जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 178/2013
मेघाराम पुत्र श्री रेखाराम, जाति-जाट, निवासी-खींवसर, तहसील-खींवसर, जिला-नागौर, प्रोपराइटर महादेव आॅयल मिल्स, खींवसर, जिला-नागौर (राज.)।
-परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा अध्यक्ष/मुख्य प्रबंध निदेषक, प्रधान कार्यालय, हाथीभाटा, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, खींवसर, जिला-नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री दिनेष हेडा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 19.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से एक मध्यम औद्योगिक श्रेणी (डप्च्) का विद्युत कनेक्षन (स्वीकृत भार 120 अष्व षक्ति तथा सम्बद्ध भार भी 120 अष्व षक्ति) ले रखा है। जिसके खाता संख्या 0692-0007 है। उक्त विद्युत कनेक्षन के सम्बन्ध में जारी सभी विद्युत बिलों का भुगतान परिवादी द्वारा निर्धारित समयावधि में किया जा रहा है। परिवादी ने जब अप्रार्थीगण से उक्त विद्युत कनेक्षन प्राप्त किया तब उसे जारी डिमांड नोटिस दिनांक 05.04.2008 में मीटर व बक्सा पैनल की कीमत 10,000/- रूपये एवं सीटी/पीटी के 20,000/- रूपये बताये गये। जिस पर परिवादी ने मीटर बाॅक्स पैनल कम्पलीट बनवाकर स्वयं द्वारा लगवाया गया तथा सीटी/पीटी की कीमत सही होना मानकर इसके आधार पर जारी डिमांड नोटिस का भुगतान कर दिया गया। इसके बाद परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 3 को मीटर बाॅक्स पैनल की राषि 10,000/- रूपये रिफण्ड करने का निवेदन किया तो उन्होंने राषि रिफण्ड करने की बजाय समायोजित करने का आष्वासन दिया गया। मगर आज दिनांक तक यह राषि न तो रिफण्ड की गई और न ही समायोजित की गई। इसके अलावा अप्रार्थीगण की ओर से उसे जो बिल जारी किये जा रहे हैं उनमें अप्रार्थीगण द्वारा गलत, अनुचित एवं अवैध प्रकार से मनमानी राषि स्थायी षुल्क के काॅलम में बताकर बिल जारी किये जा रहे हैं। इस बीच अप्रार्थीगण ने दिनांक 23.07.2012 को परिवादी को एक नोटिस जारी किया गया, जिसमें उसको पूर्व में जमा प्रतिभूति राषि के अलावा 30.570/- रूपये का भुगतान करने के लिए कहा गया अन्यथा सम्बन्ध विच्छेद का भी लिखा गया। परिवादी को भेजा गया उक्त नोटिस ही अवैध, अनुचित एवं गलत था। जबकि परिवादी ने जब मांग पत्र का भुगतान किया उसमें प्रतिभूति राषि 27,000/- रूपये का भुगतान किया जा चुका है और नियमों के तहत दूसरी बार कोई प्रतिभूति राषि की मांग नहीं की जा सकती फिर भी अप्रार्थीगण ने मनमाने प्रकार से उक्त राषि वसूल करने के लिए नोटिस जारी किया है। जो खारिज होने योग्य है।
इसी प्रकार अप्रार्थीगण की ओर से माह सितम्बर, 2012 में जारी बिल में अन्य कोड संख्या 3 के तहत 36,689/- रूपये की राषि बताते हुए बिल जारी किया गया। जिसके बारे में परिवादी द्वारा पूछे जाने पर बताया गया कि सीटी/पीटी का किराया अंकेक्षण दल द्वारा वसूल किया जाना बताया गया है। जबकि परिवादी ने जब विद्युत कनेक्षन लिया तब सीटी/पीटी की कीमत 20,000/- रूपये ही थी और अप्रार्थीगण द्वारा इतनी ही राषि का अंकन मांग पत्र में किया गया है, जिसका समय पर भुगतान परिवादी ने कर दिया है। अब मनमाने प्रकार से किराया प्राप्त करने का कोई अधिकार अप्रार्थीगण को नहीं है। अप्रार्थीगण की ओर से सीटी/पीटी किराया राषि वसूल करने के लिए उक्त राषि सितम्बर, 2012 में मांग की गई जिसमें मई, 2008 से अप्रेल, 2012 तक का सीटी/पीटी का किराया बताया गया है जबकि विधि के प्रावधानों के अनुसार दो वर्श से अधिक की अवधि की कोई भी बकाया राषि यदि वह वैध रूप से वसूल किये जाने योग्य भी हो तो, पूर्व में नहीं मांगी जाती है तो वो राषि भी इस प्रकार से समयावधि बीत जाने पर वसूल किये जाने योग्य नहीं है। इस प्रकार अप्रार्थीगण की ओर से बार-बार आग्रह के बावजूद परिवादी को मीटर बाॅक्स पैनल की वसूल की गई राषि रिफण्ड नहीं की गई और न ही संषोधित बिल जारी किये गये। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः अप्रार्थीगण को परिवादी से गलत व अवैध प्रकार से वसूल की गई स्थायी षुल्क की राषि 40,126/- रूपये तथा मीटर बाॅक्स पैनल की राषि 10,000/- रूपये वापस लौटाने का आदेष दिया जावे। इसके अलावा परिवादी के नाम जारी प्रतिभूति राषि मांग पत्र 30,570/- रूपये निरस्त किया जावे। साथ ही परिवादी के नाम जारी विद्युत बिल माह सितम्बर, 2012 के काॅलम संख्या 16 के तहत अन्य देय के तहत मांगी गई राषि 36,689/- को निरस्त कर संषोधित बिल जारी करने का आदेष दिया जावे। इसके अलावा परिवाद में अंकितानुसार अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी ने अपने यहां विद्युत कनेक्षन एम.