Rajasthan

Nagaur

72/2013

Smt.Seta Devi - Complainant(s)

Versus

AVVNL - Opp.Party(s)

Sh. Dinesh Heda

23 Jun 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 72/2013
 
1. Smt.Seta Devi
Basni Deja,Nagaur
...........Complainant(s)
Versus
1. AVVNL
Ajmer
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh. Dinesh Heda, Advocate
For the Opp. Party: Sh. Radheshyam Sangwa, Advocate
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 72/2013

 

सीतादेवी पत्नी श्री रामलाल, जाति-जाट, निवासी-बासनी सेजा, तहसील-मेडता सिटी, जिला-नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                               -परिवादी  

बनाम

 

1.            अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा अध्यक्ष/मुख्य प्रबन्ध निदेषक, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर, राजस्थान।

2.            सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, मेडता सिटी (ग्रामीण), जिला-नागौर (राज.)।                                                   

                                                    -अप्रार्थीगण 

 

समक्षः

1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री दिनेष हेडा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                             आ  दे  ष                 दिनांक 23.06.2016

 

 

1.            यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादिया (खातेदार) के खेत खसरा सं. 358 रकबा 03 बीघा में एक ट्यूबवेल है, जिसे परिवादिया ने मय ट्यूबवेल पूर्व खातेदार सीताराम पुत्र जयराम जाट, निवासी-बासनी सेजा से खरीद किया था। रामलाल ने इस ट्यूबवेल के सम्बन्ध में एक कृशि विद्युत कनेक्षन अप्रार्थीगण से ले रखा है जिसके खाता सं. 1323-2406-233 है तथा स्वीकृत व कनेक्टेड लोड 30 एचपी है। उक्त विद्युत कनेक्षन के सम्बन्ध में अप्रार्थीगण द्वारा जारी समस्त वैध बिलों का भुगतान परिवादिया द्वारा निर्धारित समयावधि में किया जा रहा है। परिवादिया ने उक्त ट्यूबवेल मय विद्युत कनेक्षन व खसरे के खरीद करने के बाद विद्युत कनेक्षन अपने नाम स्थानान्तरित करवाने के लिए अप्रार्थीगण के यहां आवेदन भी किया तथा दस्तावेज भी पेष किया लेकिन अप्रार्थीगण ने जानबुझकर आवेदन नहीं लिया। परिवादिया के उक्त ट्यूबवेल पर जारी विद्युत कनेक्षन कृशि विद्युत मीटर कनेक्षन है तथा उसके यहां लगा मीटर भी चालू हालात में है। इसके बावजूद अप्रार्थीगण उसे मनमाने तौर पर फ्लेट रेट से बिल जारी कर रहे हैं। इस बारे में भी परिवादिया निवेदन कर चुकी है मगर कोई सुधार नहीं किया गया। इस बीच अप्रार्थीगण ने उसके यहां दिनांक 02.06.2010 को सतर्कता जांच होना बताते हुए उसके कनेक्षन के सम्बन्ध में वीसीआर रिपोर्ट तैयार करना तथा गलत प्रकार से कनेक्षन खसरा संख्या 258 में षिफ्ट करना बताया जबकि उपरोक्त कनेक्षन पहले से ही खसरा संख्या 358 में स्थापित था तथा यह कनेक्षन मय खेत खसरा संख्या 358 को खातेदार सीताराम ने परिवादिया को वर्श 2004 में ही बेचान कर दिया था। जबकि उक्त वीसीआर में कनेक्षन को खसरा संख्या 357 में होने की बात गलत व असत्य दर्ज की गई। उक्त कनेक्षन खरीद किया उसी समय खसरा संख्या 358 में ही दर्ज था। अप्रार्थीगण ने गलत तरीके से परिवादिया की अनुपस्थिति में उसे बिना कोई सुनवाई का अवसर दिये मनमाने तरीके से वीसीआर तैयार की है तथा उसी वीसीआर के आधार पर उसके आगामी बिलों में 60,000/- रूपये जोडकर वसूली करने पर आमाद है। इसके अलावा अप्रार्थीगण उसे मनमाने तरीके से फ्लेट रेट से बिल जारी कर रहे हैं। अप्रार्थीगण की इस दोहरी मार के कारण परिवादिया उक्त बिलों को भुगतान करने में असमर्थ है। परिवादिया ने दिनांक 29.05.2012 को निगम के मुख्य अभियंता को पत्र लिखकर गलत प्रकार से तैयार वीसीआर एवं अवैध वसूली को निरस्त करवाने की मांग की है। जिसमें मुख्य अभियंता ने अधीक्षण अभियंता (योजना) के माध्यम से अधीक्षण अभियंता (पवस), नागौर को प्रकरण में उचित कार्यवाही के लिए निर्देषित भी किया मगर बावजूद इसके जानबुझकर कोई कार्यवाहीं नहीं की गई। परिवादिया ने बार-बार बिलों में सुधार का आग्रह किया मगर बिलों में कोई सुधार नहीं किया गया और ना ही वीसीआर को निरस्त किया गया। परिवादिया के कनेक्षन को भी स्थानान्तरित नहीं किया गया जबकि इसके लिए पत्रावती भी तैयार की गई। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः अप्रार्थीगण की ओर से तथाकथित तैयार की गई वीसीआर दिनांक 02.06.2010 को निरस्त किया जावे एवं विद्युत बिलों में जोडी गई राषि 60,000/- रूपये निरस्त किया जावे। परिवादिया को फ्लेट रेट पर जारी बिलों को निरस्त किया जाकर मीटर रीडिंग के आधार पर संषोधित बिल जारी किये जावे तथा परिवादिया द्वारा जमा करवाई गई राषि का समायोजन किया जावे। परिवादिया के विद्युत कनेक्षन को परिवादिया के नाम स्थानान्तरित करने का आदेष अप्रार्थीगण को दिया जावे। साथ ही परिवादी को परिवादी में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।

