि अप्रार्थी निगम द्वारा प्रस्तुत आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 अनुसार ही मीटर रीडिंग अनुसार अन्य चार्जेज की गणना कर विवादित बिल जारी किये गये हैं। इस सम्बन्ध में अप्रार्थी पक्ष द्वारा निगम का परिपत्र दिनांक 09.02.2009 भी पत्रावली में पेष किया गया है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का मुख्य तर्क यही रहा है कि मामला आॅडिट रिपोर्ट से सम्बन्धित होने एवं परिवादी का विद्युत सम्बन्ध व्यावसायिक (एम.आई.पी.) श्रेणी का होने से उपभोक्ता विवाद की परिभाशा में नहीं आता है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003 इस मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने उपभोक्ता की व्याख्या करते हुए स्पश्ट किया है कि,
Consumer Protection Act, 1986- S. 2¼1½¼d½ – “Consumer” – Electricity matters – Consumer complaint in respect of – When maintainable – A “consumer” within meaning under S. 2¼1½¼d½ may file a valid complaint in respect of supply of electrical or other energy, if the complaint contains allegation of unfair trade practice or restrictive trade practice; or there are defective goods; deficiency in services; hazardous services or a price in excess of the price fixed by or under any law, etc. – Person¼s½ availing services for “commercial purpose” do not fall within meaning of “consumer” and cannot be a “complainant” for the purpose of filling a “complaint” before the Consumer Forum.
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
. It is also an admitted fact that the outstanding amount in the disputed electric bill challenged by the complainant has been sought from him, has been computed on the basis of audit report. This Commission in appeal NO. 1496/1995 titled RSEB Vs. Dallu Ram decided on 01.11.1999 has held that an amount can be recovered from the consumer on the basis of audit report and the validity of the audit report can be challenged in a Civil Court, but such a demand cannot be termed as a deficiency in service.
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी परिवादी का विद्युत सम्बन्ध व्यावसायिक श्रेणी का रहा है तथा आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर गणना विद्युत बिल जारी किये गये हैं, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी भैरू टोबेको कम्पनी, 76, रीको इण्डस्ट्रीयल एरिया, बासनी रोड, नागौर जरिये प्रोपराइटर महेन्द्र कुमार अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।
8. आदेश आज दिनांक 13.07.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या