परिवाद संख्या 42/14
तारीख हुक्म
हुक्म या कार्यवाही मय इनिषियल्स जज
सुरेषचन्द ब. सहायक अभियंता अ.वि वि. नि. लि0 खेतड़ी तहसील खेतड़ी जिला झुंझुनू
नम्बर व तारीख अहकाम जो इस हुक्म की तामिल में जारी हुए
04.02.2015
परिवाद अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता अधिनियम
परिवादी की ओर से वकील श्री सुरेष कुमार शर्मा उपस्थित। विपक्षी की ओर से वकील श्री फूलचंद सैनी उपस्थित। उभयपक्ष की बहस सुनी गई । पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने विपक्षी के यहां से 0.5 किलोवाट का घरेलू विधुत कनेक्षन ले रखा है जिसका खाता संख्या 1704-0226 है। परिवादी उक्त विधुत कनेक्षन का समय-समय पर विपक्षी को बिल जमा कराता आ रहा है, इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि परिवादी के घरेलु कनेक्षन को वर्ष, 2009 में विपक्षी द्वारा बिना किसी आधार के अघरेलु श्रेणी में कर दिया गया तथा घरेलु यूनिट चार्ज के बजाय अघरेलु श्रेणी युनिट संबंध के हिसाब से बिल जारी कर दिये। परिवादी ने इस संबंध में विपक्षी से मौखिक व लिखित निवेदन किया तो कहा कि जल्दी ही आपके अघरेलु विद्युत कनेक्षन को घरेलु विद्युत कनेक्षन में बदल देगें तथा वसूल की गई अधिक राषि का समायोजन आगे के बिलों में कर देगें। परिवादी ने दिनांक 26.08.2013 को एक षिकायती प्रार्थना पत्र विपक्षी को प्रस्तुत किया जिसमें विपक्षी ने परिवादी की पुरानी फाईल को देखकर उसकी समस्या हल करने का आदेष दिया लेकिन आज तक परिवादी के कनेक्षन श्रेणी को नहीं बदला गया तथा ना ही अधिक वसूली गई राषि आगामी बिलों में समायोजित की गई है जो विपक्षी की सेवा में कमी है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार फरमाया जाकर अघरेलु विद्युत संबंध को घरेलु विद्युत सम्बन्ध में किया जाकर परिवादी से अघरेलु विद्युत संबंध की अधिक वसूल की गई राषि आगे के बिलों में समायोजित किए जाने का निवेदन किया है।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने उक्त तर्को का विरोध करते हुए अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी का प्रार्थना पत्र दिनांक 26.08.2013 प्राप्त होने पर मौके की जांच की गई व जांच के अनुसार परिवादी ने अपने मकान के बाहरी हिस्से में बनी दुकान को किसी टेलर को
किराये पर दे रखी थी, जिसमें लाईट, पंखा एवं विद्युत प्रेस काम में ली जा रही थी व इसमें घरेलु कनेक्षन से ही विद्युत उपभोग करता था । वर्तमान में परिवादी ने वह दुकान खाली करवाली है। अतः उसके बिल की श्रेणी पुनः घरेलु कर दी गई है तथा आवेदन तिथि व जांच के अनुसार दिनांक 26.08.2013 के बाद की घरेलु व अघरेलु विद्युत बिल की राषि को समायोजित कर दिया गया है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया गया। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण मे यह निर्विवादित तथ्य है कि परिवादी ने अपने नाम से विपक्षी से घरेलु विधुत संबंध ले रखा है तथा परिवादी समय-समय पर विपक्षी के कार्यालय में विद्युत बिल जमा कराता आ रहा है। वर्तमान में भी उक्त विद्युत संबंध घरेलु विद्युत संबंध ही है।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी का यह तर्क होना कि परिवादी की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्तुत होने पर विपक्षी द्वारा मौके की जांच की गई, जांच के अनुसार परिवादी ने अपने मकान के बाहरी हिस्से में बनी दुकान को किसी टेलर को किराये पर दे रखी थी, जिसमें लाईट, पंखा एवं विद्युत प्रेस काम में ली जा रही थी तथा इसमें घरेलु कनेक्षन से ही विद्युत उपभोग करता था, वर्तमान में परिवादी ने वह दुकान खाली करवाली है। इस आधार पर विपक्षी द्वारा परिवादी के अघरेलु कनेक्षन को पुनः घरेलु कनेक्षन में परिवर्तित कर दिया गया।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी के उक्त तर्क से हम सहमत नहीं हैं क्योंकि विपक्षी की ओर से ऐसी कोई जांच रिपोर्ट इस पत्रावली में पेष नहीं की गई है जिसके आधार पर यह माना जावे कि मौके पर परिवादी अपने घरेलु कनेक्षन को अघरेलु कनेक्षन के रूप में उपभोग में लेते हुए पकडा गया हो। विपक्षी द्वारा की गई जांच में यह स्पष्ट नहीं है कि 6 महिने पहले किस टेलर ने दुकान खोल रखी थी और मौके के किन गवाहान ने टेलर द्वारा दुकान खोलने की बात कही। पत्रावली में प्रस्तुत मौका रिपोर्ट में परिवादी व किसी गवाह के हस्ताक्षर नहीं है। उक्त मौका रिपोर्ट परिवादी की अनुपस्थिति में तैयार की गई है। मौके पर यदि कोई जांच की जाती तो पत्रावली में विपक्षी द्वारा मौके के फोटो चित्र पेष किये जाते। विपक्षी द्वारा परिवादी को बिना नोटिस के घरेलु विद्युत संबंध को अघरेलु विद्युत संबंध में परिवर्तन किया गया तथा विपक्षी द्वारा
परिवादी को किस आधार पर अघरेलु कनेक्षन के विद्युत बिल जारी किये गये, इसका कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण विपक्षी द्वारा पेष नहीं किया गया है। इसलिये विपक्षी द्वारा परिवादी को माह सितम्बर, 2009 से अगस्त,2013 तक के अघरेलु विद्युत संबंध के आधार पर जो बिल जारी किये हैं वह संदीग्धपूर्ण व त्रुटिपूर्ण होने से निरस्त किये जाने योग्य हैं।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्य व परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि परिवादी के माह सितम्बर, 2009 से लेकर माह अगस्त, 2013 तक के विवादित बिलों में विपक्षी द्वारा अघरेलु कनेक्षन के आधार पर जो बिल जारी किये गये हैं वह त्रुटिपूर्ण होने से निरस्त किये जाते हैं तथा परिवादी को उक्त अवधि के विवादित बिल माह सितम्बर, 2009 सेे पिछले तीन बिलों के एवरेज के आधार पर जो परिवादी ने वास्तविक विद्युत युनिट का उपभोग किया है, उसके अनुसार संषोधित बिल जारी किये जावें । परिवादी द्वारा यदि उक्त अवधि के विवादित बिलों के पेटे विपक्षी के कार्यालय में अधिक राषि जमा करादी गई है तो उसे परिवादी के आगामी विद्युत बिलों में समायोजित की जावे। इस निर्देेष के साथ प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेगें।
आदेश आज दिनांक 04.02.2015 को लिखाया जाकर मंच द्वारा सुनाया गया।
पत्रावली फैषल शुमार होकर बाद तकमील दाखिल दफतर हो।