 

2.            अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादिया ने उक्त ट्यूबवेल मय विद्युत कनेक्षन व खसरे के खरीदने के दस्तावेजात अप्रार्थी संख्या 2 के कार्यालय में कभी भी प्रस्तुत नहीं किये। इस तरह से परिवादिया ना तो पहले और ना ही आज अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है। परिवादिया के कुए पर सुपर ट्रांसफाॅर्मर लगा हुआ है। सुपर ट्रांसफाॅर्मर में स्थापित मीटर बाॅक्स की वेल्डिग को तोडकर मीटर के साथ छेडछाड कर मीटर को खराब करने से मीटर में वास्तविक उपभोग यूनिट की खपत का सही आंकलन नहीं होने से मीटर को खराब मानकर फ्लेट रेट प्रणाली से परिवादिया को नियमानुसार बिल जारी किये गये। अप्रार्थीगण की ओर से उक्त जारी बिलों की राषि सही होने से अप्रार्थीगण इस प्राप्त करने के अधिकारी है। उपभोक्ता का विद्युत कनेक्षन खसरा नम्बर 247 में था जिसे खसरा नम्बर 247 से खसरा नम्बर 358 में षिफ्ट करवाना चाहता था जबकि परिवादिया उक्त विद्युत कनेक्षन खसरा नम्बर 358 में षिफ्टींग नहीं करके खसरा नम्बर 357 में अपने आप उक्त विद्युत कनेक्षन को बिना अनुमति के षिफ्टींग कर लिया। निगम के अधिषाशी अभियंता (सतर्कता) ने उपभोक्ता के परिसर पर स्थापित ट्यूबवेल की जांच दिनांक 06.02.2010 को करने पर उक्त ट्यूबवेल 358 के खसरे की बजाय खसरा नम्बर 357 में बिना अनुमति षिफ्टींग करना पाया गया। परिवादिया का उक्त कृत्य विद्युत चोरी की श्रेणी में आता है। ऐसे मामले माननीय मंच के श्रवण क्षेत्राधिकार में नहीं होने से परिवाद मय हर्जा-खर्चा खारिज किया जावे। परिवादिया के यहां वीसीआर षीट भरी गई, उसके बाद ही एसेसमेंट करके राषि जमा करवाने का नियमानुसार नोटिस दिया गया। जिस पर परिवादिया ने कोई आपति दर्ज नहीं करवाई। उपभोक्ता ने सर्वप्रथम कृशि पत्रावली खसरा नम्बर 247 में जमा करवाई, उसके बाद उक्त विद्युत कनेक्षन को खसरा नम्बर 247 से खसरा नम्बर 358 में षिफ्टींग पत्रावली जमा करवायी गई तथा कुए का नक्ष मौका भी गलत पेष किया। खसरा नम्बर 358 से उक्त विद्युत कनेक्षन खसरा नम्बर 357 में अपने आप ही षिफ्ट कर लिया, जिसकी जांच निगम के सतर्कता अधिकारी द्वारा की गई तो परिवादिया ने बिना स्वीकृति के अपने आप ही उक्त विद्युत कनेक्षन को षिफ्ट करके विद्युत सप्लाई काम में लेती पाई गई, आज की तारीख में उक्त विद्युत कनेक्षन खसरा नम्बर 738 सरकारी जमीन में षिफ्ट किया हुआ है। परिवादिया ने माननीय मंच को गुमराह कर परिवाद पेष किया है। परिवादिया ने परिवाद 2013 में पेष किया, जो अंदर मियाद में भी नहीं रहा। अतः इसे मय हर्जा-खर्चा निरस्त किया जावे।

