जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं 71/2014
सदीक खां पुत्र मोईदीन खां, जाति-कायमखानी, व्यास पेट्रोल पंप के पीछे, मूण्डवा रोड, नागौर- 341001 -परिवादी
बनाम
1. प्रबन्धक, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, हाथीभाटा, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री अर्जुनदास, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 06.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से एक घरेलू विद्युत कनेक्षन खाता संख्या 2424-0025 ले रखा है। परिवादी द्वारा अप्रार्थीगण की ओर से जारी समस्त वैध बिलों का भुगतान निर्धारित समयावधि में किया जाता रहा है। पूर्व में परिवादी का मीटर बंद था तो उसने मीटर बदलने के लिए अप्रार्थीगण के समक्ष आवेदन भी किया मगर परिवादी का मीटर नहीं बदला गया। इस पर पुनः आवेदन किया गया तो अप्रार्थीगण के कर्मचारियों ने परिवादी के साथ अभद्र व्यवहार करते हुए गलत बिल भेज दिया। जिस पर परिवादी ने मंच के समक्ष परिवाद पेष किया जो परिवाद संख्या 290/10 दिनांक 01.06.2011 को स्वीकार कर निर्णय पारित किया गया। इसके चलते नाराज होकर अप्रार्थीगण के कार्मिक परिवादी के साथ बदले की भावना से काम करने लगे। मंच के आदेष की पालना के लिए भी परिवादी को धारा 27, उपभोक्ता अधिनियम के तहत आवेदन करना पडा। अप्रार्थीगण के कार्मिकों ने तो दुर्भावना वष परिवादी के फरवरी, 2014 का बिल जानबुझकर 13,424/- रूपये का जारी कर दिया। जिसके भुगतान की तारीख 05.03.2014 थी लेकिन परिवादी दिनांक 03.03.2014 को अप्रार्थी संख्या 3 के आवेदन लेकर गया तो उन्होंने आवेदन लेने से इंकार कर दिया। इंकार करने पर परिवादी ने उसी दिन यह आवेदन रजिस्टर्ड डाक से भेज दिया। इस तरह अप्रार्थीगण ने परिवादी को फरवरी, 2014 का गलत बिल जानबुझकर भेजा तथा निरीक्षण रिपोर्ट दिनांक 18.12.2013 भी गलत बनाई गई। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः परिवादी को भेजा गया बिल फरवरी, 2014 राषि 13,424/- रूपये का निरस्त किया जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब प्रस्तुत कर बताया गया है कि दिनांक 09.01.2014 को अप्रार्थी निगम के सहायक अभियंता (सतर्कता) द्वारा परिवादी के परिसर की मौके पर जांच की गई तो पाया कि परिवादी ने अपने मीटर वाली सर्विस लाइन के अलावा अपने घर के पिछवाडे स्थित एलटी लाइन के पोल से काले रंग के केबिल का अकुडिया लगाकर अपने घर में अवैध रूप से विद्युत सप्लाई लेकर विद्युत चोरी करते हुए पाया गया। मौके पर फोटो ली जाकर काले रंग की केबल जब्त की गई। यह भी बताया गया है कि मौके पर वीसीआर षीट भरी जाकर इस षीट के आधार पर एसेसमेंट कर बकाया राषि 13,222/- रूपये की वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया। तब परिवादी ने विद्युत चोरी की जुर्माना राषि से बचने के लिए झूठे तथ्यों के आधार पर यह परिवाद पेष किया है। जो मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही माह फरवरी, 2014 का बिल प्रदर्ष 1, मीटर टेस्टिंग रिपोर्ट प्रदर्ष 2, षिकायत पत्र प्रदर्ष 3, इसी मंच का आदेष दिनांक 01.06.2011 प्रदर्ष 5, इजराय आवेदन प्रदर्ष 6, अप्रार्थीगण के कार्यालय की टिप्पणी प्रदर्ष 7 एवं विद्युत उपभोग के बिल प्रदर्ष 8 से प्रदर्ष 13 पेष किये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने बहस के दौरान मौके के कुछ छाया चित्र पेष कर तर्क दिया है कि वास्तव में परिवादी के परिसर की सतर्कता कमेटी द्वारा कोई जांच नहीं की गई बल्कि फर्जी वीसीआर षीट तैयार कर परिवादी से अवैध मांग की जा रही है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर गलत रूप से जारी बिल अपास्त किये जायें।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में परिवादी परिसर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा किये जाने पर परिवादी द्वारा मौके पर अपने मीटर वाली सर्विस लाइन के अलावा अपने घर के पिछवाडे स्थित एलटी लाइन के पोल से काले रंग के केबिल का अकुडिया लगाकर अपने घर में अवैध रूप से विद्युत सप्लाई लेकर विद्युत चोरी की जा रही थी। जिस पर वीसीआर रिपोर्ट तैयार की गई। इसी वीसीआर रिपोर्ट के आधार पर गणना कर बकाया राषि की वसूली हेतु दिनांक 17.01.2014 को नोटिस प्रदर्ष 2 जारी किया गया। यह भी बताया गया है कि परिवादी का कृत्य विद्युत चोरी का होकर दण्डनीय अपराध रहा है। ऐसी स्थिति में परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आने से खारिज होने योग्य है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014
