जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
नारायण दास पुत्र स्व. श्री परसराम, जाति- सिन्धी, निवासी- मकान नं. 2627,षोभाराम मौहल्ला, नसीराबाद, जिला-अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जरिए सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नसीराबाद, जिला-अजमेर ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 129/2016
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री धमेन्द्र कुमार जैन, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री लोकेष भिण्डा, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 21.06.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि वह सम्पति संख्या 2691, षोभाराम मोहल्ला नसीराबाद में निवास करता है और उक्त सम्पति में एक विद्युत कनेक्षन संख्या 1804-0141 श्री बूलचन्द पुत्र गुरानमल के नाम से लिया हुआ है । जिसके उपयोग उपभोग के बिल माह- नवम्बर, 2015 तक के उसके द्वारा जमा करवाए जा चुके है । अप्रार्थी विद्युत मण्डल ने जनवरी, 2016 का बिल 845 यूनिट का रू. 78842/- का, मद संख्या 21, 22 में अन्य खर्च के रू. 73277/- जोड़ते हुए भेजा । इसकी षिकायत अप्रार्थी से किए जाने पर उसे बताया गया कि उक्त बिल में अंकित अन्य खर्च की राषि आडिट पार्टी ने इस आधार पर निकाली है कि मीटर नवम्बर, 2009 में खराब था और आगे चलकर मीटर बन्द हो गया । इसलिए माह- मई, जुलाई व सितम्बर, 2009 के यूनिट 3129़ 1031़ 1103त्र5263/3 त्र 1754 उपभोग की राषि है । अप्रार्थी द्वारा मांग की जा रही उक्त राषि गलत है क्योंकि प्रष्नगत मीटर को बदलने के आदेष दिनांक 1.12.2008 को हुए थे और माह- जनवरी, मार्च 2009 में रीडिग नहीं लिखने से एवरेज का बिल भेजा गया था। मई 2009 के बिल में जो यूनिट आई है वह 4 माह की 3129 यूनिट है । इसी प्रकार नवम्बर, 2011 से सितम्बर, 12 तक के 6 बिलों के जरिए भी 1754 यूनिट के हिसाब से राषि वसूल की है । जबकि एवरेज 974 यूनिट के हिसाब से लिया जाना था । इस प्रकार जितने भी पुराने बिल व यूनिट का अवलोकन किया जाए तो उसके द्वारा कभी भी 1754 यूनिट का उपभोग नहीं किया है । अप्रार्थी द्वारा जनवरी, 2016 के माध्यम से जो अन्य देय राषि वसूल की जा रही है वह उनकी सेवा में कमी का परिचायक है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत करते हुए उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में प्रार्थी ने स्वय का ष्षपथपत्र पेष किया ।
2. अप्रार्थी ने जवाब प्रस्तुत करते हुए परिवाद की चरण संख्या 1 रिकार्ड से संबंधित होना दर्षाते हुए कथन किया है कि उत्तरदाता द्वारा प्रार्थी से जनवरी, 2016 के बिल के माध्यम से अन्य देय राषि की जो मांग की गई है , वह प्रार्थी का विद्युत मीटर नवम्बर, 2009 से सितम्बर, 2012 तक खराब होने के कारण पिछले 6 माह के 3 बिल की औसतन 1754 यूनिट के आधार पर की जा रही है । प्रार्थी द्वारा 3 वर्ष में केवल 6205 यूनिट के बिल की राषि ही जमा करवाई है । प्रार्थी को बकाया राषि का मांग पत्र जरिए पत्र क्रमांक 3568 दिनांक 29.12.2015 के द्वारा भिजवाया जा चुका है । अप्रार्थी द्वारा आडिट की राषि नियमानुसार मीटर खराब होने से पूर्व 6 माह के 3 बिल के औसत के आधार पर निकाली गई है, जो पूर्णतया सही व वैध है । इस प्रकार उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी नहीं की गई । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब परिवाद के समर्थन में श्री मुकेष कुमार जैन, सहायक अभियंता का षपथपत्र पेष किया गया है ।
3. प्रार्थी की बहस रही है कि अप्रार्थी द्वारा जो सर्वप्रथम बिल जनवरी, 16 का भेजा गया, उसके अन्य खर्च के मद में रू. 73277/- की बकाया राषि निकाली गई है वह उचित नहीं है । उसे न तो पूर्व में सूचना दी गई और ना ही कोई नोटिस जारी किया गया । यह राषि नवम्बर, 2009 में विद्युत मीटर खराब होने व आगे चलकर बन्द होने से दर्षित करते हुए 3 बिल यथा मई, जुलाई व सितम्बर,2009 की यूनिट्स को औसत मानते हुए 1754 के आधार पर आगे गणित करते हुए बकाया बताई गई है व इसलिए भी गलत है क्योंकि मई, 2009 के बिल में जो यूनिट बताई गई थी वो 4 माह की थी । उसे चाहा गया अनुतोष दिलाया जावें ।