 

3.            दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।

 

4.            बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादिया की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही अप्रेल 2009 का बिल प्रदर्ष 1, वीसीआर षीट प्रदर्ष 2, अक्टूबर 2011 से दिसम्बर 2012 की अवधि के कुछ बिल प्रदर्ष 3 से प्रदर्ष 8, रामलाल द्वारा सहायक अभियंता को प्रस्तुत आवेदन प्रदर्ष 9, रिपोर्ट प्रदर्ष 10, परिवादिया द्वारा अप्रार्थी पक्ष को प्रस्तुत आवेदन प्रदर्ष 11, अधीक्षण अभियंता का पत्र प्रदर्ष 12, षुल्क जमा कराने की रसीद प्रदर्ष 13, सीताराम द्वारा बेचान बाबत् दिया षपथ-पत्र प्रदर्ष 14, नकल जमाबंदी प्रदर्ष 15 व 16, नकल खसरा प्रदर्ष 17, सीतादेवी का षपथ-पत्र प्रदर्ष 18 एवं कृशि कनेक्षन में नाम परिवर्तन की पत्रावली प्रदर्ष 19 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया द्वारा नियमानुसार विद्युत बिल जमा करवाये जाते रहे हैं लेकिन अप्रार्थीगण ने मनमाने रूप से वीसीआर षीट तैयार कर बिलों में 60,000/- रूपये जोडकर मांग की जा रही है, जो कि विधि विरूद्ध है। उनका तर्क रहा है कि विद्युत कनेक्षन पहले से ही खसरा नम्बर 358 में स्थापित था जबकि वीसीआर षीट एवं अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत अन्य दस्तावेजात में खसरा नम्बर गलत अंकित किये गये हैं, जिससे स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण द्वारा मनमाने ढग से वीसीआर षीट तैयार कर परिवादिया को परेषान किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर वीसीआर षीट निरस्त करने के साथ ही संषोधित बिल जारी करने का आदेष दिया जावे।

 

