Rajasthan

Ajmer

CC/308/2015

RAHMATULLAH - Complainant(s)

Versus

AVVNL - Opp.Party(s)

ADV. JAWAHAR LAAL

31 Mar 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/308/2015
 
1. RAHMATULLAH
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. AVVNL
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Vinay Kumar Goswami PRESIDENT
  Naveen Kumar MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण,         अजमेर

रहमतुल्ला खान उर्फ रहमजुल्ला खान  पुत्र स्व. श्री मांगू  खान , निवासी- खानपुरा, अजमेर । 
                                                -         प्रार्थी


                            बनाम

1.  सहायक अभियंता(डी-1) अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर । 
2.  प्रबन्ध निदेषक, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर

                                                -      अप्रार्थीगण
                 परिवाद संख्या 308/2015  

                            समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी       अध्यक्ष
                 2. श्रीमती ज्योति डोसी       सदस्या
3. नवीन कुमार               सदस्य

                           उपस्थिति
                  1.श्री जवाहर लाल षर्मा, अधिवक्ता, प्रार्थी
                  2.श्री लोकेष भिण्डा, अधिवक्ता अप्रार्थीगण

                              
मंच द्वारा           :ः- निर्णय:ः-      दिनांकः- 21.06.2016
 
 1.          प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार  हंै कि प्रार्थी  के पिता ने अपने जीवनकाल में  अप्रार्थीगण से  कुंए पर एग्रीकल्चर का एक विद्युत कनेक्षन लिया था।   उसके पिता के देहान्त के बाद वह उक्त कनेक्षन का उपयेाग कर रहा है । इस प्रकार वह  अप्रार्थीगण का विद्युत उपभोक्ता होकर एग्री मीटर्ड  संख्या 1806-103  के तहत नियमित रूप से उपभोग किए विद्युत बिलों का भुगतान  करता आ रहा है तथा उक्त विद्युत   कनेक्षन से प्राप्त होने वाली आय से अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करता है । उक्त कनेक्षन पर आदिनंाक तक कोई अनियमितता उसके पार्ट पर नहीं रही हंै । किन्तु  माह-मई,2015 के  विद्युत  बिल में  पिछली बकाया  राषि के काॅलम में रू. 16430/- बकाया दर्षाते हुए वर्तमान उपभोग की राषि रू. 24450.55 पै./-  व राज्य सरकार द्वारा वहन राषि रू. 15793.77 पै.  को कम करते हुए नियत तिथि तक देय राषि रू. 25592/-  का भेजा गया ।  उक्त अन्य देय राषि  के काॅलम में  दर्षित रू. 16430/- बाबत् पूर्व में न तो नोटिस भेजा गया और ना ही सुनवाई का अवसर दिया गया ।  अप्रार्थीगण से सम्पर्क करने पर  प्रार्थी को एक कागज की पर्ची देते हुए उक्त देय राषि जुलाई, 2009 से सितम्बर ,2011 की टेरिफ बदले जाने के कारण  निकाली जाना बताया व बिल की  राषि जमा नहीं कराने पर  विद्युत कनेक्षन बिना किसी सूचना के काट दिया जाना बताया । 
    प्रार्थी ने  आडिट के नाम पर अनुचित व अवैध वसूली को अप्रार्थीगण की सेवा में कमी का परिचायक बताया व स्वयं को  इससे पहुंची गम्भीर मानसिक व षारीरिक यंत्रणा के कारण उक्त वूसली को रोके जाने व इस कारण विद्युत कनेक्षन विच्छेद नहीं करने की गुहार लगाई है । परिवाद के समर्थन में  प्रार्थी ने स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है । 