(2.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण के द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालय द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. प्रदर्ष ए 3 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी के परिसर में स्थापित विद्युत सम्बन्ध एवं मीटर की जांच सतर्कता अधिकारी द्वारा दिनांक 09.01.2014 को की गई थी, जिसके अनुसार परिवादी द्वारा मौके पर अपने मीटर वाली सर्विस लाइन के अलावा अपने घर के पिछवाडे स्थित एलटी लाइन के पोल से काले रंग के केबिल का अकुडिया लगाकर अपने घर में अवैध रूप से विद्युत सप्लाई लेकर विद्युत चोरी की जा रही थी। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 3 के आधार पर ही कार्यालय रिपोर्ट ली जाकर परिवादी द्वारा की गई विद्युत उपभोग बाबत् राषि की गणना कर सिविल दायित्व की राषि जोडते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 17.01.2014 को जारी नोटिस प्रदर्ष ए 2 अनुसार 13,222/- रूपये बकाया राषि की मांग की गई है। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि इस मामले में परिवादी के विरूद्ध वी.सी.आर. षीट के आधार पर गणना की जाकर बकाया राषि निकालते हुए परिवादी के विरूद्ध दिनांक 17.01.2014 को डिमांड नोटिस प्रदर्ष ए 2 जारी करते हुए ही माह फरवरी, 2014 का बिल जारी किया गया है। यद्यपि परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि केन्द्रीय सतर्कता जांच कमेटी द्वारा मौके पर कोई जांच नहीं की गई तथा अप्रार्थी पक्ष जो फोटो पेष किये गये हैं, वह सही नहीं है बल्कि परिवादी पक्ष द्वारा प्रस्तुत से फोटो से स्पश्ट है कि मौके पर परिवादी द्वारा किसी प्रकार की विद्युत चोरी नहीं की जा रही थी। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिये गये उपर्युक्त तर्क पर मनन किया गया। यद्यपि यह सत्य है कि इस मामले में अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत छाया चित्रों एवं परिवादी पक्ष द्वारा छाया चित्रों में अंतर है। लेकिन हस्तगत मामले के तथ्यों एवं पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए स्पश्ट है कि मामला वीसीआर षीट एवं विद्युत चोरी से सम्बन्धित रहा है तथा ऐसे मामले में परिवाद जिला उपभोक्ता मंच में पोशणीय न होने से इस सम्बन्ध में गुणावगुण के आधार पर कोई निश्कर्श दिया जाना उचित नहीं होगा। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि
Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, आदेष दिनांकित 01.12.2014 वाला मामला भी वीसीआर षीट से सम्बन्धित था एवं जांच के समय मीटर बंद पाया गया था, ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग द्वारा यही अभिनिर्धारित किया गया कि जहां वीसीआर के आधार पर बकाया की गणना कर धारा 126 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो तथा कार्रवाई धारा 135 से 140 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो वहां उपभोक्ता न्यायालय को परिवाद सुनवाई का अधिकार नहीं बनता है।
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी सतर्कता जांच रिपोर्ट के पष्चात् बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया है, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी सदीक खां द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
8. आदेश आज दिनांक 06.07.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या