जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद 222/2015
अषोक कुमार जैन पुत्र स्व. अनूपचन्द जैन, जाति-जैन, निवासी-गिनाणी गली, नागौर, तहसील व जिला- नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा एमडी/चेयरमैन, अजमेर।
2. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा अधिषाशी अभियंता, नागौर।
3. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा अधीक्षण अभियंता, नागौर।
4. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा सहायक अभियंता (पवस) नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 10.05.2016
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के दादा गुलाबचन्द ने एक घरेलू विद्युत कनेक्षन ले रखा है जिसके खाता संख्या 1606-160 है। उक्त विद्युत कनेक्षन से वर्तमान में विद्युत का उपभोग व उपयोग परिवादी द्वारा किया जा रहा है। अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को गुलाबचन्द पुत्र मिलापचन्द, गिनाणी गली नागौर के नाम से बिल जारी किये जा रहे हैं और परिवादी इन बिलों का नियमित भुगतान कर रहा है। इस बीच अप्रार्थीगण ने जुलाई, 2015 का बिल नियत तिथि के पष्चात् 27,440/- रूपये का जारी किया। जिसमें कुल उपभोग पूर्व मीटर और नये मीटर के 121 एवं 56 दर्ज किये गये तथा इस बिल में देय राषि के जो उप अनुच्छेद संख्या 1 व 2 तथा 24 व 30 में अन्य विवरण दर्ज करते हुए नियत तिथि तक 26,530/- रूपये एवं विलम्ब भुगतान के रूप में 930.87 रूपये दर्ज करते हुए बिल जारी किया गया है। उक्त बिल अप्रार्थीगण ने मनमाने ढंग से एवं विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के विपरित जारी किया है।
उक्त बिल प्राप्त होने पर परिवादी अप्रार्थी संख्या 4 के कार्यालय में गया तथा बिल में संषोधन का आग्रह किया तो अप्रार्थीगण ने उक्त बिल के रूप में 13,000/- रूपये जमा करवा लिये तथा कहा कि उसे बिल में बताई सारी ही राषि जमा करवानी पडेगी अन्यथा कनेक्षन काट दिया जायेगा। कारण कि यह राषि आॅडिट द्वारा निकाली गई जो करवानी ही पडेगी। इस दौरान अप्रार्थी ने उसे आॅडिट के प्रपत्र एवं मीटर बाईंडर की प्रतिलिपि भी उपलब्ध कराई। जिसे देखने पर पता चला कि अप्रार्थीगण उससे जुलाई, 2010 से मार्च, 2014 तक के बिलों में एवरेज के आधार पर राषि के उपभोग की गणना करके बिल की राषि वसूल करना चाह रहा है।
जबकि अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी के उक्त विद्युत कनेक्षन में विद्युत उपभोग की गणना के लिए ही मीटर स्थापित किया है और विद्युत उपभोग की गणना के लिए मीटर रीडर भी नियुक्त किये हुए हैं लेकिन वो मौके पर नहीं आते और मनमाने ढंग से विद्युत उपभोग की गणना मीटर रीडर बाईंडर में कर देते हैं तत्पष्चात् विभागीय आॅडिट में ऐसे प्रकरणों की जांच कर अप्रार्थीगण के कर्मचारियों की गलती का खामियाजा सम्बन्धित उपभोक्ता पर थोप देते हैं और विभागीय नियमा के विपरित पिछली बकाया राषि की वसूली के सम्बन्ध में बिना कोई नोटिस और सुनवाई का मौका दिये ऐसी राषि को अचानक किसी बिल में जोडकर वसूली करने लगते हैं। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य अनफेयर प्रेक्टिस एवं सेवा दोश की श्रेणी में आता है। ऐसे में परिवादी को जुलाई, 2015 के बिल में दर्ज किये गये क्रम संख्या 20, 21, 22 में देय अन्य राषि को निरस्त किया जावे। परिवादी को परिवाद में अंकित अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है। अप्रार्थीगण द्वारा विद्युत खाता संख्या 1606-160 गुलाबचन्द के नाम से जारी किया हुआ है। मूल खाता धारक की मृत्यु होने पर परिवादी अन्य वारिसों की सहमति से नियमानुसार नाम परिवर्तन करवाकर ही उपभोक्ता बन सकता है। अप्रार्थीगण ने जवाब में यह भी कहना है कि यह मामला आॅडिट रिपोर्ट पर आधारित होने से उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है। मीटर रीडिंग पुस्तिका एवं परिवादी को उक्त अवधि में दिये जा रहे विद्युत बिलों के अवलोकन से स्पश्ट है कि परिवादी का मीटर बंद था तथा परिवादी को कम यूनिट के औसत विद्युत बिल जारी किये गये थे। निगम की आॅडिट पार्टी ने केवल मात्र पूर्व में कम लिये गये औसत यूनिट को निगम नियमानुसार लिये जाने वाले औसत यूनिट में से कम करके षेश यूनिटों का चार्ज निकाला गया है। इसमें अप्रार्थीगण द्वारा किसी प्रकार का ब्याज या अतिरिक्त चार्ज नहीं जोडा गया है। निगम की आॅडिट पार्टी ने परिवादी के खाते की जांच कर निगम नियमानुसार राषि चार्ज की है। उक्त राषि परिवादी के खाते में जोडने से पूर्व परिवादी को नोटिस जारी कर सूचित किया गया। जो सही एवं नियमानुसार जारी किया गया। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद को मय हर्जा खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण के मीटर रीडर विद्युत उपभोग की गणना के लिए मौके पर नहीं आते हैं बल्कि मनमाने ढंग से विद्युत उपभोग की गणना कर देते हैं तथा बाद में विभागीय आॅडिट द्वारा गणना कर पिछली बकाया राषि की वसूली हेतु सुनवाई का मौका दिये बिना एवं नोटिस दिये बिना ही बकाया राषि बिल में जोडकर वसूली की जा रही है जो अप्रार्थीगण का सेवा दोश है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर जुलाई, 2015 के बिल को निरस्त किया जावे। उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है तथा मीटर बाईंडर रिपोर्ट अनुसार खाता धारक गुलाबचन्द का विद्युत मीटर बंद होने की स्थिति में जो औसत विद्युत बिल जारी किये गये थे उस अवधि हेतु आॅडिट पार्टी द्वारा औसत यूनिट बाबत् नियमानुसार गणना कर नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद उपभोक्ता न्यायालय में पोशणीय न होने के कारण मय खर्चा खारिज किया जावे।
5. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के साथ माह जुलाई, 2010 से लेकर माह सितम्बर, 2015 की अवधि बाबत् कुल तंैतीस बिल क्रमषः प्रदर्ष 1 से प्रदर्ष 33, मीटर जांच रिपोर्ट दिनांक 01.07.2011 प्रदर्ष 34, मीटर जांच रिपोर्ट प्रदर्ष 35, आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष 36, मीटर बाईंडर रिपोर्ट प्रदर्ष 37 व 38 पेष की गई है। अप्रार्थी पक्ष की ओर से अपने जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र सहित आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, नोटिस प्रदर्ष ए 2 तथा मीटर बाईंडर रिपोर्ट प्रदर्ष ए 3 पेष की गई है। पक्षकारान के द्वारा प्रस्तुत समस्त दस्तावेजात के अवलोकन पर यह स्वीकृत स्थिति है कि विद्युत सम्बन्ध खाता संख्या 1606-160 गुलाबचन्द के नाम से रहा है तथा परिवादी के कथनानुसार परिवादी के पिता अनूपचन्द एवं दादा गुलाबचन्द की मृत्यु हो जाने के कारण इस विद्युत कनेक्षन की सुविधा का उपभोग परिवादी द्वारा ही किया जाता है एवं वही विद्युत बिल की राषि का भुगतान करता है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा इस तथ्य का कोई स्पश्ट खण्डन नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता रहा है। इस मामले में परिवादी अपना परिवाद मुख्यतः इस आधार पर लेकर आया है कि अप्रार्थीगण ने परिवादी को कोई नोटिस और सुनवाई का मौका दिये बिना नैसर्गिक न्याय एवं विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के विपरित बकाया राषि बिल में जोडकर वसूली हेतु जो बिल जारी किये हैं वे अप्रार्थीगण का सेवा दोश है। उक्त के विपरित अप्रार्थीगण ने स्पश्ट किया है कि मीटर बाईंडर की रिपोर्ट अनुसार मीटर खराब/बंद होने के कारण आॅडिट पार्टी द्वारा विभागीय नियमानुसार औसत विद्युत उपभोग की गणना कर परिवादी के विद्युत खाता में बकाया राषि 25,054/- रूपये बताई, तब दिनांक 09.03.2015 को बकाया राषि की वसूली हेतु परिवादी को नोटिस प्रदर्ष ए 2 जारी किया गया जो नियमानुसार सही है।
6. पत्रावली पर उपलब्ध नोटिस प्रदर्ष ए 2 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण की ओर से दिनांक 09.03.2015 को खाताधारक गुलाबचन्द के नाम से एक नोटिस प्रदर्ष ए 2 प्रेशित किया गया है तथा इस नोटिस में बताया गया है कि आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा जुलाई, 2010 से मार्च, 2014 की अवधि बाबत् गणना कर 25,054/- रूपये वसूली योग्य राषि बताई गई है, अतः यदि वसूली में किसी प्रकार की आपति हो तो पन्द्रह दिन के भीतर एतराज पेष करें। यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी की ओर से इस नोटिस का कोई जवाब या आपति पेष नहीं की गई है बल्कि दिनांक 21.09.2015 को यह परिवाद पेष किया गया। पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि मीटर बाईंडर की रिपोर्ट अनुसार परिवादी का मीटर लम्बे समय तक बंद या खराब रहा है एवं इस अवधि बाबत् औसत यूनिट बताते हुए बिल जारी हुए हैं तथा बाद में आॅडिट पार्टी ने विभागीय नियमानुसार औसत उपभोग की गणना कर दिनांक 17.10.2014 को रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 जारी करते हुए परिवादी के खाते में 25,054/- रूपये बकाया राषि निकाली है, जिसकी वसूली हेतु खाताधारक को नोटिस प्रदर्ष ए 2 जारी किया गया है। पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा नियमानुसार बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि ब्वउचसंपदज ंहंपदेज ंेेमेेउमदज उंकम नदकमत ैण् 126 वत ंबजपवद जंामद ंहंपदेज जीवेम बवउउपजजपदह वििमदबमे नदकमत ैेण् 135 जव 140 व िम्समबजतपबपजल ।बजए 2003ए ीमसकए पे दवज उंपदजंपदंइसम इमवितम ं ब्वदेनउमत थ्वतनउ. ब्पअपस बवनतजष्े रनतपेकपबजपवद जव बवदेपकमत ं ेनपज ूपजी तमेचमबज जव जीम कमबपेपवद व िंेेमेेपदह वििपबमत नदकमत ैण् 126ए वत ूपजी तमेचमबज जव ं कमबपेपवद व िजीम ंचचमससंजम ंनजीवतपजल नदकमत ैण् 127 पे इंततमक नदकमत ैण् 145 व िम्समबजतपबपजल ।बजए 2003ण्
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
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माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी मीटर बाईंडर की रिपोर्ट के पष्चात् आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी अषोक कुमार जैन द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।
8. आदेश आज दिनांक 10.05.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या