राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-320/2017
(सुरक्षित)
Kahkashan Rahat
W/O Late Mohd. Tauheed Khan,
C/O 40, Shriram Kunj, C.I. M.A.P.,
Faridi Nagar, Lucknow. ....................परिवादिनी
बनाम
Aviva Life Insurance Co. (I) Ltd.,
H.O.-Aviva Tower, Sector Road,
Opp. Golf Course, DLF, Phase-V,
Sector-43, Gurgoan (Haryana)
Through Appropriate Authority. ...................विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादिनी की ओर से उपस्थित : श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री अभिषेक भटनागर,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 07-11-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह परिवाद परिवादिनी कहकशन राहत ने धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षी अवीवा लाइफ इंश्योरेंस कं0 लि0 के विरूद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
(a) By ordering directing the opposite party to pay the sum assured i.e. Rs. 55,50,000/- Lacs alongwith
-2-
interest @ 18% per annum form the relevant date i.e. 31.05.2017 when the policyholder died as compensation to the complainant.
(b) By allowing the cost of Litigation.
And/Or
(c) By passing any such other & further order which may be deemed just & proper in the circumstances of the case to meet the ends of justice.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि वह स्व0 मो0 तौहीद खान की पत्नी है और उनके एक कम आयु का बेटा है। उनके पति युनाईटेड बैंक आफ इण्डिया में कर्मचारी थे। वह जब इलाहाबाद में नियुक्त थे तो उन्होंने विपक्षी अवीवा लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 से लाइफ इंश्योरेंस पालिसी लिया था और अपनी पत्नी परिवादिनी को अपना नामिनी बनाया था।
परिवादिनी ने बीमा पालिसी का विवरण परिवाद पत्र की धारा-2 में दिया है और कहा है कि उसके पति ने प्रश्नगत बीमा पालिसी की प्रीमियम का भुगतान बिना किसी चूक के वर्ष 2015 तक कि㑤ఀया है। केवल वर्ष 2016 की प्रीमियम धनराशि का भुगतान लेट फीस व अन्य देयों के साथ दिनांक 18.03.2017 को किया गया है, जिसे विपक्षी बीमा कम्पनी ने एक माह से अधिक अपने पास रखने के बाद परिवादिनी के पति के खाता में वापस कर दिया है।
-3-
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसके पति ने बीमा पालिसी की सभी किश्तों का भुगतान युनाईटेड बैंक आफ इण्डिया के अपने सेविंग बैंक एकाउण्ट नं0 0887019259576 से किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उनके पति का देहान्त दिनांक 31.05.2017 को हार्ट अटैक से हो गया। उसके उपरान्त सम्पूर्ण औपचारिकतायें पूरी करने के बाद उसने अपने पति का डेथ क्लेम 50,00,000/-रू0 का विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं प्रस्तुत किया, जिसे विपक्षी बीमा कम्पनी ने दिनांक 12.06.2017 को बिना किसी कारण के बनावटी आधार पर रिपुडिएट कर दिया है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी बीमा कम्पनी ने रिपुडिएशन का कारण मात्र यह बताया है कि वर्ष 2016 की प्रीमियम का भुगतान नहीं किया गया है, जबकि यह कथन गलत है। वर्ष 2016 की प्रीमियम उसके पति ने जमा कि㑤या था। अत: विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा दावा रिपुडिएट किये जाने से क्षुब्ध होकर परिवादिनी ने परिवाद राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादिनी के पति की बीमा पालिसी प्रीमियम का नियमित भुगतान न होने के कारण लैप्स हो गयी थी और परिवादिनी के पति द्वारा DECLARATION OF GOOD
-4-
HEALTH FORM प्रस्तुत न करने के कारण उसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सका है। परिवादिनी के बीमित पति को उपरोक्त DECLARATION प्रस्तुत करने हेतु बीमा कम्पनी ने कई लेटर भेजे, परन्तु उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है और बीमा पालिसी लैप्स हो गयी है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी के पति की प्रश्नगत बीमा पालिसी के अन्तर्गत परिवादिनी को पति की मृत्यु का कोई लाभ नहीं दिया जा सकता है।
लिखित कथन में विपक्षी बीमा कम्पनी ने कहा है कि परिवादिनी के पति की प्रश्नगत बीमा पालिसी की प्रीमियम धनराशि के भुगतान में चूक की गयी और उसके बाद दिनांक 18.03.2017 को भुगतान करने का प्रयास किया गया, परन्तु DECLARATION OF GOOD HEALTH FORM न होने के कारण प्रीमियम धनराशि बीमा कम्पनी ने वापस कर दी। अत: परिवादिनी के पति की मृत्यु के समय बीमा पालिसी प्रभावी नहीं रही है, लैप्स हो चुकी है। अत: बीमित धनराशि के भुगतान का कोई दायित्व बीमा कम्पनी का नहीं है।
परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादिनी ने अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया है।
लिखित कथन के समर्थन में विपक्षी ने रत्नेश केसरी, ऑथराइज्ड रिप्रजेन्टेटिव का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया है। विपक्षी की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद की अन्तिम सुनवाई की तिथि पर परिवादिनी की
-5-
ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव और विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अभिषेक भटनागर उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने विपक्षी की तरफ से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
परिवादिनी के पति की प्रश्नगत बीमा पालिसी की Terms and Conditions श्री रत्नेश केसरी के शपथ पत्र के प्रदर्श R2 के रूप में प्रस्तुत की गयी है। विपक्षी द्वारा प्रस्तुत Terms and Conditions का खण्डन परिवादिनी द्वारा नहीं किया गया है। न ही यह कहा गया है कि पति को Terms and Conditions नहीं दी गयी थीं। बीमा पालिसी की Terms and Conditions में Payment of Premium, Grace Period, Revival and Dealings with the Policy के सम्बन्ध में निम्न शर्त अंकित है;
3) Payment of Premium, Grace Period, Revival and Dealings with the Policy
a) Regular Premium is payable in the amounts, specified in the Schedule, at the Premium Frequency and for the Premium Payment Term. Regular Premium shall become due on every Policy Anniversary, if the Premium Frequency is annual. If the Premium Frequency is half yearly, then the
-6-
Regular Premium shall become due on the day corresponding with the Commencement Date in every half-year. If the corresponding day does not exist in a particular month, then the last day of that month shall be deemed to be the due date. You may change the mode of payment of Regular Premium i.e. Premium Frequency on any Policy Anniversary by giving Us written notice at least thirty (30) days before that Policy Anniversary. The change in Premium Frequency shall be effected by an endorsement by Us to the Schedule and subject to the payment of the alteration charges specified in the Schedule.
