जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 232/2013
कमलकिषोर अग्रवाल पुत्र श्री मेघराज अग्रवाल, प्रोपराइटर, मैसर्स महादेव काॅटन मिल्स, एच-2/135, रीको इण्डस्ट्रीयल एरिया, बीकानेर रोड, नागौर (राज.)। -परिवादी
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जरिये प्रबन्ध निदेषक, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, हाथीभाटा, सिटी पावर हाउस, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री महेन्द्र कुमार षर्मा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 30.03.2016
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी मैसर्स महादेव काॅटन मिल्स का प्रोपराइटर है। परिवादी ने अप्रार्थीगण से अपने प्रतिश्ठान पर एक अघरेलू श्रेणी का 5 किलोवाट विद्युत भार का विद्युत कनेक्षन ले रखा है। जिसके खाता नम्बर 1717-0194 है। परिवादी का उक्त विद्युत कनेक्षन डी.सी. आॅर्डर संख्या 8054/62 की पालना में दिनांक 02.01.2012 को डी.सी. किया गया है। तब से परिवादी के यहां उक्त विद्युत कनेक्षन कटा हुआ है। इसके बावजूद अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को औसत के आधार पर बिल भेजे जा रहे हैं। जो गलत रूप से भेजे जा रहे हैं। इस बीच परिवादी ने डी.सी. अवधि के दौरान माह सितम्बर, 2012 में जारी बिल की राषि रूपये 30,096/- अप्रार्थीगण के यहां करवा दी जबकि अप्रार्थीगण उक्त राषि प्राप्त करने के अधिकारी भी नहीं थे। इसके बाद भी अप्रार्थीगण की ओर से विद्युत कनेक्षन को चालू बताते हुए कभी एक हजार यूनिट तो कभी 1200 यूनिट एवरेज की राषि के बिल परिवादी को भेजे जाते रहे हैं। अप्रार्थीगण की ओर से 11.09.2013 को सितम्बर, 2013 तक की 59,698/- रूपये की राषि बकाया बताकर जमा कराने का नोटिस दिया गया। इस पर परिवादी ने अप्रार्थीगण के यहां सम्पर्क किया तथा निवेदन किया कि उसे गलत रूप से भेजे जा रहे बिल दुरूस्त किये जायें तथा गलत रूप से बिल जारी कर जमा कराई गई राषि लौटाई जायें। इस पर अप्रार्थी संख्या 3 ने बिल दुरूस्त करने से मनाह करते हुए कहा कि बिल व नोटिस की राषि जमा करवायें अन्यथा वसूली की कार्रवाई की जाएगी। परिवादी ने बार-बार यह निवेदन किया तो अप्रार्थीगण ने वसूली करने की धमकी तक दी। परिवादी का विद्युत कनेक्षन जनवरी, 2012 से ही डी.सी. है। ऐसे में परिवादी न तो उसे विद्युत बिल जारी कर सकता और न ही उससे कोई राषि जमा करवा सकता। कनेक्षन डी.सी. होने के बाद परिवादी का बिल अदा करने का कोई दायित्व नहीं बनता। फिर भी अप्रार्थीगण ने सितम्बर, 2012 के बिल की राषि गलत रूप से जमा करवा ली, उक्त राषि परिवादी वापस प्राप्त करने का अधिकारी है। इस तरह परिवादी का उक्त कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अप्रार्थीगण की ओर से जनवरी, 2012 के बाद जारी समस्त बिलों एवं 11.09.2013 को जारी नोटिस को निरस्त किया जावे। परिवादी को माह सितम्बर, 2012 के बिल की जमा करवाई गई राषि मय ब्याज लौटायी जावे तथा मानसिक संताप एवं परिवाद व्यय के पेटे राषि दिलाई जावे।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि परिवादी के यहां लगे विद्युत कनेक्षन पर 61,674/- रूपये की राषि बकाया निकलने पर दिनांक 10.09.2013 को विद्युत कनेक्षन विच्छेद आदेष संख्या 8081/20 जारी किया गया तथा दिनांक 24.09.2013 को कनेक्षन विच्छेद करते हुए मीटर एवं सर्विस लाइन हटाई गई। इसके बाद परिवादी को नवम्बर, 2013 को एक ही बिल जारी किया गया जिसकी राषि 6,135/- रूपये कम कर दी गई। परिवादी जनवरी, 2012 से विद्युत कनेक्षन डी.सी होना गलत बता रहा है। परिवादी के विद्युत कनेक्षन को जिस वक्त डी.सी. किया गया उस वक्त 61,674/- रूपये बकाया निकल रहे थे। परिवादी को सितम्बर, 2013 में बकाया राषि 59,698/- रूपये जमा कराने का नोटिस दिया गया था। नोटिस के बावजूद परिवादी की ओर से बकाया राषि जमा नहीं करवाने पर दिनांक 24.09.2013 को नियमानुसार विद्युत सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया। परिवादी के विद्युत कनेक्षन को राषि बकाया होने से ही विच्छेद किया गया तथा जिस समय विद्युत कनेक्षन विच्छेद किया गया उस समय 61,674/- रूपये बकाया चल रहे थे। परिवादी जनवरी, 2012 से ही विद्युत कनेक्षन डी.सी. होना गलत बताकर निगम की राषि हडपना चाहता है। बकाया राषि को वसूल करने की कार्यवाही करना अप्रार्थीगण का उतरदायित्व है। परिवादी अप्रार्थीगण से कुछ भी पाने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवादी का परिवाद खारिज किया जावे।
3. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी द्वारा अप्रार्थीगण विभाग से एक अघरेलू श्रेणी 5 किलोवाट विद्युत भार का विद्युत कनेक्षन लिया गया था तथा इसी सम्बन्ध में जारी विद्युत बिलों की राषि को लेकर पक्षकारानों में विवाद रहा है जिससे स्पश्ट है कि यह मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी का रहा है।
बहस के दौरान अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अप्रार्थी कार्यालय द्वारा जारी आदेष दिनांक 06.05.2013 पेष कर बताया है कि वास्तव में परिवादी का विद्युत सम्बन्ध इस आदेष की पालना में दिनांक 07.05.2013 को विच्छेद किया गया है जबकि पूर्व में भूलवष दिनांक 24.09.2013 को विद्युत सम्बन्ध विच्छेद करना बताया गया है, ऐसी स्थिति में दिनांक 07.05.2013 को विद्युत सम्बन्ध विच्छेद होने के बाद का यदि कोई विद्युत बिल जारी हो तो उसे निरस्त किये जाने में अप्रार्थीगण को कोई आपति नहीं है लेकिन उससे पूर्व की अवधि में परिवादी का विद्युत कनेक्षन चालू रहा है जो कि मीटर बाइंडर रिपोर्ट प्रदर्ष ए 5 से भी स्पश्ट है।
उक्त के विपरित परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रदर्ष 6 की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्शित कर बताया है कि वास्तव में परिवादी का विद्युत सम्बन्ध दिनांक 02.01.2012 को ही विच्छेद किया जा चुका था। लेकिन उसके बावजूद बिजली विभाग बिल जारी कर रहा है। जो निरस्त होने योग्य है।
पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। परिवादी की ओर से प्रस्तुत दस्तावेज माह सितम्बर 2012 का बिल प्रदर्ष 1, माह जनवरी 2013 का बिल प्रदर्ष 2, माह मार्च 2013 का बिल प्रदर्ष 3, माह मई 2013 का बिल प्रदर्ष 4, माह जुलाई 2013 का बिल प्रदर्ष 5 का अवलोकन करने के साथ ही अप्रार्थीपक्ष द्वारा प्रस्तुत मीटर बाईन्डर रिपोर्ट प्रदर्ष ए 5 का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि माह फरवरी, 2012 से अगस्त, 2012 की अवधि के दौरान प्राप्त बिल औसत विद्युत उपभोग के आधार पर जारी हुए हैं क्योंकि मीटर रीडर की रिपोर्ट अनुसार कार्यस्थल बन्द होने से रीडिंग नहीं ली जा सकी। मीटर बाईन्डर रिपोर्ट प्रदर्ष ए 5 से स्पश्ट है कि अगस्त, 2012 में मीटर रीडर की रिपोर्ट अनुसार विद्युत पोल से सप्लाई चालू थी जबकि कार्यस्थल बन्द था तथा उसके बाद दिनांक 18.10.2012 को मीटर रीडिंग 12862 यूनिट पाई गई। जिससे स्पश्ट है कि विद्युत सम्बन्ध चालू था। लेकिन इसके बाद कार्यस्थल बन्द होने से औसत विद्युत उपभोग के आधार पर बिल जारी हुए तथा अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत विद्युत सम्बन्ध विच्छेद के आदेष दिनांक 06.05.2013 अनुसार परिवादी का विद्युत सम्बन्ध दिनांक 07.05.2013 को विच्छेद कर दिया गया था। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि दिनांक 07.05.2013 के पष्चात् विद्युत उपभोग से सम्बन्धित किसी बिल की राषि प्राप्त करने हेतु अप्रार्थीगण कोई अधिकार नहीं रखते हैं।
यद्यपि परिवादी का कथन है कि उसका विद्युत सम्बन्ध दिनांक 02.01.2012 को ही विच्छेद किया जा चुका था लेकिन इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष 6 का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि यह दस्तावेज परिवादी की ओर से अप्रार्थी संख्या 3 को दिनांक 31.07.2013 को प्रस्तुत आवेदन की फोटो प्रति मात्र है। जिस पर परिवादी द्वारा ही दिनांक 02.01.2012 को विद्युत सम्बन्ध विच्छेद किये जाने के आदेष संख्या का उल्लेख है लेकिन ऐसे किसी आदेष की कोई प्रति न तो परिवादी द्वारा पेष की गई है तथा न ही अप्रार्थीगण से नियमानुसार तलब ही करवाई गई है। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी पक्ष की ओर से प्रस्तुत दस्तावेजात मुख्यतः मीटर बाईन्डर रिपोर्ट को देखते हुए यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी का विद्युत सम्बन्ध दिनांक 02.01.2012 को ही विच्छेद किया जा चुका हो।
परिवादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज प्रदर्ष 7 दिनांक 11.09.2013 को जारी नोटिस की प्रति है, जिसके अनुसार अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी से बकाया राषि 69,698/- रूपये जमा करवाने की मांग की है तथा परिवादी ने इस नोटिस को निरस्त किये जाने के साथ ही विद्युत सम्बन्ध विच्छेद करने के पष्चात् जारी बिलों को निरस्त करने एवं माह सितम्बर, 2012 के बिल की जमा राषि 30,096/- रूपये वापिस दिलाये जाने का निवेदन किया है। इस सम्बन्ध में अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रलेख ए 1 कार्यालय टिप्पणी के अवलोकन पर पाया कि अप्रार्थीगण ने परिवादी का विद्युत सम्बन्ध दिनांक 24.09.2013 को विच्छेद करना मानते हुए नोटिस प्रदर्ष ए 3 अनुसार परिवादी से 69,698/- रूपये की मांग की है। लेकिन जैसा कि पूर्व में स्पश्ट किया जा चुका है कि अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत कार्यालय आदेष दिनांक 06.05.2013 अनुसार परिवादी का विद्युत सम्बन्ध दिनांक 07.05.2013 को विच्छेद किया जा चुका था। ऐसी स्थिति में दिनांक 07.05.2013 के बाद की अवधि का विद्युत उपभोग बाबत् जारी विद्युत बिल निरस्त किये जाने योग्य है। तथापि दिनांक 07.05.2013 से पूर्व की अवधि में परिवादी द्वारा अपने कार्यस्थल पर विद्युत उपभोग किया जाना स्पश्ट है एवं दिनांक 07.05.2013 से पूर्व की अवधि में किये गये विद्युत उपभोग सम्बन्धी बिल की राषि जमा करवाने हेतु परिवादी उतरदायी है।
ऐसी स्थिति में उपर्युक्त समस्त विवेचन को देखते हुए परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से स्वीकार करते हुए अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिल माह जुलाई 2013 प्रदर्ष 5 तथा इस सम्बन्ध में वसूली हेतु जारी नोटिस दिनांकित 11.09.2013 प्रदर्ष 7 निरस्त कर अप्रार्थीगण को यह निर्देष दिया जाना न्यायोचित होगा कि परिवादी द्वारा 07.05.2013 से पूर्व की अवधि में किये गये विद्युत उपभोग सम्बन्धी संषोधित बिल जारी करे। यह भी उल्लेखनीय है कि अप्रार्थीगण द्वारा वास्तविक तथ्यों के विपरित दिनांक 24.09.2013 को विद्युत सम्बन्ध विच्छेद होना मानते हुए परिवादी के विरूद्ध अधिक बकाया राषि निकालकर नोटिस प्रदर्ष 7 जारी किये जाने से परिवादी पक्ष को मानसिक परेषानी होने के साथ ही यह परिवाद पेष करना पडा है, ऐसी स्थिति में परिवादी को मानसिक परेषानी बाबत् 5,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/- रूपये दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा।
आदेश
4. परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थीगण आंषिक रूप से स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण माह जुलाई, 2013 में जारी बिल एवं दिनांक 11.09.2013 को वसूली के लिए जारी नोटिस निरस्त करें। साथ ही यह आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण परिवादी को दिनांक 07.05.2013 से पूर्व की अवधि में किये गये विद्युत उपभोग सम्बन्धी संषोधित बिल जारी करें तथा परिवादी इनका भुगतान अदा करें। यह भी आदेष दिया है कि अप्रार्थीगण परिवादी को वास्तविक तथ्यों के विपरित नोटिस जारी किये जाने से हुई मानसिक परेषानी बाबत् 5,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/- रूपये अदा करें। आदेष की पालना आदेष की दिनांक से एक माह में की जावे।
5. आदेश आज दिनांक 30.03.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या