आई.पी. द्यद्य में ले रखा है। परिवादी को एम.आई.पी. कनेक्षन हेतु मांग पत्र क्रमांक 118, दिनांक 05.04.2008 जारी किया गया, जिसमें से 70,000/- रूपये कम करके परिवादी ने 1,25,600/- रूपये ही अप्रार्थी संख्या 3 के कार्यालय में जमा करवाये। मांगपत्र में सीटी/पीटी 11 केवी की जो राषि है वो सीटी/पीटी की कीमत नहीं ली गई। उक्त राषि सीटी/पीटी किरायेदार सक्यूरिटी की राषि है, जिस पर परिवादी को ब्याज देय है। उपभोक्ता से अमानत राषि ली गई, सीटीपीटी का किराया 900 रूपये प्रतिमाह देय होने से वसूली योग्य था, जो नहीं लिया गया। आंतरिक अंकेक्षण दल ने उपभोक्ता के खाते की जांच की तो सीटीपीटी सेट का किराया दिनांक 22.05.2008 से लिया जाना था जो कम्प्यूटर एजेंसी द्वारा नहीं लिया गया। अंकेक्षण दल ने माह 22.05.2008 से 01.04.2012 तक का सीटी/पीटी सेट का किराया वसूली योग्य मानकर राषि 41,700/- रूपये चार्ज किये गये। परिवादी द्वारा सीटी/पीटी की जमा करवाई गई प्रतिभूति राषि रूपये 20,000/- पर ब्याज की गणना करके रूपये 5,011/- ब्याज राषि को चार्ज की गई राषि 41500-5011 में से कम करके षेश राषि वसूली योग्य मानकर परिवादी को नियमानुसार नोटिस दिया गया, जो सही दिया गया है। इसके अलावा परिवादी से विद्युत बिलों में स्थायी षुल्क के काॅलम में दर्षायी जो राषि वसूली गई है वो भी सहीं है तथा नियमानुसार चार्ज की जा रही है। परिवादी के विद्युत खाते की जांच आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा की गई। जांच के दौरान 11 केवी सीटी/पीटी का किराया 22.05.2008 से 01.04.2012 तक कम्प्यूटर एजेंसी द्वारा नहीं लिया गया जबकि 900/- रूपये प्रतिमाह की दर से किराया लेना था, नहीं लेने से आॅडिट पार्टी ने 41,700/- रूपये चार्ज कर परिवादी को नोटिस दिया गया। परिवादी से सीटी/पीटी पेटे 20,000/- रूपये अमानत राषि ली गई, जो जमा रहेगी। उक्त राषि पर ब्याज की गणना करके 5,011/- रूपये चार्ज की गई राषि 41,700/- रूपये में से कम करके षेश वसूली योग्य राषि का परिवादी को नोटिस दिया गया। नोटिस की राषि जमा नहीं करवाने पर उपभोक्ता के खाते में सी.सी. एण्ड आर. संख्या 2436/31/04, दिनांक 30.08.2012 के तहत खाते में क्रेडिट किये गये। चार्ज की गई उक्त राषि नियमानुसार होने से अप्रार्थीगण यह राषि प्राप्त करने के हकदार है। इस तरह परिवादी ने बिना तथ्यों के सारहीन परिवाद दायर किया हैै। अतः इसे मय हर्जा-खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही मांग-पत्र प्रदर्ष 1, जुलाई, 2012 का बिल प्रदर्ष 2, मीटर बक्सा का बिल प्रदर्ष 3, आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष 4, नोटिस प्रदर्ष 5 एवं विद्युत बिल प्रदर्ष 6 से प्रदर्ष 24 की फोटो प्रतियां पेष की है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण ने नियमों के विपरित गलत, अनुचित एवं अवैध रूप से राषि वसूल की है, जिसे परिवादी पुनः प्राप्त करने का अधिकारी है। यह भी तर्क दिया गया है कि अप्रेल, 2008 में ही जारी मांग पत्र प्रदर्ष 1 में सीटी/पीटी की राषि एवं प्रतिभूति की राषि जोडी गई थी, जिसका भुगतान परिवादी द्वारा किया जा चुका है लेकिन उसके बावजूद आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर इसी राषि की दुबारा मांग की गई जो कि पूर्णतयाः अनुचित एवं अवैध है, ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार किया जाकर वांछित अनुतोश दिलाया जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण की ओर से भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1, नोटिस/मांग-पत्र प्रदर्ष ए 2 तथा प्रदर्ष ए 3, निरीक्षण रिपोर्ट प्रदर्ष ए 4 व ए 5, विद्युत सेवा सम्बन्ध आदेष प्रदर्ष ए 6, विविध चार्जेज स्केल प्रदर्ष ए 7 पेष किये गये हैं। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा परिवादी के खाते की जांच कर नियमानुसार सीटी/पीटी सेट का किराया एवं प्रतिभूति राषि पर ब्याज की गणना कर परिवादी के जिम्मे बकाया षेश राषि की वसूली हेतु नियमानुसार नोटिस जारी किया था एवं परिवादी का विद्युत सम्बन्ध मध्यम औद्योगिक श्रेणी का होकर व्यावसायिक रहा है। ऐसी स्थिति में परिवादी सद्भावी उपभोक्ता नहीं है तथा परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आने से खारिज होने योग्य है। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद
(2.) राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन करने पर यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी के कार्यस्थल/परिसर पर एम.आई.पी. श्रेणी का विद्युत सम्बन्ध 120 एच.पी. का रहा है तथा परिवादी के इस विद्युत खाता की जांच अप्रार्थी निगम की आॅडिट पार्टी द्वारा की जाकर आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 के आधार पर ही अन्य चार्जेज की गणना कर विवादित बिल जारी किये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की आपति रही है कि अप्रार्थीगण ने सीटी/पीटी के किराये एवं प्रतिभूति राषि की गणना गलत व अनुचित रूप से कर राषि वसूल की है तथा इस सम्बन्ध में किसी नियम या परिपत्र का खुलासा नहीं किया। जबकि इस सम्बन्ध में पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि अप्रार्थी निगम द्वारा प्रस्तुत आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 के अनुसार पूर्व में मीटर एवं सीटी/पीटी की प्रतिभूति राषि 20,000/- रूपये जमा किये गये थे जो मीटर एवं सीटी/पीटी की कीमत न होकर मात्र प्रतिभूति राषि रही है, ऐसी स्थिति में नियमानुसार सीटी/पीटी का किराया 900/- रूपये प्रतिमाह की दर से दिनांक 22.05.2008 से वसूल किया जाना है। अप्रार्थीगण द्वारा इसी आॅडिट रिपोर्ट प्रदर्ष ए 1 के अनुसार ही गणना कर परिवादी के विरूद्ध नोटिस व मांग-पत्र प्रदर्ष ए 2 व प्रदर्ष ए 3 जारी किये हैं। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात के साथ ही टेरिफ फोर सप्लाई आॅफ इलेक्ट्रिसिटी, 2004 एवं 2011 की फोटो प्रतियां भी पेष की गई है तथा यह बताया गया है कि इन्ही नियमों के अनुसार आॅडिट पार्टी द्वारा सीटी/पीटी के किराये की गणना कर परिवादी से बकाया की वसूली की जाना बताया गया है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का मुख्य तर्क यही रहा है कि मामला आॅडिट रिपोर्ट से सम्बन्धित होने एवं परिवादी का विद्युत सम्बन्ध व्यावसायिक (एम.आई.पी.) श्रेणी का होने से उपभोक्ता विवाद की परिभाशा में नहीं आता है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003. इस मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने उपभोक्ता की व्याख्या करते हुए स्पश्ट किया है कि,
Consumer Protection Act, 1986- S. 2¼1½¼d½ – “Consumer” – Electricity matters – Consumer complaint in respect of – When maintainable – A “consumer” within meaning under S. 2¼1½¼d½ may file a valid complaint in respect of supply of electrical or other energy, if the complaint contains allegation of unfair trade practice or restrictive trade practice; or there are defective goods; deficiency in services; hazardous services or a price in excess of the price fixed by or under any law, etc. – Person¼s½ availing services for “commercial purpose” do not fall within meaning of “consumer” and cannot be a “complainant” for the purpose of filling a “complaint” before the Consumer Forum.
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा भी अपील संख्या 1287/2010 गिर्राज प्लास्टिक जरिये महेन्द्र कुमार जैन बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में पारित आदेष दिनांक 19.12.2014 के पैरा संख्या 7 में अभिनिर्धारित किया है किः-
It is also an admitted fact that the outstanding amount in the disputed electric bill challenged by the complainant has been sought from him, has been computed on the basis of audit report. This Commission in appeal NO. 1496/1995 titled RSEB Vs. Dallu Ram decided on 01.11.1999 has held that an amount can be recovered from the consumer on the basis of audit report and the validity of the audit report can be challenged in a Civil Court, but such a demand cannot be termed as a deficiency in service.
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी परिवादी का विद्युत सम्बन्ध व्यावसायिक श्रेणी का रहा है तथा आॅडिट रिपोर्ट के आधार पर गणना कर विवादित मांग-पत्र एवं विद्युत बिल जारी किये गये हैं, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी मेघाराम द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।
8. आदेश आज दिनांक 19.07.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या