2.    अप्रार्थीगण ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्तियों में परिवाद को त्ंरंेजींद ळवअजण् म्समबजतपबंस  न्दकमतजंापदह;क्नम त्मबवअमतलद्ध।बजण्1960 की धारा -5 के तहत सम्पूर्ण विवादित राषि को जमा करवाने से पूर्व  मंच में परिवाद दायर करने को बाधित एवं पोषणीय  नहीं होना बताया । विनिष्चय श्रटटछस् - ।दत टे  ैपजंतंउ - ।दतण्  2008 ॅस्ब्;न्ब्द्ध181   पर अवलम्ब लिया  तथा परिवाद को  विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के तहत मंच के समक्ष पोषणीय नहीं होना बताया । विनिष्चय ।प्त् 2006 ज्ञंतदंजंां 23ण् ग्म्छण् ज्ञच्ज्ब्स् टे प्ेूंतंउउं - ।दतण्ए  2007;3द्धब्च्त्ण्8 ।ध्ब् व्ििपबमत श्रींताींदक ैम्ठ टे डण् डनांतंउ ैींपाीए  2010;3द्धब्च्त्ण्79;छब्द्ध भ्ंतप ब्ींदक टे  भ्ंतंलंदं ैम्ठए 2010;2द्ध।प्त् श्रींताींदक त्मचवतजे 787 च्तंदंइ ब्ीवनकींतल टे  श्रींताींदक ैम्ठ - व्तेण्ए  20120;1द्धब्च्त् 172 ळींउंदकप ैपदही टे ैक्व् - व्तेण्ए  20120;1द्धब्च्त् 76;छब्द्ध ठपेूंदंजी डनाीमतरमम टे ॅठैम्ठए 1996;11द्धैब्ब्ण्58 ब्म्ैब् स्जक टे छण्डण् त्ंदां - ।दत   पर अवलम्ब लिया ।  अप्रार्थीगण के कर्मियों द्वारा विधिक प्रावधानों के तहत किए गए कार्यो के आधार पर उनके पारिणामिक कृत्यों को सेवा दोष नहीं माने जाने का तर्क देते हुए 1996;3द्धब्च्श्र 71;छब्द्ध डंीण् ैम्ठ टे ैूंेजपा प्दकनेजतपमे उद्वरित  किया ।  प्रार्थी द्वारा  अधीक्षण अभियंता व सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को पक्षकार बनाए बिना अनुतोष प्राप्त  नहीं होने योग्य बताया ।  विनिष्चय  1998;1द्धत्स्ॅ 251 ;क्ठद्ध ज्ञंतंद ैपदही टे क्तण् ठंसूंदज ैपदहीए 2012;1द्ध।रीितं स्ंू ज्पउमे  585 ज्तनचंजीप स्ंीवजप टे ब्ीपम िक्पअपेपवदंस  डंदंहमत ठच्ब्स्ए 2012 क्छश्र;ैब्द्ध181  ब्वंस डपदमे च्थ् टे त्ंामेी ब्ींदकतं पर अवलम्ब लिया, साथ ही आडिट आक्षेप की वैधानिकता बाबत् अनुतोष के अभाव में परिवाद को पोषणीय नहीं होना बताया । 
    चरणवार प्रत्युत्तर में परिवाद के तथ्यों को भ्रामक, मनगढन्त बताते हुए अस्वीकार किया । प्रार्थी को उसके द्वारा 24घण्टे बिजली मिलने की सुविधा का उपभोग किए जाने के कारण ऐसे उपभोक्ता को ’’ कृषि सेवा (एजी/एलटी-4)’’ के अन्तर्गत विद्युत नियामक आयोग द्वारा अनुमोदित ’’टेरिफ फाॅर सप्लाई आफ इलेक्ट्रिसिटी, 2004 ’’ के अनुसार  राषि अदा करने योग्य बताते हुए  ऐसे उपभोक्ताओं पर विद्युत आपूर्ति से संबंधित कोड सं. 9400 लागू   होना व इसके तहत विद्युत आपूर्ति का प्रभारण टैरिफ , 2004 की दरों  पर करना प्रार्थी का दायित्व होना बताया ।  इस प्रकार के उपभोक्ताओं पर लागू दर रू. 2.10 पै. प्रति यूनिट होना व इन्हें राज्य सरकार द्वारा  अनुदान देय नहीं होना बताया । आडिट द्वारा आक्षेप निकाला गया है कि प्रार्थी व उसके समकक्ष उपभोक्ताओं को विद्युत उपभोग की  बिलिंग  ब्लाॅक सप्लाई  कोड सं. 4400 के अन्तर्गत की जा रही थी जबकि इनसे वसूली कोड संख्या 9400  के तहत करनी थी । सहवन से उपाभोक्ता को कोड सं. 4400 पर टैरिफ 2001 के अनुसार  प्रभार राषि रू 1.65 पै.  वसूल की जा रही थी । इस प्रकार अंकेक्षण दल ने उक्त त्रुटि को  उजागर करते हुए अन्तर राषि को वसूल करने का जो प्रस्ताव दिया है, वह न्यायोचित है । 
    अन्त में विद्युत विभाग के विभिन्न जारी आदेष/ परिपत्र को उद्वरित करते हुए ऐसे कृषि उपभोक्ता, जिन्हें विद्युत आपूर्ति ब्लाॅक अर्थात घण्टो में दी जाती है, को अनुदान  या सब्सिडी  का लाभ दिए जाने योग्य  बताया तथा वे उपभोक्ता जिन्हें  24 घण्टे  बिजली दी जाती है,को अनुदान के हकदार नहीं होना बताते हुए इन पर दर रू. 2.10 पै  लागू होना मानते हुए  प्रार्थी का कोई वादकरण उत्पन्न नहीं होना कहते  हुए परिवाद खारिज होने योग्य बताया । जवाब परिवाद के समर्थन में  श्री भवानी सिंह, सहायक अभियंता  का षपथपत्र पेष किया है । 