4. अप्रार्थी ने खण्डन में परिवाद को निराधार व असत्य बताया है । उनका तर्क रहा है कि उक्त आडिट रिपोर्ट के आधार पर बकाया की सूचना प्रार्थी को पूर्व में दी जा चुकी थी । प्रार्थी का विद्युत मीटर नवम्बर, 2009से सितम्बर, 2012 तक खराब रहा था तथा उक्त अवधि में औसतन यूनिट ली गई । आगे कथन किया है कि अप्रेल, 2009 से अगस्त, 2009 के पिछले 6 माह के 3 बिल की औसत यूनिट 1754 निर्धारित करते हुए आगे के बिलों में इस औसत यूनिट को ध्यान में रख कर जो राषि निकाली गई ह,ै वह बिल्कुल उचित है । परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया ।
4. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हंै तथा पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन कर लिया हैं ।
5. हस्तगत प्रकरण में प्रार्थी को सबसे पहले जनवरी, 16 में भेजे गए बिल में विवादित राषि का उल्लेख लिया गया है, तथा इसकी सूचना इस बिल से पूर्व अप्रार्थी द्वारा पत्र दिनंाक 29.1.2.2015 के प्रार्थी को देना बताया गया है । अप्रार्थी की इस स्वीकारोक्ति से यह तो स्पष्ट है कि प्रार्थी को सर्वप्रथम इसकी सूचना दिनांक 29.12.2015 के पत्र से दी गई थी। हालांकि प्रार्थी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उक्त तथाकथित विवादित राषि के बिल के पीछे का मूल कारण क्या था ? परन्तु परिवाद में अंकित तथ्य व इसके प्रतिउत्तर को देखने से यह प्रकट होता है कि विवाद का मूल कारण प्रार्थी का विद्युत मीटर खराब होना व औसत राषि के बिल जारी होना रहा है । यह भी प्रकट है कि प्रार्थी का मीटर नवम्बर, 2009 से सितम्बर, 2012 तक खराब रहा था तथा इस अवधि के बिल अप्रार्थी द्वारा मई, 09 से अगस्त, 09 के पिछले 6 माह के 3 बिल की औसत यूनिट 1754 को ध्यान में रखते हुए जारी किया गया । कहने का तात्पर्य यह है कि अप्रार्थी द्वारा 6 माह के बिलों की यूनिट की औसत निकाली गई है । प्रार्थी ने मई, 2009 के बिल में आई यूनिट को 4 माह की बताई है तथा मीटर 1.12.2008 को बदलने के आदेष के बाद मार्च, 2009 में रीडिग नहीं लिखने से एवरेज बिल दिया जाना बताया तथा मई माह में 4 माह का
3129 यूनिट का उपभोग करना बताया है । इस मई, 09 के बिल की तथ्यात्मक स्थिति का अप्रार्थी की ओर से कोई खण्डन नहीं किया गया है । अतः यह स्पष्ट है कि विगत 2 माह का उपभोग नहीं था अपितु 4 माह के विद्युत उपभोग की स्थिति थी। इस प्रकार इस स्थिति की गणना करते हुए जारी 3 बिलों में 6 माह के बजाय 8 माह की स्थिति सामने आती है । अप्रार्थी द्वारा जो पिछले 6 माह के 3 बिल की औसत यूनिट 1754 बताई गई है वह उचित नहीं कही जा सकती । उनके द्वारा इस आधार पर की गई गणना को ध्यान में रखते हुए जो रू. 73277/- की राषि आडिट रिपोर्ट के आधार पर दर्षाई गई है, वह उचित नहीं कही जा सकती । इसके अलावा स्वीकृत रूप से प्रार्थी के नवम्बर, 2009 से सितम्बर, 12 तक मीटर खराब होने के बाद इसकी वसूली हेतु
29.12.2015 अर्थात सवा तीन सासल बाद जो आडिट के आधार पर वसूली की जा रही है, वह भी उचित नहीं है तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्वान्तों के विरूद्व है । जब सितम्बर, 12 के बाद प्रार्थी का मीटर सही हो गया था तथा इसके बाद उसके द्वारा किए गए विद्युत उपभोग का बिल बराबर दिया जाता रहा था तब उसी समय अप्रार्थी के लिए यह अपेक्षित था कि वह पूर्व में बन्द हुए मीटर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए औसत के आधार पर बिल जारी करता। चूंकि ऐसा नहीं किया गया है, अतः अब देरी से की गई कार्यवाही उपभोक्ता के प्रति कुठाराघात है एवं अप्रार्थी की सेवा में कमी का परिचायक है ।
6. सार यह है कि उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
7. (1) अप्रार्थी प्रार्थी से माह-जनवरी, 16 के बिल में मद संख्या 21, 22 में अन्य खर्च के रूप में दर्षाई गई राषि 73277/- वसूल नही ंकर सकेगें ।
(2) प्रार्थी अप्रार्थी से मानसिक क्षतिपूर्ति के पेटे रू.5000/- एवं परिवाद व्यय के पेटे रू. 2500/- भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(3) क्रम संख्या 2 में वर्णित राषि अप्रार्थीगण प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।
आदेष दिनांक 21.06.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष