परिवाद संख्या 567/13
तारीख हुक्म
हुक्म या कार्यवाही मय इनिषियल्स जज
आत्माराम ब. सहायक अभियंता अ.वि वि. नि. लि0 (षहर) झुंझुनू तहसील व जिला झुंझुनू
नम्बर व तारीख अहकाम जो इस हुक्म की तामिल में जारी हुए
04.02.2015
परिवाद अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता अधिनियम
परिवादी की ओर से वकील श्री कमलेष उपस्थित। विपक्षी की ओर से वकील श्री लाल बहादुर जैन उपस्थित। उभयपक्ष की बहस सुनी गई । पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने अपने पिता लादूराम के नाम से विपक्षी के यहां से घरेलू विधुत कनेक्षन ले रखा है जिसका खाता संख्या 2022-1605-0115 है। परिवादी के पिता लादूराम फौत होने के बाद परिवादी उक्त विधुत कनेक्षन का समय-समय पर विपक्षी को बिल जमा कराता आ रहा है, इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी विपक्षी द्वारा जारी किये गये बिल जमा करवाता आ रहा है तथा परिवादी के खिलाफ विपक्षी की पीछे की कोई बकाया नहीं है परन्तु विपक्षी द्वारा माह सितम्बर, 2013 के बिल में निगम राषि 8808.10 रूपये जोडकर भेज दी गई तथा परिवादी द्वारा विपक्षी से जब उक्त राषि के बारे में पूछा तो कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दिया व कहा कि आडिट द्वारा निकाली गई राषि है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार फरमाया जाकर माह सितम्बर, 2013 के विद्युत बिल में दिखाई गई निगम राषि 8808.10 रूपये व उस पर लगने वाली पेनेल्टी हटाकर बिल निरस्त किये जाने तथा उपभोग के आधार पर बिल जारी करने का निवेदन किया है।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने उक्त तर्को का विरोध करते हुए अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान यह कथन किया है कि उपरोक्त खाता परिवादी के नाम नहीं होने से वह विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है । परिवादी का मीटर माह सितम्बर, 2010 से मार्च, 2011 तक बंद था। इस अवधि का परिवादी का औसत उपभोग 3647 युनिट बनता है परन्तु गणना में अषुद्धि हो जाने के कारण परिवादी को उक्त अवधि में 1200 युनिट औसत उपभोग के ही बिल भेजे गये। विभागीय अंकेक्षण दल की जांच में औसत निर्धारण में हुई गलती का ज्ञान होने पर अंकेक्षण दल ने परिवादी के नाम माह सितम्बर, 2010 से माह मार्च, 2011 तक की अविध के लिये परिवादी से 2447 युनिट की राषि वसूलने योग्य निकाली। उक्त राषि को वसूलने हेतु परिवादी को नोटिस जारी किया गया
परन्तु परिवादी ने जमा नहीं करवाई तथा न ही परिवादी द्वारा नोटिस बाबत कोई आपति विपक्षी के कार्यालय में पेष की गई । परिवादी का मीटर बदलने के बाद नये मीटर में दर्ज उपभोग 1312 युनिट प्रति बिल है, परिवादी का विभाग के अंकेक्षण दल द्वारा जारी संषोधित किया गया औसत पूर्णतः सही है। परिवादी को जो 8808.10 रूपये राषि का बिल जारी किया गया है वह निगम के नियमानुसार सही है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया गया पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण मे यह निर्विवादित तथ्य है कि परिवादी के पिता के नाम से घरेलु विधुत कनेक्षन विपक्षी के यहां से ले रखा है तथा परिवादी के पिता की मृत्यु के बाद परिवादी समय-समय पर विपक्षी के कार्यालय में विद्युत बिल जमा कराता आ रहा है।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट हुआ है कि परिवादी का विवादित विद्युत बिल माह सितम्बर, 2013 का है, जिसमें अंकेक्षण दल द्वारा निकाली गई राषि जोड़कर विद्युत बिल की कुल राषि 8808.10/रुपये अंकित है।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी ने अपने जवाब में यह तथ्य अंकित किया है कि परिवादी का मीटर माह सितम्बर, 2010 से मार्च, 2011 तक बंद था । विपक्षी द्वारा परिवादी के माह सितम्बर, 2013 के बिल में निगम राषि 8808.10 रूपये किस आधार पर जोड़े गये, इसका विपक्षी की ओर से कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण पेष नहीं किया गया है। इसी प्रकार विपक्षी ने अपने जवाब में औसत गणना में अषुद्धि होने के तथ्य को स्वीकार कर विभागीय अंकेक्षण दल की जांच में औसत निर्धारण में हुई गलती का ज्ञान होने पर अंकेक्षण दल द्वारा उक्त निगम राषि निकाली जाना बताया है जबकि विपक्षी की ओर से अंकेक्षण दल की कोई भी जांच रिपोर्ट आदि पत्रावली में पेष नहीं की गई है। इस प्रकार विपक्षी द्वारा माह सितम्बर, 2013 के उक्त विवादित बिल में जो निगम राषि अंकित करके परिवादी को भेजा गया है, वह त्रुटिपूर्ण होने से निरस्त किए जाने योग्य है।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्य व परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि परिवादी के माह सितम्बर, 2013 के विवादित बिल की निगम राषि 8808.10/रुपये त्रुटिपूर्ण होने से निरस्त की जाती है तथा परिवादी के विवादित बिल माह सितम्बर,2013 के पिछले तीन
बिलों के एवरेज के आधार पर जो परिवादी ने वास्तविक विद्युत युनिट का उपभोग किया है, उसके अनुसार संषोधित बिल जारी किया जावे । परिवादी द्वारा यदि विपक्षी के कार्यालय में अधिक राषि जमा करादी गई है तो उसे परिवादी के आगामी विद्युत बिलों में समायोजित की जावे। इस प्रकार से प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेगें।
आदेश आज दिनांक 04.02.2015 को लिखाया जाकर मंच द्वारा सुनाया गया।
पत्रावली फैषल शुमार होकर बाद तकमील दाखिल दफतर हो।