3.    प्रार्थी ने बहस में परिवाद में उठाए गए मुद्दों को दोहराते हुए  अंकेक्षण दल द्वारा  उठाई गई आक्षेप राषि को अनुचित व अवैध बताते हुए इसे अप्रार्थीगण की सेवा में कमी का परिचायक  बताया एवं वर्तमान  राषि वसूली को गलत बताया है । वहीं अप्रार्थीगण की ओर से  इसे जायज व गलत कोडिंग के आधार पर सहवन से पूर्व में वसूली नहीं करना  व दुरूस्ती कर वसूली को सही बताया है । उनका यह भी तर्क रहा है कि प्रारम्भिक आपत्तियों  के प्रकाष में  परिवाद पोषणीय  नहीं है । इसी के क्रम  में लिखित बहस में भी इसे दोहराया है ।  
4.    हमने परस्पर तर्को को सुन लिया है और परिवाद में उपलब्ध अभिलेखों  व विनिष्चयों में प्रतिपादित दिषा निर्देषों का भी आदरपूर्वक अवलोकन कर लिया है । 
5.    प्रारम्भिक आपत्तियों बाबत् मंच की राय में इतना लिखना ही  पर्याप्त होगा कि तकनीकी पेचीदगियों के ताने बाने   में इनकी अक्षरक्षः पालना  नहीं किए जाने के फलस्वरूप परिवाद को निरस्त किए जाने  से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उद्देष्य ही समाप्त हो सकते हैं ।  हमें उपभोक्ताओं के अधिकारों को न्याय की तराजू से  तौलना है ।  इसी  के साथ हमें ऐसी सेवा प्रदाता ऐजेन्सी के कर्तव्यों की भी अनेदेखी नहीं करनी है । दोनों में सामंजस्य रखते हमें इस बात पर विचार करना है कि क्या अप्रार्थीगण के कृत्य से उपभोक्ता के अधिकारों में अनावष्यक हस्तक्षेप हुआ है । फलतः उठाई गई आपत्तियों को गौण मानते हुए  अब हम प्रकरण के गुणावगुण पर विचार करते हैं । 
6.    पत्रावली में उपलब्ध प्रार्थी के विद्युत उपभोग बिल माह- मई, 15 काॅलम सं. 28 में पिछले बिल तक बकाया राषि रू.  16430/- वसूली योग्य  बताई गई है । उभय पक्ष के अभिवचनों से यह राषि अंकेक्षण दल के आक्षेप पष्चात् उपभोक्ता /प्रार्थी का जो टेरिफ कोड 4400  था व जिसकी विद्युत आपूर्ति  24 घण्टे की रही थी, उन्हें आदेष दिनंाक 27.2.2007 के बाद टेरिफ कोड 9400  में परिवर्तित किया जाकर उनकी  बिलिंग टैरिफ- 2004  के अनुसार की जानी थी तथा इसमें छूट का कोई प्रावधान नहीं था । उनके अनुसार प्रार्थी का उक्त  पीरियड  माह- जुलाई, 2009  से माह- सितम्बर, 2011 तक  का था  तथा उसमें  जो रू. 1. 65 पै.  प्रति यूनिट वसूल की जा रही थी , के स्थान पर  रू. 2.10 पै. प्रति यूनिट की जानी थी । 
7.    पत्रावली में उपलब्ध राज्य सरकार के आदेष दिनांक 18.11.2006 के तहत ऐसी विद्युत दरों को रिवाईज करने का निर्णय है ,  जिसमें राज्य सरकार के द्वारा अनुदान देने का प्रावधान था । इसके बाद आदेष दिनांक 27.2.2007 के तहत जहां पर 24 घण्टे विद्युत सप्लाई की जा रही है , उसकी वसूली  सप्लाई आॅफ इलेक्ट्रिसिटी , 2004 के अनुसार रिकवर की जावें और  रिकवरी प्री-रिवाईज टैरिफ  के अनुसार की जावे । उसके बाद आदेष दिनंाक 13.2.2007 में  समन्वयक  समिति ने अपनी बैठक दिनंाक 18.1.2007 में विचार विमर्ष कर यह स्पष्ट किया कि कृषि सेवाऐं ए.जी/एल.टी-4 के अन्तर्गत आने वाले सभी उपभोक्ताओं को यदि 24 घण्टे बिजली मिल रही है, तो विद्युत नियामक आयोग द्वारा  अनुमोदित टैरिफ फोर सप्लाई  इलेक्ट्रिसिटी, 2004 के अनुसार  बिल जारी किए जाए और उनकी दर रू. 2.10 पै प्रति यूनिट तय की गई थी  जो उपभोक्ताओं से वूसल की जानी थी । 