5.            अप्रार्थी पक्ष द्वारा भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही नकल जमाबंदी प्रदर्ष ए 1 व ए 2, सीताराम पुत्र जयराम द्वारा प्रस्तुत मूल कनेक्षन पत्रावली प्रदर्ष ए 3, नकल नक्षा खसरा प्रदर्ष ए 4, नकल जमाबंदी प्रदर्ष ए 5, वीसीआर षीट प्रदर्ष ए 6, नकल नक्षा खसरा प्रदर्ष ए 7, कनिश्ठ अभियंता की रिपोर्ट प्रदर्ष ए 8, सीताराम पुत्र जयराम द्वारा अप्रार्थी पक्ष को दिया आवेदन पत्र प्रदर्ष ए 9 तथा अप्रार्थीगण द्वारा उपभोक्ता को जारी नोटिस प्रदर्ष ए 10 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में उपभोक्ता के विद्युत सम्बन्ध की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा किये जाने पर पाया कि उपभोक्ता अपने खसरा से विद्युत कनेक्षन अन्य खसरा में षीफ्ट कर रामलाल जाट के खेत में चला रहा था, ऐसी स्थिति में दिनांक 01.07.2010 को उपभोक्ता को रजिस्टर्ड नोटिस दिया जाकर प्रषमन राषि की मांग की गई, लेकिन उपभोक्ता द्वारा टालमटोल की जाती रही तथा बाद में मनगढत तथ्यों के आधार पर यह परिवाद पेष कर दिया जो कि खारिज होने योग्य है क्योंकि परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है।                               अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-

(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014

(2.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद

 

6.            पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण के द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालयों द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 6 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि जांच के समय यह पाया गया कि उपभोक्ता द्वारा जिस खसरा में विद्युत सम्बन्ध लिया हुआ था वहां से बिना अनुमति अन्य खसरा में षिफ्ट कर सीतादेवी पत्नी रामलाल जाट के खेत में चलाया जा रहा था। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि इसी वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष 6 के आधार पर परिवादी के विरूद्ध दिनांक 01.07.2010 को जारी नोटिस प्रदर्ष ए 10 अनुसार 60,000/- रूपये बकाया राषि की मांग की गई है। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि इस मामले में परिवादी के विरूद्ध वी.सी.आर. षीट के आधार पर गणना की जाकर बकाया राषि निकालते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 01.07.2010 को डिमांड नोटिस प्रदर्ष ए 10 जारी किया गया है तथा उपभोक्ता द्वारा मामले के प्रषमन हेतु उपस्थित न आने एवं डिमांड नोटिस की राषि जमा न करवाने की स्थिति में ही उपभोक्ता के नाम से बाद में जारी होने वाले बिलों में 60,000/- रूपये की बकाया राषि जोडी गई है। यद्यपि परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि वीसीआर षीट में अंकित खसरा नम्बर एवं अन्य दस्तावेजों में अंकित खसरा नम्बर में अंतर रहा है लेकिन इस सम्बन्ध में विधिक स्थिति स्पश्ट है कि परिवादी का मामला उपभोक्ता न्यायालय में पोशणीय न होने के कारण वीसीआर षीट की गुणवता (मैरिट) पर विचार किया जाना निर्रथक है। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि

  1. Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003

        इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, आदेष दिनांकित 01.12.2014 वाला मामला भी वीसीआर षीट से सम्बन्धित था एवं जांच के समय मीटर बंद पाया गया था, ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग द्वारा यही अभिनिर्धारित किया गया कि जहां वीसीआर के आधार पर बकाया की गणना मत धारा 126 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो तथा कार्रवाई धारा 135 से 140 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो वहां उपभोक्ता न्यायालय को परिवाद सुनवाई का अधिकार नहीं बनता है।

माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी सतर्कता जांच रिपोर्ट के पष्चात् बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।

 

 

 

आदेश

 

 

 

7.            परिणामतः परिवादिया सीतादेवी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादिया इस हेतु स्वतंत्र होगी कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।

 

8.            आदेश आज दिनांक 23.06.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।       ।ईष्वर जयपाल।          ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।

    सदस्य               अध्यक्ष                       सदस्या

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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