Rajasthan

Jhunjhunun

EA/50/2014

Motilal - Complainant(s)

Versus

AVVNL - Opp.Party(s)

Kayam Singh

07 Jan 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. EA/50/2014
 
1. Motilal
Bhomapura, Chidava, Jhunjhunu
...........Complainant(s)
Versus
1. AVVNL
Chidava, Jhunjhunu
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

      तारीख हुक्म
    .                           परिवाद संख्या 50/14
.    
                               हुक्म या कार्यवाही मय इनिषियल्स जज
मोतीलाल   बनाम   सहायक अभियंता, अ.वि.वि.नि.लि.कार्यालय चिड़ावा जिला झुंझुनू (राज.) 
                                नम्बर व तारीख अहकाम जो इस हुक्म की तामिल में जारी हुए
07.01.2016           प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा 25 व 27 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम,1986  
        प्रार्थी की ओर से वकील श्री कायम सिंह उपस्थित। विपक्षी की ओर से वकील श्री लाल बहादुर जैन उपस्थित। उभयपक्ष की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।     
        विद्वान् अधिवक्ता प्रार्थी ने प्रार्थना पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि प्रार्थी/परिवादी ने इस मंच के समक्ष एक परिवाद संख्या 508/2013 पेष किया था, जिसके निर्णय दिनांक    20.05.2014 के अनुसार आदेष दिया गया कि परिवादी द्वारा पुनः विद्युत कनेक्षन स्थापित किये जाने हेतु प्रार्थना पत्र पेष करने पर नियमानुसार पुनः विद्युत कनेक्षन की राषि जमा करने की तिथि से एक माह की अवधि में परिवादी को विद्युत कनेक्षन दिया जावे। अन्यथा स्थिति में परिवादी, विपक्षी से 5000/-रूपये हर्जे खर्चे के रूप में प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
        विद्वान् अधिवक्ता प्रार्थी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि विपक्षी ने निर्णय की जानबूझकर पालना नहीं की है, जो न्यायालय आदेष की अवहेलना है।
        अंत में प्रार्थी ने प्रार्थना पत्र मय खर्चा स्वीकार फरमाया जाकर विपक्षी सेे मंच के आदेष की पालना करवाकर प्रार्थी को तुरंत विद्युत कनेक्षन दिलाये जाने एवं आदेष की अवहेलना के लिये सिविल जेल भेजे जाने की प्रार्थना की है।
        विद्धान अधिवक्ता विपक्षी/अप्रार्थी ने उक्त तर्को का विरोध करते हुए अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने परिवाद संख्या 508/13 में स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि परिवादी के पिता का देहांत हो चुका है। परिवादी जिस कनेक्षन को चालु करवाना चाहता है वह कनेक्षन हरचंद पुत्र तोलाराम के नाम से स्थापित था। कानूनन मृत व्यक्ति द्वारा पुनःआवेदन या कोई भी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। नियमानुसार परिवादी उक्त पत्रावली में अपना नाम परिवर्तन करवाकर दो साल के अंदर-अंदर पुनः विद्युत कनेक्षन करवा सकता था। यदि नाम परिवर्तन नहीं करवाता है तो उसे 


नये कनेक्षन हेतु पत्रावली जमा करवानी चाहिये थी, जो परिवादी द्वारा जमा नहीं करवाई गई है। मृत व्यक्ति के नाम से कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। विपक्षी द्वारा माननीय मंच के आदेष की कोई अवहेलना नहीं की गई है। 
       अन्त में विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया। 
       उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
       प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी के विद्वान् अधिवक्ता का यह कथन है कि परिवादी जिस कनेक्षन को चालु करवाना चाहता है वह कनेक्षन हरचंद पुत्र तोलाराम के नाम से स्थापित था, जिसकी मृत्यु हो चुकी है। कानूनन मृत व्यक्ति द्वारा पुनःआवेदन या कोई भी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। 
       पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को उसके पिता के नाम से बकाया राषि जमा कराने का नोटिस दिया गया तथा परिवादी मोतीलाल द्वारा उक्त बकाया राषि विपक्षी के कार्यालय में जमा करवाई जा चुकी है। इस मंच द्वारा परिवादी मोतीलाल द्वारा प्रस्तुत परिवाद संख्या 508/13 में दिनांक 20.05.2014 को आदेष दिया गया है। इसलिये यदि परिवादी के पिता के नाम से पुनः नियमानुसार कनेक्षन संभव नहीं था तो विपक्षी को परिवादी से नियमानुसार नाम परिवर्तन हेतु प्रार्थना पत्र लिया जाकर परिवादी को उक्त आदेष की पालना में कनेक्षन पुनः स्थापित करना चाहिये था। विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी द्वारा आज तक प्रार्थी/परिवादी को नियमानुसार उक्त कनेक्षन क्यों नहीं दिया गया, इसका कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण पत्रावली में पेष नहीं किया गया है। 
      अतः विपक्षी को हिदायत देते हुये यह आदेष दिया जाता है कि परिवादी द्वारा नाम परिवर्तन हेतु नियमानुसार प्रार्थना पत्र पेष करने पर पुनः विद्युत कनेक्षन की राषि जमा कराने की तिथि से 15 दिवस की अवधि में नाम परिवर्तन कर पुनः विद्युत कनेक्षन स्थापित कर दिया जावे। इस मंच के पूर्व आदेष की पालना नहीं करके अवज्ञात्मक रूप दर्षित न करें तथा उक्त पालना में किसी प्रकार की कोताही व हठधर्मिता नहीं बरतें । इस निर्देष के साथ प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
         पत्रावली फैषल शुमार होकर बाद तकमील दाखिल दफतर हो।
         आदेश आज दिनांक 07.01.2016 को लिखाया जाकर मंच द्वारा सुनाया गया। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

    

 

 

 

 

 

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