8.    उपरोक्त स्थिति से यह स्पष्ट है कि अप्रार्थीगण द्वारा उपभेाक्ताओं को  विद्युत उपभोग बाबत् जो अनुदान दिया जाता था, में परिवर्तन वर्ष 2007 में ही किया जा चुका था  तथा  तदनुसार प्रार्थी के टैरिफ में जो कि 24 घण्टे बिजली सप्लाई की कैटेगिरी का हेाकर कोड न. 4400 को रू. 1.65 पै. प्रति यूनिट का था, का अनुदान समाप्त किया जाकर उससे कोड संख्या 9400  के तहत रू. 2.10 पै.  प्रति यूनिट  के हिसाब से बिलिंग की जानी थी। जो  आडिट रिपोर्ट  के अनुसार माह- जुलाई, 2009 से सितम्बर, 2011 तक नहीं की गई है । यह भी स्वीकृत स्थिति है कि अन्तर की राषि वसूली हेतु सर्वप्रथम प्रार्थी के  माह- जुलाई, 15 के विद्युत बिल में यह राषि वसूल किए जाने का उल्लेख आया है । यह भी स्पष्ट है कि  लगभग साढे तीन वर्षो की अवधि में वसूली बाबत्  अप्रार्थी के कोई प्रयास रहे हों अथवा प्रार्थी को कोई नोटिस दिया हो, ऐसी भी स्थिति  सामने नहीं  आई है । 
9.    यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा  कि राज्य सरकार अथवा विद्युत निगम, सरकार की नीति, संसाधनों की उपलब्धता, निगम की माली हालत, अन्य आवष्यक स्थिति-परिस्थितियों के प्रकाष में विद्युत दरों को तय करने, इनमें  वांछित कमी-बढ़ोतरी करने के लिए स्वतन्त्र एवं अधिकृत है  तथा यदि ऐसी तय दरें असंवैधानिक प्रतीत होती हैं तो  उपभोक्ता संबंधित आदेष / नोटिफिकेषन को उचित प्लेटफार्म में चुनौति देने के लिए स्वतन्त्र है । इस हेतु उपभोक्ता मंच माध्यम नहीं बन सकता । 
10.    बहरहाल  प्रकट स्थिति के अनुसार माह-जुलाई,09 से सितम्बर, 2011 तक की अन्तर्राषि जो अंकेक्षण रिपोर्ट के अनुसार वसूली  योग्य बताई जाकर माह-मई, 2015 के बिल के माध्यम से बकाया बताई गई है, वह निष्चित तौर पर लगभग साढे तीन माह पष्चात  की  गई है,  तथा इसका कारण अप्रार्थीगण द्वारा  सहवन  से गलत कोडिंग करना बताया जा रहा है ।  अनुदान समाप्त किए जाने अथवा कोड बदलने के बाद विद्युत दरों में परिवर्तन किए जाने की सूचना से पूर्व  प्रार्थी को नोटिस नहीं दिया जाना, प्राकृतिक न्याय के सिद्वान्तों  की स्पष्ट अवेहलना  कहा जा सकता है ।  माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विनिष्चय 2011 क्छश्र;ैब्द्ध358 डनदपबपचंस ब्वउउपजजममए भ्वेीपंतचनत टे च्नदरंइ ैजंजम म्समबजतपबपजल ठवंतक - व्तेण्  में यही अभिनिर्धारित किया है, जैसा कि प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत इस नजीर में स्पष्ट है । 
11.    फलतः उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में निष्कर्ष के तौर पर इस मंच की राय में अप्रार्थीगण द्वारा  प्रार्थी के विद्युत बिल माह- मई, 15 में राषि रू. 16430/- जो  अंकेक्षण दल की आपत्ति के आधार पर मांग की गई है , वह अनुचित व अवैध है एवं  निरस्त होने योग्य है । इस राषि को वह आगे के बिलों में भी वसूल नही ंकर सकेगा ।   प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि 
                        :ः- आदेष:ः-
12.    (1)    अप्रार्थीगण प्रार्थी से माह-मई, 15 के बिल में अन्य देय षीर्षक में दर्षाई गई राषि  रू. 16430/- वसूल नही ंकर सकेगें । 
            (2)       प्रार्थी अप्रार्थी से मानसिक क्षतिपूर्ति के पेटे रू.2500/- एवं परिवाद व्यय के पेटे रू.  2500/- भी प्राप्त करने का  अधिकारी होगा । 
            (3)    क्रम संख्या 2 में वर्णित राषि अप्रार्थीगण प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें   अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।  
          आदेष दिनांक 21.06.2016 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

                
(नवीन कुमार )        (श्रीमती ज्योति डोसी)      (विनय कुमार गोस्वामी )
      सदस्य                   सदस्या                      अध्यक्ष    
           

 

 

 
 
[ Vinay Kumar Goswami]
PRESIDENT
 
[ Naveen Kumar]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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