b) If We have not received the Regular Premium in full by the date on which it was due to Us, then We shall allow a grace period of 30 days for You to pay the Regular Premium to Us. During this grace period all benefits applicable under the Policy and Rider benefits, if any will be available.
c) If We do not receive the due Regular Premium in full within the grace period, then:
(1) This Policy and any Riders, if any shall immediately and automatically lapse and no amounts
-7-
will be payable under the Policy or any Riders on the occurrence of Insured’s Death.
(2) You may give Us written notice to revive the Policy and the Riders, if any during the Premium Payment Term and within two (2) years of the due date of the first unpaid Regular Premium and provide Us with all information or documentation We request. You understand and agree that:
(i) You shall pay in advance the due Regular Premium in full and the interest specified by Us and the revival fee specified in the Schedule. You shall also bear all costs of medical examination and special tests.
(ii) Even if You have submitted all the information and documentation sought there is no obligation on Us to revive the Policy or revive it on the same terms and the revival is subject to Our underwriting requirements, as applicable from time to time.
(iii) The revival of the Policy shall only be effective from the date on which We have issued a written endorsement confirming the revival of the Policy.
(3) If We do not receive Your notice to reinstate the
-8-
Policy within two (2) years of the due date of the first unpaid Regular Premium then the Policy and Riders, if any shall automatically terminate and no amount shall be payable under or in relation to the Policy.
d) No loan shall be granted under this Policy.
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादिनी के पति ने अपनी प्रश्नगत पालिसी की वर्ष 2016 में देय प्रीमियम निश्चित अवधि में न जमा कर दिनांक 18.03.2017 को नियत अवधि के बाद grace period समाप्त होने के बाद प्रीमियम धनराशि लेट फीस व अन्य देयों के साथ विपक्षी बीमा कम्पनी को भेजा है, जिसे बीमा कम्पनी ने एक माह से अधिक रखने के बाद परिवादिनी के पति के बैंक खाता में वापस किया है। परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार बीमा कम्पनी ने परिवादिनी के पति को त्रुटि निवारण हेतु सूचना नहीं भेजा है, जबकि बीमा कम्पनी के अनुसार परिवादिनी के पति को त्रुटि निवारण हेतु आवश्यक औपचारिकता पूरी करने हेतु पत्र दिनांक 21.03.2017 को भेजा गया है। S.M.S. के माध्यम से भी पत्र परिवादिनी के पति को इस सन्दर्भ में भेजा गया है। उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पत्र दिनांक 21.03.2017 परिवादिनी के पति को प्राप्त होना साबित नहीं होता है। S.M.S. द्वारा सन्देश परिवादिनी के पति के मोबाइल पर ही भेजा गया है यह प्रमाणित नहीं किया गया है, परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी की तरफ से श्री रत्नेश केसरी के शपथ पत्र की धारा 17 में स्पष्ट रूप से कथन
-9-
किया गया है कि परिवादिनी के पति के खाता में उनके द्वारा वर्ष 2016 में देय प्रीमियम के सम्बन्ध में विलम्ब से भुगतान की धनराशि दिनांक 17.04.2017 को वापस की गयी है। परिवादिनी ने इसका खण्डन नहीं किया है। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 31.05.2017 को हुई है। अत: स्पष्ट है कि उनके जीवन काल में ही मृत्यु के काफी पहले प्रीमियम के विलम्ब से भुगतान की धनराशि बीमा कम्पनी द्वारा उनके बैंक खाता में वापस की गयी है, जिस पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की है और न ही Revival की औपचारिकता पूरी की है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जनरल एश्योरेंस सोसाइटी बनाम चन्द्रमूल जैन A.I.R. 1966 S.C. 1644 के निर्णय में कहा है कि, “In interpreting documents relating to a contract of insurance, the duty of the court is to interpret the words in which the contract is expressed by the parties because it is not for the court to make a new contract, however reasonable, if the parties have not made it themselves.”
Life Insurance Corporation of India Vs. Jaya Chandel (2008) 3 S.C.C. 382 के निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि, “of course a lapsed policy can be revived and revival takes effects only after the same is approved by L.I.C and is specially communicated to the
-10-
Insured. But it can be revived during the life time of the Insured.”
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परिवादिनी के पति की प्रश्नगत पालिसी 2016 की प्रीमियम धनराशि का भुगतान निर्धारित अवधि में न करने से Lapse हो चुकी थी और Terms and Conditions के अनुसार औपचारिकता पूरी कर परिवादिनी के पति ने उसका Revival नहीं कराया है। अत: पति की मृत्यु के बाद परिवादिनी अपने पति की प्रश्नगत पालिसी का लाभ पाने की अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1