परिवाद संख्या 395/13
तारीख हुक्म
हुक्म या कार्यवाही मय इनिषियल्स जज
चन्द्रभान बनाम सहायक अभियंता अ.वि वि. नि. लि0 बुहाना तहसील बुहाना जिला झुंझुनू (राज0)
नम्बर व तारीख अहकाम जो इस हुक्म की तामिल में जारी हुए
24.03.2015
परिवाद अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता अधिनियम
परिवादी की ओर से वकील श्री अनिल कुमार उपस्थित। विपक्षी की ओर से वकील श्री फूलचंद सैनी उपस्थित। उभयपक्ष की बहस सुनी गई पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने अपने पिता के नाम से विपक्षी के यहां से घरेलू विधुत कनेक्षन ले रखा है जिसका खाता संख्या 2051-2301-0040 है। परिवादी अपने पिता का स्वर्गवास होने के बाद से उक्त विधुत कनेक्षन का समय-समय पर विपक्षी को बिल जमा कराता आ रहा है, इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि विपक्षी द्वारा परिवादी के शुरू से ही विद्युत बिल व रीडिंग सही आते रहे लेकिन माह जून,10 में 16115/-रूपये का बिल आ गया परन्तु विपक्षी ने उक्त बिल में बढी राषि 9635/-रूपये में अडजेस्ट कर दिया और परिवादी को बताया कि उसके जिम्मे निगम की कोई राषि बकाया नहीं है। माह अगस्त,10 के बिल में विपक्षी ने परिवादी के बिल में पिछले बकाया राषि 6685/-रूपये जोडकर भेज दिये जबकि परिवादी के जिम्में कोई राषि बकाया नहीं थी। परिवादी ने उक्त राषि निरस्त करवाने के लिये विपक्षी से कई बार सम्पर्क किया तथा लिखित में भी प्रार्थना पत्र पेष किया परन्तु विपक्षी ने ब्याज लगा लगाकर माह जून,13 तक 27,724/-रूपये कर दिये, जो विपक्षी किसी भी प्रकार से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार फरमाया जाकर माह जून, 2013 का विद्युत बिल निरस्त किया जाकर संषोधित बिल जारी किए जाने का निवेदन किया है।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने उक्त तर्को का विरोध करते हुए अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान यह कथन किया है कि माह अप्रेल,2010 में 2800 ज्ञॅभ् का बिल परिवादी के खाते में ब्तण् किया गया लेकिन निगम राषि 6080/-रूपये ब्तण् के बजाय क्तण् करदी गई, जिससे उपभोक्ता का बिल 16115/-रूपये का बन गया। इसके उपरांत माह अगस्त,2010 में पुनः 2800 ज्ञॅभ् ब्तण् ब्ब - ।त् मेें लिखकर 15497/-रूपये उपभोक्ता के खाते में ब्तण् कर दिये गये जो कि गलत ब्तण्हुए, जिससे खाते में (-) 8479 राषि आने से पुनः अक्टुबर, 12 में क्तण् कर दिया गया तथा परिवादी के खाते में किसी प्रकार की
बकाया राषि नहीं रही। परिवादी के माह अगस्त,2010 में (-) 8479 राषि जमा नहीं करवाई तथा परिवादी ने माह जून, 2010 का 9635/-रूपये का बिल जमा करवाया, जिसका शेष अगले बिल में आ गया एवं 15497/-रूपये ब्तण् करने से खाते में (-) 8479 रूपये आये । परिवादी के खाते में आडिट द्वारा माह 8/2012 में 11135/-रूपये माह 2/2010 से 6/2010 की ।अहण् रीडिंग 2900 ज्ञॅभ् एवं मीटर राषि क्तण् की है, जो सही है तथा पूर्व की कोई राषि शेष नहीं है। माह अगस्त,2012 में आडिट राषि 11135/-रूपये क्तण् करने के बाद परिवादी ने राषि जमा नहीं करवाई जिससे माह जून, 13 में उक्त राषि बढकर 27724/-रूपये हो गये।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया गया। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट हुआ है कि परिवादी का विवादित विद्युत बिल माह जून, 2013 का है। विपक्षी ने अपने जवाब के अनुसार यह तथ्य स्वीकार किया है कि परिवादी की पूर्व की कोई शेष बकाया राषि नहीं है। लेकिन परिवादी के बिल में आडिट राषि 11135/-रूपये औसत के आधार पर किस प्रकार बकाया निकाल कर बिल जारी किया गया, इसका विपक्षी की ओर से कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण पत्रावली में पेष नहीं हुआ है। इतनी अधिक आडिट की राषि का बिल औसत के आधार पर विपक्षी द्वारा कभी नहीं भेजा गया है। यदि विपक्षी द्वारा अपनी गलती के कारण बार-बार परिवादी को गलत बिल भेजा गया है तो उसके नुकसान व खामियाजा भुगतने के लिए परिवादी उत्तरदायी नहीं है। परिवादी द्वारा लिखित व मौखिक षिकायत के बावजूद विपक्षी द्वारा परिवादी का बिल दुरूस्त नही किया गया। विपक्षी द्वारा ऐसी स्थिति में परिवादी को माह जून,2013 का एक साथ 27724/-रूपये की राषि का बिल अंदाज व कैयास से गलत जारी किया गया है, जो त्रुटिपूर्ण व संदीग्धपूर्ण होने से निरस्त किए जाने योग्य है।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्य व परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि परिवादी के माह जून,2013 के विवादित बिल में अंकित 27724/-रूपये की राषि त्रुटिपूर्ण व संदीग्धपूर्ण होने से निरस्त की जाती है तथा परिवादी द्वारा वास्तविक विद्युत युनिट के उपभोग के आधार पर माह जून,2013 का संषोधित बिल जारी किया जावे । परिवादी द्वारा यदि विपक्षी के कार्यालय में अधिक राषि जमा करादी गई है तो उसे परिवादी के
आगामी विद्युत बिलों में समायोजित की जावे । इस प्रकार से प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेगें।
आदेश आज दिनांक 24.03.2015 को लिखाया जाकर मंच द्वारा सुनाया गया।
पत्रावली फैषल शुमार होकर बाद तकमील दाखिल दफतर हो।